04-Mar-2015 08:16 AM
1234868
बिहार में नीतिश की वापसी हो गई। सत्ता के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार लोहिया के शिष्यों नीतिश कुमार और लालू यादव ने मांझी को बेदखल कर जातिवाद का नया गठबंधन खड़ा कर

दिया है। नीतिश के विधायकों को पता था कि मांझी के साथ उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। इसलिए वे चाहकर भी नहीं बिक सके। मांझी के साथ रहते तो चुनाव में क्या मुंह लेकर जाते? बहरहाल कभी नंबर-2 की स्टेट बिहार का यही दुर्भाग्य है कि जिस समाजवादी आंदोलन की सवारी करके नीतिश और लालू जैसे समाजवादी सत्तासीन हुए आज उसी आंदोलन की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। मांझी और भाजपा का साथ भी इसी तरह की अनैतिकता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा। समाजवाद में गरीबों का हित सबसे पहले देखा जाता है लेकिन यहां तो सत्ता ही सर्वोपरि है। पहले नीतिश ने मांझी को सत्ता सौंपते वक्त बड़ा अहसान जताते हुए कहा था कि वे एक महादलित मुशहर जाति के व्यक्ति मांझी को मुख्यमंत्री बना रहे हैं, लेकिन बाद में उसी मांझी को बड़े अपमानपूर्वक सत्ता से बेदखल कर दिया। उधर जिस मांझी के शासन की भाजपा ने आलोचना की उसी को भाजपा ने बाद में सत्ता के लालच में पुचकारना शुरू कर दिया।
सत्तासीन होते ही नीतिश कुमार ने अरविंंद केजरीवाल की स्टाइल में जनता जनार्दन से हाथ जोड़कर माफी मांगी और कहा कि वे फिर कुर्सी छोडऩे का गुनाह नहीं करेंगे। मांझी को जब सत्ता सौंपी थी तभी नीतिश एक माह बाद ही अपने निर्णय पर पछता रहे थे। शुरू के 27-28 दिन तो मांझी ने बिना कोई रंग दिखाए नीतिश के कहने के अनुसार ही सत्ता संभाले रखी लेकिन बाद में वे रंग दिखाने लगे। दरअसल नीतिश की छाया से निकलने की कोशिश तो मांझी उसी दिन से कर रहे थे, जब उन्हें भाजपा ने शनै:-शनै: अभयदान देना शुरू कर दिया था। मांझी ने सोचा की भाजपा की बदौलत बिहार में वे महादलितों की राजनीति चमका लेंगे और जनता दल यूनाइटेड को तोड़कर अपना अलग वजूद बना सकेंगे। नीतिश को यह संकेत मिलते ही वह सतर्क हो गए, पर मांझी जैसे महादलित को हटाना इतना आसान नहीं था। इसलिए नीतिश यह भांप रहे थे कि भाजपा खुलकर मांझी के समर्थन में आ जाए। इससे दोहरा लाभ होता, एक तो नीतिश को सहानुभूति मिलती और दूसरा भाजपा एक्सपोज हो जाती। मांझी की भाजपा से नजदीकी प्रदेश की जनता की नजरोंं में आ ही गई। पहले तो सुशील मोदी ने नादानी करते हुए एक नहीं कई मौकों पर मांझी से सहानुभूति प्रकट की और नीतिश कुमार को चुनौती दी कि किसी महादलित के साथ अन्याय को भाजपा बर्दाश्त नहीं करेगी। यहीं से खेल बिगडऩा शुरू हो गया। यदि सुशील मोदी मांझी के समर्थन में खुलकर सामने न आते तो जनता दल यूनाइटेड में विभाजन हो सकता था। लेकिन सुशील मोदी की जल्दबाजी ने खेल बिगाड़ दिया। नीतिश कुमार ने पहले तो चेतावनी दी और जब चेतावनी के बाद भी बात नहीं बनी तो खुलकर सामने आ गए। पहले मांझी को हटने का कहा गया, लेकिन मांझी माने नहीं। फिर उन्होंने अपना पुराना तरीका अपनाया और स्वयं को विधायक दल का नेता बनवा लिया। इस बीच नरेंद्र मोदी ने भी मांझी को दिल्ली में हौसला दिखाया। राज्यपाल जानते थे कि मांझी के पास बहुमत नहीं है लेकिन उन्होंने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए मांझी को बहुमत साबित करने के लिए मौका दिया। मांझी ने खुलेआम विधायकों को लालच दिया कि जो भी मेरे साथ आएगा उसे मंत्री पद दिया जाएगा। लालच के इस खेल में मांझी का यह विचार था कि 30-40 विधायक टूट गए तो भाजपा के साथ मिलकर बहुमत से अगले 6-7 महीने सरकार चला ली जाएगी और बाद में अपना गुट बनाकर किसी न किसी प्रकार 40-50 सीट जीतकर अगली सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर तलाशा जाएगा अन्यथा केंद्र की राह भी बन सकती है। लेकिन भाजपा के लिए मांझी का यह गेम प्लान गले की हड्डी बन गया। पहले तो भाजपा ने मांझी को समर्थन देने का मन बनाया पर बाद में जब यह सुनिश्चित हो गया कि मांझी के प्रलोभन में जनता दल यूनाइटेड के विधायक नहीं फंस रहे हैं तो भाजपा शांत हो गई। उधर मांझी को भी लग गया कि सदन में बहुमत प्राप्त करना कठिन है इसलिए वे चुपचाप राज्यपाल को इस्तीफा सौंप आए। गनीमत है कि मांझी के झांसे में जनता दल यूनाइटेड के विधायक नहीं आए अन्यथा यह तय था कि मांझी की सरकार अगले 6-8 माह भाजपा के लिए सरदर्द बन जाती क्योंकि भाजपा किसी भी स्थिति में मांझी को खुलकर काम नहीं करने देती। छटपटाते हुए मांझी भाजपा के लिए वैसी ही परेशानी पैदा करते जो उन्होंने कभी जनता दल यूनाइटेड के लिए पैदा की थी। अब मांझी अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। महादलित का एजेंडा भी ठप पड़ गया है। यदि मांझी 6-7 महीने शासन कर लेेते तो सत्ता विरोधी रुझान भी भाजपा के खिलाफ हो जाता। फिलहाल तो भाजपा को सत्ताविरोधी मत का ही सहारा है। उधर सत्ता संभालते ही नीतिश ने लिखा है कि वे बिहार के विकास के लिए प्रधानमंत्री के साथ मिलकर काम करेंगे। केंद्र से मधुर संबंध जरूरी हैं क्योंकि अभी बहुत बड़ी राशि केंद्र से दी जानी है।
मांझी की नई पार्टी
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जतनराम मांझी ने अपनी नई पार्टी गठित कर ली है। मांझी ने इसका नाम हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा रखा है। मांझी ने पार्टी गठन के साथ ही महादलित एजेंडा भी शुरू कर दिया है और नीतिश कुमार पर आरोप लगाया-मेरे हटने पर नीतिश ने बिहार निवास गंगा जल से धुलवाया
-आर.एम.पी. सिंह