04-Mar-2015 12:20 PM
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सागर विश्वविद्यालय में रहते हुए 82 की जगह 151 असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियम विरुद्व भर्ती कर करोड़ों का भ्रष्टाचार करने वाले सागर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.

एन.एस.गजभिये को अंतत सीबीआई ने धर दबोचा। गजभिये ने कई बार सीबीआई को चकमा दिया। लेकिन इस बार सीबीआई ने उन्हें नहीं छोड़ा। आईआईटी कानपुर में हुई इस गिरफ्तारी के बाद सनसनी फैल गई। इस प्रतिष्ठित संस्था में संभवत: यह अपने तरह की पहली घटना है। सागर विश्वविद्यालय में उप कुलपति का पद आनन-फानन में छोड़कर आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर बने गजभिये के विरुद्व सीबीआई ने पिछले वर्ष मई माह में प्रकरण दर्ज करते हुए उन्हें पूूछताछ के लिए कई बार नोटिस जारी किए, लेकिन गजभिये ने कानपुर में ही डॉक्टर की मौजूदगी में पूछताछ की मांग रखी थी। आईआईटी में केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर गजभिए कभी बीमारी तो कभी व्यस्तता का हवाला देते हुए सीबीआई के सामने पेश होने से बचते रहे। कई मौकों पर तो उन्होंने सीबीआई के अफसरों को बाहर बैठाए रखा। सीबीआई ने गजभिये के लखनऊ, कानपुर, गौरखपुर, देहरादून जैसे शहरों में स्थित ठिकानों पर छापे भी मारे। उनके विरुद्व 7 से अधिक मामले में प्रकरण दर्ज किए गए हैं। गजभिये छह माह से लुका-छिपी कर रहे थे, जब सीबीआई ने उन्हें पकड़ा तो पत्नी को देखकर वे फूट-फूटकर रोने लगे।
सागर विश्वविद्यालय की स्थापना प्रथक बुंदेलखंड के सूत्र को ध्यान में रखकर की गई थी। इसके सूत्रधार थे पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, लेकिन बुंदेलखंड की कल्पना तो अधर में रह गई, पर सागर विवि ने केंद्रीय विवि के रूप में अपना अलग वजूद बना लिया, तभी से गजभिए जैसे लोग सत्ता का साथ पाकर मनमानी पर उतारू हो गए।
गजभिये वर्ष 2010 में सागर विश्वविद्यालय में उप कुलपति थे उस समय भर्ती घोटाले ने इतना तूल पकड़ा था कि इसकी गूंज राष्ट्रपति भवन तक सुनाई दी। सीबीआई तभी से सुराग जुटा रही थी। बीच में सीबीआई ने कुलपति, रजिस्ट्रार सहित 4 प्रोफेसरों के घर पर भी छापा मारा और तथ्य पता लगाने की कोशिश की। कुल मिलाकर 25 लोगों को आरोपी बनाया गया। गजभिये के बैंक खाते से 60 लाख के बांड, 26 लाख की एफ डी, सोने-चांदी के जेवर और जमीनों के कागजात भी बरामद हुए। बताया जाता है कि गजभिये ने 172 कर्मचारियों की भर्ती के समय भ्रष्टाचार किया था। सीबीआई की टीम ने दिल्ली, हिमाचल, गुजरात, बिहार से प्रोफेसरों को बुलाकर भी पूछताछ की। भर्ती घोटाले में सीबीआई ने स्क्रूटनी समिति के सदस्यों को भी संदेह के घेरे में रखा है क्योंकि उन्होंने ऐसे आवेदन फार्मों को शामिल कर कॉल लेटर जारी कर दिए जो न्यूनतम योग्यता भी नहीं रखते थे। जो आवेदन निर्धारित तिथि के बाद आए या जिनके फार्म में फीस का ड्राफ्ट नहीं लगा था वे भी कॉल लेटर पाने में कामयाब रहे। कुछ ड्राफ्ट में टेम्परिंग कर पुरानी तारीख डाल दी गई। बहुत से विभागों में रिक्त पदों से ज्यादा उम्मीदवारों की भर्ती कर दी गई। खरीदी में भी घोटाला किया गया। जिसके प्रमाण सीबीआई ने जुटाए। इस घोटाले के उजागर होने के बाद डॉक्टर हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा मिलने के बाद नियुक्त हुए पहले
चांसलर डॉक्टर मणिशंकर अय्यर ने इस्तीफा दे दिया था।
हर जगह घोटाला
सीबीआई का पता चला है कि केमिस्ट्री एवं बॉयोटेक विभाग में भर्ती के दौरान नियमों की जमकर अनदेखी की गई। इन दोनों विभागों के अलावा उर्दू, हिन्दी एवं पत्रकारिता विभाग की नियुक्तियों में भी अनियमितताएं सामने आई हैं। इन विभागों में जिन लोगों की भर्ती की गईं हैं, पात्रता की कसौटी पर वे भी खरे नहीं उतरे हैं।
स्क्रूटनी कमेटी का खेल
स्क्रूटनी कमेटी ने चयन के लिए जो प्रेसी बनाई उसमें बायो केमिस्ट्री के छात्र को अपराधशास्त्र का बता दिया गया। एक मामला ऐसा भी सामने आया जिसमें अनुसूचित जनजाति के छात्र को सामान्य वर्ग का बता दिया गया। स्क्रूटनी कमेटी के जेडी शर्मा, एलपी चौरसिया, यूएस गुप्ता, एसएन लिमये, पीके खरे, आरसी मिश्रा, अलकनंदा फडऩीसकर एवं एस के शुक्ला से सीबीआई की टीम ने पूछताछ की है। इनके अलावा राकेश सोनी, वंदना विनायक, एमएस करना एवं संजीव शर्मा के खिलाफ कार्रवाई की गई है। इनके बैंक एकाउंट आदि को भी फिलहाल सीज कर दिया गया है।
-राजेश बोरकर