04-Mar-2015 08:27 AM
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मध्यप्रदेश में व्यापमं घोटाला पोलिटिकल फ्लैश प्वाइंट बन गया है। सत्ता पक्ष और कांगे्रस आर-पार की लड़ाई के मूड में है। दिग्विजय सिंह द्वारा मुख्यमंत्री और उनके परिवार को इस घोटाले में

घसीटने के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने एक 9 वर्ष पुराने मामले में दिग्विजय सिंह, श्रीनिवास तिवारी सहित 19 लोगों के खिलाफ अवैध और अनियमित नियुक्तियां कराने का मामला भोपाल के जहांगीराबाद थाने में दर्ज कराया है। उधर एसटीएफ ने मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। किसी भी राज्यपाल के विरुद्ध पद पर रहते हुए एफआईआर का यह पहला मामला है। व्यापमं का असर मध्यप्रदेश विधानसभा के बजट सत्र पर भी पड़ा और खानापूर्ति करके बजट सत्र बीच में ही स्थगित कर दिया गया।
बारहा देखी हैं उनकी रंजिशें,
पर कुछ अब के सरगिरानी और है।
व्यापमं से लेकर डंपर तक कांग्रेस ने भाजपा और मुख्यत: शिवराज सिंह को घेरने के लिए अभियान तो कई चलाए पर शिवराज का कुछ बिगाड़ नहीं पाए। इस बार लड़ाई ज्यादा आक्रामक है। कारण यह है कि दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश में जमीन तलाश रहे हैं और जमीन से उखड़ती जा रही कांग्र्रेस पुनर्जीवन की आस लगाए बैठी है। इसीलिए दिग्विजय सिंह ने जब धमाका किया, तो उनके मंच पर तमाम दिग्गज नेता उपस्थित थे। सबूत वही पुराने लेकिन अंदाज नया। लुब्बेलुबाव यह है कि शिवराज सिंह को बचाने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ की गई और उनकी जगह दूसरे नेताओं को फंसाया गया। उधर राज्यपाल के खिलाफ जब एसटीएफ ने एफआईआर दर्ज की तो पहले से ही धधक रही आग में मानो घी डल गया।
व्यापमं का यह ज्वालामुखी फिर फटने को बेताब है। भीतर ही भीतर बहुत कुछ खदबदा रहा है। कई नामों की चर्चा है। एक्सल शीट में किन्हीं मंत्राणी का भी जिक्र है, जिनकी सिफारिश पर वन विभाग में किसी व्यक्ति की भर्ती कराई गई थी। राज्यपाल के बेटे शैलेश यादव और ओएसडी धनराज यादव पहले ही आरोपी बन चुके हैं, उनके दूसरे बेटे कमलेश यादव पर भी शिकंजा कसा है। नए सिरे से आरोप लगा रहे दिग्विजय सिंह ने एसआईटी को कुछ फोन नंबर उनके आईएम नंबर और रिसीव करने वाले मोबाइल नंबर की डीटेल भेजी है। बताया जाता है कि यह नंबर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनकी धर्मपत्नी कोकिला साधना सिंह सहित तमाम स्टॉफ के हैं। परत दर परत प्याज के छिलकों की तरह उघड़ते जा रहे व्यापमं में फरवरी माह के दूसरे पखवाड़े में जिन 101 नए लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया है, उनमें 14 बड़े नाम हैं जबकि 87 परीक्षार्थी हैं। बड़े नामों में एक महिला आईएएस भी शामिल हैं बाकी 87 परीक्षार्थी हैं। इन सबके खिलाफ आईपीसी की धारा 120-बी, 420, 468, 471 के अतिरिक्त भ्रष्टाचार अधिनियम एवं आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा पर एक मामला और दर्ज हुआ है। सुधीर शर्मा, संजीव सक्सेना, अजयशंकर मेहता, पंकज त्रिवेदी, नितिन मोहिन्द्रा, सीके मिश्रा, अजय सेन, करण शर्मा और भरत मिश्रा के नाम फिर से सामने आ रहे हैं। एसआईटी की ओर से 17 लोगों की जो सूची सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सौंपी गई है, उसमें जिन हाई प्रोफाइल लोगों के नाम हैं उसका खुलासा होने से प्रदेश की राजनीति में भूचाल भी आ सकता है। भाजपा के पिछड़े वर्ग से एक पूर्व राज्यसभा सदस्य ने कहा है कि लक्ष्मीकांत शर्मा को जेल में डालकर बाकी बीजेपी मजे में है। लक्ष्मीकांत शर्मा की आवश्यकताएं जेल में ही पूरी की जा रही हैं। उन्हें चुप रहने का कहा गया है ताकि भाजपा और संघ के दिग्गजों को बचाया जा सके। लक्ष्मीकांत ने तो एक तरह से भला ही किया था कि उन्होंने संगठन के छोटे-मोटे नेता की भी मांग पूरी की, लेकिन बलि का बकरा उन्हें ही बनाया गया। जहां तक राज्यपाल का प्रश्न है यदि उनके यहां धनराज और शैलेश यादव थे, तो सीएम के केस में भी उनके निजी सचिव प्रेमचंद प्रसाद का नाम उछला है। उनके पीए हरीश तथा प्रसाद के नंबर एसआईटी को दिए गए हैं।
कहा यह भी जा रहा है कि सीएम नहीं चाहते कि राज्यपाल जाएं, लेकिन सच तो यह है कि राज्यपाल को न तो राष्ट्रपति और न ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से कोई सपोर्ट मिला है। कांग्रेस अब अपने आप को राज्यपाल से अलग बताना चाह रही है। राज्यपाल पर आरोप है कि उन्होंने वन रक्षक भर्ती 2013 के लिए आजमगढ़ के रहने वाले महेश और सतीष की सिफारिश की थी। जब राज्यपाल ने इस्तीफा नहीं दिया है, तो उन्हें बर्खास्त करने में इतनी देरी क्यों की जा रही है? सरकार ने पहले दिग्विजय सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी मात्र दी थी। दिग्विजय सिंह के आरोपों के बाद भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार के साथ मंत्री नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, उमाशंकर गुप्ता तथा विधायक विश्वास सारंग, रामेश्वर शर्मा, महापौर आलोक शर्मा समेत आदि ने मिलकर एसआईटी को दिए आवेदन में कहा था कि दिग्विजय सिंह की तरफ से दी गई जानकारी झूठी और भ्रामक है। लेकिन बाद में लगा कि दिग्विजय सिंह को भी घेरा जाना चाहिए इसलिए 9 साल पुराने मामले में उनके विरुद्ध प्रकरण दर्ज किया गया। (देखें बॉक्स) भाजपा ने साइबर एक्सपर्ट प्रशांत पांडे को भी फर्जी करार दिया है। जबकि पांडे को दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा दी है। उनकी ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा था कि प्रशांत के पास व्यापमं से जुड़े अहम दस्तावेज हैं जिसके चलते उनकी जान को खतरा है, इसलिए उन्हेें सुरक्षा दी जानी चाहिए। विवेक तन्खा जाने-माने वकील हैं और मध्यप्रदेश के महाधिवक्ता पद को सुशोभित कर चुके हैं इसलिए व्यापमं का इतिहास उन्हेंं अच्छी तरह मालूम है। मेडिकल सीटों के घोटाले पर भी उनकी जानकारी पुख्ता है। उधर पांडे का कहना है कि घोटाला केवल 5 प्रतिशत ही उजागर हुआ है। इसमें कई प्रभावशाली लोग शामिल हैं, जिनकी जानकारी उनके पास है। पांडे की मदद एसटीएफ के अतिरिक्त महानिदेशक सुधीर कुमार साही ने मांगी थी। अभय चौपड़ा भी ने एसटीएफ की जांच पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया है कि व्यापमं के दागी अफसरों के केवल सरकारी कम्प्यूटर जब्त किए गए हैं जबकि दस्तावेजों में एसटीएफ ने जानकारी दी है कि आरोपियों के पेन ड्राइव और निजी लैपटॉप भी जब्त किए गए हैं, लेकिन किसी भी चालान में इसका उल्लेख नहीं है।
व्यापमं में मामला कांग्रेस बनाम भाजपा मात्र का नहीं है बल्कि इसमें कई एंगिल हैं। मध्यप्रदेश में जमीन तलाश रहे दिग्विजय सिंह तो परेशानी में डाल रहे हैं पर भाजपा के भीतर भी कश्मकश चल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का कहना है कि जिस मामले के लिए वह खुद सीबीआई जांच की मांग कर रही हैं, उसी में अचानक 6 महीने बाद उन्हीं के नाम की चर्चा होना साजिशीय राजनीति का घिनौना और भयंकर चेहरा है। लेकिन प्रश्न यह है कि उमा भारती के खिलाफ ये साजिश कौन कर रहा है और दिग्विजय सिंह से ज्यादा भाजपा के कुछ नेताओं से किसे खतरा है? इसीलिए व्यापमं को लेकर लड़ाई बाहर और भीतर दोनों तरफ है। बाहर की लड़ाई पर तो एसटीएफ ने अपना रुख साफ कर दिया है लेकिन भीतर की लड़ाई आने वाले दिनों में अपना रंग दिखा देगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि संगठन मुख्यमंत्री के साथ है लेकिन राज्यपाल अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं। व्यापमं घोटाले में अभी भी 350 आरोपियों की गिरफ्तारी होनी बाकी है।
दिग्विजय सिंह ने पहले भी दिसंबर 2014 में एसआईटी की जांच को लेकर गंभीर सवाल सामने रखे थे, लेकिन एसआईटी ने उस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं की। दिग्विजय सिंह एसआईटी को भी कटघरे में खड़ा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि जांच के दौरान तथ्यों से छेड़छाड़ और उनमें अंतर होना, यह स्पष्ट प्रमाणित करता है कि व्यापमं मामले में एसआईटी की जांच प्रशासनिक तंत्र के दबाव में की जा रही है और एसटीएफ मुख्यमंत्री, वर्तमान केंद्रीय मंत्री तथा आरएसएस के बड़े अधिकारियों को बचाने और उन्हें क्लीन चिट देने के लिए काम कर रही है। दिग्विजय सिंह ने एसआईटी के समक्ष अपनी शिकायत भी दर्ज कराई। मप्र सरकार का कहना है कि दिग्विजय सिंह ने भ्रामक और जाली दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं। एसआईटी की जांच को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना है और सीबीआई जांच की मांग को अनिवार्य नहीं माना।
व्यापमं बहुत बड़ा घोटाला है और उसमें राज्यपाल, मुख्यमंत्री से लेकर संघ के पदाधिकारियों, उमाभारती आदि पर भी उंगली उठी है। लेकिन इस घोटाले के दौरान भी मध्यप्रदेश में सत्तासीन भाजपा लगभग सभी चुनाव जीतती रही। विपक्ष के रूप में कांग्रेस केवल विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने और बहिष्कार करने तक सीमित रही कोई बड़ा आंदोलन व्यापमं को लेकर कांग्रेस खड़ा नहीं कर पाई। इसके विपरीत 1984 में जब चुरहट लॉटरी कांड में अर्जुन सिंह का नाम आया था, उस वक्त उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। आज हालात बदले हुए हैं। विधानसभा में भले ही कांग्रेस हल्ला मचा रही है लेकिन शिवराज की सत्ता और हैसियत पर इस हंगामे से कोई असर नहीं पडऩे वाला है। आलाकमान भी शिवराज को लेकर कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं है क्योंकि बीजेपी ने नेतृत्व परिवर्तन किया तो मध्यप्रदेश में कांगे्रस पुन: जीवित हो जाएगी और यह बहुत घातक होगा। डंपर कांड में भी कांग्रेस ने लगातार हंगामा किया था लेकिन डंपर प्रकरण डंप कर दिया गया। जहां तक दिग्विजय सिंह का प्रश्न है, आलाकमान ने पचौरी, सिंधिया, यादव, भूरिया जैसे नेताओं के असफल होने के बाद दिग्विजय सिंह को मध्यप्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का दायित्व सौंपा है।
यह भी सत्य है कि भाजपा को परेशान और हैरान करने की ताकत यदि किसी कांग्रेसी में है तो वे दिग्विजय सिंह ही हैं। दिग्विजय सिंह की हर बारीकी से वाकिफ हैं जिसके चलते मौजूदा शासन की नब्ज पकड़ सकते हैं। 10 वर्ष मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय से भाजपा और शिवराज को सही मायने में वास्तविक खतरा है।
राज्यपाल को बदलना भी एक तरह से कांगे्रस की जीत ही होगी। उधर पहली बार मीडिया के सामने आए एसआईटी के प्रमुख चंद्रेश भूषण ने साफ कर दिया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर लगाए गए कांग्रेस के आरोपों की जांच कोई तीसरी एजेंसी भी कर सकती है। क्योंकि एक्सल शीट में छेड़छाड़ का आरोप एसटीएफ पर ही लगा है।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि यदि एक्सेल शीट से ही छेड़छाड़ करनी होती तो वे कमलनाथ, दिग्विजय या फिर सिंधिया का नाम लिखते। भाजपा में मुख्यमंत्री के प्रति विश्वास व्यक्त करने और एकता प्रदर्शन करने की होड़ लग गई। कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट किया कि अगला चुनाव शिवराज के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। पार्टी के विधायकों को बताया गया कि किस तरह कांग्रेस ने झूठे आरोप लगाए हैं, उन्हें हिदायत दी गई कि वे डर्टी पॉलिटिक्स से दूर रहें और सदस्यता अभियान को गति दें।
दिग्विजय सिंह पर भी आरोप
22 साल पहले हुईं नियुक्तियों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह,विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ 10 साल के कार्यकाल (1993 से 2003) के दौरान विधानसभा सचिवालय में 17 लोगों की नियम विरुद्ध नियुक्ति का आरोप है। जस्टिस सचिंद्र द्विवेदी ने इस मामले की जांच की थी। इसमें पाया गया कि पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ने नियमों को दरकिनार किया। आईपीसी की धारा 420, 468, 471 और 120 बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
ये हैं आरोपी...
पूर्वमुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी, सत्यनारायण शर्मा, कमलाकांत शर्मा, प्रदीप मिश्रा, आभा चतुर्वेदी, अमित कुमार अवस्थी, ब्रह्मचारी प्रसाद तिवारी, राजेश प्रसाद द्विवेदी, अरुण कुमार तिवारी, शुक्रमणि प्रसाद मिश्रा, शरद कुमार द्विवेदी, सुधीर कुमार तिवारी, अनिल कुमार मिश्रा, कुलदीप पांडे, देवेंद्र तिवारी, रमेश तिवारी, डॉ. एके पयासी, यज्ञनारायण शर्मा एवं अन्य।
कांग्रेस के क्या हैं आरोप?
जांच एजेंसी द्वारा तैयार की गई चार्जशीट के अनुसार नितिन मोहिन्द्रा और अजय सेन की हार्ड डिस्क नितिन मोहिन्द्रा के ऑफिस के कम्प्यूटर से 18.07.2013 को बरामद की गई थी और इसके बाद उसे स्थानीय पुलिस इन्दौर द्वारा दिनांक 22.07.2013 को संचालनालय, फोरेंसिक साइंसेस, डीएफएस गांधीनकर, गुजरात को भेजा गया था। डीएफएस गुजरात द्वारा इसकी रिपोर्ट अपने पत्र दिनांक 31.07.2013 द्वारा पुलिस अधीक्षक इन्दौर को भेज दी गई। रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया कि हार्ड डिस्क की क्लोनिंग कर ली गई है। डीएफएस गुजरात द्वारा यह लिखित में भेजने के बाद भी हार्ड डिस्क की क्लोनिंग कर ली गई है, उसे पुन: 29.09.2013 को डीएफएस गुजरात को एनालिसिस के लिए भेजा। हार्ड डिस्क को पुन: डीएफएस गांधीनगर गुजरात को भेजने की क्या आवश्यकता थी जबकि उसकी क्लोनिंग डीएफएस द्वारा पहले ही कर ली गई थी।
साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी (ग्राह्यता हेतु) के अंतर्गत उल्लेखित मानक प्रक्रिया जो इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड के लिए अनिवार्य है और किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण/कम्प्यूटर के जब्त करते समय उसका अनुसरण किया जाता है, उसका जांच एजेंसी द्वारा अनुसरण नहीं किया गया। यह चूक इलेक्ट्रॉनिक सबूत की ग्राह्यता को सवालों के घेरे में खड़ा करती है। जांच एजेंसी ने पूरे कम्प्यूटर सिस्टम को उसके नेटवर्क और सेट-अप सहित जब्त न करके सिर्फ हार्ड डिस्क को ही जब्त करने पर ध्यान केन्द्रित किया जिसे मूल कम्प्यूटर/नेटवर्क के बगैर वैज्ञानिक तरीके से उसके असली होने का पता नहीं लगाया जा सकता। जांच एजेंसी ने हार्ड डिस्क की उस समय की हेश वैल्यूÓ को नहीं लिया जिस समय वक कम्प्यूटर (संबंधित सिस्टम) से जुड़ी हुई थी। हेश वैल्यू कम्प्यूटर के डाटा (वास्तविक और डिलीट किये गये) का कुल योग होता है जो हार्ड डिस्क के उससे जुड़े रहते हुए उसे जब्त करते समय लिया जाता है। जिससे यह सुनिश्चित होता है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के डाटा से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। इसके बाद किये गये परिवर्तन/छेड़छाड़ से हार्ड डिस्क की हेश वेल्यूÓ बदल जाती है। चार्जशीट में कोई दस्तावेज ऐसा नहीं है जिसमें नितिन मोहिन्द्रा के कम्प्यूटर की हार्डडिस्क से ली गई हेश वेल्यू को दर्ज किया गया हो।
हार्ड डिस्क जिससे डिलीट किया गया डाटा पुन: प्राप्त किया गया था वह नितिन मोहिन्द्रा के निजी लेपटॉप की थी न कि उनके ऑफिस के कम्प्यूटर/डेस्कटॉप की थी। एसटीएफ द्वारा प्रस्तुत की गई चार्जशीट में उल्लेख किया गया है कि डिलीट किया गया डाटा जिसे वापस लाया गया वह नितिन मोहिन्द्रा के ऑफिस कम्प्यूटर का था।
एसटीएफ ने लक्ष्मीकांत शर्मा पर आपराधिक आरोप मढ़कर उन्हें एक्सेल शीट में उल्लेखित च्च्रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म्ज्ज् के आधार पर बलि का बकरा बनाया है।
डिलीट किये गयेे डाटा से प्राप्त ओरिजनल एक्सेल शीट में च्च्रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म् ३ज्ज् च्च्रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म् २ज्ज् च्च्रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म् ४ज्ज् का भी उल्लेख था। एसटीएफ ने यह खोजने का कोई प्रयास नहीं किया कि च्च्रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म् ३ज्ज् च्च्रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म् २ज्ज् एवं च्च्रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म् ४ज्ज् किसके लिए लिखा गया है।
लक्ष्मीकान्त शर्मा को इस निष्कर्ष के आधार पर जेल भेजा गया है कि एक्सेल शीट में उल्लेखित च्च्रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म्ज्ज् लक्ष्मीकांत शर्मा ही है। यदि यही तर्क च्च्ष्टरूज्ज् को लेकर लागू किया जाये तो च्च्ष्टद्धद्बद्गद्घ रूद्बठ्ठद्बह्यह्लद्गह्म्ज्ज् शिवराज सिंह चौहान के विरुद्ध भी समान अपराध के लिए प्रकरण दर्ज होना चाहिए। मूल रूप से 10 स्थानों पर च्च्द्वड्डड्ढद्धड्डह्म्ह्लद्बद्भद्बज्ज् स्पॉन्सरर के रूप में उल्लेखित है किन्तु एक्सेलशीट में उनका नाम 17 स्थानों पर है, जो जांच एजेंसियों द्वारा उनकी भूमिका को बड़ा करके दिखाने का प्रयास है।
दिग्विजय सिंह ने प्रेस वार्ता में यह भी कहा कि गुजरात में जिस लैब से जांच कराने के लिए सबूत भेजे गए थे, उसे सीबीआई पहले ही ब्लैकलिस्ट कर चुकी है। जब सीबीआई ने उस लैब पर प्रश्न चिन्ह लगाया है, तो सबूत हैदराबाद की लैब में क्यों नहीं भेजे गए।
-राजेन्द्र आगाल