उलझन में मेडिकल कॉलेज
18-Feb-2015 07:53 AM 1234822

मध्यप्रदेश में बनने वाले 6 मेडिकल कॉलेज में से 3 को पीपीपी मॉडल के तहत बनाने की एमपीआरडीसी की पहल पर चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कड़ा पहरा लगा दिया है। पीपीपी और बीओटी के तहत निर्मित होने वाले इन कॉलेजों के लिए मंत्रिमंडल को संक्षेपिका जाना है। इसकी संक्षेपिका चिकित्सा शिक्षा विभाग भेजेगा। परंतु इस संक्षेपिका का  पूरा काम पीडब्ल्यूडी को करना है। और  उसे ही चिकित्सा शिक्षा विभाग से किन शर्तों पर बिल्डिंग का निर्माण होगा इसकी सभी नियम और शर्ते तय करना है। चिकित्सा शिक्षा विभाग का कहना है कि पीपीपी मॉडल के तहत बनने वाले इन कॉलेजों के विषय में एमपीआरडीसी को सभी बिंदुओं पर स्पष्टीकरण देना चाहिए कि किन शर्तों के तहत इन कॉलेजों का निर्माण होगा। चिकित्सा शिक्षा विभाग इनके निर्माण का दायित्व एमपीआरडीसी को सौंपने के लिए सहमत तो है लेकिन ब्याज की राशि, ओएण्डम  को लेकर संशय बना हुआ है। इसके बारे में एमपीआरडीसी गोलमाल तर्क प्रस्तुत कर रहा है। इस मामले को लेकर विभाग की 5 बैठकें डीएमई और इंजीनियरों के साथ हो चुकी हैं, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है। इसका कारण यह है कि निर्माण का बजट और शर्तें बनाने का अधिकार संस्थागत वित्त को ही है, लेकिन संस्थागत वित्त और एमपीआरडीसी का मुखिया एक होने के कारण किसी भी प्रकार की शर्तों या बजट पर ऑब्जेक्शन आना संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में चिकित्सा शिक्षा विभाग ही ऑब्जेक्शन ले रहा है। कायदे से जो भी कमियां हैं, उन्हें संस्थागत वित्त को ही सामने लाना चाहिए। इसी कारण इन कॉलेजों का निर्माण उलझन में पड़ चुका है। देखना यह है कि जो शर्तें और लागत पहले बताई गई थी, उन्हीं पर आगे बढ़ा जाता है या कोई अन्य रास्ता तलाशा जाता है?

ज्ञात रहे कि पाक्षिक अक्स ने जनवरी माह में इस मामले को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें बताया गया था कि किस तरह बीओटी (एन्युटी) मॉडल के तहत इन कॉलेजों की इमारतें बनाने से सरकार को चूना लगने वाला है। इमारतों के निर्माण में अनुभवहीन और ठेकेदारों के मार्फत पीपीपी मॉडल के तहत सड़क बनाने में महारथ रखने वाले एमपीआरडीसी ने पहले तो इस प्रोजेक्ट में काफी रुचि दिखाई लेकिन जब चिकित्सा शिक्षा के सजग अधिकारियों ने बाल की खाल निकालना शुरू की तो एमपीआरडीसी के हौसले पस्त हो गए। एमपीआरडीसी ने तीनों कॉलेजों के लिए 21 नवंबर 2014 को हुई बैठक में 1206.51 करोड़ का अनुमानित व्यय बताया था। 25वीं बैठक में अनुमानित व्यय घटकर 793.9 करोड़ का प्रस्तुत किया गया, पहले हुई बैठक के मुकाबले 412.16 करोड़ रुपए कम। इस अनुमानित व्यय ने कई सजग अधिकारियों के कान खड़े कर दिए। 412.16 करोड़ रुपए के ओवर स्टीमेट को संस्थागत वित्त ने उस समय क्यों नजरअंदाज किया, यह आज भी एक रहस्य है। उस वक्त सजगता न दिखाई जाती तो सरकार को घाटा भी हो सकता था। बहरहाल अब जब प्रत्येक बिंदु पर चिकित्सा शिक्षा विभाग ने स्पष्टीकरण मांगा है तो एमपीआरडीसी का उत्साह पहले जितना नहीं रह गया। वैसे भी पीआईयू और हाउसिंग बोर्ड जैसे अनुभवी संस्थानों को छोड़कर एमपीआरडीसी से कॉलेजों के निर्माण की बात बहुत से  विभागों को गले नहीं उतर रही है। पीपीपी मॉडल और बीओटी में भी कई खामियां देखने में आई हैं, इसके तहत निजी ठेकेदार या बिल्डर को दिया जाने वाला ब्याज बहुत अधिक है। सरकार चाहे तो नाबार्ड से 7.5 प्रतिशत ब्याज पर लोन लेकर भी पीआईयू या हाउसिंग बोर्ड से इन इमारतों को बनवा सकती है, यह ज्यादा किफायती भी साबित होगा। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने भी पहले सुझाव दिया गया था कि कॉलेजों का निर्माण हाउसिंग बोर्ड अथवा पीआईयू द्वारा किया जाना चाहिए। कैबिनेट में भी ऑब्जेक्शन उठाए गए थे, क्योंकि एमपीआरडीसी को मात्र एक डेढ़ इमारतें बनाने का अनुभव है। सवाल यह भी है कि मेडिकल कॉलेज का निर्माण किन कंपनियों द्वारा किया जाएगा। कहीं ऐसा तो नहीं है कि इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट का ठेका जिस कंपनी को मिला है, उसे ही यह ठेका भी हाथ लग जाए। एमपीआरडीसी और संस्थागत वित्त का मुखिया एक होने के कारण कहीं ऐसा तो नहीं केबिनेट ने एमपीआरडीसी को कॉलेज बनाने का ठेका अंधेरे में रहकर दे दिया हो। चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारी दबे पांव इस बात को कहते फिरते हैं कि तीनों कॉलेजों के निर्माण के लिए वे शर्तें ही मान्य की जाएंगी जो संस्थागत वित्त कहेगा। क्योंकि मामला धन से जुड़ा है। अगर आब्जेक्शन लेना है तो वही ले पाएगा।

-भोपाल से सुनील सिंह

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