04-Mar-2015 12:30 PM
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मालदीव में आतंकवाद का सफाया सरकारी आतंकवाद से किया जा रहा है। हाल ही मेें वहां के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद को सुरक्षाबलों ने जब कोर्ट में घसीटा तो वहां की

सरकार का बर्बर और घिनौना चेहरा उजागर हो गया। नशीद पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है। वे भारत के करीबी माने जाते हैं और उन्होंने 13 फरवरी 2013 को भारतीय दूतावास की शरण ले ली थी। उस वक्त मालदीव के न्यायालय ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया। दरअसल मालदीव में वर्ष 2008 में जब लोकतांत्रिक तरीके से चुुनाव हुए उस वक्त नशीद 30 वर्ष से शासन करने वाले मामून अब्दुल गय्यूम को पराजित कर चुने गए थे, लेकिन 2013 में जब पुन: चुनाव हुए तो कोर्ट ने उन चुनावों को रद्द कर दिया। तभी से इस देश में राजनीतिक अस्थिरता जारी है। नशीद भारतीय दूतावास की शरण में इसलिए गए थे क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार किसी भी देश के दूतावास को उस देश की ही संपत्ति माना जाता है। इसलिए दूतावास में पुलिस नहीं जाती। नशीद को घसीटे जाने की भारत ने कड़ी निंदा की है और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अक्बर उद्दीन ने कहा है कि भारत मालदीव की घटनाओं से चिंतित है।
मालदीव पुलिस ने नशीद को इसलिए गिरफ्तार किया है क्योंकि उन्होंने वर्ष 2012 में राष्ट्रपति रहते समय वरिष्ठ न्यायाधीश अब्दुल्ला मुहम्मद को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। सवाल यह है कि इस तरह का आदेश देने पर आतंकवाद विरोधी कानून कैसे लागू हो सकता है। नशीद इसी मामले में इससे पूर्व भी अक्टूबर 2012 और मार्च 2013 में गिरफ्तार हो चुके है। वर्ष 2012 में जब उन्होंने भारी जनविरोध के बाद राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था तभी से उनकी कुंडली खराब चल रही है। 2013 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में यामीन अब्दुल गयूम की जीत के बाद से नशीद परेशानी में हैं। गयूम भारत के करीबियों में शामिल नहीं हैं। इसी कारण नशीद को ज्यादा यातना झेलनी पड़ रही है। विश्लेषक तो यह भी कहते है कि नशीद भारत से सहानुभूति रखने का खामियाजा भुगत रहे हैं। इसमें कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता, लेकिन भारतीय दूतावास में जब नशीद को शरण दी गई। उस वक्त मालदीव की सरकार ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था। नशीद देश से फरार होने के लिए सुरक्षित रास्ता भी चाह रहे थे, लेकिन सरकार ने उन्हें जकड़ लिया।
मालदीव छोटा सा देश है और 2060 तक इसका अस्तित्व समुद्र में विलीन होने का खतरा भी है।
1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति गयूम की सरकार को विद्रोही हमलों से बचाने के लिए राजीव गांधी सरकार ने ऑपरेशन कैक्टस के तहत अपनी फौज माले इसलिए भेजी थी कि मालदीव केरल के समुद्र तट से केवल तीन सौ किलोमीटर दूर है और वहां भारत विरोधी ताकतों के सत्ता में आने से भारत के सामरिक हितों पर चोट पहुंचेगी। मालदीव में कट्टरपंथी ताकतों को मजबूत करने में पाकिस्तान आईएसआई का इस्तेमाल करता रहा है और इन्हीं ताकतों ने वहां भारत के मुकाबले चीन को खड़ा करने की कोशिश की है। मालदीव में राष्ट्रपति गयूम का तीन दशकों का शासन समाप्त करने के बाद वहां जब वास्तविक जनतंत्र बहाल हुआ तो भारत समर्थक मुहम्मद नशीद राष्ट्रपति बने। लेकिन तीन साल के भीतर ही उन्हें विरोधी राजनीति का शिकार होना पड़ा। जून, 2010 में बर्खास्त राष्ट्रपति नशीद ने माले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के आधुनिकीकरण के लिए 50 करोड़ डालर का ठेका भारत की जीएमआर कंपनी को दिया था। यह ठेका रद्द कर राष्ट्रपति वहीद ने भारत से अपने को स्वतंत्र दिखाने की कोशिश की है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने राष्ट्रपति वहीद को मान्यता प्रदान की थी क्योंकि उन्होंने तब भारत के दबाव में अपनी जनता से वादा किया था कि तीन महीने के भीतर चुनाव करवा देंगे। लेकिन यह चुनाव दो साल खिसका दिया गया है और अगली बार फिर सत्ता में आने की वहीद पूरी तैयारी कर रहे हैं।
भारत के साथ विशेष दोस्ती का नाटक कर राष्ट्रपति वहीद ने अपने पहला विदेश दौरा भारत का किया लेकिन बाद में वह चीन भी गए, जबकि चीन न तो हिंद महासागर का देश है और न ही मालदीव का पड़ोसी है। चीन जाकर वहीद ने एक अहम बयान दिया था कि चीन किसी देश के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है। वहीद का इशारा भारत की ओर था कि वह मालदीव के मामले में दखल न दे। स्पष्ट है कि राष्ट्रपति वहीद भारत को डराने के लिये चीन कार्ड खेल रहे थे। वहीद के राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद मालदीव में सबसे पहले यह मांग उठी कि जीएमआर कंपनी को मिला माले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का ठेका रद्द किया जाए। भारत मालदीव सरकार को यह समझा रहा था कि जीएमआर का ठेका पूरी पारदर्शिता और मालदीव के कानून व अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप ही मिला है। राष्ट्रपति वहीद ने भी यह भरोसा दिया था कि ठेका रद्द नहीं होगा। लेकिन जब वहीद ने यह फैसला ले ही लिया तो भारत ने कड़ी चेतावनी वाला बयान जारी कर कहा कि अपने हितों को बचाने के लिये वह कोई भी कदम उठाने से नहीं चूकेगा।
-अजय धीर