04-Mar-2015 07:47 AM
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गुन मास में हर तरफ फूल खिल आते हैं तथा बड़ी रंग-बिरंगी बहार होती है। होली का त्यौहार इसी फागुन मास में बड़े हर्षोल्लास व उत्साह के साथ मनाया जाता है जिसमें लोग एक-दूसरे से गले लगकर

होली की शुभकामनाएं देते हैं। जिस प्रकार होली के त्यौहार का बाहरी पहलू जिसमें कि एक दिन होलिका जलाई जाती है तथा अगले दिन एक-दूसरे पर रंग व गुलाल डालकर इस त्यौहार को पारंपरिक रूप से मनाया जाता है लेकिन इसका एक रूहानी महत्व भी है। दुनिया में हमेशा एक दौर चलता रहता है। सच और झूठ की हमेशा लड़ाई होती है। सच को दबाने के लिए झूठ बड़ी कोशिश करता है कि वह किसी न किसी तरह से छुप जाए, मगर सच एक ऐसी चीज है जो कभी भी छुप नहीं सकता क्योंकि पिता-परमेश्वर सृष्टि के शुरूआत में सच थे, आज भी सच हैं और सृष्टि के अंत तक भी सच रहेंगे। होली के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। भक्त प्रहलाद के पिता हिरणाकश्यप जो कि अपने आपको कहते थे कि मैं ही परमात्मा हूँ, सब मेरी पूजा करो। जो गर्जमंद लोग थे, जो असूलों से गिरे हुए लोग थे, उन्होंने मान लिया कि यह खुदा है लेकिन भक्त प्रहलाद जो कि पिता-परमेश्वर के सच्चे पुजारी थे, उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की तथा अपने पिता को एक आम इंसान मानते हुए केवल पिता-परमेश्वर की ही पूजा की।
चाहे उनके पिता ने उन पर कितनी भी सख्तियाँ की तथा कई तरीकों से उनको दु:ख दिया, मगर उन्होंने एक नहीं सुनी। जब प्रहलाद किसी तरह से नहीं माने तो उन्होंने उसे मारने की एक तरकीब निकाली। हिरणाकश्यप की एक बहन थी, होलिका। जिसको यह वर था कि अगर वह आग में बैठे तो वह जल नहीं सकती। उसने सोचा कि वह बच्चे को गोद में लेकर बैठ जाएगी। बच्चा जल जाएगा और वह बच जाएगी। आयोजन किया गया। बहुत सारी लकडिय़ों का ढेर लगाकर उसमें आग लगा दी गई और होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर बीच में बैठ गई। आखिरकार जब दिन चढ़ा, देखा तो प्रहलाद बचा हुआ था, होलिका जल गई थी। तो उसकी याद में यह होली का दिन है। यह इसका प्रतीक है कि आखिर सच की विजय और झूठ की हमेशा हार होती है। पूर्ण संतों के अनुसार होली जलाने का आध्यात्मिक महत्व यह है कि हम अपने अंदर की बुराईयों को जलाकर सदाचारी जीवन व्यतीत करें तथा जिस प्रकार हम बाहर एक-दूसरे पर रंग व गुलाल डालकर इस त्यौहार को मनाते हैं, उसी पकार हम पूर्ण गुरु की सहायता से ध्यान-अभ्यास द्वारा अपने अंतर में प्रभु के विभिन्न रंगों को देखकर सच्ची होली अपने अंतर में खेलें। इस त्यौहार का एक अन्य पहलू एक दूसरे पर रंग लगाना भी है। इस त्यौहार पर लोग सफेद कपड़े पहनते हैं और इसमें भी एक आध्यात्मिक पहलू है। सफेद रंग में अन्य सभी रंग शामिल है। इसी तरह, परमेश्वर हम सबके भीतर है। जिस प्रकार सफेद रंग सभी रंगों का स्रोत है उसी प्रकार परमेश्वर सारी सृष्टि का स्रोत है। इस संदर्भ में एक नवदंपति की कहानी है। यह नवदंपति अपने जीवन में एक-दूसरे के साथ बहुत प्रेमपूवर्क रहते थे लेकिन कुछ समय पश्चात वह एक-दूसरे की गलतियों को देखकर आपस में बहस करने लग गए। धीरे-धीरे उनके जीवन में पे्रम का अभाव होने लगा और उनका जीवन नीरस हो गया। उनके परिवार की एक बुजुर्ग महिला ने उनके जीवन में इस परिवर्तन को देखते हुए, उनमें फिर से पे्रम बिखेरने के लिए उन्हें पार्क में भोजन पर आमंत्रित किया। नवदंपति ने भोजन में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों व खूबसूरत वातावरण का आनंद लिया। उसके पश्चात बुजुर्ग महिला ने नवदंपति को ढलते हुए सूरज को देखने को कहा। जो धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार के रंगों नीले, संतरी, पीले व गुलाबी रंग में परिवर्तित होकर वातावरण को और खूबसूरत बना रहा था। बुजुर्ग महिला ने इस दृश्य को देखकर कहा कि, कितना सुंदर नजारा है।Ó जिसे नवदंपति ने स्वीकार किया। तत्पश्चात बुजुर्ग महिला ने कहा कि, मैंने आप में से किसी से नहीं सुना कि वह पिता-परमेश्वर से प्रार्थना करे कि इन रंगों की दिशा को बदलकर ढलते सूरज की लालिमा को कम या ज्यादा कर दें।Ó यदि पिता-परमेश्वर के बनाए हुए ढलते सूरज के इस दृश्य को हम बिना परिवर्तन के स्वीकार करते हैं। ठीक इसी प्रकार पिता-परमेश्वर ने हम सब की रचना की है तो हमें किसी में दोष न देखते हुए उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। जिस प्रकार होली में विभिन्न रंग हमारे कपड़ों पर बहुरंगी आकृति बनाते हैं और हम आकृतियों को बदलने की कोशिश नहीं करते, उसी प्रकार हमें अपने जीवन में एक-दूसरे को पे्रमपूर्वक स्वीकार करना चाहिए। अगर हम एक देश या समुदाय के सदस्य हैं तो हमें दूसरों को उसी तरह स्वीकार करना चाहिए जिस तरह पिता-परमेश्वर सबको स्वीकार करते हैं। आओ होली के इस त्यौहार पर हम सब अपने अंदर फैली बुराइयों को जलाकर व एक-दूसरे पर प्रेम व भाईचारे का रंग डालते हुए मनुष्य जीवन के मुख्य उद्देश्य को प्राप्त करें।
-संत राजिन्दर सिंह जी महाराज