राहुल की ताजपोशी क्या कांग्रेस बंटेगी?
04-Mar-2015 08:22 AM 1234756

बजट सत्र के समय कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी कोप भवन में चले गए हैं। वे अध्यक्ष बनना चाहते हैं और पार्टी के बड़े नेता उनकी टांग खींच रहे हैं। कमलनाथ तो खुलकर सामने आ गए हैं । दिग्विजय सिंह ने भी शब्दों की चाशनी में लपेटकर कड़वी बात कह दी है। ऑफ द रिकॉर्ड राहुल गांधी के इस कदम से कई नेता नाखुश बताए जाते हैं। कमलनाथ ने तो यह भी कह दिया है कि माँ-बेटे में तालमेल ही नहीं है। माँ के पास कोई समस्या लेकर जाओ तो वह बेटे पर टाल देती हैं और बेटे के पास कोई समस्या लेकर जाओ तो वह माँ पर टाल देता है। अचानक कांग्रेस के मतभेद उभर आए हैं और हालात लगभग वैसे ही हैं जैसे कभी सीताराम केसरी के समय हुआ करते थे। तब केसरी के खिलाफ कई बड़े नेता लामबंद हो गए थे और उन्होंने सोनिया गांधी को अध्यक्ष के रूप में प्रस्तुत कर दिया था। लेकिन आज कांग्रेस के पास कोई विकल्प ही नहीं है। ले-देकर प्रियंका बचती हैं, तो वे घर-परिवार में मगन हैं। राहुल गांधी अध्यक्ष क्योंं बनना चाहते हैं? लगातार असफलताओं के बावजूद उनके मन में यह आकांक्षा क्यों पनप रही है? वे अचानक छुट्टी पर क्योंं चले गए? क्या यह पलायन है? वे वाकई में कांग्रेस के कुछ नेताओं से नाराज हैं। बताया जाता है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल की बात एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल रहे हैं। यह छुट्टी उसी का परिणाम है। हमेशा की तरह कांग्रेस के आला नेता राहुल के इस कदम का बचाव करने में जुट गए हैं, लेकिन यह संकेत है कि शीर्षक्रम पर कांग्रेस बिखर रही है। इतिहास में पहली बार कांग्रेस देश की सत्ता से ही नहीं बल्कि कई राज्यों में सत्ता से बेदखल है। कर्नाटक छोड़कर कोई बड़ा राज्य उसके पास नहीं है। केंद्र में मात्र 44 सांसद हैं। ऐसी स्थिति में सत्ता विहीन कांग्रेस की एकता डगमगा रही है और आला नेता कांगे्रस के प्रथम परिवार के प्रति वफादारी निभाने में अब सहज महसूस नहीं कर रहे। उन्हें ज्ञात हो चुका है कि जनमानस में प्रथम परिवार ने अपनी लोकप्रियता खो दी है। ऐसी स्थिति में राहुल गांधी का छुट्टी पर जाना इस बात को पुख्ता करता है कि वे जिस तरह पार्टी को चलाना चाह रहे थे वैसे पार्टी चल नहीं रही है। यूं भी लगातार पराजय से मायूस राहुल पार्टी के कामकाज में कम ही दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सोनिया के सलाहकार भी राहुल को हाशिए पर धकेल चुके हैं। जो बदलाव राहुल गांधी करना चाह रहे हैं। वे सोनिया के करीबी नहीं होने देना चाहते। यही कारण है कि कांग्रेस को चुनाव में जो ऊर्जा खर्च करनी चाहिए वह ऊर्जा पार्टी के भीतर अंतर्विरोधों को खत्म करने में लगाना पड़ रहा है। कांगे्रस में विभाजन की संभावना है। सोनिया, राहुल को कमान सौंपकर राजनीति से दूर रहना चाहती हैं, लेकिन पार्टी के कुछ नेता राहुल को इस काबिल नहीं समझते। इसीलिए राहुल के कई चहेतों की छुट्टी हो चुकी है। जो जमावट राहुल ने राज्यों में की थी उसे भी पुराने नेताओं ने ध्वस्त कर दिया है। दिग्विजय सिंह कहते हैं कि राहुल चिंतन करने के लिए छुट्टी पर गए हैं तो उनकी आलोचना क्यों? लेकिन यह तो वे भी जानते हैं कि राहुल के मार्ग में कौन बाधक है। दिग्विजय का कहना है कि राहुल चिंतन के लिए कोई बेहतर वक्त चुन सकते थे, लेकिन राहुल के लिए इससे बेहतर वक्त और क्या हो सकता था कि वे बजट के दौरान आत्मचिंतन करें। बजट के दौरान उनकी गैरमौजूदगी ही तो चर्चित होगी। अन्यथा यूं तो वे कई बार छुट्टी ले चुके हैं। जानकार इसे राहुल की सोची समझी रणनीति बता रहे हैं।
राहुल चाहते थे कि पार्टी को पूरी तरह से नया रूप दिया जाए और नए चेहरों को जगह दी जाए। ऐसा लगता है कि उनकी यह बात नहीं मानी गई। ऐसा लगता है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी उनकी बातों को मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उन्हें पार्टी में विद्रोह का खतरा दिखाई दे रहा था। कांग्रेस में पुराने बनाम नए की लड़ाई कोई नई नहीं। राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने भी यह लड़ाई लड़ी थी और पार्टी में ओल्ड गार्ड का सफाया कर दिया था। निजलिंगप्पा और कामराज के नेतृत्व में ओल्ड गार्ड ने तब इंदिरा गांधी को बांध सा दिया था लेकिन उन्होंने बड़ी चतुराई से पार्टी पर कब्जा कर लिया। वह राजनीतिक दूरदर्शिता और समझ का कमाल था, लेकिन राहुल ऐसा कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं। वह उदासीन से रह रहे हैं और पार्टी में जड़ से जुड़ नहीं पाए। इतना ही नहीं उनके इर्द-गिर्द चापलूसों की पूरी फौज है जो उन्हें अपने विवेक से काम नहीं करने दे रही है। उनके साथ ऐसे लोग भी हैं जिनकी राजनीति महज अपने को ऊपर स्थापित करने का जरिया है।
ऐसे लोगों की सूची लंबी है और दुर्भाग्यवश राहुल उनके करीब हैं। इनमें ऐसे नेता बड़ी तादाद में हैं जो चुनावी राजनीति से दूर रहे हैं और बयानों की राजनीति भर करते हैं। ऐसा नहीं है कि सोनिया गांधी के पास ऐसे लोग नहीं हैं लेकिन राहुल को ऐसे लोगों से छुटकारा पाना ही होगा। उनके इर्द-गिर्द जो लोग हैं उनके बूते तो वह भारत की राजनीति में धमाकेदार वापसी की उम्मीद तो नही कर सकते हैं।

राहुल क्यों नाराज हैं बड़े नेताओं से
राहुल गांधी पार्टी पर कंट्रोल चाहते हैं। क्योंकि अभी उनकी चलती ही नहीं। हर बार बड़े नेता अड़ंगे लगा देते हैं। मिसाल के तौर पर, वे लोकसभा चुनाव के पहले कुछ मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को हटाना चाहते थे। दिल्ली में आक्रामक अभियान चाहते थे। पर बड़े नेताओं ने करने नहीं दिया। उल्टा चुनावों में हार का ठीकरा जरूर उनके सिर पर फोड़ दिया। ये नेता एआईसीसी की अप्रैल में होने वाली बैठक में राहुल को अध्यक्ष बनाने का भी विरोध कर रहे हैं। इसी को लेकर राहुल नाराज हैं। हालांकि कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि नाकामियों का ठीकरा उन पर फोडऩा है तो उनके फैसले भी स्वीकार होने चाहिए।

-रेणु आगाल

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