18-Feb-2015 12:30 PM
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लिव-इन रिलेशनशिप फिर चर्चा में हैं। इस बार दिल्ली हाईकोर्ट में एक अर्जी दाखिल करके कहा गया है कि ऐसे मामलों को रेप के दायरे से बाहर रखा

जाना चाहिए और धोखाधड़ी का मामला बनाया जाना चाहिए। दरअसल पिछले दिनों लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर सुप्रीम कोर्ट सहित तमाम अदालतों ने कुछ ऐसे निर्णय दिए जिनमें लिव-इन रिलेशनशिप को एक तरह से मान्यता प्रदान की गई। इसीलिए अब यह मांग उठी है कि लिव-इन रिलशेनशिप में महीनों-वर्षों साथ रहने के बाद यदि कोई महिला किसी पुरुष के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाती है, तो उसे बलात्कार के तहत आरोप दर्ज न करते हुए 420 का प्रकरण बनाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता का कहना है कि धोखे और बलात्कार में अंतर है। लिव-इन में धोखा तो हो सकता है, किंतु यह बलात्कार नहीं कहा जा सकता।
दरअसल हाल के दिनों में ऐसे मामलों की बाढ़ आ गई है जिनमें लंबे समय से लिव-इन में रहने के बाद लड़कियों ने झूठा मुकदमा दर्ज कराते हुए बलात्कार का केस लगा दिया। इस तरह के 70 प्रतिशत मामलों में आरोपी को दोषी करार नहीं दिया जाता लेकिन इस दौरान उनके परिजन सामाजिक बदनामी झेलते हैं। ऐसी स्थिति में इस तरह के प्रकरणों को अलग दायरे में रखने के लिए मांग उठने लगी है। कुछ समय पहले दक्षिण दिल्ली मुनीरका में रहने वाली पूर्वोत्तर की एक युवती ने अपने लिव-इन पार्टनर पर बलात्कार का प्रकरण दर्ज कराया था, लेकिन कोर्ट में उसने बयान दिया कि उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ है। कुछ समय बाद युवती ने फिर से उसी युवक के विरुद्ध बलात्कार का प्रकरण दर्ज करा दिया।
आम तौर पर ऐसे मामलों में युवक शादी से इनकार कर देते हैं। इनकार के बाद लड़कियां बलात्कार का प्रकरण दर्ज कराकर न्याय की मांग करती हैं। पुलिस धोखाधड़ी और बलात्कार का आरोप लगाते हुए आरोपी को गिरफ्तार भी कर लेती है। ऐसे ही एक प्रकरण मे जब लड़की ने पुलिस में लड़के के विरुद्ध मामला दर्ज कराया तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया। हिरासत में युवक ने हाईकोर्ट में एक अर्जी लगाकर कहा कि वह लड़की से शादी को तैयार है, लेकिन हाई कोर्ट ने लड़के की अर्जी को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट का कहना था कि लड़का ऐसा किसी पछतावे में आकर नहीं बल्कि सजा से बचने के लिए कर रहा है। कोर्ट ने लड़के के विरुद्ध रेप की धाराएं लगाने का आदेश दिया। एक अन्य मामले में दिल्ली में नौकरी मिलने के बाद साथ काम करने वाले लड़के और लड़की ने साथ रहने का फैसला किया। 3 वर्ष तक साथ रहने के बाद लड़का अचानक गायब हो गया और फोन भी बंद कर लिया। बाद में जब लड़की ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराते हुए धोखा देकर शारीरिक संबंध बनाने और मार-पीट का आरोप लगाया तो पुलिस ने लड़के, उसकी माँ और बहन को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन न्यायालय में न तो लड़की ने बयान दिया और न ही शारीरिक संबंध या मारपीट के सबूत प्रस्तुत किए। जिसके बाद कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि लड़की ने प्रेमी को वापस पाने के लिए ही यह रिपोर्ट दर्ज कराई थी, बाद में सबको बरी कर दिया गया।
दरअसल ऐसे मामलों में जब किसी लड़की से शादी का ड्रामा रचने के बाद संबंध बनाने की सहमति ली जाती है और बाद में पता चलता है कि लड़के ने झूठ बोला था, तो लड़की की शिकायत पर आईपीसी की धारा 493 के तहत प्रकरण बनता है जिसमें अधिकतम 10 साल तक की कैद का प्रावधान है। लेकिन लिव-इन को तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है, इसलिए इसमें बनने वाले शारीरिक संबंधों को बलात्कार कहा जा सकता है अथवा नहीं? इस पर बहस चल रही है। आईपीसी में बलात्कार को परिभाषित करते हुए जो बिंदु बताए गए हैं, उनमें धारा 90 में स्पष्ट लिखा है कि वैसी सहमति का कोई अर्थ नहीं है जो गलत वादे या धोखे से ली गई हो। शादी का वादा कर संबंध बनाए जाने के मामले को रेप के दायरे में इसी प्रावधान के तहत देखा जाता है। लेकिन लिव-इन में दोनों पक्ष सहमति से रिश्ता बनाते हैं। यह जरूरी नहीं कि वेे शादी भी करें। महानगरों में ऐसे कई जोड़े हैं, जो लिव-इन में रहते हैं। कई बार लड़के-लड़कियां भिन्न-भिन्न साथियोंं के साथ लिव-इन में वर्षों गुजार देते हैं। विदेशों में तो अलग-अलग साथियों के साथ लिव-इन सामान्य सी बात है। लेकिन भारतीय कानून इस बारे में खामोश है। लिव-इन के कई प्रकरण सामने आने के बावजूद कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश का कानून नहीं बन पाया है। भारतीय कानून तो यह कहता है कि यदि महिला ने यह समझते हुए शारीरिक संबंध की सहमति दी है कि आरोपी उसका पति है या भविष्य में उसका पति बन जाएगा, जबकि आरोपी उसका पति नहीं है तो ऐसी सहमति से बनाया गया संबंध भी बलात्कार ही होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि समाज के सामने शादी करने का वादा, घर या मंदिर में चुपचाप मांग में सिंदूर भर देना या वरमाला पहनाकर खुद को पति बताने का झांसा देकर बनाया गया संबंध भी बलात्कार ही कहलाएगा। इसी कारण लिव-इन में जब रिश्ते टूटते हैं तो बलात्कार के रूप में दर्ज हो जाते हैं। लेकिन अदालत में बलात्कार सिद्ध करना इतना आसान नहीं होता, क्योंकि अदालत दो वयस्कों के बीच सहमति से बने रिश्ते को बलात्कार नहीं मानती। ऐसी स्थिति में लिव-इन को लेकर कानून बनाना अनिवार्य हो गया है।
-बिंदु माथुर