18-Mar-2015 01:08 PM
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मध्यप्रदेश विधानसभा में द्वितीय अनुपूरक बजट के लिए एक दिन का विशेष सत्र 24 मार्च को आयोजित किया जाएगा। फरवरी में आयोजित बजट सत्र में विपक्ष ने मुख्यमंत्री

को बोलने नहीं दिया और सत्तापक्ष ने विपक्ष के किसी विधायक को बोलने नहीं दिया। इस कारण सत्र सुचारू रूप से नहीं चल पाया और जल्दबाजी में ही विधानसभा की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। बिना बहस के मात्र डेढ़ मिनट में 1 लाख 31 हजार 199 करोड़ का बजट पारित कर दिया गया था। उस दिन करीब 9 हजार करोड़ रुपए का अनुपूरक बजट भी कार्यसूची में था, उसे भी पारित कराया जा सकता था। लेकिन सदन में बदहवासी थी इसलिए अब इत्मीनान से 24 मार्च को एक दिन के लिए विशेष बजट सत्र में अनुपूरक बजट पारित होगा और वैट संशोधन विधेयक भी लाया जा सकेगा।
सवाल यह है कि विधानसभा की कार्यवाही जिस पर प्रतिदिन लाखों रुपए का खर्च आता है, इस गैर जिम्मेदाराना अंदाज में कब तक चलेगी? न तो सत्तापक्ष को परवाह है और न ही विपक्ष को। विपक्ष ने मुख्यमंत्री को न बोलने देने के लिए एक नई परम्परा डाली तो सत्तापक्ष ने भी विपक्ष का बहिष्कार करने का नया कारनामा कर दिखाया। कांग्रेस लाइबे्ररी में बैठकर चर्चा करने के लिए तैयार है, लेकिन सदन में उसकी बोलती क्यों बंद हो जाती है? सदन बातचीत और बहस के लिए ही है कांगे्रस सड़क पर लड़ रही थी और सरकार सदन में। इससे सदन का ही समय नष्ट हुआ। मुख्यमंत्री का बहिष्कार किया जाए या नहीं, इस पर भी कांग्रेस एकमत नहीं थी। उस वक्त महेंद्र सिंह कालूखेड़ा सहित कई विधायकों ने मुख्यमंत्री को न बोलने देने के निर्णय का विरोध किया था लेकिन सत्यदेव कटारे सहित विपक्ष के कई विधायकों ने यह एकतरफा फैसला ले लिया। इस बैठक में कांग्रेस के ही बहुत से विधायक नहीं आए थे। महेंद्र सिंह कालूखेड़ा तो साफ स्वीकार करते हैं कि मुख्यमंत्री को न बोलने देना गलत फैसला था और विधायक भी दबी जुबान से इस फैसले को खारिज कर रहे हैं। हालांकि नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सदन में सरकार ने मनमानी करते हुए बीच में ही विधानसभा को स्थगित कर दिया और अब एक दिन का सत्र बुलाकर विधानसभा का मजाक बनाया जा रहा है। उधर रामनिवास रावत ने भाजपा सरकार पर संख्या बल का अहंकार करने का आरोप लगाया है लेकिन असल सवाल वैसा ही है। यदि सदन को चलने ही नहीं देना है तो फिर उसका औचित्य ही क्या है? इस तरह के एक दिवसीय विशेष सत्र केवल खानापूर्ति के सिवा और क्या हो सकते हैं। 6-7 घंटे के कामकाज में क्या निर्णय हो सकेंगे?
एक दिवसीय सत्र आयोजित करने का फैसला हो चुका है। सत्र की अवधि बढ़ाना है अथवा नहीं, यह निर्णय करने का अधिकार सदन को है। यदि कोई प्रस्ताव आता है तो सदन निर्णय करेगा।
सीताशरण शर्मा, अध्यक्ष विधानसभा, मप्र
कुछ दिन पहले आधे घंटे में बजट पारित कर आनन-फानन में विधानसभा स्थगित कर दी गई, फिर अब विशेष सत्र बुलाया जा रहा है। विधानसभा कोई मजाक नहीं है निर्वाचित संस्था है, सरकार इससे ऊपर नहीं है। जब चाहा विपक्ष को भगाकर सदन स्थगित कर दिया गया और जब मन में आया तब सत्र बुला लिया गया। मैं इसकी घोर निंदा करता हूँ।
सत्यदेव कटारे, नेता प्रतिपक्ष
भाजपा सरकार को संख्या बल का अहंकार हो गया है। जिस दिन संख्या बल के आधार पर बजट पारित कराया था उसी दिन सप्लीमेंट्री बजट भी कार्यसूची में था, सरकार उसी तरीके से उसे भी पारित करा लेती। लेकिन उस समय तो सब बदहवास थे इसलिए नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं। आज प्रदेश में किसान दुखी है, फसल तबाह हो गई है। लेकिन सरकार को परवाह नहीं है। जहां तक विशेष सत्र का सवाल है, कांग्रेस संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करती है इसलिए हम उसमें जाएंगे और किसानों की बात रखने की कोशिश करेंगे।
रामनिवास रावत, कांग्रेस
मुझे लगता है कि कोई तकनीकी कारण है। वैसे विधानसभा चर्चा के लिए है, सदन में चर्चा होनी चाहिए तभी जनता के विषय उठ पाते हैं, लेकिन सत्तापक्ष और विपक्ष अड़ जाए तो काम नहीं हो पाता।
केपी सिंह, कांग्रेस
मुख्यमंत्री को बजट सत्र के दौरान न बोलने दिया गया, यह गलत था। कांग्रेस से गलती हुई लेकिन वही गलती सत्तापक्ष ने भी की। जब मैं बहस के लिए खड़ा हुआ, तो पहला प्रश्न मेरा था लेकिन मुझे भी बोलने नहीं दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा भी लेकिन सत्तापक्ष ने तय कर लिया था कि विपक्ष के किसी विधायक को बोलने नहीं दिया जाएगा। जहां तक मुख्यमंत्री को न बोलने देने का प्रश्न है, मैंने नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे से कहा था कि इस फैसले को बदला जाना चाहिए लेकिन तब तक वे अपने निर्णय से प्रेस को अवगत करा चुके थे।
महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा, कांग्रेस
विधानसभा में अनुपूरक बजट पारित नहीं हो पाया इसलिए एक दिवसीय विशेष सत्र आयोजित किया जा रहा है। इसमें कोई खास बात नहीं है।
मानवेंद्र सिंह, भाजपा
-धर्मवीर रत्नावत