अन्ना के मंच पर वाइको, केजरीवाल
04-Mar-2015 12:33 PM 1234778

केंद्र्र सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ जब अन्ना हजारे ने दिल्ली में धरना दिया तो इस बार राजनीतिज्ञ उनके लिए अछूत नहीं थे। अन्ना ने मंच पर अपने पुराने मित्र अरविंद केजरीवाल के अलावा एमडीएमके नेता वाइको को भी स्थान दिया। भाजपा से लंबे समय से बाहर चल रहे के.एन. गोविदांचार्य भी अन्ना से जुड़ गए हैं। भूमि अधिग्रहण कानून अच्छा है या बुरा इस पर संसद में बहस चल रही है। सरकार का अपना पक्ष है और विपक्ष की अपनी आपत्तियां हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ वाइको का अन्ना के मंच पर आगमन अन्ना आंदोलन के घुर समर्थकों को परेशान कर रहा है। अन्ना अपने आंदोलनों में राजनीति से दूरी बनाए रखते हैं, जानकारों का कहना है कि अन्ना राजनीति से भले ही दूर रहें पर केजरीवाल से दूर रहना उनके लिए संभव नहीं है, क्योंकि केजरीवाल और उनकी टीम ही अन्ना को वह मसाला उपलब्ध कराने में सक्षम हैं जिसके चलते अन्ना इस लड़ाई को ज्यादा पैनेपन से लड़ सकते हैं। दिल्ली में भी अन्ना की यही मजबूरी उभरकर सामने आई। समझदार अन्ना यह अच्छी तरह जानते थे कि केजरीवाल मंच पर नहीं होंगे तो भीड़ कहां से आएगी। आस-पास के इलाकों से 4-5 हजार किसान अवश्य पहुंचे थे, लेकिन इतनी कम भीड़ देखने के अन्ना आदी नहीं हैं। उन्हें तो वह बड़ी भारी भीड़ सुहाती है जो उनके इशारे पर कुछ भी करने को आमादा रहती है। पर अब अन्ना के पास न संसाधन हैं और न ही केजरीवाल जैसे साथी। मेधा पाटकर  को देखकर जनता ऊब चुकी है, फिर नर्मदा बचाओ आंदोलन भी दिशाहीन होकर भटक गया है। इसलिए अन्ना ने केजरीवाल को पहले आशीर्वाद दिया और बाद में मंच पर भी बुला लिया।  इससे पहले दिल्ली में ही ममता बनर्जी की रैली का अन्ना हजारे ने बहिष्कार कर दिया था क्योंकि ममता भीड़ जुटाने में असफल रही थीं। केजरीवाल को साथ लाकर अन्ना ने भीड़ भले ही अच्छी-खासी जुटा ली पर उनकी विश्वसनीयता कटघरे में खड़ी हो गई। केजरीवाल और वाइको दोनों राजनीतिज्ञ हैं, केजरीवाल तो सत्ता सुख भी भोग रहे हैं। वाइको को अवसरवादी राजनीतिज्ञ कहा जाता है। वे तमिल भाषा और तमिलों की संकीर्ण राजनीति करते हैं।  अन्ना अपने आंदोलन के लिए कुछ अच्छे साथी भी चुन सकते थे।
बहरहाल जिस भूमि अधिग्रहण अधिनियम को लेकर अन्ना आंदोलन पर उतारू हैं, उसे पहले तो सरकार ने अपने बूते पारित करने की कोशिश की लेकिन जब बात बिगडऩे लगी तो नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के उपयोगी संशोधनों को लागू करने का आश्वासन देकर विपक्ष के तेवरों को शांत करने का प्रयास किया। भाजपा का कहना है कि मूल रूप से यह विधेयक वैसा ही है जैसा यूपीए सरकार ने प्रस्तावित किया था। एनडीए सरकार ने उसमें 5-6 प्रावधान जोड़े हैं, जिन्हेें लेकर बवाल मचा हुआ है। अब सरकार के रुख के बाद आम सहमति बन सकती है।
दिलचस्प यह है कि जब कांग्रेस ने ऐसा ही विधेयक सदन में प्रस्तुत किया था उस वक्त भाजपा ने कुछ संशोधनों के साथ इसका समर्थन किया लेकिन सदन में आते ही भाजपा ने अपने ही समर्थित विधेयक को बदल दिया। अब विपक्ष पूछ रहा है कि जब बदलना ही था तो भाजपा ने पहले समर्थन क्यों किया? इसे पारित कराने की जल्दबाजी क्यों है? भाजपा सरकार जल्दबाजी में है इससे इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि विधेयक में बहुत कुछ ऐसा है जिसके चलते सरकार को चुनाव में किये गये वादे निभाने में सहायता मिलेगी। यदि समय पर विधेयक नहीं आया तो सरकार विकास के कामों को अंजाम नहीं दे सकेगी। विपक्ष या कांग्रेस को तो शायद मना भी लिया जाए, लेकिन अन्ना को राजी करना आसान नहीं है। फिलहाल भाजपा इस स्थिति में नहीं है कि वह किसी जन-आंदोलन का सामना कर सके। इसलिए अन्ना का आंदोलन भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती है। अन्ना ने आरोप लगाया है कि अच्छे दिन पूंजीपतियों के आए हैं। उनका कहना है कि भूमि अधिग्रहण बिल अलोकतांत्रिक है, किसान विरोधी है। अन्ना 4 महीने बाद जेल भरो आंदोलन भी करने वाले हैं, उस समय बिहार के चुनाव करीब होंगे। उन्होंने पूछा है कि उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार किसानों से धोखा कैसे कर सकती है?  सरकार उसी तरह जमीन लेने की तैयारी में है, जैसे अंग्रेज करते थे। ऑर्डिनेंस लाने की जरूरत क्या है, जब एक्ट 2013 में पास हो चुका है।
क्या थी औद्योगिक आशंकायें ?
इन प्रावधानों को लेकर कई औद्योगिक घरानों ने आशंका व्यक्त की थी कि इनके कारण भूमि की कीमतें बढेंग़ी और कीमतें बढऩे से उद्योगों की ढांचागत लागत 3 से 5 प्रतिशत तक बढ़ जायेगी। भवन निर्माण परियोजनाओं में लागत वृद्धि 25 प्रतिशत तक होगी। देश के औद्योगिक और व्यापारिक संगठन आलोचना कर रहे हैं कि इस कारण उत्पादन व निर्माण उद्योग चरमरा जायेगा। सामाजिक आंकलन के प्रावधान के कारण परियोजनायें समय पर शुरु नहीं हो पायेंगी। पीपीपी परियोजनायें प्रभावित होंगी। खनन उद्योग बाधित होगा। औद्योगिक क्षेत्र की इन्हीं आशंकाओं की बिना पर मोदी सरकार ने कई संशोधन किए।
सत्याग्रहियों की मांग
मोदी सरकार द्वारा किए उक्त संशोधनों का विरोध में अन्ना व साथी सत्याग्रहियों की मांग है कि भूमि अधिग्रहण कानून संबंधी संशोधन विधेयक-2014 रद्द हो। सभी आवासहीन भारतीय नागरिकों को आवास मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय आवास भूमि अधिकार गारंटी कानूनÓ बने। भूमिहीन खेतिहर मजदूर परिवारों को खेती के भूमि आवंटन हेतु राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बने। वनाधिकार मान्यता अधिनियम-2006 तथा पंचायत विस्तार विशेष उपबंध अधिनियम-1996 के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु कार्यबल का गठन हो।
भाजपा किसानों के पास पहुंची
संसद में भूमि सुधार अधिनियम प्रस्तुत करने के बाद भाजपा अब किसानों की शरण में गई है। ताकि किसानों का भय कम हो सके। भाजपा प्रमुख अमित शाह ने एक 8 सदस्यीय समिति का गठन किया है, जो किसानों की सलाह मानकर सरकार को देगी। गृहमंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि किसानों के सुझावों को महत्व दिया जाएगा। राज्यसभा में सरकार पहले ही कह चुकी है कि वह विधेयक प्रस्तुत करने से पहले इस पर गहन विचार-विमर्श करेगी। उधर कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने आरोप लगाया है कि सरकार संसद को रबर स्टैम्प बनाना चाहती है, इसलिए सरकार ने स्टैंडिंग कमेटी को कुछ नहीं भेजा। इस मुद्दे को लेकर अरुण जेटली और आनंद शर्मा के बीच राज्यसभा में तीखी बहस हुई। प्रधानमंत्री सांसदों को साप्ताहिक बैठक के दौरान पहले ही बता चुके हैं कि भूमि अधिग्रहण कानून से किसानों को लाभ होगा। प्रधानमंत्री इस मामले में सहयोगी दलों से भी बात कर चुके हैं। खास बात यह है कि अगले कुछ हफ्तों में सरकार को संसद में 8 विधेयक पारित कराने हैं नहीं तो वे निरस्त हो जाएंगे। लोकसभा में सरकार का बहुमत है किंतु राज्यसभा में सरकार अल्पमत में है। इसलिए विपक्ष का आक्रामक रवैया सरकार को भारी पड़ रहा है। कई मौकों पर सरकार को समर्थन दे चुके बीजू जनता दल जैसे दल भी भूमि अधिग्रहण कानून पर सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं।

क्या थे पूर्व प्रावधान?
कानून में कहा गया था कि विशुद्ध निजी परियोजना के लिए 80 प्रतिशत और सरकारी व पीपीपीÓ परियोजनाओं के लिए 70 प्रतिशत भू-मालिकों की सहमति के बगैर भूमि अधिग्रहण संभव नहीं होगा। पांच साल के भीतर अधिग्रहित भूमि का उपयोग न करने अथवा पूरा मुआवजा न चुकाने पर भूमि भू-मालिक, उसके उत्तराधिकारी अथवा राज्य द्वारा स्थापित भूमि-बैंक को वापस लौटानी होगी। शर्त यह भी कि पूरा मुआवजा देने के बाद ही भूमालिक को जमीन खाली करने को कहा जा सकेगा। अधिग्रहण पूर्व प्रत्येक परियोजना के सामाजिक पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन जरूरी होगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करेगा कि नुकसान करने से पहले परियोजना उसका समाधान करे। राहत व पुनर्वास के 14 कानून इस नये कानून का हिस्सा हों। पुनर्वास की स्थिति में भूमालिक को मकान के लिए जमीन मिलेगी। भूमालिक को अधिकार होगा कि वह एक मुश्त भत्ता, मंहगाई के अनुसार परिवर्तनशील मासिक भत्ता अथवा परियोजना में प्रति परिवार एक आवश्यक रोजगार में से किसी एक विकल्प को चुन सके। इन प्रावधानों के अलावा सरकार ने तय किया था कि वह अब चिकित्सा, शिक्षा व होटल श्रेणी की किसी निजी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण नहीं करेगी। परमाणु ऊर्जा, रेल तथा राष्ट्रीय-राज्यीय राजमार्ग भूमि अधिग्रहण प्रावधानों के दायरे में नहीं आयेंगे। लेकिन सेना, पुलिस, सुरक्षा, सार्वजनिक, सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त अथवा प्रशासित शिक्षा-शोध संस्थान, स्वास्थ्य, पर्यटन, परिवहन, अंतरिक्ष संबंधी परियोजनायें, कानून द्वारा स्थापित कृषक सहकारी समितियों से लेकर औद्योगिक गलियारे, सेज, खनन, राष्ट्रीय निवेश एवं निर्माता क्षेत्र व जलसंचयन परियोजनाओं पर सभी प्रावधान लागू होंगे।

मोदी सरकार द्वारा किए संशोधन
सरकारी-गैर सरकारी किसी भी परियोजना के लिए अधिग्रहण हेतु कुल भू-मालिकों में से 70 फीसदी की सहमति की शर्त हटा दी गई है। सिंचित कृषि भूमि के अधिग्रहण पर लगी रोक को खत्म कर दिया है। बिना सामाजिक आकलन किए अधिग्रहण को मंजूरी न करने की शर्त को भी अब नहीं रही। अधिग्रहित भूमि को उपयोग न करने की स्थिति में भूमि वापस भू-मालिकों को लौटाने वाली शर्त में भूमि उपयोग न करने की अवधि पांच साल से बढ़ाकर पन्द्रह साल की। पहले अधिग्रहण के वक्त दर्शाये गये उपयोग व मालिकाने में परिवर्तन की अनुमति नहीं थी। अब यह संभव होगा। अधिग्रहण की सारी शक्तियां जिलाधीश के अधीन कर भूमि अधिग्रहण की लोकतांत्रिक दखल की संभावना को समाप्त किया। भूमि विवाद की स्थिति में मामला अदालत में लंबित हो, तो भी अधिग्रहण करने का प्रावधान किया।
- बिंदु माथुर

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