भीड़ के न्याय पर पूर्वात्तर उबला
18-Mar-2015 01:27 PM 1234760

इधर देश के समाचार चैनलों में जब निर्भया की डाक्यूमेंट्री पर बहस चल रही थी, उस वक्त  नागालैंड के दीमापुर में 5 हजार लोगों की भीड़ ने बलात्कार के एक कथित आरोपी को जेल से निकालकर कपड़े उतारकर पहले तो सात किलोमीटर घसीटा और बुरी तरह मारने-पीटने के बाद मृत हो चुके उस व्यक्ति को बीच चौराहे पर फांसी पर भी टांग दिया। पहली बार जिन लोगों ने इस घटना को सुना तो उन्हें लगा कि बलात्कारियों के प्रति देशभर में जो नफरत की ज्वाला धधक रही है, यह उसी का परिणाम है। लेकिन बाद में जब इस पूरे मामले की परतें खुलने लगीं, तो कहानी कुछ और सामने आई।
दरअसल यह पूरा प्रकरण बांगला देशी घुसपैठ से जुड़ा हुआ है। नगा समुदाय अपनी जमीन पर भारत के ही अन्य क्षेत्रों के निवासियों को बर्दाश्त नहीं करते तो फिर बांगलादेशियों को कैसे कर सकते हैं। बलात्कार की घटना को अंजाम देने वाला शख्स कथित रूप से किसी बांग्लादेशी घुसपैठिये के परिवार से था, इसी कारण भीड़ का गुस्सा चरम सीमा पर पहुंच गया। लेकिन सच्चाई मात्र इतनी ही नहीं है, बल्कि इसके कई पहलू हैं। जिस लड़की के साथ बलात्कार हुआ उसका कहना है कि वह बलात्कारी के दोस्त को पहचानती थी। उस दोस्त ने ही उसे साथ चलने का प्रस्ताव दिया था, जिस पर वह राजी हो गई जब उसने उस युवक (मृतक) को भी साथ देखा तो चलने से इनकार कर दिया, लेकिन उसके दोस्त ने, जो कि बलात्कार प्रकरण का सह आरोपी है, लड़की को आश्वासन दिया कि उसके साथ कुछ नहीं होगा। बाद में वह दोस्त दोनों (पीडि़ता और मृतक) को अकेला छोड़कर कहीं चला गया। इसके बाद उस युवक (मृतक) ने पीडि़ता को एक होटल में ले जाकर दो बार बलात्कार किया और फिर छोड़ दिया।
होटल के सीसीटीवी फुटेज में जिस अंदाज में दोनों होटल के अंदर जाते और राजीखुशी वापस बाहर आते दिख रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि बलात्कार का कोई मामला नहीं है, जो कुछ भी हुआ दोनों की आपसी सहमति से हुआ। सरकार भी बलात्कार की बात को खारिज कर चुकी है। एक तरफ तो लड़की का कहना है कि बलात्कारी ने उसे मुंह बंद करने के लिए 5 हजार रुपए दिए थे जो उसने पुलिस को सौंप दिए, वहीं दूसरी तरफ मृतक के भाई ने आरोप लगाया है कि पुलिस रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है। मृतक के भाई का कहना है कि भीड़ ने अकारण ही मौत की सजा दी। मृतक के भाई ने दावा किया कि उनका परिवार भारत का ही मूल निवासी है और उनके परिवार के कई सदस्य भारतीय सेना में भी हैं। नगा काउसिंल ने इस घटना की निंदा तो की है लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि बांगला देशी घुसपैठ नहीं रोकी गईं, तो इस तरह की घटनाएं और बढेंग़ी। पुलिस को भी डर सता रहा है कि कहीं अन्य अपराधियों के साथ भी भीड़ इस तरह का बर्ताव न करे। इस घटना के बाद पूर्वात्तर उबल गया है। असम में धारा 144 लगा दी गई है। एसएमएस और इंटरनेट पर पाबंदी है। 18 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है। ऑल असम मुस्लिम युवा परिषद ने विरोध प्रदर्शन किया है। असम और नगालैंड दोनों जगह कांग्र्रेस की सरकारें हैं। घुसपैठ को लेकर कांग्रेस पर हमेशा से ढुल-मुल रवैया अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। इस घटना के बाद कांग्रेस की दुविधा और बढ़ सकती है। असम में स्थानीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस भाजपा से बुरी तरह पराजित हो गई थी। अब इस घटना के बाद धु्रवीकरण तेज होता है तो कांगे्रस को नुकसान उठाना पड़ेगा। उधर भीड़ द्वारा जिस तरह इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया है, उस पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या लोग भावुकता में इस तरह हत्या कर सकते हैं? भीड़ के सामूहिक गुस्से का कोई विवेक क्यों नहीं होता? कल को यदि यह पता चला कि वह युवक निर्दोष था, तो उसकी हत्या का दंड किसे मिलेगा? पलभर के लिए यह मान भी लिया जाए कि उस व्यक्ति ने गलत काम किया था, तो भी उसे न्याय देने का अधिकार भीड़ का कैसे हो सकता है?
यह प्रकरण हमारी न्याय प्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है। हमारी अदालतों में बहुत से मामले लंबित हैं, बलात्कार के प्रकरणों में फैसला आते-आते डेढ़ दशक लग जाते हैं। इस दौरान लोगों का धैर्य टूटता है। लंबी न्याय प्रक्रिया के कारण न्याय में आस्था डगमगाती है। इसके साथ ही क्षेत्रीय संकीर्णता भी एक बड़ी चुनौती है। कश्मीर में कोई रह नहीं सकता क्योंकि वहां धारा 370 है। नगालैंड में वे बाहरी व्यक्तियों को रहने नहीं देते। असम के आदिवासी क्षेत्रों में भी बाहर के लोगों को खदेड़ दिया जाता है। दिल्ली में पूर्वोत्तर के लोगों को इतना तंग किया जाता है कि उनकी हत्या हो जाती है। महाराष्ट्र में उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों को खदेड़ दिया जाता है। हर जगह यह आग लगी हुई है। इसके पीछे राजनीतिक कारण ही हैं। क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोग अपनी जमीन छोडऩा नहीं चाहते। रोजी-रोटी और रोजगार नहीं छोडऩा चाहते। उन्हें लगता है कि बाहरी लोग आकर उनका हक छीन रहे हैं। नगालैंड में जो कुछ हुआ उसके मूल में भी यही भावना है।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया

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