18-Mar-2015 09:53 AM
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बिहार में विश्वासमत जीतने के बाद नीतिश कुमार ने नरेंद्र मोदी की तर्ज पर एकदिवसीय उपवास कर लिया। कभी नरेंद्र मोदी ने सद्भावना उपवास किया था लेकिन नीतिश के

उपवास के पीछे गैर-भाजपाई दलों को एकजुट रखने की भावना भी छिपी हुई थी। दरअसल केंद्र सरकार राज्यसभा में अल्पमत में है और नीतिश कुमार किसानों के हितैषी के रूप में उभरना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने 24 घंटे का उपवास भी किया और विपक्षियों को एकजुट करने की कोशिश भी की। लेकिन नीतिश की यह कोशिश तभी रंग लाएगी जब वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को और नेताओं को एकजुट रखेंगे, फिलहाल तो सभी नेताओं ने एक सुर में नीतिश का समर्थन कर उन्हें विधानसभा में जितवा दिया है। व्हिप का उल्लंघन केवल जीतनराम मांझी ने किया। मांझी सदन में बैठ भी नहीं सकते थे क्योंकि भाजपा और मांझी को नीतिश ने चुन-चुनकर बेनकाब किया। पर कुछ सवाल अनुत्तरित रहे। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जब भाजपा को मालूम था कि वह मांझी को विश्वासमत नहीं जितवा सकती, तो उसने ये खेल क्यों खेला? केंद्र में बैठे नरेंद्र मोदी का इंटेलीजेंस क्या कर रहा था? नीतिश भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे की बात कर रहे थे लेकिन उनके अपने दल में भी कम मतभेद नहीं हैं। राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस से तालमेल को लेकर जनता दल यूनाइटेड के भीतर भारी असंतोष है। जनता दल यूनाइटेड के जो 110 के करीब विधायक नीतिश के साथ हैं उनमें से बहुतों को अपनी टिकट कटने का खतरा नजर आ रहा है, क्योंकि सीटों के तालमेल में नीतिश को कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल से समझौता करना ही पड़ेगा।
ऐसे में लगभग 50 के करीब मौजूदा विधायक टिकट से वंचित रह जाएंगे। मुख्यमंत्री पद को लेकर भी खींचतान अवश्यसंभावी है। यदि राजद ज्यादा सीटें जीतती है तो नीतिश को नई चुनौती मिलेगी। वैसे भी लोकसभा चुनाव में राजद को ज्यादा मत प्रतिशत मिला था। उधर कांग्रेस में मंथन का दौर जारी है। अपै्रल में कांग्रेस अध्यक्ष बनने की तैयारी कर रहे राहुल गांधी के करीबियों का कहना है कि राहुल उन राज्यों में गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं जहां कांग्रेस का ग्राफ बहुत नीचे जा चुका है, खासकर बिहार और उत्तरप्रदेश में। कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए यह जरूरी है कि अकेला चला जाए। कांग्रेस के स्थानीय नेता भी कश्मकश की स्थिति में हैं। लगातार पिछडऩे के कारण पार्टी हाशिए पर चली गई है। यह सच है कि विधानसभा में तालमेल के बगैर कांग्रेस अपने दम पर लड़ी तो उसका वही हाल हो सकता है जो दिल्ली में हुआ, लेकिन पार्टी को अपना वजूद बनाए रखने के लिए यह जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा। वैसे भी राहुल गांधी नीतिश कुमार के प्रसंशक रहे हैं, लेकिन नीतिश ने कभी भी इस प्रशंसा के लिए उनका धन्यवाद नहीं किया। बल्कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के प्रकरण के समय लालू यादव ने अवश्य सोनिया के पक्ष में दृंढता दिखाई थी, जिसे सोनिया आज तक नहीं भूल पाई हैं और इसी वजह से बिहार में कांग्रेस एक तरह से लालू की ही शरण में है। यदि राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड का विलय हो गया, तो भी कांग्रेस अलग-थलग ही नजर आएगी। लेकिन विलय के बाद बनने वाले महागठबंधन में कांग्रेस की हैसियत क्या होगी, यह कांग्रेस को भी पता नहीं है। इसीलिए कांगे्रस के स्थायी नेता चाहते हैं कि अलग रहने का जोखिम उठाया जाना चाहिए, भले ही पराजय हाथ लगे। यदि कांग्रेस अलग जाती है तो भाजपा को थोड़ा फायदा मिलेगा क्योंकि इससे दलित और अल्पसंख्यक वोट बंट जाएगा। हालांकि यह विभाजन भाजपा को जिताने के लिए काफी नहीं होगा। भाजपा तभी जीत सकती है जब नीतिश और लालू का महागठबंधन कुछ नेेताओं के टूटने से कमजोर हो जाए। जीतनराम मांझी ने अपना अलग दल पहले ही गठित कर दिया था और अब वे कह रहे हैं कि 22 अपै्रल से पहले नीतिश सरकार को आरजेडी और बीजेपी की मदद से गिरा देंगे। मांझी का यह बयान बहुत हास्यास्पद है, क्योंकि एक बार विश्वासमत हासिल करने के बाद किसी भी मुख्यमंत्री को 6 माह तक दोबारा विश्वासमत हासिल करने के लिए नहीं कहा जा सकता। इस तरह के बयान देने वाले मांझी से दूरी बनाए रखना ही भाजपा के लिए उचित होगा। भाजपा मांझी को वोट काटने वाले नेता के रूप में पर्दे के पीछे से सहयोग करते रहे, उसी में भलाई है। क्योंकि जिस व्यक्ति ने सार्वजनिक मंच से यह स्वीकार किया हो कि वह ठेकेदारों से पैसा लेता है, वह व्यक्ति भाजपा के लिए उतना मुफीद साबित नहीं होगा। भाजपा भ्रष्टाचार और सुशासन, विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी, जिसकी काट ढूंढने के लिए नीतिश अकेले ही काफी हैं क्योंकि उन्हें बिहार को जंगल राज से मुक्ति दिलाने का श्रेय है। यह बात अलग है कि जंगल राज से मुक्ति दिलाते-दिलाते वे उन लोगों से ही जुड़ चुके हैं, जो बिहार में जंगल राज के लिए जिम्मेदार ठहराए गए। लालू यादव के कार्यकाल की सिहरन भरी यादें बिहार की जनता के जेहन में अभी भी ताजा हैं। इसलिए नीतिश और लालू का तालमेल घाटे का सौदा भी हो सकता है, लेकिन नीतिश फिलहाल मजबूत हैं। विश्वासमत के दौरान भी उन्हें 140 वोट मिले जबकि उनके खिलाफ एक भी वोट नहीं पड़ा। जनता दल यूनाइटेड ने मांझी को भी व्हिप जारी किया था, लेकिन मांझी ने स्वास्थ्य के आधार पर स्पीकर से छुट्टी मांग ली। सवाल यह है कि जब पिछले माह ही मांझी को निकाल दिया गया था, उसके बाद भी उन्हें व्हिप क्यों जारी किया गया?
-आर.एम.पी. सिंह