दिखावे का प्रतिबंध
04-Feb-2015 05:27 AM 1234778

 

अमेरिका, भारत सहित विदेशी दबाव में पाकिस्तान ने जमात-उद-दावा और हक्कानी नेटवर्क पर प्रतिबंध तो लगा दिया है, लेकिन इन दोनों संगठनों की गतिविधियां जारी हैं। बल्कि मुंबई हमले के मास्टरमाइंड जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज सईद को तो पाकिस्तान में किसी हीरो की तरह सम्मानित किया जाता है। प्रतिबंध के बाद भी सईद भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है और उसकी सभाओं में भीड़ वैसी ही जुटती है। हाल ही में उसने नि:शुल्क एम्बुलेंस सेवा कार्यक्रम की शुरुआत की, इस तरह की गतिविधियों से सईद यह सिद्ध करने में लगा है कि वह एक समाजसेवी है लेकिन भारत के दबाव में उसे प्रताडि़त किया जा रहा है। पाकिस्तानी सरकार की दुविधा यह है कि वह सईद जैसे वांछित आतंकियों को सलाखों के पीछे नहीं भेज सकती। यदि ऐसा किया गया तो पाकिस्तान में गृहयुद्ध के हालात पैदा हो जाएंगे, क्योंकि जनता का एक बड़ा हिस्सा तालिबान से लेकर सईद तक और ओसामा बिन लादेन से लेकर जवाहिरी तक सभी को अपना हीरो मानता है। यही कारण है कि पाकिस्तान में आतंकवाद पर काबू पाना लगभग असंभव हो चुका है। सरकार जितने आतंकवादियों को मारती है, उससे दोगुने वहां पैदा हो जाते हैं। ऐसे हालात में हक्कानी नेटवर्क या जमात-उद-दावा को पनपने के लिए आदर्श वातावरण मिल जाता है। एम्बुलेंस बांटकर जमात-उद-दावा ने नया पैंतरा फैंका है। इसके बाद पाकिस्तान में मांग उठने लगी है कि जमात-उद-दावा पर लगाया गया प्रतिबंध समाप्त किया जाए। इसलिए प्रतिबंध भले ही लगा दिया गया हो, लेकिन यह प्रतिबंध ज्यादा समय तक लागू नहीं रह पाएगा। जहां तक पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई का प्रश्न है, यह अब तक भी अच्छे और बुरे आतंकवादियों के फेर में पड़ी हुई है। आईएसआई का मानना है कि कश्मीर में लडऩे वाले, भारत में निर्दोषों की हत्या करने वाले और भारत में अशांति फैलाने वाले आतंकवादी अच्छे आतंकवादी कहे जा सकते हैं। बुरे तो वे हैं जो पाकिस्तान के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं। यही कारण है कि आईएसआई के इशारे पर पाकिस्तान की सेना बुरे आतंकवादियों पर बम गिरा रही है और अच्छे आतंकवादियों को प्रशिक्षण देकर  भारत की सीमा में धकेलने का प्रयास करती है। इसीलिए पूर्व में, एक अधिकारी ने कहा था कि सरकार जमात-उद-दावा को प्रतिबंधित गुट घोषित करने से पहले, उसका नाम निगरानी सूचीÓ में डालेगी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मुंबई हमले के बाद जमात-उद-दावा को लश्कर-ए-तोएबा का मुखौटा कहा था। तब से संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने जमात-उद-दावा के कई नेताओं पर प्रतिबंध लगा रखा है। हक्कानी नेटवर्क की स्थापना जलालुद्दीन हक्कानी ने की थी। इस संगठन पर वर्ष 2008 में अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर बम हमला, वर्ष 2011 में काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास पर हमला तथा अफगानिस्तान में कई बड़े ट्रक बम हमले के प्रयास करने का आरोप है। वर्ष 2008 में अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर किए गए बम हमले में 58 लोग मारे गए थे। अमेरिकी और अफगान अधिकारी बार-बार कहते रहे हैं कि पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आईएसआई अफगानिस्तान में अपना प्रभाव फैलाने के लिए हक्कानी नेटवर्क को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देती है। इस्लामाबाद इस आरोप का खंडन करता है। अमेरिका ने सितंबर 2012 में इस गुट को एक आतंकी संगठन घोषित किया था।

  • अजय धीर

 

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