इंडियाज डॉटर : प्रतिबंधित क्यों?
19-Mar-2015 09:44 AM 1234790

लेस्ली उडविन की डॉक्यूमेंट्री इंडियाज डॉटर ने भारत की सरकार को हिला दिया है। संसद में इस फिल्म को प्रतिबंधित करने को लेकर व्यापक बहस हुई। ज्यादातर सांसद इस बात के लिए लामबंद हो

गए कि यह डॉक्यूमेंट्री भारत की छवि को विश्व में बदनाम करेगी।

 

भारत सरकार ने यह डॉक्यूमेंट्री प्रतिबंधित कर दी है। सरकार का कहना है कि इसमें दिखाया गया बलात्कारी मुकेश का साक्षात्कार एक बलात्कारी को महिमामंडित करने की कोशिश है, जिससे समाज में गलत संदेश जाएगा और भारत की छवि खराब होगी। विडम्बना यह है कि भारत में भले ही यह डॉक्यूमेंट्री प्रतिबंधित हो गई हो लेकिन दुनियाभर में देखी जा चुकी है।  जब सारी दुनिया देख चुकी है तो छवि खराब हो या अच्छी, अब क्या फर्क पड़ता है? प्रतिबंध लगाना था तो इसके निर्माण पर ही लगाना था, अब प्रतिबंध का क्या औचित्य है?

इस डॉक्यूमेंट्री की निर्माता लेस्ली उडविन पिछले दो वर्ष से भारत में हैं। वे परिवार और बच्चों को ब्रिटेन छोड़कर भारत में आईं हैं। उनके पति परिवार की देखरेख कर रहे हैं। उडविन का कहना है कि यह डॉक्यूमेंट्री बनाने की प्रेरणा उन्हें 16 दिसंबर 2012 में घटे निर्भया प्रकरण के बाद सारे भारत के गुस्सेे को देखते हुए मिली। विश्व के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब किसी स्त्री के साथ वीभत्स बलात्कार के बाद पूरा देश उबल पड़ा। वे भारत के लोगों द्वारा किए गए इस विरोध प्रदर्शन से अभिभूत थीं और उसे अपनी डॉक्यूमेंट्री में उतारना चाहती थीं। उडविन का कहना है कि यह डॉक्यूमेंट्री भारत की छवि बिगाड़ेगी नहीं बल्कि निर्मित करेगी क्योंकि भारत की पहचान एक ऐसे देश के रूप में बनेगी, जहां की जनता स्वयं आगे आकर महिला अधिकारों के लिए लड़ती है और महिलाओं के लिए न्याय की मांग करती है। उडविन की दलील है कि इस डॉक्यूमेंट्री का विरोध करने वाले इसे एक बार देखें अवश्य। पर उडविन की यह दलील किसी को स्वीकार्य नहीं है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि एक बलात्कारी का साक्षात्कार अनुचित है। सरकार इस फिल्म का प्रदर्शन करने के लिए बीबीसी के खिलाफ भी कार्यवाही करने की तैयारी में है। बीबीसी भारत में इस डॉक्यूमेंट्री को प्रदर्शित नहीं किया है लिहाजा उसके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता। डॉक्यूमेंट्री निर्माता सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए हैं।

सवाल यह है कि एक विदेशी महिला पिछले दो साल से एक अत्यंत गंभीर विषय पर डॉक्यूमेंट्री निर्मित कर रही थी और किसी को पता भी नहीं। यूपीए सरकार में उस वक्त के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कथित रूप से उडविन को डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए तिहाड़ जेल में जाकर आरोपी मुकेश से चर्चा करने की स्वीकृति प्रदान की। हालांकि शिंदे ऐसी किसी भी स्वीकृति से इनकार कर रहे हैं।

बात करने की स्वीकृति किसने दी? कौन जिम्मेदार है? एक विदेशी महिला ने देश की सबसे सुरक्षित जेल में फांसी की सजा पा चुके अपराधी से मुलाकात कर ली। क्या यह मुलाकात कोर्ट से अनुमति के बाद ही संभव थी? क्या कोर्ट की अनुमति ली जानी थी? क्योंकि फास्ट ट्रेक कोर्ट सजा सुना चुका था। यह ऐसे सवाल हैं जिनके घेरे में बहुत से लोग आ सकते हैं। जेल की सुरक्षा व्यवस्था और कैदियों तक पहुंच के तमाम स्तर, इन सब पर सवाल खड़ा हो सकता है। जेल के भीतर कैमरे कैसे गए? किसने आज्ञा दी?

70 के दशक में जब रंगा-बिल्ला नामक खूंखार हत्यारों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, उस समय भी उनके साक्षात्कार को लेकर बहुत हंगामा हुआ था। उसके लिए कोर्ट से अनुमति ली गई थी। चाल्र्स शोभराज तो जेल मेंं साक्षात्कार देने के लिए पैसे भी लिया करता था। दुनियाभर में खूंखार अपराधियों के साक्षात्कार जेल में या जेल के बाहर लिए गए हैं। नक्कीरन के संपादक ने जब वीरप्पन का घने जंगल में जाकर इंटरव्यू किया था, उस वक्त भी सवाल उठाए गए थे कि इस तरह के अपराधियों को इतनी पब्लिसिटी देना क्या उचित है?

लेकिन यहां मामला अलग है। यहां जिसको पब्लिसिटी दी गई है, वह एक बलात्कारी है। डॉक्यूमेंट्री का समर्थन करने वालों का कहना है कि इससे एक बलात्कारी की मनोवृत्ति का पता लगाया जा सकेगा। ऐसे लोगों का अध्ययन करके समाज इन पर अंकुश लगाने का काम कर सकता है। कुछ भी हो लेकिन प्रतिबंध हास्यास्पद ही कहा जाएगा। जिस डॉक्यूमेंट्री को भारत के अलावा सारी दुनिया देख चुकी है, जो इंटरनेट पर लंबे समय तक उपलब्ध रही और भारत में भी लाखों लोगों द्वारा देख ली गई। उस पर अब रोक से क्या अर्थ निकलेगा? भारत में इसीलिए एक लंबी बहस चल रही है।

लेकिन इस बहस से अलग एक सवाल यह भी है कि भारत की संस्थाएं देर से जागृत क्यों होती हैं? सरकार का कहना है कि डॉक्यूमेंट्री की निर्माता नेस्ली उडविन ने शर्तों का उल्लंघन किया और डॉक्यूमेंट्री का व्यावसायिक इस्तेमाल करने का प्रयास किया। हालांकि उडविन ने इसका खंडन किया है। उनका कहना है कि उन्होंने जेल अधिकारियों को स्पष्ट कर दिया था कि ऐसी डॉक्यूमेंट्री बनाना बहुत खर्चीला हो सकता है इसलिए इन्हें व्यावसायिक तौर पर बेचना ही पड़ता है। जाहिर है उडविन ने हर कदम फंूक-फंूक कर रखा होगा। इसलिए सरकार द्वारा उडविन को आरोपित करना गले नहीं उतर रहा। सरकारी अधिकारियों ने अपनी गलतियों का बोझ डॉक्यूमेंट्री निर्माता पर डालने की कोशिश भर की है। यदि सरकार पहले ही चेत जाती तो मामला इतना आगे न बढ़ता। सरकारी अधिकारियों ने कदम-कदम पर गलती की। पहले तो मुकेश से बात करने की अनुमति प्रदान कर दी। उसके बाद जब हंगामा मचा, तो उडविन को तलब करके डॉक्यूमेंट्री का गैर संपादित अंश एक तीन सदस्यीय समिति ने देखा। उडविन बताती हैं कि इस समिति ने गैर संपादित अंश देखने में कोई रुचि नहीं दिखाई। वे 4-5 घंटे बैठने के पक्ष में नहीं थे, उन्होंने थोड़ा देखने के बाद ही डॉक्यूमेंट्री को बंद करवा दिया। बाद में कई अड़ेंगे डाले गए लेकिन अंतत: डॉक्यूमेंट्री जब क्लीयर हो गई तब उसे प्रतिबंधित कर दिया गया। इस डॉक्यूमेंट्री में बहुत कुछ ऐसा है जो कड़वी सच्चाई है। मुकेश के इंटरव्यू पर बहस हो सकती है। उसे दिखाया जाना चाहिए या नहीं, लेकिन डॉक्यूमेंट्री में दिखाए गए अन्य दृश्य हमारे समाज का आईना हैं। जिस तरह उन दो वकीलोंं ने बयान दिये हैं उससे साफ पता चलता है कि लैंगिक संवेनशीलता पुलिस ही नहीं, न्यायपालिका और कार्यपालिका में भी होनी बहुत जरूरी है। उन वकीलों के बयान सुनकर हैरानी होती है। इतने वीभत्स बलात्कार के बाद भी वे महिलाओं को ही हिदायत दे रहे हैं कि महिला को देर रात अकेले नहीं घूमना चाहिए और जाना जरूरी है तो किसी परिजन को साथ ले जाना चाहिए। ऐसे कितने बयान सुने हैं। संसद में जब जावेद अख्तर इस मुद्दे पर बहस कर रहे थे, उस वक्त उन्होंने भी कहा कि मुकेश के इंटरव्यू से ज्यादा घृणास्पद बातें तो इस सदन में की जा चुकी हंै। अख्तर के बयान में सच्चाई छुपी हुई है। मुंबई में जब एक खाली पड़ी मिल में किसी महिला पत्रकार के साथ बलात्कार हुआ तो उसका ही दोष माना गया कि वह वहां गई क्योंं थी। मुलायम सिंह यादव ने तो यह तक कह दिया कि लड़के हैं गलती हो जाती है। इस तरह की मनोवृत्ति वाले समाज को झकझोरने के लिए यदि एक विदेशी महिला ने डॉक्यूमेंट्री बनाई है तो उस पर इतना हंगामा क्यों है? हंगामा मचाने वालों को यह क्यों नहीं समझ में आता कि डॉक्यूमेंट्री हमारे समाज की कड़वी हकीकत है। इस पर प्रतिबंध लगाकर हम क्या छिपा लेंगे? जो है वह दिख रहा है, दुनिया देख रही है। दुनिया को कहां तक देखने से रोकेंगे? भारत में प्रतिबंध से क्या होगा? बाकी देशों में भी तो प्रतिबंध लगना चाहिए लेकिन वे भला क्यों प्रतिबंधित करेंगे? उन्हें क्या पड़ी है? आंकड़े बताते हैं कि निर्भया प्रकरण के बाद भारत में आने वाली विदेशी महिला पर्यटकों की संख्या में बहुत गिरावट आई है। निर्भया प्रकरण भारत की छवि को पहले ही पर्याप्त नुकसान पहुंचा चुका है। उडविन का कहना है कि वे तो भारत की लड़ाई को दुनिया को दिखाने के लिए भारत आई थीं। बलात्कार की घटनाएं तो हर देश मेें घटती हैं लेकिन यह एक घटना इसलिए अलग थी कि इसके बाद सारा देश एकजुट हो गया और महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने वालों को दंड देेने की मांग करने लगा।

-विकास दुबे

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