18-Mar-2015 10:10 AM
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जिस वक्त यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी कोयला घोटाले में आरोपित मनमोहन सिंह के प्रति पार्टी की एकजुटता प्रकट करने के लिए मनमोहन सिंह के घर तक पार्टी के वरिष्ठ

नेताओं के साथ मार्च कर रही थीं। उस वक्त मीडिया के एक बड़े हिस्से के जेहन में यह सवाल था कि इस मार्च में राहुल गांधी क्यों नहीं हैं। संभवत: सोनिया और कुछ बड़े नेताओं को छोड़कर देशभर के तमाम कांग्रेसी और छोटे-बड़े नेता इस सवाल से जूझ रहे हैं कि आखिर राहुल गांधी कहां पलायन कर गए? न तो वे संसद में पिछली बेंच पर ही सही, बैठे देखे गए और न ही वे उन बैठकों, सभाओं में नजर आए। किसी भी राष्ट्रीय पार्टी का नेता बनने जा रहे शख्स के लिए यह जरूरी है कि वह बजट सत्र में मौजूृद रहे। यदि जाना आवश्यक ही है तो 2-4 दिन के लिए जाना पर्याप्त है लेकिन लंबे समय के लिए- एक माह तक छुट्टी का क्या अर्थ है? पहले राहुल 10 मार्च को आने वाले थे, फिर उन्होंने छुट्टी बढ़ा ली। कांगे्रस नेताओं ने तमाम तारीखें दीं, उन तारीखों पर भी राहुल का कोई पता नहीं चला। किसी खबरिया चैनल ने बताया है कि राहुल मार्च के अंत में ही भारत लौटेंगे।
छुट्टी पर जाना राहुल का निजी निर्णय है। वे कोई संवैधानिक पद पर तो हैं नहीं कि उनके जाने से राजनैतिक संकट पैदा हो जाएगा। राहुल एक माह तो क्या साल भर की छुट्टी पर भी जाएं तो देश को कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन कांगे्रस जो कि देश की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी है, राहुल के इस अज्ञातवास के चलते दिशाहीन होती जा रही है। जबसे यह खबर आई है कि अपै्रल माह में राहुल की ताजपोशी बतौर अध्यक्ष हो सकती है, तभी से कांग्रेस के युवा और अन्य नेता उन्हें वापस सक्रिय होते देखना चाहते हैं। राहुल की गैरमाजूदगी से कई अफवाहें फैल रही हैं। बीच में यह खबर भी आई थी कि प्रियंका गांधी को पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। कहीं इसी कारण तो राहुल नाराज नहीं हैं? क्योंकि पार्टी में दबी जुबान से प्रियंका का समर्थन करने वाले कई लोग हैं। उत्तरप्रदेश में तो बड़े-बड़े नेता प्रियंका के समर्थन में खुलकर सामने आ चुके हैं। वहां यह भी कहा जा रहा है कि यदि प्रियंका को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर यूपी में चुनाव लड़ा जाए तो कांग्रेस पुनर्जीवित हो जाएगी। प्रियंका के समर्थक राहुल गांधी की बजाए प्रियंका को अध्यक्ष बनाने पर आमादा हैं। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व ने इस तरह की मांग करने वालों को सख्त चेतावनी दी है। राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने की खबर से कांग्रेस के एक धड़े में गुस्सा, बैचेनी और मायूसी भी है। वे नहीं चाहते कि लगातार पराजित होने वाले राहुल को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाए। संभवत: इसीलिए राहुल भी नाराज हैं। लेकिन यह नाराजगी किस तरह की है? क्या वे पारिवारिक, राजनीतिक उठापटक के दौर से गुजर रहे हैं? सोनिया गांधी और उनके बीच मतभेद है? यदि हां, तो किस स्तर पर है? अध्यक्ष बनाने का आश्वासन मिलने के बावजूद भी वे इतने लंबे समय से छुट्टियां क्यों मना रहे हैं? उनकी क्या जिद है?
उनकी गैरमाजूदगी में कई राज्यों के प्रदेश कांगे्रस समिति प्रमुख बदल दिए गए हैं तथा एक क्षेत्रीय कांग्रेस समिति अध्यक्ष की नियुक्ति भी की गई है। अजय माकन को दिल्ली में, महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण, जम्मू और कश्मीर में गुलाम अहमद मीर, गुजरात में भरत सिंह सोलंकी और तेलंगाना में उत्तम रेड्डी को पार्टी की कमान सौंपे जाने के इस फेरबदल में राहुल गांधी की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सचिव संजय निरूपम को मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति का प्रमुख बनाया गया है। इसके अतिरिक्त, विधायक मल्लू भाटी को तेलंगाना के लिए कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। तेलंगाना के नए प्रदेश कांग्रेस समिति प्रमुख रेड्डी वर्तमान प्रदेश प्रमुख पोन्नला लक्ष्मैया की जगह लेंगे जिन्हें पिछले साल मार्च में ही नियुक्त किया गया था। रेड्डी को तब कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। चव्हाण जहां माणिक राव ठाकरे की जगह लेंगे, वहीं गुलाम अहमद मीर जम्मू और कश्मीर में सैफुद्दीन सोज की जगह लेंगे। गुजरात में अर्जुन मोधवाडिया की जगह प्रदेश कांग्रेस समिति प्रमुख बनने वाले भरतसिंह सोलंकी पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के पुत्र हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के रूप में यह उनकी दूसरी पारी है। वह पांच साल पहले इस पद पर रह चुके हैं। दिल्ली प्रदेश प्रमुख के तौर पर माकन की वापसी उसी समय तय मानी जा रही थी जब उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस प्रचार समिति का प्रमुख बनाया गया था। दरअसल पार्टी तीन बार मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित की जगह एक ऐसे चेहरे को कमान सौंपना चाहती थी जो जाना माना हो। माकन से पहले पिछले वर्ष अरविंदर सिंह लवली पीसीसी प्रमुख थे। यह बदलाव राज्य में एआईसीसी में होने वाले बदलाव की शुरुआत है। पार्टी के कई महासचिवों को बदला जाना है। इसके अलावा पार्टी ने एआईसीसी महासचिव बीके हरिप्रसाद और एआईसीसी सचिव मैनुल हक को जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुनने के लिए होने वाली बैठक का पर्यवेक्षक एवं सह पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के निकट सहयोगी लाल सिंह का नाम चर्चा में है। हालांकि इस समय पीसीसी प्रमुख प्रताप सिंह बाजवा को बदला जाना है, लेकिन बाजवा के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद करने वाले अमरिंदर सिंह को पीसीसी प्रमुख बनाए जाने की संभावना नहीं है। लाल सिंह पूर्व मुख्यमंत्री की पसंद हैं। राज्यों में बदलाव काफी समय से लंबित था और राहुल गांधी खासतौर पर इन राज्यों में नए प्रदेश कांग्रेस समिति प्रमुखों की नियुक्ति चाहते थे। संकेत ऐसे हैं कि उन्हें गुजरात और महाराष्ट्र में बदलाव के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन राहुल की अनुपस्थिति को वरिष्ठ बनाम युवा की टकराहट घोषित किया जा रहा है। लोगों का मानना है कि इससे पार्टी की एकता पर बुरा असर पड़ेगा।
सांसद भी उठा रहे हैं सवाल
भूमि सुधार विधेयक पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से उम्मीद लगाए बैठे थे, मोर्चा ज्योतिरादित्य को संभालना पड़ा। इसमें कोई शक नहीं कि ज्योतिरादित्य ने संसद में बहुत प्रभावी तरीके से अपनी बात रखी। लेकिन इस अहम विधेयक पर राहुल की गैर मौजूदगी काफी खली है, जिसका फायदा सत्तारूढ़ दल ने उठाया है। बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का नाम लिए बग़ैर उन पर कटाक्ष करते हुए सदन में कहा कि बीते कुछ वर्षों में हरियाणा में 65,000 हेक्टायर जमीन का अधिग्रहण किया गया। इसमें से 35,000 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण कारपोरेट घरानों के लिए किया गया। सिंह ने कहा, भट्टा परसौल पर तो कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया, पर हरियाणा में हुए इस अधिग्रहण पर पार्टी चुप रही। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश राजनीति का ज्वलंत मुद्दा बनता जा रहा है। मूल विधेयक को यूपीए ने आगे बढ़ाया था। भट्टा परसौल में 2011 में आंदोलन शायद सड़क पर छेड़े गए किसी आंदोलन में राहुल की सबसे साफ नजर आने वाली भागीदारी थी। इसके बाद भी जब बाएं से लेकर दाएं तक सारे राजनीतिक समूह यह मुद्दा उठा रहे हैं, तो कांग्रेसी फिर यह मौका चूक रहे हैं। कांग्रेस ने जंतर-मंतर पर रैली निकालने का फैसला किया, लेकिन राहुल वहां भी नदारद थे।
ठंडे पड़े नेता
राहुल गांधी की कथित गुमशुदगी और दिल्ली पुलिस द्वारा उनके हुलिए को लेकर पूछताछ से उपजे विवाद के बीच उनको अध्यक्ष बनाने की तैयारियां जारी हैं। सुनने में आया है कि दिग्गज नेता कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह राहुल की ताजपोशी फिलहाल टल जाए। उनके अज्ञातवास पर दिग्विजय सिंह सहित बहुत से नेता राहुल की छुट्टी की टाइमिंग पर पहले ही एतराज जता चुके हैं। संसद के मौजूदा सत्र के दौरान यदि राहुल कुछ करिश्मा दिखाते तो अध्यक्ष पद पर उनकी दावेदारी ज्यादा मजबूत दिखती। तो भी कांग्रेस में किसी भी नेता में इतना साहस नहीं है कि वे राहुल गांधी की ताजपोशी का खुलकर विरोध करें। इसीलिए राहुल की ताजपोशी को लेकर पार्टी के अंदर ही कोई खास उत्साह नजर नहीं आ रहा। अप्रैल के आखिरी हफ्ते में होने वाली ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की जिस बैठक में राहुल गांधी की ताजपोशी होनी है, उस मीटिंग के लिए स्थान तय करने को लेकर पार्टी आलाकमान की खासी किरकिरी हुई है। विभिन्न राज्यों में पार्टी के बड़े नेताओं को औपचारिकता के तहत एआईसीसी की बैठक अपने यहां आयोजित करने का प्रस्ताव देना होता है। कांग्रेसी नेताओं द्वारा इस दिशा में ज्यादा गर्मजोशी न दिखाए जाने के बाद मीटिंग के लिए दिल्ली को चुना गया। कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने बेमन से बेंगलुरु में एआईसीसी की बैठक रखने का प्रस्ताव रखा था। हिमाचल के सीएम वीरभद्र सिंह ने भी शिमला में बैठक रखने का प्रस्ताव दिया। इसके अलावा, अन्य किसी बड़े नेता की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं आया। पार्टी के आला सदस्यों के इस ठंडे रुख पर 10 जनपथ में काफी रोष था। इसके बाद, दिल्ली में ही एआईसीसी की मीटिंग रखने का फैसला लिया गया।
-ऋतेन्द्र माथुर