क्या मदर ने धर्मांतरण करवाया?
04-Mar-2015 09:37 AM 1234877

किसी कुष्ठ रोगी को सड़क से उठाकर उसे आश्रय देना, उसके घावों को साफ करते हुए मलहम लगाना, उसे दवा देना और बिना किसी घृणा के प्रेम और ममता से उसका उपचार करना क्या धर्मांतरण है?

या फिर राशन कार्ड का लालच देकर, बड़ी संख्या में अन्य धर्मावलंबियों की घर वापसी कराना धर्मांतरण है? इस पर आजकल बहस चल रही है। बहस के मूल में है संघ प्रमुख मोहन भागवत का वह बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि मदर टेरेसा की सेवा निस्वार्थ नहीं थी उसमेें धर्मांतरण का भाव था। मदर इस संसार में नहीं हैं इसलिए उनकी तरफ से देश का एक तबका और इसाई समुदाय भागवत के इस कथन का विरोध कर रहा है। उधर विश्व हिन्दू परिषद सहित देश के कुछ हिन्दूवादी संगठनों ने मदर टेरेसा के ट्रस्ट को मिलने वाले विदेशी चंदे आदि पर सवाल भी उठाए हैं। मदर टेरेसा ने मानवता की जो सेवा की है वह अद्वितीय है। उस पर सवाल उठाया ही नहीं जा सकता। किंतु यह भी सच है कि भारत ही नहीं सारी दुनिया में इसाई मिश्नरियों ने जिन इलाकों में अपनी सेवा दी वहां बड़ी संख्या में मतान्तरण हुआ। यह मतान्तरण इसाई धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा के चलते हुआ या सेवा के बदले में या फिर लालच या भय से-इस पर सवाल सदैव उठाए जा सकते हैं। दक्षिण भारत पूर्वाेत्तर सहित तमाम क्षेत्रों में बड़ी संख्या में आदिवासियों का धर्म परिवर्तन हुआ है यह एक सच्चाई है। इसीलिए घर वापसी को हिन्दू वादी तबका उचित मान रहा है। लेकिन इससे मोदी सरकार की दुविधा बढ़ गई है।
प्रधानमंत्री संसद से लेकर कार्यक्रमों मेें धार्मिक सौहार्द की अपील कर रहे हैं, लगता है उन्हें ध्यान से सुनने वाला कोई नहीं है। उनकी अपनी पार्टी के सांसद और नेता ही संवेदनशील बयान दे रहे हंै। योगी आदित्यनाथ ने सवाल उठाया है कि जब मक्का और वेटिकन में मंदिर नहीं है तो राम मंदिर के आसपास मस्जिद क्यों? आदित्यनाथ का यह कथन अयोध्या में राम मंदिर परिसर में मंदिर-मस्जिद दोनों बनाने का प्रयास कर रहे हिंदू-मुस्लिम नेताओं की पहल के बाद आया है। उधर सुब्रमण्यम स्वामी ने भी आशंका प्रकट की है कि भारत में मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से अधिक हुई तो भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं रह जाएगा।हाल के दिनों में चर्च पर हमले और ऐसी ही मिलती-जुलती घटनाओं के कारण सरकार की चिंता बढ़ी है। यह सारी बातें और तमाम संगठनों की गतिविधियां परेशानी पैदा कर रही हैं। मोदी जितना इन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं ये ताकतें उतनी ही उग्र हो जाती हैं। इसी कारण सत्ता के गलियारों में यह कहा जाने लगा है कि ऐसे तत्व मोदी को खुलकर काम नहीं करने देंगे।   राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने आपको सदैव उग्र हिंदुत्व से अलग एक सांस्कृतिक संगठन के रूप में प्रस्तुत करता रहा है। किंतु भारत के निवासियों को हिंदू और भारत को हिंदुओं का देश कहने संबंधी बहुत से ऐसे बयान हैं जो अलग बहस को जन्म दे रहे हैं। हिंदुत्व को जिस तरह परिभाषित करने का प्रयास हो रहा है। उस पर प्रतिक्रिया के कारण सारे देश में अलग तरह का माहौल है। यह सच है कि देश को एक पहचान की आवश्यकता है। भागवत ने अपने भाषणों में इस पहचान को बहुत हद तक परिभाषित करने की कोशिश भी की है। उन्होंने कई मुस्लिम राष्ट्रभक्तों का जिक्र भी किया है। भागवत या आरएसएस के अन्य नेता तो बहुत संभलकर बोलते हैं पर दूसरे हिंदूवादी नेताओं के बयानों में स्पष्ट रूप से एक वर्ग विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। इससे सरकार की छवि को धक्का पहुच सकता है।
संभवत: इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे अंतराल के बाद अपनी खामोशी तोड़ी और कहा कि उनकी सरकार किसी भी धार्मिक समूह को नफरत फैलाने की इजाजत नहीं देगी, किसी भी तरह की धार्मिक हिंसा के खिलाफ सख्ती से कार्यवाही करेगी क्योंकि सरकार सभी धर्मों को समान रूप से सम्मान देती है। मोदी ने यह सब एक राष्ट्रीय समारोह में कहा, जो दो महान आत्माओं को वेटिकन द्वारा संत की उपाधि से नवाजे जाने के उपलक्ष में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित किया गया था। इससे पहले जब दिल्ली में चर्च और एक मिशनरी स्कूल पर हमला हुआ था, उस वक्त भी मोदी ने सख्त रवैया अपनाया था। लेकिन उनकी लंबी चुप्पी से यह संदेश गया कि मोदी ऐसे उग्रवादी तत्वों पर लगाम कसने में नाकाम रहे हैं। मोदी ने संसद में भी अपना रुख स्पष्ट किया है।
दरअसल सत्तासीन होने के बाद से ही हिंदूवादी संगठन नरेंद्र मोदी को परेशान करते रहे हैं। कुछ हिंदू नेताओं को यह लगा कि मोदी सत्तासीन हो गए हैं इसलिए उन्हें जहर उगलने की खुली छूट मिल चुकी है। जमकर जहर उगला गया। उत्तरप्रदेश से लेकर बिहार तक और फिर दिल्ली में यह जहर की जंग बदस्तूर चली। हिंदूवादी संगठनोंं और भाजपा के कुछ नेताओं का यह मानना था कि सांप्रदायिक वातावरण तैयार कर हिंदू मतों को भाजपा के पक्ष में एकत्र किया जा सकता है। लेकिन परिणाम विपरीत आए। उत्तरप्रदेश और बिहार के उपचुनाव में करारी पराजय के बावजूद भाजपा और उसकी पैरोकारी करने वाले हिंदू संगठन माहौल को भांपने में असफल रहे। जिसका परिणाम दिल्ली चुनाव में भी देखने को मिल गया। उधर अमेरिका के राष्ट्र्रपति बराक ओबामा ने दो-दो बार भारत को धार्मिक सहिष्णुता की सीख देते हुए एक तरह से यह साफ संकेत दे दिया कि उग्र धार्मिक ताकतों को नियंत्रित करके ही भारत तरक्की कर सकता है।
वास्तव में नरेंद्र मोदी की लोकसभा में जीत विकास और परिवर्तन की लालसा के चलते हुई है। जनता उन्हें एक हिंदू नेता के रूप में नहीं बल्कि विकास को समर्पित एक ईमानदार नेता के रूप में सत्ता में लाई थी। मोदी इस बात को भलीभांति जानते हैं इसलिए प्रधानमंत्री बनने के बाद सारे चुनावी अभियानों में केवल विकास की ही बातें करते रहे हैं। मोदी की पार्टी के कुछ सांसद और हिंदूवादी नेताओं के बयानों ने मोदी की छवि को भी धक्का पहुंचाया। किसी ने लव जिहाद का मामला उठाया, तो किसी ने हिंदुओं को फैमिली प्लानिंग त्यागने की सलाह दी और कहा कि 4 बच्चे पैदा करने को कहा है 50 पिल्ले नहीं। पिल्ले शब्द किस पर लक्षित था, यह समझा जा सकता था। घर वापसी के नाम पर मतांतरण की खबरों ने भी मोदी को परेशान किया। देखा जाए तो 9 माह के शासनकाल में मोदी को उनके अपनों ने ज्यादा तंग किया। उस पर मोदी की चुप्पी भारी पड़ी। लेकिन अंतत: मोदी बोले और उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध तथा महात्मा गांधी के समान सभी लोगों में सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए।
उधर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी मोदी के सुर में सुर मिलाया है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 4 बच्चे पैदा करने की सलाह हिंदू महिलाओं को देने वाले नेताओं को लताड़ते हुए कहा है कि क्या हिंदू महिलाएं बच्चा पैदा करने की फैक्ट्री हैं? भागवत सर्वधर्म सद्भाव की बात भी कर रहे हैं। कानपुर में उन्होंने स्वयं सेवकों से सभी धर्मों के लोगों को जोडऩे की अपील की, उसके बाद खांडवा में कहा कि हम सब भारत माता के पुत्र हैं और विभिन्न संस्कृति, जाति, धर्म होने के बावजूद अनंत काल से साथ रह रहे हैं। भागवत ने 1527 के खानवा युद्ध में राणा सांगा के योद्धा हसन खान मेवाती का जिक्र किया, जिन्होंने बाबर की उस अपील को ठुकरा दिया था जिसमें धर्म के आधार पर बाबर ने हसन खान को अपनी सेना में शामिल करने की पेशकश की थी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि संकीर्ण मुद्दे मोदी को उनके पथ से भटका भी सकते हैं और ऐसा होने पर आगामी चुनाव में मोदी भारी घाटे में रहेंगे, दिल्ली में यह साफ दिख चुका है। इसीलिए भविष्य को देखते हुए हिंदूवादी संगठनों को अपने तेवर नरम करने का कहा गया है। बिहार, यूपी जैसे राज्यों के चुनाव सामने हैं। वोटर हिंदू-मुस्लिम से अलग कुछ नया सूनना चाहते हैं। देखना है मोदी के इस कड़े रुख से कितनी लगाम लगती है।

 

संसद में क्या बोले प्रधानमंत्री
हमारे देश में राजनीतिक कारणों से सांप्रदाय का जहर घुलता जा रहा है और आज से नहीं चला जा रहा है, लंबे अर्से से चला जा रहा है। जिसने देश को तबाह करके रखा हुआ है, दिलों को तोडऩे का काम किया है, लेकिन सवाल हमसे पूछे जा रहे हैं, हमारी भूमिका क्या है? मैं आज  इस सदन को कहना चाहता हूं। 27 अक्टूबर 2013, मैं पटना में था, गांधी मैदान में था, बम धमाके हो रहे थे, निर्दोष लोग मौत के घाट उतारे गए। बड़ा ही कलुषित माहौल था। रक्त की धाराएं बह रही हैं। उस समय जब इंसान के हृदय से बातें निकलती हैं, वो सच्चाई के तराजू पर शत-प्रतिशत सही निकलती हैं, उसमें कोई लाग-लेपट नहीं होता है।
उस समय मेरा जो भाषण है और उसमें मैंने कहा था कि मैं पूछना चाहता हूं कि बताइए हिंदूओं को किसके साथ लडऩा है? क्या मुसलमान के साथ लडऩा है? कि गरीबी के साथ लडऩा है? मैं मुसलमानों को पूछता था कि क्या आपको हिंदुओं के साथ लडऩा है? कि गरीबी के खिलाफ लडऩा है?..और मैंने कहा था कि आइए बहुत लड़ लिए हिंदू-मुसलमान एक होकर के गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ें। पटना के गांधी मैदान में बम, बंदूक, पिस्तौल और गोलियों के बीच में उठाई हुई आवाज है। इसलिए भारत को प्रेम करने वाले हर व्यक्ति के लिए यह बात साफ है कि यह देश विविधताओं से भरा हुआ है। विविधता में एकता यही हमारे देश की पहचान है, यही हमारी ताकत है। हम एकरूपता के पक्षकार नहीं है। हम एकता के पक्षकार हैं और सभी संप्रदायों का फलना-फूलना, यह भारत की धरती पर ही संभव होता है। यह भारत की विशेषता है। हमारा संविधान हजारों साल की हमारे चिंतन की अभिव्यक्ति है। हमारा जो संविधान बना भारत के सामान्य मानव की आशाओं, आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने वाला संविधान है और इस संविधान की मर्यादा में रह करके देश चल सकता है। देश संविधान की मर्यादाओं के बाहर नहीं चल सकता है। किसी को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं होता है। किसी को भी साम्प्रदाय के आधार पर किसी के भी साथ स्रद्बह्यष्ह्म्द्बद्वद्बठ्ठड्डह्लद्बशठ्ठ करने का अधिकार नहीं होता है। हरेक को अपने साथ चलने का अधिकार है साम्प्रदाय के नाम पर अनाप-शनाप बातें करने वालों को कहना चाहता हूं, मेरी सरकार का एक ही धर्म है- ढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड-स्नद्बह्म्ह्यह्ल, मेरी सरकार का एक ही धर्म ग्रंथ है- भारत का संविधान,  मेरी सरकार की एक ही भक्ति है- भारत भक्ति, मेरी सरकार की एक ही पूजा है- सवा सौ करोड़ देशवासियों का कल्याण, मेरी सरकार की एक ही कार्यशैली है- सबका साथ, सबका विकास और इसलिए हम संविधान को लेकर के संविधान की सीमा में रह करके देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
-सुनील सिंह

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