आप से बेहाल भाजपा
04-Feb-2015 05:06 AM 1234780

 

20 माह पुरानी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सत्ता से कांग्रेस को तो बेदखल कर ही दिया लेकिन भाजपा के दिन भी खराब करने की तैयारी में है। दिल्ली में चुनावी हवा का रुख भाजपा के पक्ष में नहीं है। भाजपा ने किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करते हुए आखिरी दांव खेला था, लेकिन यह दांव भी उतना प्रभावशाली नहीं रहा। किरण बेदी के आने के बावजूद भाजपा के पक्ष में माहौल दिखाई नहीं दिया। दरअसल किरण बेदी को जितना केजरीवाल से खतरा है उससे कहीं अधिक भाजपा दिल्ली के उन दिग्गज नेताओं से खतरा है, जो गुटबाजी और भीतरघात के महारथी हैं। कभी सुषमा स्वराज और स्मृति ईरानी को इन्हीं नेताओं से दो-दो हाथ करना भारी पड़ गया था। स्मृति ईरानी को तो दिल्ली के एक भाजपा नेता ने फोन करके स्पष्ट कहा था कि टिकट तो ले लिया है लेकिन जीतने नहीं दूंगा और उसने स्मृति ईरानी को हरवा दिया। इस बार किरण बेदी के खिलाफ भी बहुत से नेता उभरकर सामने आ गए थे, जिन्हें पार्टी ने शांत तो कर दिया है लेकिन वे भीतर ही भीतर खुराफात मेें लगे हुए हैं और यही कारण है कि किरण बेदी को चुनावी बिसात पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस बात को भांप चुका है कि किरण बेदी को प्रोजेक्ट करके पार्टी ने अकारण ही जोखिम उठाया, लेकिन अब कदम वापस खींचना संभव नहीं है। इसलिए अमित शाह ने रणनीति में बदलाव किया है। अरुण जेटली खुद सक्रिय हुए हैं और पार्टी ऑफिस में जब भी समय मिलता है जाकर तैयारियों और योजनाओं का जायजा ले रहे हैं। उनके अलावा 9 अन्य मंत्री जिनमें बिजली मंत्री पीयूष गोयल, वाणिज्य राज्य मंत्री निर्मला सीतारमन, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी आदि शामिल हैं, हर मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के सवालों का जवाब देने के लिए तैनात किए गए हैं। मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी महिला सुरक्षा पर पार्टी का विजन बता रही हैंं।
प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी खुद मैदान में हैं। वे 4 जनसभाओं को सम्बोधित करेंगे। भाजपा की पूरी ताकत झोंकने का अर्थ है कि आम आदमी पार्टी ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद देश की सबसे बड़ी पार्टी को दिल्ली में हिला डाला है। किरण बेदी की स्वच्छ और ईमानदार छवि भी केजरीवाल के करिश्मे के पीछे धूमिल नजर आती है। केवल नरेंद्र मोदी ही केजरीवाल रूपी आंधी को रोकने में समर्थ हैं, लेकिन दिल्ली की जनता जानती है कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। आम आदमी पार्टी ने कुछ चालें ऐसी चलीं, जिन्हें शुरुआती दौर में गलत माना गया। लेकिन अब यह सारी चालें आम आदमी पार्टी को फायदा ही पहुंचा रही हैं। मिसाल के तौर पर आम आदमी पार्टी ने अपनी वेबसाइट में लिखा था कि देश में मोदी दिल्ली में केजरीवाल। आलोचना होने के बाद इसे हटा लिया गया लेकिन यह स्लोगन इन चुनाव में केजरीवाल को फायदा दे रहा है। केजरीवाल ने चुनावी रणनीति भी बहुत सोच-समझकर बनाई है। नरेंद्र मोदी का प्रभाव कम करने के लिए उन्होंने मोदी के कुछ भाषणों को ही आधार बनाया है, जिसमें मोदी ने वादे किए थे। इसलिए अब मोदी स्वयं मैदान में हैं। दिल्ली के सातों सांसदों को मोदी की रैली में भीड़ जुटाने का दायित्व सौंपा गया है, लेकिन समर्थक नहीं हैं। हालात यह है कि कांग्रेस को तो समर्थक लाने के लिए पैसे भी खर्च करने पड़ रहे हैं। लेकिन राहुल गांधी ने खुले ट्रक में गली-कूचों की खाक छानकर माहौल बनाने की कोशिश की है। आने वाले दिनों मेंं यदि राहुल गांधी सक्रियता दिखाते हैं, तो आम आदमी पार्टी के वोट कटेंगे और भाजपा को फायदा होगा। लेकिन कांग्रेस का प्रचार न तो उतना धुंआधार है और न ही उतना ग्लेमर से भरा हुआ। कांग्रेसी नेताओं की सभा में भीड़ भी कम दिख रही है।
जुबानी जंग अब चरम सीमा पर है। किरण बेदी ने आम आदमी पार्टी से पूछा है कि अगर केजरीवाल को पता था कि उनका (किरण बेदी) झुकाव अन्ना आंदोलन के दौरान भाजपा के पक्ष में था, तो केजरीवाल ने किरण बेदी को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव क्यों दिया था? केजरीवाल फिलहाल इस प्रश्न पर निरुत्तरित हैं, लेकिन किरण बेदी की आक्रामकता से अभी भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ। जनता में यह संदेश जा रहा है कि अन्ना आंदोलन के बाद किरण बेदी ने अवसरवाद का परिचय देते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। केजरीवाल ने भी किरण बेदी को अवसरवादी के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश की, लेकिन किरण बेदी ने कोर्ट के माध्यम से नोटिस भिजवाते हुए केजरीवाल को उनके नाम और फोटो का इस्तेमाल करने से रोक दिया है। भाजपा पूरी ताकत झौंक रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी सक्रिय है। भाजपा के प्रदेश स्तरीय कई नेता दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। लगभग 16 घंटे चुनाव प्रचार चल रहा है। सुबह से लेकर शाम तक सभी दल धुंआधार प्रचार कर रहे हैं।
मुस्लिमों, पिछड़ों, गरीबों के बीच आम आदमी पार्टी की गहरी पकड़ भाजपा के लिए चिंता का विषय है। कांग्रेस इस मुकाबले में कहीं दिखाई नहीं देती, एक तरह से उसने हथियार ही डाल दिए हैं। माकन का विरोध करने के लिए स्थानीय नेता सक्रिय हैं। एक तबका यह मानता है कि भाजपा को एक बार फिर हर्षवर्धन पर ही दांव खेल लेना चाहिए था। हर्षवर्धन के लवली से अच्छे ताल्लुकात हैं और लवली कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं, इसका फायदा भाजपा को मिल सकता था।
किरण बेदी इस तरह के राजनीतिक दांव-पेंच से नावाकिफ हैं, इसलिए वे पार्टी के परफार्मेंस पर ही निर्भर हैं। कार्यकर्ताओं में उत्साह फंूकने में किरण बेदी नाकामयाब रही हैं। क्योंकि उनका भाषण न तो लच्छेदार होता है और न ही उसमें कोई लोकलुभावन बात होती है। जहां तक दिल्ली का सवाल है, उसके दोनों हाथों में लड्डू है। केजरीवाल जीतें या किरण बेदी, दिल्ली को एक अच्छा सीएम मिलने वाला है।

  • दिल्ली से रेणु आगाल

 

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