02-Feb-2015 03:20 PM
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मध्यप्रदेश में भिण्ड के इटायदा गांव में जून 2010 से अगस्त 2011 के बीच 44 शिशुओं ने जन्म लिया, जिनमें से 12 बेटियां थीं और 32 बेटे थे। 12 बेटियों की मृत्यु जन्म के कुछ दिन बाद ही हो गई, लेकिन 32 बेटे अभी तक जिंदा हैं। यह हैरतअंगेज कारनामा जब खरौआ के सरपंच रामअख्तयार गुर्जर को पता चला तो उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर अखिलेश श्रीवास्तव से इसकी जांच कराने की मांग की। लेकिन कुछ नहीं हुआ, क्योंकि जांच रिकार्ड ही गायब हो चुका था। जाहिर है इन बेटियों को नमक चटाकर या दम घोटकर, भूखा रखकर मार दिया गया होगा। लेकिन लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाओं को महिमामंडित करने वाले प्रशासन को इसकी खबर कहां। यदि कोई जागरूक व्यक्ति इसका संज्ञान भी ले, तो किससे कहे? लोकसेवकों को अपने वोट बैंक की फिक्र है और सरकारी अफसर अपनी नौकरी बचाने में लगे रहते हैं, इसलिए इटायदा जैसे गांव बच्चियों के कब्रगाह में तब्दील हो चुके हैं।
भिण्ड जिले के लगभग 500 गांव ऐसे हैं जहां बेटियों का लिंगानुपात 1 हजार बेटों पर 800 से भी नीचे है। अब तत्कालीन कलेक्टर अखिलेश श्रीवास्तव टालने के अंदाज में कहते हैं कि इटायदा की रिपोर्ट मेरे सामने नहीं आई। जांच के लिए कलेक्टर महोदय ने सीएमएचओ और महिला बाल विकास अधिकारी की कमेटी बनाई थी, लेकिन इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं हुई। दरअसल बेटियों को पूजने वाले इस पाखंडी समाज में किसी शिशु लड़की की मौत पर शायद ही दु:ख प्रकट किया जाता हो, बल्कि ऐसी मौतों पर तो खुशी मनाई जाती है। इसलिए ऐसे सुप्त समाज की चेतना को झकझोरने के लिए कोई आगे नहीं आना चाहता। लोगों को डर है कि बच्चियों की तरफदारी करने पर कहीं संगसार न कर दिया जाए। इस गांव में भी दबंगों ने बच्चियों की हत्या करने वालों को बचा लिया। न रिकार्ड है, न जांच है और न ही कोई सजा है। गौहद के तत्कालीन बीएमओ डॉक्टर आलोक शर्मा कहते हैं कि परिजनों के बयान से स्पष्ट है कि उन्होंने ही अपनी बेटियों को मारा है। लेकिन लाडली लक्ष्मियों की पैरवी करने वाली मध्यप्रदेश सरकार की नाक के नीचे से यह रिपोर्ट उस गांव में किसने गायब करवा दी? यह यक्ष प्रश्न है। क्या कन्या भोजन करवाते हुए अपना चित्र खिंचवाने वाले इस प्रदेश के सहृदय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अखबार में छपी इस खबर का संज्ञान लेंगे और बेटियों के उन हत्यारों को बुक करने का उपाय करेंगे?
सवाल अकेला प्रशासन से ही नहीं है, समाज से भी है। जिन गांवों में बेटियों को मार दिया जाता है, वहां कोई अपनी बेटी देता ही क्यों है? क्या ऐसे गांवों का सामाजिक बहिष्कार नहीं किया जा सकता? इस तरह की खबरें आए दिन अखबारों में छपती हैं। कहीं बेटियों को झाड़ी में फेंक दिया जाता है, तो कहीं उन्हें लावारिस छोड़ दिया जाता है। ऐसे में देवी पूजा और कन्या भोजन का ढोंग करने का क्या औचित्य है? जिस समाज में कन्या को कोख से बेदखल किया जा रहा हो, चुन-चुन कर मारा जा रहा हो, वहां यह सब पाखंड और नाटक लगता है।
मध्यप्रदेश के कई जिलों में लिंगानुपात संतोषप्रद नहीं है। इसीलिए 13 सितंबर 2014 को राज्य सरकार ने मदर एण्ड चाइल्ड ट्रेकिंग सिस्टम का पायलट प्रोजेक्ट शुरु किया है, इसका मकसद बालिका भ्रूण हत्या रोकना है। मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग ने भी सरकार से पूछा है कि 24 घंटे के अंदर हो रही मौत से बेटियों को कैसे बचाया जाए? सरकार की नींद अब जाकर खुली है, सवाल यह है कि इटायदा जैसे गांव में जिन बेटियों को मार डाला गया है, उन हत्यारों को सजा कौन दिलाएगा? अब समय आ गया है कि सरकारें शिशु हत्या करने वालों को कड़ी सजा का प्रावधान करें। जिन गांवों, शहरों, कस्बों में लिंगानुपात चिन्तनीय है वहां जन्मने वाले हर कन्या शिशु के स्वास्थ्य का प्रति सप्ताह निरीक्षण होना चाहिए। यदि उसकी ग्रोथ नहीं है, वजन कम है, या ऐसा प्रतीत होता है कि उसे जानबूझकर मौत की ओर धकेला जा रहा है, तो ऐसे माता-पिता के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए। साथ ही असमय मरने वाली हर कन्या का पोस्टमार्टम कर मृत्यु के सही कारण का पता भी लगाया जाना चाहिए। लेकिन यह तो वे उपाय हैं जो सरकार द्वारा किए जाएंगे, समाज क्या करेगा? कब वह कन्या के महत्व को समझेगा? समाज की चेतना अनिवार्य है, नहीं तो कन्याएं ऐसी ही मारी जाती रहेंगी।