18-Mar-2015 01:42 PM
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेशल्स, मॉरीशस और श्रीलंका यात्रा ने इन छोटे देशों के साथ भारत के संबंधों की पुरानी यादों को फिर से ताजा कर दिया। श्रीलंका में राजीव

गांधी की यात्रा के 28 वर्ष बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री यात्रा पर पहुंचा। यात्रा से पहले माहौल थोड़ा खराब था। श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानेल विक्रम सिंघे ने भारतीय मछुआरों को श्रीलंका की सीमा में घुसने पर गोली मारने की धमकी दे डाली थी लेकिन बाद में उन्होंने अपना सुर थोड़ा नरम किया। इसीलिए प्रधानमंंत्री की श्रीलंका यात्रा में थोड़ी गरम जोशी दिखाई दी। सिलोन चेम्बर्स ऑफ कामर्स को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसके पड़ोस पर निर्भर करता है। हमें शांतिपूर्ण पड़ोस की आवश्यकता है ताकि हम राष्ट्रीय विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकें। मोदी का संदेश स्पष्ट था-उन्होंने परोक्ष रूप से श्रीलंका को सलाह दी कि वह चीन के निकट जाने से परहेज करे क्योंकि इससे भारत की घेराबंदी बढ़ेगी और क्षेत्र में असंतुलन पैदा होगा। मोदी ने भारत और श्रीलंका की व्यापक आर्थिक भागीदारी की वकालत की।
श्रीलंका की संसद में उन्होंने भारत और श्रीलंका के एतिहासिक रिश्तों को रामायणकाल से लेकर बौद्ध धर्म के श्रीलंका में आगमन तक जोड़ा। अनेक उदाहरणों के द्वारा उन्होंने बताया कि भारत और श्रीलंका सुख-दुख के साथी रहे हैं। प्रधानमंत्री ने श्रीलंका को 1.6 अरब अमेरिकी डालर की विकास सहायता तथा रेलवे के विकास के लिए 31.8करोड़ डॉलर की सहायता का वचन दिया। साथ ही कई क्षेत्रों में मिल-जुलकर काम करने की बात कही। महाबोधि सोसायटी में प्रधानमंत्री ने बौद्ध भिक्षुओं से आशीर्वाद की कामना करते हुए कहा कि बुद्ध हम सब को जोड़ते हैं उनका प्रभाव सभी जगह है। आज विश्व जिन संकटों से गुजर रहा है उसमें बुद्ध का मार्ग ही है जो युद्ध से मुक्ति दिलाता है। 14 मार्च को जाफना सांस्कृतिक केेंद्र की आधारशिला रखने के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि शांति, एकता, सद्भावना ये विकास के मूल मंत्र हैं। उन्होंने जाफना में हाउसिंग प्रोजेक्ट की सफलता की कामना की। श्रीलंका के जाफना में तमिलों के उपर अत्याचार के बाद भारत और श्रीलंका के संबंध बहुत बिगड़ गए थे। मोदी की यात्रा से इन संबंधों में सुधार हुआ है। दूसरी तरफ श्रीलंका में भारत के पक्ष वाली सरकार बनने से माहौल भी बदल रहा है। लेकिन मछुआरों की समस्या दोनों देशों के बीच एक गंभीर मसला है। जिसका समाधान आवश्यक है। मोदी ने श्रीलंका में कई योजनाओं की भी घोषणा की और यह प्रयास किया कि जाफना को लेकर श्रीलंका इस तरह से काम करे जिससे वहां तमिलों के दिलों को जीता जा सके।
धरोहर पर चलाया बुल्डोजर
इसिस ने ईराक के मोसुल से 30 किलोमीटर दूर तिगरिस नदी के किनारे स्थित 1250 ईसा पूर्व बसाया गया शहर निमरूद बुल्डोजर चलाकर और हथौड़ों से तोड़कर तबाह कर दिया और दुनिया देखती रही। ऐतिहासिक महत्व की सभी वस्तुएं लूट ली गईं। तर्क यह दिया गया कि ये ऐतिहासिक स्थल इस्लाम विरोधी हैं, क्योंकि यहां बुत रखे हुए हैं। इस्लाम में बुत परस्ती हराम है लिहाजा इन्हेंं तबाह कर दिया गया। मानवता और इतिहास के साथ की गई शर्मनाक हरकत का आइसिस ने वीडियो भी बनाया और बड़ी बेशर्मी से सारी दुनिया को दिखा दिया। दुनिया असहाय सी देखती रही, दुनिया के शक्तिशाली देश जो सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करने और फांसी पर चढ़ाने में पूरी ताकत लगा चुके थे, आइसिस के इस कृत्य पर आलोचना करते ही रह गए। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी इस्लामी आतंकवादी कई ऐतिहासिक धरोहरों को निशाना बना चुके हैं। तक्षशिला में कड़ा पहरा है लेकिन आशंका वही है कि किसी दिन उस ऐतिहासिक धरोहर को आतंकी तबाह न कर डालें। पाकिस्तान के इतिहास में तो वैसे भी कहीं इसका जिक्र नहीं है, उन्हेें शर्म आती है यह बताते हुए कि उनके पूर्वज कौन थे। लेकिन ईराक में सद्दाम हुसैन ने इस अनमोल विरासत को सहेज कर रखा था और इनकी देखरेख पर अच्छा-खासा पैसा खर्च होता था। सारी दुनिया से पर्यटक इतिहास के पन्नों से रूबरू होने के लिए आते थे। पर अमेरिका ने झूठा इल्जाम लगाकर ईराक को तबाह कर दिया आज सारी दुनिया उसी का परिणाम भुगत रही है। इस्लामिक स्टेट इतिहास को ही इस्लाम विरोधी मानता है।
ऑस्ट्रेलिया में भारतीय महिला की हत्या
ऑस्टे्रलिया में एक बार फिर एक भारतीय महिला नस्लीय नफरत की शिकार हो गई। प्रभा अरुण कुमार नामक इस महिला की सिडनी में उसके कार्यस्थल पर ही अज्ञात हमलावर ने चाकू मारकर हत्या कर दी। हालांकि ऑस्टे्रलिया ने इस हत्या को नस्लीय नफरत से प्रेरित मानने से इनकार कर दिया है, लेकिन महिला के परिजन हत्या के लिए नस्लीय भेद-भाव को भी एक कारण बता रहे हैं। सत्य क्या है, यह तो आने वाले समय में ही पता चल सकेगा लेकिन ऑस्टे्रलिया में जिस तरह भारतीयों पर हमले बढ़े हैं, वह एक बहुत बड़ी चिन्ता का विषय है।
लखवी को जमानत
आतंकवाद के तमाम घाव खाने के बाद भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। इस्लामाबाद हाईकोर्ट द्वारा मुंबई हमले के मास्टर माइंड आतंकवादी जकी उर रहमान लखवी की जमानत इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आतंकवाद पर पाकिस्तान का दोहरा मापदंड बदस्तूर जारी है। लखवी के खिलाफ जानबूझकर लचर मुकदमा बनाया गया जिसके चलते उसे जमानत मिल गई। अब भारत ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त को तलब कर लखवी की जमानत पर विरोध प्रकट किया तो पाकिस्तान ने समझौता ब्लास्ट के आरोपियों को सजा देने की मांग कर डाली। उधर अमेेरिका ने भी लखवी की जमानत पर चिंता प्रकट की है। प्रश्न यह है कि पाकिस्तान को किसी दबाव का इंतजार क्यों रहता है। जिस देश में मासूम बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को आतंकवादी बेरहमी से मार रहे हैं। उस देश को अच्छे और बुरे आतंंकवादियों का फर्क क्यों करना चाहिए।
बांग्लादेश में दंगे और अशांति, विपक्ष ने चुनावों को खारिज किया
भारत का पड़ोसी बांग्लादेश राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा है। हाल ही में वहां जब प्रधानमंत्री शेख हसीना का काफिला ढाका के एक व्यस्त व्यावसायिक क्षेत्र से एक रैली को संबोधित करने के लिए गुजरीं, तो चंद मिनट बाद ही कई शक्तिशाली बम फटे। शेख हसीना बाल-बाल बच गईं। यदि वे बम की चपेट में आ जातीं तो कुछ अनहोनी हो सकती थी। खास बात यह है कि यह विस्फोट विपक्षी बीएनपी और अन्य सहयोगी दलों द्वारा जारी परिवहन नाकेबंदी के बीच हुए। अभी यह पता नहीं चला है कि इन विस्फोटों में किसका हाथ है, लेकिन यदि बांग्लादेश के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे के खिलाफ हिंसक रवैया अपना रहे हैं तो यह चिंता का विषय हो सकता है। पिछले 2 माह के दौरान बांग्लादेश में बम धमाकों में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं। फरवरी माह में जब विपक्ष की नेता खालिदा जिया की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए थे, उस वक्त माहौल बिगड़ गया था। माहौल तो वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के बाद से ही बिगड़ा हुआ है। विपक्ष का आरोप है कि इन चुनावों में जमकर धांधली की गई। बीच में सेना ने भी थोड़ी हलचल दिखाई थी तो कहा जाने लगा था कि सेना सत्ता पलट करना चाहती है लेकिन सेना ने इन खबरों का खंडन किया है। पर अशांति बनी हुई है। 2 माह के दौरान ही 10 अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ है। यात्रियों से भरी बसों, ट्रकों और रेलगाडिय़ों पर पेट्रोल बम फेंके जा रहे हैं। वस्त्र उद्योग पर प्रतिकूल असर पड़ा है। देश की अर्थव्यवस्था चौपट होने की कगार पर है। शिक्षा ठप हो गई है। खालिदा जिया कट्टरपंथी जमायते इस्लामी की मदद और हिंसा का सहारा लेकर मौजूदा सरकार पर नया चुनाव कराने का दबाव बनाए हुए है। वह जनवरी, 2014 के चुनाव को नहीं मानतीं। उनके मुताबिक, वह चुनाव निष्पक्ष नहीं था। जबकि शेख हसीना नया चुनाव कराने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि चूंकि खालिदा ने पिछले चुनाव का बहिष्कार किया था, इसलिए अब उन्हें 2019 के चुनाव तक इंतजार करना होगा। जमायते इस्लामी भी सरकार से नाराज है। स्वतंत्र बांग्लादेश के गठन के समय उसने पाक सेना का साथ दिया था, जिस कारण उसके कई नेताओं को मौत की सजा दी गई है। 2011 में शेख हसीना ने संविधान में संशोधन कराकर सर्वदलीय सरकार के तहत चुनाव कराने का रास्ता खोल दिया था। तब से इस मुद्दे पर शेख हसीना व खालिदा जिया के बीच टकराव बना हुआ है।
नशीद को 13 साल कैद
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को 13 साल कैद की सज़ा सुनाई गई है। आतंक विरोधी कानूनों के तहत उन्हें यह सज़ा दी गई है। पूरे विश्व में नशीद की गिरफ्तारी और उन्हें जेल भेजने की निंदा हो रही है। भारत ने भी मालदीव में पनपी इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है और विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हालात पर लगातार नजऱ रखे हुए है। वहां के हालात देखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंद महासागर डिप्लोमेसी यात्रा में मालदीव शामिल नहीं किया गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ये ऐसी स्थिति है जहां सिर्फ चिंता जताकर, दूर रहकर या दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल ना देने की बात भारत के अपने हित के लिए सही कदम है? 1988 में मालदीव में तख्ता पलट की कोशिश हुई थी और उस वक्त के राष्ट्रपति अब्दुल गयूम ने कई देशों से सैन्य मदद की गुज़ारिश की। भारत ने तुरंत फैसला लिया था और ऑपरेशन कैक्टस के तहत वहां पर शांति स्थापित की थी। मालदीव में भी चीन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। साल 2012 में चीन ने मालदीव में पहली बार अपनी एम्बेसी खोली और मालदीव को कम ब्याज पर कर्ज दिए। वहीं इस दौरान जीएमआर प्रोजेक्ट के कारण भारत से मालदीव के संबंध में काफी तनाव में आ गए और अब चीन मालदीव के एक एयपरोर्ट को -अजय धीर