03-Feb-2015 04:54 AM
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ओबामा की मेहमान नवाजी देखकर जाने क्यों भीष्म साहनी की कहानी चीफ की दावत का स्मरण हो आया। बस हम नाचे ही नहीं बाकी हमने सब कुछ किया, ओबामा को लुभाने के लिए। वैसे भी जिस देश ने नरेंद्र मोदी को वर्षों वीजा से वंचित रखा हो, उससे कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं पालना अनुपयुक्त और दिवास्वप्न के समान ही था। ओबामा ने भारत को सांप्रदायिक सद्भाव की सलाह दी और कहा कि भारत धर्म के नाम पर नहीं बंटा तो बहुत विकास करेगा। काले-गोरों के बीच सदियों तक नस्लीय नफरत खत्म करने में नाकाम रहे अमेरिका के राष्ट्रपति ने जब तीन हजार वर्षों से बहुधार्मिक और अनेकांतवादी भारत देश को यह नसीहत दी, तो उनकी यह सीख गले नहीं उतरी। ओबामा को ऐसा क्या नजर आया जो उन्होंने इस तरह भारत को चाशनी में लपेटकर कड़वी गोली खिलाने की कोशिश की। क्या भारत धर्म के नाम पर बंटा हुआ है? क्या भारत में अमेरिका की तरह नस्लीय नफरत चरम पर है? ये वही ओबामा हैं जिन्होंने कुछ समय पूर्व अमेरिका में अश्वेतों के समांगीकरण पर चिंता प्रकट की थी और अब भारत को मुफ्त की सलाह। उम्मीद तो यह थी कि ओबामा आतंकवाद पर कुछ बोलेंगे और पाकिस्तान को कड़े शब्दों में नसीहत देंगे, पर नरेंद्र मोदी के साथ लॉन में टहलने से लेकर प्रगाढ़ मित्रता दिखाने के बावजूद ओबामा ने आतंकवाद को बड़ा मुद्दा नहीं माना। इसलिए भारत के साथ उनकी मित्रता भले ही परवान चढ़ी हो, लेकिन यह यात्रा उतनी उत्साहजनक नहीं कही जा सकती। इतना अवश्य है कि ओबामा के इस कथन के बाद नरेंद्र मोदी को अपने ही घर में घर वापसी जैसे तमाम विवाद खड़े करने वाले संगठनों को साधने का मजबूत आधार मिलेगा। नरेंद्र मोदी ने पिछला चुनाव विकास और सुशासन के नाम पर लड़ा था। मोदी की कार्यशैली और ऊर्जा की ओबामा ने भी कई मौकों पर सराहना की। लेकिन यात्रा का समापन कुछ इस अंदाज में किया कि जो पाकिस्तान नाराज बैठा था, उसे इस बयान से खासी राहत पहुंची। पाकिस्तान के अखबारों और मीडिया में भी ओबामा के बयान के बरक्स भारत की बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक परंपराओं को लेकर बहस चल पड़ी।
गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व परवेज मुशर्रफ जब भारत में किसी कार्यक्रम में मुसलमानों की दशा पर टिप्पणी कर रहे थे, उस वक्त मौलाना मदनी ने मुशर्रफ को टोक दिया था कि आप अपने देश की फिक्र करें। लेकिन दिल्ली के सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में भारत को बौद्धिकÓ पिलाने वाले ओबामा को टोकने वाला कोई नहीं था, वे धाराप्रवाह बोलते रहे। ऐसा लगा जैसे वे जो बता रहे हैं, हमें तो मालूम ही नहीं है। न हमें यह मालूम है कि सारे धर्म एक पेड़ के फूल हैं और न हमें यह मालूम है कि सांप्रदायिक सद्भाव तथा प्रेमभाव क्या कहलाता है। ओबामा की नरेंद्र मोदी के साथ केमिस्ट्री अच्छी थी, लेकिन भारत की केमिस्ट्री समझने में ओबामा नाकामयाब रहे। उन्हें शायद यह नहीं मालूम कि अमेरिका की धार्मिक विविधता के मुकाबले भारत की धार्मिक विविधता हजार गुना ज्यादा पेचीदा और समृद्ध है। फिर भी ओबामा की इस यात्रा का महत्व कम नहीं हो जाता। उन्होंने भारत के साथ कई अहम समझौते किए हैं। परमाणु करार की दृष्टि से असैनिक परमाणु सहयोग मजबूत करना एक महत्वपूर्ण कदम है। ओबामा ने 4 अरब डॉलर के निवेश और कर्ज की पेशकश भी की है, जो हकीकत बनी तो भारत में पर्यावरण सम्मत आर्थिक विकास को गति मिलेगी। न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की सदस्यता को अमेरिका समर्थन देना चाहता है, हालांकि चीन इसमें अड़ंगा डालेगा। लेकिन इससे पहले भारत को एनपीटी अर्थात परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत करने होंगे। एनएसजी के तहत सारे विश्व का परमाणु व्यापार नियंत्रित होता है। इसकी सदस्यता लेने से अन्य देशों से टैक्रोलॉजी और परमाणु सामग्री का आदान-प्रदान संभव है। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत और अमेरिका की साझेदारी भारत में ऊर्जा संकट को हल करने की दिशा में प्रभावी साबित हो सकती है। अडानी समूह और न्यूयार्क में लिस्टेड सनएडिसन पहले ही 4 अरब डॉलर के निवेश से भारत का सबसे बड़ा सोलर इक्विप्मेंट प्लांट बनाने की घोषणा कर चुकी है। जिन 7 समझौतों पर ओबामा की यात्रा के दौरान बातचीत हुई है यदि वे अमल में लाए जाते हैं, तो भारत को मजबूती मिलेगी।
चीन-अमेरिका के बीच सालाना व्यापार 560 अरब डॉलर का है। लेकिन भारत-अमेरिका के बीच सालाना करीब 100 अरब डॉलर का कारोबार होता है। इसे 500 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है। एक दिक्कत यह है कि कुछ समय के लिए अमेरिका में काम करने वालों को पेंशन/पीएफ का पैसा नहीं मिलता है। इससे भारत में विदेशी मुद्रा की आवक पर असर पड़ता है। अब अमेरिका इस पर बात करने को राजी है, इससे भारतीयों को हर साल करीब 18,000 करोड़ रुपए का रिफंड मिल सकेगा। नरेंद्र मोदी के सपने को आगे बढ़ाते हुए इलाहाबाद, अजमेर और विशाखापत्तनम को स्मार्ट सिटी बनाने में अमेरिका सहयोग करेगा। इसके लिए अमेरिकी एजेंसी शुरुआती अध्ययन, पायलट प्रोजेक्ट, स्टडी टूर, वर्कशॉप आदि में भी वित्तीय मदद करेगी। अक्षय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए दस कदमों पर सहमति बनी है, इसमें साफ ऊर्जा क्षेत्र में अनुसंधान करना तथा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना शामिल है। इसके लिए निवेश हेतु ग्रीन बांड जारी होंगे। अक्षय ऊर्जा बढऩे से प्रदूषण घटेगा। रक्षा के क्षेत्र में रैवेनएरियल व्हीकल, हर्क्यूलस विमान, मोबाइल हाइब्रिड पावर सोर्स, रसायनिक, जैविक हमलों से बचाव के यंत्र की साझा मैन्युफैक्चरिंग पर सहमति बनी है, इससे रक्षा उद्योग का विस्तार होगा। इस समझौते में लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर निर्यात का है।
अमेरिका एशिया प्रशांत हिंदमहासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी का जवाब देना चाहता है। इससे क्षेत्र में संतुलन बनेगा, किंतु चीन नाराज होगा। संभवत: इसीलिए एशिया प्रशांत हिंद महासागर क्षेत्र पर दोनों देशों का साझा बयान आया, जिसमें दक्षिण चीन सागर में भारत-अमेरिकी हितों का जिक्र किया गया है।
उम्मीद तो ज्यादा की थी, लेकिन अमेरिका भारत को 4 अरब डॉलर कर्ज देने पर राजी हो गया है। जिसमें से दो अरब डॉलर का कर्ज अक्षय ऊर्जा में निवेश के लिए है। एक-एक अरब डॉलर का कर्ज एसएमई अमेरिकी निर्यातकों के लिए है। इससे लागत कम करने के लिए नई टेक्नोलॉजी में होगा निवेश हो सकेगा। भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौता 2008 में हुआ था, जो अब जाकर पूरा हुआ। इसके तहत भारत को बेचे परमाणु ईंधन की अमेरिका निगरानी नहीं करने पर राजी हो गया है। अब अमेरिका से ईंधन और टेक्नोलॉजी मिलने का रास्ता साफ हो चुका है। यही नहीं किसी भी दुर्घटना की स्थिति में नुकसान की भरपाई भारत करेगा। कुछ अन्य क्षेत्रों में भी आने वाले समय में अमेरिका और भारत का सहयोग बढ़ सकता है। इस दिशा में बजटसत्र के बाद भारत और अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारी बैठक करेंगे। इसमें निवेश के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों और साझा की जाने वाली टेक्नोलॉजी की पहचान होगी। बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) या पेटेंट और वीजा पर भी चर्चा हो चुकी है। अमेरिकी कंपनियां भारत के आईपीआर कानून को भेदभाव वाला बताती रही हैं। खासकर फार्मा कंपनियां। लेकिन भारत अपने कानून को डब्लूटीओ मानकों के मुताबिक मानता है। आईपीआर नीति के ड्राफ्ट पर अमेरिका की प्रतिक्रिया मांगी गई है। उनकी प्रतिक्रिया के आधार पर ही आगे बातचीत का मसौदा तैयार होगा। इस बीच भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि खुदरा कारोबार में एफडीआई का कोई इरादा नहीं है। इसके लिए कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। सिंगल ब्रांड में एफडीआई की अनुमति है लेकिन मल्टी ब्रांड में नहीं।
रेडियो पर भी छाए
नरेंद्र मोदी तो रेडियो से मन की बात करते हैं लेकिन इस बार उनके साथ अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी रेडियो पर उनके साथ भाषण दिया। दोनों ने 35 मिनट तक व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित बातचीत की। मोदी ने कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने कहा मैं हूं, क्योंकि हम हैं। हम भारत में कहते हैं- वसुधैव कुटुम्बकम। वही भाव दूर-सुदूर अफ्रीका के जंगलों में भी उगते हैं। वहीं, ओबामा ने नमस्ते कहकर अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा, मैं गणतंत्र दिवस पर आपके बीच आने वाला पहला अमेरिकी राष्ट्रपति हूं। मुझे अभी बताया गया कि पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ रेडियो पर भाषण दिया है। इस तरह काफी कम वक्त में हमने ज्यादा इतिहास रच दिया है। मोदी जिन मुद्दों पर भारत में काम कर रहे हैं, मैं भी अमेरिका में उन्हीं मुद्दों पर काम कर रहा हूं। ओबामा की इस यात्रा को रूस, चीन, पाकिस्तान जैसे देशों ने अलग-अलग नजरिये से देखा है। ओबामा गणतंत्र दिवस परेड में सेना की परेड का नेतृत्व तीन महिलाओं कैप्टन दिव्या अजीत, लैफ्टिनेंट कमांडर संध्या चौहान और स्क्वाड्रन लीडर स्नेहा शेखावत द्वारा किए जाने से भी बहुत अभिभूत हुए और उन्होंने इसका अपने भाषण में भी जिक्र किया।