18-Feb-2015 12:37 PM
1234837
कानपुर में चार दिवसीय मंथन के दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा और अनुसांगिक संगठनों को मथने की भरपूर कोशिश की। उत्तरप्रदेश,

बिहार जैसे राज्यों में चुनाव से पहले राष्ट्र्रीय स्वयं सेवक संघ का यह मंथन कई मायने में महत्वपूर्ण है। हिंदू संगठनों की आक्रामकता और उसके चलते विश्वव्यापी आलोचना तथा दिल्ली चुनाव के परिणाम, इन सबके साथ-साथ भविष्य की रणनीति पर इस चार दिवसीय मंथन में विचार चल रहा है। बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, विश्व हिंदू परिषद सहित तमाम संगठन इस प्रक्रिया में संघ के आला नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों से लव जिहाद, घर वापसी, हिंदुत्व, हिंदुओं की फैमिली प्लानिंग और वेलेनटाइन डे जैसे मुद्दों पर हिंदूवादी संगठनों ने मोदी सरकार को परेशान किया है। मोदी की खामोशी पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। हिंदुत्व को जिस राजनीतिक एजेंडे के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश संघ करता रहा है, उसे भी कहीं न कहीं दिल्ली चुनावी परिणामों से धक्का लगा है। इसलिए रणनीति में बदलाव स्वाभाविक है। उधर विश्व हिंदू परिषद भी मौजूदा परिस्थितियों को लेकर थोड़ी खफा दिखाई देती है। विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगडिय़ा को पहले बैंग्लोर में प्रवेश नहीं मिला और उसके बाद असम में उनके आने पर पाबंदी लगा दी गई। असम में हाल के स्थानीय निकाय के चुनाव में भाजपा को भारी जीत मिली है, जिसे लेकर कांगे्रस में बेचेनी है। असम, पश्चिम बंगाल सहित तमाम पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा का जनाधार मजबूत करना भी संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों का लक्ष्य रहा है। मोदी के नेतृत्व में जिस तरह दिल्ली की लड़ाई भाजपा हार गई उसके चलते संघ की पूछ परख फिर से बढऩे लगी है। मोदी संघ को दरकिनार करना चाहते थे लेकिन अब वे भी रास्ते पर आ रहे हैं। पर जरूरी यह भी है कि हिंदूवादी संगठन मोदी को ज्यादा परेशानी में न डालें अन्यथा विकास के एजेंडे को धक्का पहुंच सकता हैँ। लेकिन आरएसएस की और दूसरी चिंताएं भी हैं। वीएचपी के अवध क्षेत्र के सचिव बिहारी मिश्रा का कहना है कि 2017 के यूपी चुनाव के अलावा भी कुछ अन्य समस्याओं को ध्यान में रखना होगा। समझा जाता है कि संघ अपनी शाखाओं में उपस्थिति की संख्या बढ़ाने के लिए भरपूर प्रयासरत है।
हिंदुओं की एकजुटता है लक्ष्य
कानपुर में मोहन भागवत ने हिंदुत्व पर किसी भी प्रकार का नरम रुख अपनाने का संकेत नहीं दिया है। संघ के प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि उनका कार्य हिंदू समुदाय को एक करना है। समय आ चुका है जब सारा समाज संघ की तरफ देख रहा है और उससे अपेक्षाएं रखता है। भागवत का कहना है कि इन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए संघ का आकार बढ़ाना होगा, ताकि हिंदू समुदाय भय मुक्त, स्वाभिमानी और नि:स्वार्थ बन सके। ऐसा केवल भाषणों द्वारा संभव नहीं है, भागवत ने स्पष्ट कहा कि हम आगे आएं और बाकी सब कुछ भुला दें। केवल भगवा झंडा हमारे सामने रहे जो गर्व का प्रतीक है। भागवत ने इस बात पर भी चिंता प्रकट की कि अक्सर संघ के कार्यक्रमों को शक्ति प्रदर्शन कहा जाता है जबकि शक्ति प्रदर्शन की आवश्यकता उन लोगों को होती है, जो कमजोर हैं। संघ के इस स्पष्ट रुख के बाद आगामी चुनावों में भाजपा की रणनीति का भी संकेत मिल रहा है, जिसके केंद्र में हिंदुत्व ही प्रमुख रूप से रहेगा।
इस बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने सोशल मीडिया और कुछ व्यवधानी अधिकारियों पर सेना में अफवाह फैलाने का आरोप लगाया है। संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में प्रकाशित एक लेख में सेना के भीतर और बाहर कुछ तत्वों से सावधान रहने की चेतावनी दी गई है और बताया गया है कि किस तरह सोशल मीडिया के माध्यम से उन सैनिकों के हौसले तोडऩे का प्रयास हो रहा है, जो देश के लिए आतंकवादियों और विघटनकारियों से लड़ रहे हैं। कुछ समय पूर्व जब प्रधानमंत्री राहत कोष में सेना के कर्मचारियों को एक दिन का वेतन देने का आदेश आया था, उस समय इसे लेकर कुछ अधिकारियों ने असंतोष प्रकट करते हुए सोशल मीडिया पर कुछ लिखा था, जिसे ऑर्गेनाइजर ने गंभीर माना है और मांग की है कि सेना को सोशल मीडिया पर रोक लगाने के लिए कोई गंभीर मैकेनिजम अपनाना चाहिए। केंद्रीय कर्मचारी सहित भारतीय सेना के कर्मियों के एक दिन के वेतन से प्रधानमंत्री राहत कोष में 100 करोड़ रुपए के करीब जमा हुए थे। ऑर्गेनाइजर में लिखा है कि यह फंड जरूरतमंदों के ही काम आया, संभवत: इसके आलोचना करने वालों को कानून का पता नहीं है।
विहिप ने बदला स्टैंड!
अपने उग्र बयानों से प्रधानमंत्री को परेशानी में डालने वाले संगठन विश्व हिंदू परिषद ने अपने रुख में बदलाव का संकेत दिया है। हाल ही में लुधियाना में विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष राघव रेड्डी ने कहा है कि अरसे बाद केंद्र में एक ऐसी सरकार सत्तासीन हुई है जो हिंदू संस्कृति और विश्वास को मान्यता देती है, इसलिए हिंदू नेताओं को चाहिए कि वे संतुलित बयान दें। रेड्डी का कहना है कि मोदी को काम करने दें, उन्हें समय दें, वे भारतीयता के स्वप्र को आने वाले दिनों में साकार करेंगे क्योंकि उन्हें इस देश के लोगों के विश्वास के बारे में पता है। पिछले दिनों विहिप के नेताओं ने परेशानी में डालने वाले बयान दिये थे, जो ज्यादातर अल्पसंख्यकों पर लक्षित थे। जिससे मोदी को परेशानी उठानी पड़ी।
अंतत: प्रधानमंत्री चेते
दिल्ली में पहले चर्च और उसके बाद कान्वेन्ट स्कूल पर हमले के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी अंगुली उठाई गई थी। विदेशी अखबारों ने प्रधानमंत्री की चुप्पी की आलोचना की थी। दिल्ली में स्कूल पर हमले के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रभावित स्कूल का दौरा किया और प्रधानमंत्री ने पुलिस के आला अफसरों को यह निर्देश दिया कि वे दोषियों पर शीघ्रता से कार्रवाई करें। सवाल यह है कि सरकार इन तत्वों के खिलाफ कितनी सख्ती से पेश आती है? क्योंकि इस तरह के तत्व माहौल बिगाड़ रहे हैं और इससे भाजपा ही नहीं आरएसएस की छवि भी खराब होती है, जो कि एक सांस्कृतिक और धर्मनिरपेक्ष संगठन है।
जले पर नमक छिड़कते ठाकरे बंधु
महाराष्ट्र मेंं उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे भाजपा के जले पर नमक छिड़कने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। दरअसल जबसे शिवसेना को विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आइना दिखाया है। तभी से उद्धव ठाकरे भाजपा से खार खाए बैठे हैं और उधर कांगे्रस के कुछ बागी नेताओं तथा राष्ट्रवादी कांंग्रेस पार्टी से भाजपा की बढ़ती निकटता भी कहीं न कहीं दोनों दलों के बीच तल्खियां बढ़ा रही है, लेकिन साथ रहना मजबूरी है। हाल ही में जब प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र एनसीपी के कद्दावर नेता शरद पवार के साथ एकमंच पर जुगलबंदी की तो शिवसेना के कान खड़े हो गए। इससे पहले कांग्रेस केे नेता नारायण राणे भाजपा विधायक लक्ष्मण जगताप के निवास पर भी जा चुके हैं। वहां से लौटने के बाद जगताप ने राहुल गांधी को जलकर कोसा था और कहा था कि राहुल को कांग्रेस के पुनर्निमाण के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। सूत्र बता रहे हैं कि राणे के अलावा कांगे्रस के कई खफा हो चुके नेता अब भाजपा जैसे राष्ट्रीय पार्टी में अपना भविष्य तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। राणे एक भाजपा नेता की होटल के उद्घाटन में भी गए थे। राणे एक पत्र भी निकालते हैं जिसका नाम प्रहार है। हाल के दिनों में इस प्रहार के मार्फत भी राणे ने कांगे्रस पर कई प्रहार किए हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में यदि कांगे्रस का विघटन होता है और टूटे हुए गुट को भाजपा में मिला लिया जाता है तो भाजपा बहुमत में स्वत: ही आ जाएगी। उधर शरद पवार भी भाजपा से निकटता के लिए आतुर हैं। परदे के भीतर दोनों के तार जुड़े चुके हैं और यही आशंका शिवसेना के लिए चिंता का विषय है। इसीलिए उद्धव ठाकरे और मनसे के राज ठाकरे मुखर हैं। राज ठाकरे ने तो दिल्ली की पराजय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को कटाक्ष करता हुआ एक कार्टून भी बनाया था। उद्धव ठाकरे ने भी दिल्ली की जीत को सुनामी कहकर भाजपा पर व्यंग्य कसा था। ठाकरे केंद्र की कई योजनाओं की भी आलोचना कर चुके हैं। अब महाराष्ट्र में मुंबई महानगर पालिका सहित अन्य स्थानीय निकायों में चुनाव आने वाले हैें। देखना है कि भाजपा और शिवसेना का तालमेल कहा तक पहुंचता है। क्या दोनों दल डैमेज कंट्रोल की कोशिश करेंगे या फिर भाजपा अपना अलग रास्ता तलाश लेगी। आने वाले समय में कुछ और चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं। शिवसेना की रणनीति प्रदेश में अपना अलग अस्तित्व बनाने की है। शिवसेना का अपना वोट बैंक है और उसे मराठी हितों की सबसे बड़ी पैरोकार माना जाता रहा है, लेकिन राज ठाकरे द्वारा अलग से मनसे का गठन करने के कारण शिवसेना का वोट बैंक विभाजित हो गया है। उद्धव और राज दोनों अलग-अलग रास्ते पर हैं। यही सबसे बड़ी कमजोरी है।
-अक्स ब्यूरो