04-Mar-2015 08:10 AM
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भोपाल गैस त्रासदी में तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी पर एक बार फिर सवाल उठे हैं। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की भूमिका पर पूर्व प्रधानमंत्री

राजीव गांधी के निजी सचिव आर.के. धवन कह चुके हैं कि यदि कोई सही जानकारी दे सकता है तो वह अर्जुन सिंह ही हैं।
लेकिन अब न तो राजीव गांधी हैं, न अर्जुन सिंह, दोनों का देहांत हो चुका है और गैस त्रासदी के 30 साल बाद इस मामले की जांच कर रहे आयोग ने जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें जस्टिस एस.एल. कोचर ने साफ कहा है कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद गिरफ्तार कर लिए गए वॉरेन एंडरसन की रिहाई के लिए तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और कलेक्टर मोती सिंह कुछ ज्यादा ही इच्छुक थे, संभवत: इसी कारण भोपाल पुलिस ने कानून को धता बताते हुए एंडरसन को न तो कोर्ट में प्रस्तुत किया और न ही उचित कार्रवाई की, बल्कि आनन-फानन में जमानत देकर रिहा कर दिया। एंडरसन भागने में कामयाब रहा। सरकार ने ही उसे सुरक्षा मुहैया कराई। उस वक्त एंडरसन को एयरपोर्ट भेजने के लिए सरकार की तरफ से ही इंतजामात किए गए और राज्य सरकार का हवाई जहाज भी मुहैया कराया गया था।
ज्ञात रहे कि जब अर्जुन सिंह जीवित थे, उस वक्त मध्यप्रदेश के मुख्यमंंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अर्जुन सिंह को एक पत्र भी लिखा था, जिसमें पूछा गया था कि सिंह इस बारे में सफाई दें कि क्या उन्होंने राज्य का हवाई जहाज एंडरसन को खुद दिया था या फिर किसी और ने उनसे ऐसा करने को कहा था। भोपाल गैस त्रासदी जांच आयोग के सचिव शशिमोहन श्रीवास्तव ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव अंटोनी डिसा को जो रिपोर्ट सौंपी है, क्या उसमें इन तमाम सवालातों से जूझने की कोशिश की गई है? क्योंकि मामला केवल उस दुर्घटना की तकनीकी खामियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मामला उस दुर्घटना के प्रमुख आरोपी एंडरसन और उस समय फैक्ट्री के 2 बड़े अधिकारियों को राज्य सरकार की तरफ से सुरक्षित पैसेज देने का भी है। रिपोर्ट इंसेक्टीसाइड एक्ट मेें बदलाव करने की बात है, विभिन्न संगठनों से मुआवजा कम होने का कारण पूछने की सिफारिश की गई है। लेकिन पीडि़त लोगोंं के परिजन इन सारे विषयों से संतुष्ट नहीं हैं। वे आरोपियों को सजा दिलाना चाहते हैं, 30 साल बीतने के बाद अब इस बात की संभावना कम ही है कि किसी आरोपी को सजा मिलेगी, क्योंकि मुख्य आरोपी एंडरसन गुमनामी में मर चुका है। बाकी जो हैं उन्हें कानून के दायरे में लाना आसान नहीं है, उनके खिलाफ सबूत देने वाले ही नहीं हैं। असल में तो यह मामला मुआवजे से ज्यादा एंडरसन को सुरक्षित देश से बाहर किए जाने का है। जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था, उस वक्त कम से कम मुकदमा तो चलाना था। अदालत का निर्णय आने के बाद ही कुछ कदम उठाया जाता, तो बेहतर रहता। लगता है उस समय भी केंद्र और राज्य सरकार अमेरिका के दबाव के आगे झुक गईं। अब केवल रिपोर्ट है और चर्चाएं हैं। मुआवजे का सवाल बार-बार उठाया जा रहा है। आयोग का कहना है कि 10 लाख रुपए के करीब मुआवजा दिया जा चुका है, लेकिन गैस पीडि़त संगठन इसे भी अपर्याप्त मानते हैं। वर्ष 2010 में जब स्वराज पुरी का नाम प्रमुखता से इस मामले में आया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें नर्मदा संकुल परियोजना के सदस्य के रूप में हटा दिया था। अब जांच रिपोर्ट में भी उनके ऊपर आरोप लगाए गए। साथ ही तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह का नाम भी है। ले-देकर भोपाल गैस त्रासदी में ये 2 अधिकारी ही ऐसे हैं जिनका नाम बार-बार आता रहा है। वैसे तो जांच आयोग ने इनके अलावा तत्कालीन गृह सचिव के.एस. शर्मा, पुलिस महानिरीक्षक बी.के. मुखर्जी और डीआईजी बी.पी. सिंह को भी तलब किया था। उस वक्त एंडरसन को जमानत पर छोडऩे का फैसला तत्कालीन मुख्य सचिव ब्रह्म स्वरूप के कमरे में हुआ था, जबकि जमानत के दस्तावेज यूका के गैस्ट हाउस में तैयार हुए थे।
जांच आयोग के समक्ष दिए बयान में तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह ने कहा कि 7 दिसंबर 1984 की दोपहर तत्कालीन मुख्य सचिव ब्रह्म स्वरूप ने सभी को अपने दफ्तर बुलाया, जहां शहर की कानून व्यवस्था के मद्देनजर एंडरसन को जमानत पर छोडऩे की चर्चा हुई। अब जांच आयोग की रिपोर्ट भी आ चुकी है और जिला न्यायालय ने जून 2010 में अपना फैसला भी दे दिया है। देखना है इससे आगे क्या होता है।
क्या कहा मोती सिंह ने
मोती सिंह का कहना है कि उस वक्त एमपी में अर्जुन सिंह सरकार के मुख्य सचिव ब्रह्मस्वरूप ने उन्हें ये आदेश दिया कि वारेन एंडरसन को छोड़ दिया जाए। ब्रह्मस्वरूप अब इस दुनिया में नहीं हैं। 7 दिसंबर 1984 को जानकारी मिली की एंडरसन, केशव महेंद्र और विजय गोखले भोपाल आ रहे हैं। एयरपोर्ट से उनको गिरफ्तार किया गया और श्यामला हिल्स ले जाकर कंपनी के गेस्ट हाउस में अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया गया। मोती सिंह ने कहा कि वारेन एंडरसन की गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद ही उन्हें और एसपी को मुख्य सचिव ने बुलाया। जब वे उनके चैंबर में पहुंचे तो उनसे कहा गया कि एंडरसन को छोडऩा है और दिल्ली पहुंचाना है। सिंह ने कहा कि उसके बाद उन्होंने जमानत पर एंडरसन को छोड़ दिया और उसे सरकारी विमान से दिल्ली पहुंचा दिया गया। यहां से एंडरसन तुरंत अमेरिका के लिए रवाना हो गया। बाद में कहानी ये बताई गई कि एंडरसन इसी शर्त पर भोपाल आया था कि उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। गौरतलब है कि अर्जुन सिंह ने खुलासा किया था कि उन्हें एक फोन कॉल आया था और उसी के बाद एंडरसन को छोडऩे का निर्णय लिया गया। लेकिन उन्होंने कभी ये नहीं बताया कि ये फोन कॉल किसका था। सीबीआई के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर बी आर लाल ने भी ये सनसनीखेज बयान दिया था कि एंडरसन के प्रत्यर्पण न करने के लिए केंद्र सरकार ने दबाव डाला था हालांकि अब सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर विजय रामा राव ने कहा है कि सीबीआई ने एंडरसन को भारत लाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन अमेरिका ने इसमें पूरी मदद नहीं की।
-कुमार राजेंद्र