04-Mar-2015 08:41 AM
1234769
मोदी का बिजनेस बजटमोदी मीन्स बिजनेस। बजट में यह साबित हो गया। पहले मोदी और उनकी सरकार भूमि अधिग्रहण अधिनियम पर अड़ी। लेकिन जब वहां नरम पडऩा पड़ा तो बजट कड़क बना

दिया। लेकिन भारत का मध्यम वर्ग बजट की कड़वाहट से कहीं अधिक बढ़ती महंगाई से चिंतित है। बजट के साइडइफेक्ट्स तीन माह बाद पता चलेंगे। फिलहाल तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े हैं। देखना है आने वाले समय में क्या-क्या बढ़ता है। हालांकि राज्यों का खजाना भरने की कोशिश मोदी सरकार ने की है।
वित्त आयोग की सलाह पर राजस्व का 42 फीसदी राज्यों को देने के निर्णय के कारण है। पर, पिछली प्रतिबद्धताओं- योजना आवंटन, निर्धारित खर्च और ब्याज- के दबाव के बावजूद अच्छा बजट होते हुए भी धन जुटाने और खर्च करने में किसी बड़े बदलाव की अपेक्षा सही नहीं है। ब्याज में किसी भी बजट का लगभग एक-चौथाई हिस्सा निकल जाता है, इसी तरह रक्षा, वेतन और अन्य खर्चे हैं। एक बड़ा मसला सब्सिडी का है जिसमें 3.77 लाख करोड़ रकम खर्च होती है। हर सरकार को ताकतवर दबाव-समूहों का सामना करना पड़ता है। कृषि समूह फर्टिलाइजर सब्सिडी में या अनाज खरीद की मात्रा में किसी कमी को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि उत्पादक को बाजार से अधिक कीमत देकर थोक खरीददार मिल जाता है। इसी तरह गरीबी रेखा से नीचे बसर करनेवाले लोगों को सब्सिडी पर खाद्यान्न आपूर्ति भी नकार दी जाती है। ऐसे मूलभूत दबावों में सरकार ने बरबादी रोकने के उद्देश्य से सीधे खाते में राशि डालने जैसे उपायों से सब्सिडी को नियंत्रित करने की अच्छी पहल की है। रसोई गैस की सब्सिडी पहले से ही खातों में दी जा रही है और आधार से बैंक खाते को जोड़ कर सब्सिडी सीधे देने की योजना बहुत ठोस है।
इस बजट में छोटे किसानों और व्यापारियों पर जोर देना एक अहम बात है। छोटे किसानों को सिंचाई सुविधा के लिए अतिरिक्त 30 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। सरकार ने किसानों को यूरिया की निर्भरता से हटाने के लिए भी प्रयास किया है। यूरिया से लाभ में कमी आ रही है और इससे मिट्टी में जहर भी फैल रहा है। प्रधानमंत्री कुछ समय से इस बात पर जोर देते आ रहे हैं और अब बजट में इसे महत्वपूर्ण जगह मिली है। ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में आवंटन पांच हजार करोड़ रुपया बढ़ा कर 40,699 करोड़ कर दिया गया है, लेकिन, सरकार ने इसे भवन, सड़क और नहर जैसे निर्धारण करने योग्य लक्ष्यों के साथ जोडऩे की पहल की है। अब यह सिर्फ बेमतलब गढ्ढा खोदने की योजना नहीं रहेगी, जैसा कि प्रधानमंत्री कहते हैं। इस पहल पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है, क्योंकि इससे ग्रामीण क्षेत्र में नयी और उपयोगी परिसंपत्तियों का निर्माण होगा। छोटे व्यापारियों के लिए 20 हजार करोड़ रुपये के कोष के साथ एक मुद्रा बैंक की शुरू करने की घोषणा की गयी है। अगर यह सफल होती है, तो यह नये उद्यमियों के लिए बड़ा अवसर होगा।
भारत का टेलीकॉम सेक्टर लगभग 153 बिलियन डॉलर के बराबर है और इसके द्वारा किया गया धनार्जन विशाल है। सरकार ने इस क्षेत्र में नये उद्यमियों के लिए एक हजार करोड़ रुपये की शुरुआती राशि से धन उपलब्ध कराने की पहल की है। अभी ऐसे उद्यमियों को निजी संस्थाओं और व्यक्तियों से धन उगाहना पड़ता है। अब सरकार की बड़ी तिजोरी के खुलने से उद्यमी युवाओं को भारी प्रोत्साहन मिलेगा। बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के महत्वपूर्ण क्षेत्र में वित्त मंत्री ने पिछले साल के आवंटन में 70 हजार करोड़ बढ़ाते हुए 3,17,889 करोड़ की राशि निर्धारित की गयी है। इसमें दिशागत बदलाव दिलचस्प हैं। सरकार रेल, सड़क और सिंचाई परियोजनाओं में निवेश के लिए बांड जारी करेगी, जिस पर कर छूट भी मिलेगी। यह छूट लोगों को बिस्तर की जगह बांड खरीदने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
इसी तरह 4000 मेगावाट क्षमता की पांच नये बिजली परियोजनाएं घोषित की गयी हैं, जिनकी जिम्मेवारी सरकार लेगी। कुदानकुलाम परमाणु बिजली परियोजना की दूसरी इकाई की योजना भी है। सरकार ने अतिरिक्त एक लाख किलोमीटर सड़क बनाने की घोषणा भी की है। एक अन्य नीतिगत बदलाव के रूप में देश के बड़े नौ बंदरगाह ट्रस्टों को निगमित करने का फैसला लिया गया है। इससे ये बंदरगाह अपनी जमीन और संपत्ति की क्षमता का दोहन कर आधुनिक और विकसित क्षमता हासिल कर सकेंगे। यह एक बड़ी आवश्यकता थी क्योंकि बंदरगाहों की अक्षमता ने देश के आर्थिक विकास को लंबे समय से अवरुद्ध किया है। लेकिन इस कदम से सरकार ने संगठित मजदूर संघों से टकराव का खतरा भी मोल लिया है, जिनकी मानसिकता और महत्वाकांक्षा ने श्रम शक्ति को अनुत्पादक और झगड़ालू बना दिया है। इससे सरकार का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन भारतीय मजदूर संघ से भी टकराव संभावित है।
-कुमार सुबोध