पेरिस में हमला नस्लीय नफरत की देन
19-Jan-2015 04:57 AM 1234819

 

फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका चार्ली हेब्दोÓ के पेरिस स्थित कार्यालय पर कथित रूप से अलकायदा के तीन आतंकवादियों ने हमला

करके मैग्जीन के संपादक समेत 12 लोगों की हत्या कर दी। कुछ वर्ष पहले एक डेनिस अखबार ने पैगम्बर मोहम्मद का कार्टून छापा था उस कार्टून को इस मैग्जीन ने पुन: प्रकाशित किया, उसके बाद से ही मैग्जीन पर हमले की आशंका तो थी लेकिन यह अंदेशा नहीं था कि फ्रांस के भीतर से ही कोई हमला करेगा। जिन तीन आतंकवादियों ने हमला किया वह फ्रांस के ही नागरिक हैं। 34 वर्षीय सैय्यद कौची और 32 वर्षीय शैरिफ कौची तो पेरिस में ही रहते हैं जबकि उनका एक अन्य साथी मुराद करीब के एक शहररिम्स का रहने वाला है।

 

खास बात यह है कि शैरिफ कौची को 2005 में आतंकी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था। 2008 में उसे 18 माह की सजा भी मिली। सजा से बाहर आने के बाद से ही वह और उसका भाई किसी नई खुराफात को अंजाम देने में जुट गए। उन्होंने रॉकेट लॉन्चर और एके-47 कैसे हासिल किए यह लापरवाही का उत्कृष्ट उदाहरण हो सकता है क्योंकि उनमें से एक भाई पहले भी आतंकी गतिविधियों में लिप्त था। किंतु लगता है पुलिस की कार्यशैली सारे संसार में एक सी ही है। इन दोनों को बगैर निगरानी के पेरिस में रहने दिया गया और इन्होंने फ्रांस पर आधुनिक समय का सबसे बड़ा हमला कर दिया। यह आतंकवादी अल्लाह-हु-अकबर के नारे लगा रहे थे और अंधाधुंध गोलियां चलाकर कह रहे थे कि इन्होंने पैगम्बर मोहम्मद के अपमान का बदला ले लिया। लेकिन हमला यहीं नहीं रुका। दक्षिणी पेरिस में एक महिला पुलिस अफसर की हत्या के बाद आतंकियों ने चार बंधकों को भी मार डाला। 72 घंटे तक पेरिस दहशत में रहा। बाद में सुरक्षा बलों ने कौची बंधुओं के अतिरिक्त एक अन्य आतंकी एमेडी काउलीबे भी मार गिराया। जबकि उसकी आतंकी पत्नी फरार है।
फ्रांस में अब इस बात की पड़ताल की जाएगी कि इस हमले को अंजाम देने से पहले इन भाइयों और उनके तीसरे साथी का ब्रेनवॉश कहीं अलकायदा ने तो नहीं किया था। अलकायदा की यूरोप में पहुंच बहुत सीमित है लेकिन उससे सहानुभूति रखने वालों की तादात अच्छी-खासी है। इसका कारण नस्लीय घृणा को माना जा रहा है।
कुछ समय पहले द यूरोपियन यूनियन फंडामेंटल राइट्स एजेंसी एफआरए ने एक सर्वेक्षण किया था जिसमें बताया गया था कि बैल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, इटली, लाटविया, स्वीडन और ब्रिटेन में रहने वाले यहूदियों में इस्लाम के प्रति नफरत पनप रही है। लेकिन यह सर्वे एकतरफा है। दरअसल नस्लीय नफरत का शिकार इन देशों के मुस्लिम नागरिक कैथोलिकों द्वारा मुख्य रूप से हो रहे हैं। इसी कारण जब पैगम्बर मोहम्मद का कार्टून छपा, उस समय सारे यूरोप के मुस्लिमों में आक्रोश देखा गया। फ्रांस में मुस्लिमों के  एक संगठन ने इस कार्टून पर आपत्ति जताते हुए मुकदमा दायर किया था लेकिन फ्रांस के सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा मसला बताते हुए मुकदमा खारिज कर दिया। आग तो उसी दिन से सुलग रही थी। इस दौरान सारी दुनिया में और भी चौकाने वाली घटनाएं घटीं। अमेरिका में एक फिल्म बनाई गई, उधर मलाला यूसुफजई जैसी लड़कियों को नोबल पुरस्कार दिया गया। इन सारी घटनाओं ने यूरोप और अमेरिका के मुस्लिमों को भी उद्देलित किया जिन्हें आमतौर पर लिबरल और खुले दिमाग का माना जाता है।
उधर बैल्जियम जर्मनी में मुस्लिम धर्म स्थलों पर हुए हमलों के बाद पूरे यूरोप में नस्लीय तनाव चरम सीमा पर पहुंच चुका है। इसीलिए फ्रांस में हुए हमले को यूरोप का एक वर्ग भले ही अप्रत्याशित मान रहा हो लेकिन यह अप्रत्याशित हमला नहीं है। यह महज एक चेतावनी है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि आतंकवादी कहीं भी हमला करने में सक्षम हैं। वे यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगा चुके हैं और आने वाले दिनों में किसी भी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं।
यूरोप सुरक्षा की दृष्टि से एक लापरवाह महाद्वीप है, क्योंकि यहां आमतौर पर हिंसा और खूनखराबा नहीं देखा जाता। बहुत से देशों में तो नाम मात्र की सेना है। उन्होंने अपनी सुरक्षा का ठेका दे रखा है। अलकायदा का पेरिस में हमला यूरोप को नए सिरे से सोचने पर मजबूर करेगा। इन आतंकियों में से मुराद की उम्र तो महज 18 साल ही है। लेकिन इन्होंने चुन-चुन कर पत्रकारों को निशाना बनाया। जिनमें भी 4 तो ख्यातिनाम कार्टूनिस्ट थे। मैग्जीन के संपादक और डायरेक्टर स्टीफेन चार्बोनर की भी हत्या कर दी गई। अलकायदा ने चार्बोनर का सर लाने वाले को 2013 में फतवा जारी कर इनाम देने की घोषणा की थी लेकिन निर्भीक चार्बोनर ने कहा कि जब हम दुनिया के अन्य धर्मों को लेकर कार्टून बना सकते हैं तो इस्लाम को लेकर क्यों नहीं बना सकते। इससे पहले 2 नवंबर 2011 में भी इस पत्रिका पर हमला किया गया लेकिन पत्रिका बाज नहीं आई और इस हमले के बाद संभव है कि कुछ और कार्टून इस मैग्जीन में प्रकाशित हों क्योंकि वाम विचारधारा की यह पत्रिका इस हमले के बाद अपने तेवर बदलेगी इसमें संदेह है। चार्बोनर के अलावा 76 वर्षीय केबट, 57 साल के वर्लहाक और 80 वर्षीय वोलिनिसकी चार्ली की भी हत्या कर दी गई। हत्यारों ने पहले इनका नाम पूछा और बाद में गोली मार दी। 1961 में अलजीरिया के साथ युद्ध के बाद फ्रांस पर यह पहला बड़ा हमला है। फ्रांस के नागरिकों ने इस हमले के बाद पोस्टर लहराए कि यह तो धर्म नहीं है। हमले के बाद यूरोप में चिंता जताई गई है कि कहीं नस्लीय घृणा और न बढ़ जाए। यदि ऐसा हुआ तो यूरोप की शांति पर ग्रहण लग जाएगा। उधर, भारत में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर और बसपा नेता याकूब कुरैशी के हमला समर्थक बयानों ने आग में घी डालने का काम किया है। कुरैशी आतंकियों को 51 करोड़ देने की मंशा रखते हैं तो अय्यर ने धार्मिक भावना भड़काने के लिए फांस की अलोचना की है।

मुसलमानों को खास तौर पर नाराज करती रही है मैगजीन

47 साल के चार्बोनर को चार्ब के नाम से भी जाना जाता था। चार्बोनर 2009 से चार्ली हेब्दो मैगजीन के डायरेक्टर थे। उनका 2012 में दिया वह बयान काफी मशहूर हुआ था, मैं घुटनों के बल जीने के बजाए खड़े होकर मरना पसंद करूंगा।ÓÓ  कट्टर वामपंथी विचारधारावाली इस मैगजीन का धार्मिक कट्टरपंथियों से लेकर राष्ट्राध्यक्षों तक का मजाक उड़ाने का पुराना इतिहास रहा है। पोप हों, पूर्व फे्रंच राष्ट्रपति निकोलस सार्कोजी हों, नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन हों, यहूदी समुदाय हो या पैगंबर मोहम्मद, पत्रिका ने सबके कार्टून पब्लिश किए। हालांकि, मैगजीन अपने कार्टून्स से पूरी दुनिया के मुसलमानों को खासतौर पर नाराज करती रही है। 2006 में मैगजीन पैगंबर मोहम्मद पर एक डेनिश अखबार छ्व4द्यद्यड्डठ्ठस्रह्य-क्कशह्यह्लद्गठ्ठ में छपे कार्टून को दोबारा से छापकर विवादों में आ गई थी। उस वक्त कई मुस्लिम संगठनों ने इसपर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी। नवंबर 2011 में मैगजीन ने जो अंक प्रकाशित किया था, उसमें पैगम्बर को गेस्ट एडिटर का दर्जा दिया गया था। साथ ही मैगजीन के कवर पर पैगम्बर की कैरीकेचर भी छापा गया। इस कार्टून के छपने के अगले दिन मैगजीन के दफ्तर पर फायर बम से हमला हुआ था। एक साल बाद एक कथित एंटी मुस्लिम फिल्म को लेकर चल रहे विवाद के बीच मैगजीन ने पैगंबर के कुछ और कार्टून्स छापे। एक कार्टून में तो पैगंबर को नग्न दिखाया गया। इसके बाद तनाव इतना बढ़ गया कि फ्रांस सरकार को कई मुस्लिम देशों में अपने दूतावास बंद करने पड़े। उस वक्त चार्ब ने कहा था, मेरे लिए पैगम्बर पवित्र नहीं हैं। मैं मेरे कार्टून्स पर मुसलमानों को न हंसने के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता। मैं फे्रंच कानूनों का पालन करता हूं, कुरान के नियमों का नहीं।ÓÓ

  1. ज्योत्सना अनूप यादव
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