18-Mar-2015 11:02 AM
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आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल अपना प्राकृतिक इलाज करवाने गए हैं और उधर उनकी पार्टी की प्रकृति बदलने लगी है और नेता अपनी मूल प्रवृत्ति की तरफ

लौटने लगे हैं। सभी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों का यह मिलेनियम बगÓ है। जब ज्यादा बहुमत मिलता है, तो अलग-अलग गुट उभर आते हैं और कई बार यह गुट अपना अलग अस्तित्व भी तलाशने लगते हैं। आम आदमी पार्टी भी गुटीय राजनीति की शिकार हो चुकी है। राजेश गर्ग कभी आम आदमी के पार्टी के विधायक हुआ करते थे, लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला। इन्हीं राजेश गर्ग और अरविंद केजरीवाल का एक स्टिंग सामने आया है जिसमें केजरीवाल कथित रूप से कांग्रेस पार्टी के छह विधायकों के टूटने से बने नए दल के साथ सरकार बनाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं। मजेदार बात यह है कि आम आदमी पार्टी और राजेश गर्ग दोनों ने इस रिकार्डिंग को सच माना है। गर्ग का कहना है कि जब दिल्ली में लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन था उस दौरान केजरीवाल ने जोड़तोड़ करके सरकार बनाने की कोशिश की थी जिसे गर्ग ने ठुकरा दिया था। उधर आम आदमी पार्टी ने यह तो माना है कि केजरीवाल कांग्रेस के सहयोग से पुन: सरकार बनाना चाहते थे, लेकिन इसके लिए वे कोई खरीद फरोख्त नहीं कर रहे थे। सवाल यह नहीं है कि केजरीवाल ने सरकार बनाने की कोशिश क्यों की? बल्कि सवाल यह है कि केजरीवाल और गर्ग की बातचीत के टेप मीडिया तक कैसे पहुंचे।
गर्ग का कहना है कि उन्होंने यह टेप कुमार विश्वास को दिया था। कुमार विश्वास का कहना है कि उन्होंने टेप पार्टी को सौंप दिया था। उधर कांग्रेस के एक पूर्व विधायक ने यह दावा किया है कि केजरीवाल ने कांग्रेस से टूटकर नया दल बनाने और आप को समर्थन देने के बदले में विधायकों को मंत्री पद का आफर दिया था। आम आदमी पार्टी ने इस दावे का खंडन किया है। कांगे्रेस के पूर्व विधायक का कहना है कि यह डील एक उर्दू अखबार के संपादक के द्वारा तय की गई थी। जिसका वीडियो भी बना हुआ है। हालांकि उन्होंने वीडियो मीडिया को नहीं दिया।
मार्च के पहले पखवाड़े में आम आदमी पार्टी के विधायकों और नेताओं ने केजरीवाल का बचाव भी किया और उन्हें कटघरे में भी खड़ा किया। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने तो हाशिए पर धकेले जाने के बाद 9 पेज की चिट्ठी भी जारी की है। उधर अंजली दमानिया ने केजरीवाल का स्टिंग सामने आने के बाद आम आदमी पार्टी छोड़ दी है। दमानिया पार्टी छोडऩे से एक दिन पहले तक अरविंद केजरीवाल की पैरवी करते हुए योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को कोस रही थी। लेकिन मामला इतना ही नहीं था पार्टी के भीतर बहुत कुछ चल रहा था। इसे देखते हुए मोरारजी देसाई और विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय तमाम नेताओं के एक होकर चुनाव लडऩे, जीतने तथा फिर बाद में अपने अलग दल बनाकर आपस में ही लडऩे-झगडऩे की यादें ताजा हो गईं, लेकिन आप का मामला इससे अलग है। इस पार्टी के भीतर दक्षिण पंथी, वाम पंथी, समाजवादी और कट्टर पंथी सभी भिन्न-भिन्न धाराओं के लोग एक साथ एक छत के नीचे आकर जमा हो गए हैं, लेकिन उनके बीच में कोई वैचारिक तालमेल नहीं है। सच पूछा जाए तो आम आदमी पार्टी एक ऐसा गठबंधन है, जिसके मूल में परंपरागत राजनीति से अलग एक नई राजनीति चलाने की महत्वाकांक्षा तो है लेकिन सिद्धांत नहीं हैं। सिद्धांत हो भी नहीं सकते। विविध विचारधाराओं के लोग किसी एक बिन्दु पर बमुश्किल ही मिल पाते हैं। इसीलिए सत्ता आते ही आम आदमी पार्टी के मतभेद जाहिर हो गए हैं। पहले चुनाव का लक्ष्य था, लेकिन अब लक्ष्य के साथ-साथ महत्वाकांक्षाएं भी हैं। शांतिभूषण और योगेन्द्र यादव दोनों ही राज्यसभा के लिए योग्य उम्मीदवार हैं, लेकिन इन दोनों के साथ-साथ और भी बहुत से महत्वाकांक्षी हैं जो उम्मीद लगाए बैठे हैं। ऐसे में दो संभावनाएं उभरती हैं- पहली यह कि दोनों को राज्य सभा में लाने के लिए उनकी वर्तमान जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए और दूसरी यह कि दोनों को पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए ताकि किसी अन्य को राज्यसभा के लिए प्रस्तुत किया जा सके। फिलहाल तो ऐसा ही लग रहा है। एक समय था जब अन्ना की टीम के पूर्व सदस्य मुफ्ती शमून कासमी को अरविंद केजरीवाल ने अन्ना की टीम से बाहर निकलवा दिया था, क्योंकि उन्होंने कथित रूप से पारदर्शिता और इंडिया अगेन्स्ट करप्शन को मिलने वाले चंदे का मामला उठाया। आज भी तकरीबन वैसा ही हुआ जब योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के सवालों से तंग आकर उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया। लेकिन केजरीवाल पार्टी की इस उथल-पुथल में भी अपने लिए सनसनीखेज सहानुभूति तलाश रहे हैं।
अंजलि दमानिया ने तो यह तक कहा था कि प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव ने एक बार केजरीवाल को इतना टॉर्चर किया था कि वे बीच मीटिंग में ही रोने लगे थे। दमानिया का यह दावा कितना सच है, यह तो वे ही जानें लेकिन केजरीवाल जिन्होंने शीला दीक्षित और किरण बेदी जैसी दिग्गज नेत्रियों को धराशाई कर दिया, वे रो भी सकते हैं इस पर सहसा विश्वास नहीं होता। लेकिन रोए हैं तो यादव और भूषण को बाहर का रास्ता दिखाकर उन्होंने आंसुओं की कीमत भी वसूल कर ली है। केजरीवाल हर आंसू की कीमत वसूलना जानते हैं। लेकिन पीएसी से योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को निकालने का जमकर विरोध हो रहा है। मयंक गांधी तो खुलकर सामने आ गए हैं। उन्होंने कई सवाल उठाए हैं। आगामी समय में कई राज्यों में चुनाव हैं।
ऐसी कार्रवाई क्यों हुई?
आम लोगों, पार्टी के अपने वॉलंटियर्स और मीडिया में भी लोगों के मन भी सवाल उठ रहे हैं कि दोनों सज्जनों को क्यों निकाला गया। अरविन्द और प्रशांत का साथ बहुत पुराना है, लोकपाल आंदोलन से लेकर पार्टी ही नहीं बल्कि ये साथ उससे भी बहुत पुराना है। कदम-कदम पर प्रशांत भूषण और शांति भूषण के अनुभव और कद से अरविन्द केजरीवाल, आंदोलन और पार्टी सबको फायदा हुआ है। जब आम आदमी पार्टी शुरू हुई तो पहला चंदा शांति भूषण ने एक करोड़ रुपये के चेक के रूप में दिया जो की बहुत बड़ी बात थी। आम आदमी पार्टी आगे बढ़ी तो प्रशांत भूषण का कद बढ़ा। अब वो देश के पोलिटिकल सिस्टम के अहम हिस्सा बन गए हैं और उनकी बात का वजन पहले से ज्यादा बढ़ गया है। अरविन्द केजरीवाल अखंड भारत में विश्वास रखते हैं जबकि समय-समय पर प्रशांत भूषण के कश्मीर मुद्दे पर दिए गए बयान पार्टी के लिए मुश्किल बढ़ाते रहे।
योगेन्द्र यादव पार्टी बनाने की घोषणा से ठीक पहले अरविन्द के साथ जुड़े थे। योगेन्द्र यादव के राजनीतिक अनुभव खासतौर से पोलिटिकल एनालिसिस का फायदा आम आदमी पार्टी को मिला। अभी के दिल्ली चुनाव में प्रचार के आखिरी में मैंने अरविन्द केजरीवाल से पूछा गया कि कितनी सीटें आ रही हैं आपकी? तो अरविन्द बोले योगेन्द्र जी ने कहा है कि हम 51 सीटें जीतेंगे। योगेन्द्र यादव को साल 2014 में पार्टी के मुख्य प्रवक्ता के साथ हरियाणा का जिम्मा दिया अरविन्द केजरीवाल ने दिया था। यादव को हरियाणा का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना रहे थे। हरियाणा की 10 में से 9 लोकसभा सीटों पर टिकट योगेन्द्र यादव के कहने पर ही फाइनल किए गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में अरविन्द चाहते थे कि पार्टी 50-70 सीटों पर ही चुनाव लड़े लेकिन योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के कहने पर पार्टी ने 434 सीटों पर चुनाव लड़ा, और केवल 13 सीटों पर अपनी जमानत बचा पायी, जिनमें 4 जीती हुई पंजाब की सीटें शामिल हैं।
योगेंद्र यादव और साथियों पर आरोप
जनवरी 2014 में जब केजरीवाल सीएम थे तब योगेंद्र यादव ने अपना सचिवालय बनाने की कोशिश यह कहकर की कि वो अब राष्ट्रीय संयोजक बनने जा रहे हैं। मई 2014 में शांति भूषण ने केजरीवाल को चि_ी लिखकर कहा कि आप इस पद के योग्य नहीं है इसलिए आप इस्तीफा दें और योगेंद्र यादव को संयोजक बनाएं वर्ना मैं जनता और मीडिया में जाकर तुमको एक्सपोज कर दूंगा। जून 2014 में जब ये अटकल चल रही थी कि दिल्ली में बीजेपी सरकार बना सकती है तब पार्टी की एक पॉलिसी मीटिंग के दौरान शांति भूषण बिना न्योते के बैठक में आए और प्रस्ताव रखा कि सरकार बीजेपी बना रही है और केजरीवाल नेता विपक्ष बनेंगे इसलिए पार्टी में एक व्यक्ति एक पद की नीति के तहत योगेंद्र यादव को राष्ट्रीय संयोजक बना देना चाहिए। इस बैठक में योगेंद्र यादव मौजूद थे। जून 2014 में ही आशीष खेतान से प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाने की कोशिश तो हम केजरीवाल को पार्टी से निकाल देंगे। अगस्त 2014 में चंडीगढ़ में पत्रकारों को बुलाकर ये खबर प्लांट कराई गई। जसमें बताया कि पार्टी तो हरियाणा में चुनाव लडऩा चाहती थी, लेकिन केजरीवाल ने तानाशाही तरीके से निर्णय लिया कि दिल्ली से पहले कोई चुनाव पार्टी नहीं लड़ेगी। जनवरी 2015 में जब दिल्ली चुनाव चल रहे थे अखबारों में 12 आपत्तिजनक उम्मीदवारों पर दस्तावेज के साथ खबर छपवाई। खबर इस तरह से प्लांट कराई, जिससे केजरीवाल की छवि तानाशाह की बने।
-दिल्ली से रेणु आगाल