18-Mar-2015 11:41 AM
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जब नरेंद्र मोदी मुफ्ती मोहम्मद सईद का आलिंगन कर रहे थे, उस वक्त उन्हें अंदाजा नहीं होगा कि मुफ्ती साहब इस आलिंगन का मोल इतनी जल्दी चुका देंगे। पहले तो मुफ्ती ने

जम्मू कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए पाकिस्तान और आतंकवादियों का धन्यवाद कर दिया, फिर उनकी पार्टी के विधायकों ने अफजल गुरू के शव की मांग कर डाली, उसके बाद घाटी में पत्थरबाजी कराने वाले अलगाववादी नेता मसरत आलम को रिहा कर दिया गया और अब भारतीय ध्वज के साथ-साथ कश्मीर का प्रथक ध्वज लगाने का फैसला कर उस फैसले को वापस ले लिया गया। आखिर मुफ्ती की मंशा क्या है? जब जम्मू कश्मीर की विधानसभा का नतीजा आया था, उस वक्त मुफ्ती कहां थे? वे चाहते तो उस नतीजे के तुरंत बाद भी आतंकवादियों और पाकिस्तान को धन्यवाद कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने सत्ता पर काबिज होने के बाद जानबूझकर धन्यवाद करने और कृतज्ञता जताने की कोशिश की। इस तरह की कृतज्ञता जताकर मुफ्ती भाजपा को भारी परेशानी में डाल रहे हैं।
बड़ी मुश्किल से तमाम मुद्दों पर बहस और असहमति के बावजूद यह गठबंधन परवान चढ़ा है, पर लगता है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद सरकार से ज्यादा अपने भविष्य को सुरक्षित कर रहे हैं। सईद अलगाववादियों और पाकिस्तान से अच्छे नंबर पाने की लालसा में गठबंधन को खतरे में डाल रहे हैं। निश्चित रूप से यह जानबूझकर किया जा रहा है क्योंकि जिस तबके ने उन्हें वोट दिया है, उसका कश्मीर को लेकर अलग दृष्टिकोण है। इन सब घटनाओं के कारण भारतीय जनता पार्टी दुविधा में है। कश्मीर का निर्णय अब भाजपा के गले की हड्डी बन चुका है, जिसे निगलना और उगलना दोनों ही कष्टप्रद है। भाजपा ने कश्मीर पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय किया है, लगता है कि इस कार्यक्रम में वाणी पर संयम रखने और कश्मीर में अपने अधिकारों का प्रयोग करने के बारे में मुफ्ती को कोई मुफ्त की सलाह देना भी भाजपा ने उचित नहीं समझा। बेहतर यही रहता कि भाजपा कश्मीर में उमर अब्दुल्ला से तालमेल करने की कोशिश करती। मुफ्ती और उनकी पार्टी चुनाव अवश्य लड़ती है लेकिन उसका झुकाव अलगाववादियों की तरफ ज्यादा है। कश्मीर की अधिकतम आजादी को पूर्ण आजादी में बदलने के लिए मुफ्ती इशारों ही इशारों में कई बार संकेत भी दे चुके हैं। भाजपा मुफ्ती पर किस तरह लगाम कसेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि मुफ्ती नहीं रुके, तो कश्मीर पर पाकिस्तानी मंसूबे कामियाब होते नजर आएंगे। मुफ्ती ने जिस तरह पाकिस्तान को क्लीन चिट दी है, उससे पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात रखने का अवसर मिला है। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ एक अंतर्राष्ट्रीय माहौल बनाने की कोशिश की थी, उसे मुफ्ती मोहम्मद सईद के बयान धक्का पहुंचा सकते हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सईद के इस कदम से बहुत नाराज है। आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने मुफ्ती मोहम्मद सईद पर दोहरा मापदंड करने का आरोप लगाया है और पूछा है कि सईद भारतीय हैं या नहीं। उधर शिवसेना ने तो अपने मुखपत्र सामना में सईद को गीदड़ तक कह डाला है। सवाल यह भी है कि भाजपा अपने सिद्धांतों से कब तक समझौता करेगी? यह सब देखकर लगता है कि कहीं हालात अगस्त 1953 की तरह न हो जाएं जब जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्ला को पद से हटाने के बाद गिरफ्तार करना पड़ा था। मुफ्ती कुछ वैसा ही दुस्साहस कर रहे हैं। मुफ्ती के साथ बैठकर सरकार चलाने के तरीके पर पुन: बात करने की जरूरत है।
कौन है मसरत आलम
44 साल का मसरत हुर्रियत के अलगाववादी धड़े का नेता है। उसने 2008 से 2010 के बीच उसने भारत के खिलाफ मुहिम चलाने में अगुवाई की थी। वह सैयद अली शाह गिलानी का करीबी है। जो 2010 में भूमिगत होकर पथराव आंदोलन चला रहा था। कश्मीर सरकार का दावा है कि मसरत को पहले राजनीतिक कैदी के रूप में पकड़ा गया। बाद में उस पर अन्य मामलों के साथ धारा 121 (देश के विरुद्ध युद्ध छेडऩा) लगा दी गई। 10 लाख के इनामी मसरत को 2010 में श्रीनगर के बाहरी इलाके से गिरफ्तार किया गया था। माना जा रहा है कि आने वाली दिनों में जेल में बंद दूसरे अलगाववादी नेताओं को भी रिहा करने का आदेश दिया जा सकता है। मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने शपथ लेने के बाद ही अलगाववादियों को राहत देने की वकालत की थी। उन्होंने इसके लिए अध्यादेश लाने तक की बात कही थी।
-बृजेश साहू