18-Mar-2015 01:17 PM
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ध्यप्रदेश के किसानों के दुर्दिन समाप्त होने का नाम नहीं ले रहे। पहले बारिश से फसलें तबाह हुईं, कुछ इलाकों में कम वर्षा से जमीन सूख गई और अब मार्च में हो रही

मूसलाधार बारिश तथा ओलावृष्टि ने पहले से ही आर्थिक तंगी झेल रहे किसानों को मायूस कर दिया है। 2000 गावों में फसलें प्रभावित हुई है। होशंगाबाद में तो खड़ी फसल पर अंकुरण उग आए। मुख्यमंत्री ने कहा है कि फसल में जो नुकसान हुआ है उसमें खलिहान की फसल भी कवर होगी। लेकिन सवाल यही है कि पिछला मुआवजा ही अभी तक नहीं मिला अब यह दोहरी मार पड़ी है तो क्या सरकार मुआवजा देने में शीघ्रता करेगी।
ओले के कारण फसलें तबाह
जो लोग यह सोच रहें हैं कि मार्च माह में दोबारा बारिश नहीं होगी वे गलतफहमी का शिकार हैं। मार्च में एक बार फिर बारिश की भविष्यवाणी की गई है। इसी कारण किसान सिहर उठे हैं। उनके जेहन में हाल ही में हुई ओलावृष्टि ताजा हो गई है। कुछ इलाकों में तो इस तरह ओले गिरे हैं जैसे पहाड़ों पर बर्फ गिरती है। एक पखवाड़े के भीतर ही दो बार बारिश ने कहर ढाया। बेमौसम की इस बारिश के चलते किसानों का गेहूं मंडी में गीला हो गया। आम तौर पर सूखा रहने वाला मालवा भी मार्च की बारिश में तरबतर हो गया। इंदौर में तो 47 साल बाद मार्च में इतनी ज्यादा बारिश हुई। भोपाल में भी 9 साल पुराना रिकार्ड टूट गया। प्रदेश के 2000 से अधिक गांवों में 15 मार्च तक ओले और बारिश कहर बरपा चुके थे। राजगढ़ जिले के सारंगपुर में 100-100 ग्राम वजनी ओले गिरे। ऐसा लगा जैसे बर्फबारी हो रही हो। मैदान सफेद हो गए, फसलें जमीन पर बिछ गईं और किसान की आंखें नम हो गईं। जो फसल काटकर रखी थी, वह भी गीली हो गई। 12 हजार 600 हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं और सरसों की फसल को 15 मार्च तक बारिश ने तबाह कर दिया था। 10-15 प्रतिशत नुकसान का प्रारंभिक आंकलन है लेकिन जिस तरह ओले गिरे हैं, उससे रबी की फसलों के अलावा आम के बौर भी नष्ट हो चुके हैं। झाबुआ, राजगढ़ में बिजली गिरने से 3 लोगों की मौत की खबर भी है। मार्च में 24 घंटे के भीतर 22.6 मिमी पानी गिरना किसी आपदा से कम नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह से पानी गिरने से गेहूं की चमक फीकी हो जाएगी। चने का दाना भी काला पड़ सकता है। सरकार ने गेहूं पर बोनस खत्म करने की घोषणा पहले ही कर दी है। अब किसानों को फिक्रहै कि उनका अनाज कहां बिकेगा?
पश्चिमी विक्षोभ के कारण जो नम हवा उत्तर की तरफ बह रही है, वह उत्तर से आती ठंडी हवाओं से जमीन से काफी ऊपर आसमान में टकरा रही हैं जिसके चलते बारिश और ओले लगातार गिर रहे हैं। इस बेदर्द मौसम से कब राहत मिलेगी? कहा नहीं जा सकता। मौसम विभाग बारिश खुलने की भविष्यवाणी तो करता है, लेकिन 10-15 दिन के अन्तर से पानी गिर ही रहा है। 1996-97 में वर्ष भर पानी गिरा था, तब उसे अल-नीनो का प्रभाव कहा गया लेकिन इस बार कश्मीर और हिमाचल में शीतकाल लंबा खिंचने के कारण सारे देश में मौसम का कहर देखने को मिला है। मध्यप्रदेश में जबलपुर, रीवा, सिवनी, बैतूल, उज्जैन, अनूपपुर, रतलाम, नीमच, शिवपुरी, बुरहानपुर, सिंगरौली, राजगढ़, झाबुआ में जमकर ओले गिरे हैं। यहां 2000 गांव ओला प्रभावित थे। भोपाल, इंदौर, उज्जैन, सीहोर, रायसेन, नरसिंहपुर, गुना, होशंगाबाद में तेज बारिश हुई और फसलें आड़ी हो गईं। गेहूं के अलावा मसूर, प्याज, लहसुन, ईसबगोल, सरसों को भी बहुत नुकसान पहुंचा है। मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने सभी कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि तत्काल सर्वे कराए जाएं। पिछले वर्ष भी जमकर बारिश हुई थी। उस समय किसानों को मुआवजा मिलने में बहुत समस्या आई। कई जिलों में मुआवजा बंटने में अनावश्यक देरी हुई।
इस वर्ष भी किसान पुरानी परेशानियों को याद करके चिंतित हैं। पिछली बार सर्वेक्षण में जो गड़बड़ी हुई, उससे किसानों को ज्यादा चिंता लग रही है। 21 से 25 मार्च के बीच बारिश फिर से होने की आशंका है। लेकिन इस परिवर्तन का कारण प्राकृतिक ही है। चीन जाने वाला पश्चिमी विक्षोभ अचानक उत्तर भारत में धीमा हो गया, इसी कारण मार्च में बारिश हुई। इस बार भारत में गेहूं का उत्पादन घटने की आशंका भी है। पिछले वर्ष सारे देश में 9.58 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। कृषि उत्पादन भी 25.21 करोड़ टन रह सकता है जो कि पिछले वर्ष 26.56 करोड़ टन था। मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश में ओलावृष्टि के चलते 5 प्रतिशत तक अनाज का उत्पादन घट सकता है। इन राज्यों में 10 हजार करोड़ की फसल बर्बाद हुई है, जिसमें अकेले मध्यप्रदेश में 3 हजार करोड़ रुपए का नुकसान अभी तक हो चुका है। आलू का उत्पादन घटकर 50 प्रतिशत रहने की आशंका है। यदि पानी और गिरा तो हालात बेकाबू हो जाएंगे। प्रश्न यह है कि व्यापारियों और बीमा कंपनियों के हित में गंभीरता से विचार करने वाली केंद्र सरकार और राज्य सरकारें किसानों को इस आपदा के समय क्या राहत देंगी?
सरकार का खजाना खाली है किसान चिंता से मायूस है
मध्यप्रदेश सरकार ने 100 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है। जो 1450 रुपए क्विंटल के समर्थन मूल्य पर खरीदा जाएगा। इसके लिए सरकार ने कहा है कि आवश्यक धनराशि की व्यवस्था के संबंध मेें केंद्र सरकार से आग्रह किया जाएगा। इसका सीधा अर्थ यह है कि सरकार के पास गेहूं खरीदने के लिए धनराशि नहीं है। गेहंू क्रय के लिए आवश्यक धनराशि 17 हजार 500 करोड़ रुपए के करीब होनी चाहिए। लेकिन 18 मार्च से 19 मई तक चलने वाली गेहूं खरीद के लिए केंद्र से पैसा लिए बगैर सरकार ने खरीदने की घोषणा कैसे कर दी है। 2 हजार 9 सौ 74 केंद्रों पर गेहूं खरीद होगी। पर क्या केंद्र इसके लिए पैसा देगा। केंद्र ने मध्यप्रदेश को मिलने वाले पैसे को एक नहीं कई बार लटकाया है। कांग्रेस के शासन में जितनी आसानी से पैसा निकाल लिया जाता था अब उतनी आसानी नहीं है। मुख्यमंत्री खुद कह रहे है कि वे केंद्रीय वित्त एवं खाद्य मंत्रियों से चर्चा करेंगे। अभी चर्चा नहीं हुई है। दरअसल केंद्र सरकार रिजर्व बैंक के माध्यम से राज्यों को पैसों के लिए बैंक गारंटी देती है। जिसके आधार पर राज्य स्टेट बैंक या अन्य बैंकों से पैसा लेते हैं। लेकिन विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि अभी तक किसी भी राज्य को बैंक गारंटी नहीं मिली है। इसीलिए मामला अधर में लटक सकता है। हालांकि शिवराज को आत्मविश्वास है। दूसरा पेंच यह है कि मध्यप्रदेश में 111 लाख मीट्रिक टन भंडारण क्षमता है। जिसमें अनुमानित 11 लाख मीट्रिक टन का स्टाक पहले ही है। अब 100 लाख मीट्रिक टन सरकार द्वारा खरीदा जा रहा है। इस हिसाब से लगभग 31 लाख मीट्रिक टन गेहूं रखने की व्यवस्था किस तरह की जाएगी यह देखना जरूरी है। क्योंकि सरकार ने भी केवल 80 लाख टन भंडारण की व्यवस्था की है। देखा जाए तो मध्यप्रदेश को केंद्र से 17 हजार करोड़ रुपए की तत्काल आवश्यकता है। लेकिन केंद्र ने अभी कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिए है। सरकार के पास वेतन के लाले पड़ रहे हैं। हाल ही में एक बैठक के दौरान यह फैसला किया गया था कि जब तक केंद्र से पैसा नहीं मिलता तब तक प्रदेश सरकार अपनी जेब से खर्च करे। लेकिन प्रदेश सरकार पहले से ही दिवालिया है। ऐसे में गेहूं खरीद का काम अधर में लटक सकता है। किसान मंडी की तरफ रुख कर रहे हैं लेकिन मंडी में सैकड़ों क्विंटल गेहूं भीग चुका है। किसानों को पिछला बोनस पहले से ही नहीं मिल रहा है। फसल भी ओलावृष्टि के कारण उतनी गुणवत्तापूर्ण नहीं रही। तो सरकार खरीदेगी किस आधार पर। मध्यप्रदेश में 185 लाख मीट्रिक टन गेहूं इस वर्ष पैदा हो सकता है। लेकिन किसानों के लिए इस गेहूं को सही दामों पर बेचना एक चुनौती ही है।