17-Jan-2015 11:47 AM
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दिल्ली में मुकाबला अब दिलचस्प है। किरण बेदी के भाजपा में आने से भाजपा के आत्मविश्वास में कई गुना इजाफा हुआ है, लेकिन संभावना यह भी है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस चुनाव
मिलकर भी लड़ सकते है। अन्ना आंदोलन के बिछड़े हुए साथी राजनीतिक मंच पर यूं एक साथ आ जाएगे किसने सोचा था। किरण बेदी भाजपा के प्रति लंबे समय से नरम दिल थीं, अब भाजपा में उनके उग्र और ठेठ तेवरो से कैसे तालमेल बिछाया जाएगा यह देखना रोचक होगा। उधर वाराणसी और लखनऊ में भाजपा की पराजय से नरेंद्र मोदी तथा राजनाथ सिंह पर उंगली उठी है।
मा र्कण्डेय काटजू ने कहा है कि दिल्ली में मोदी की चुनावी सभा से यह साफ हो गया है कि आम आदमी पार्टी जीत रही है। उधर शीला दीक्षित ने भी पैंतरा चला है कि चुनाव बाद आवश्यकता पडऩे पर कांग्रेस आप को समर्थन देगी। लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाने वाला स्टंट नरेंद्र मोदी का है, जिन्होंने सीधे ही अरविंद केजरीवाल पर निशाना साध दिया। चुनावी तारीख 7 फरवरी है और मगणना 10 फरवरी को होगी। क्या दिल्ली वालों को टिकट सरकार के रूप में वेलेंटाइन गिफ्ट मिलेगा। मोदी की आक्रामकता और आम आदमी पार्टी तथा कांग्रेस की मिली-जुली सक्रियता दिल्ली के चुनावी गणित को बुरी तरह उलझा चुकी है। यदि आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़ती है तो इस त्रिकोणीय संघर्ष में भाजपा की जीत उतनी कठिन नहीं होगी। किंतु आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच पर्दे के पीछे कुछ डील हुई तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा। भाजपा इस खतरे को भांप चुकी है और सजग है। वह चुनाव जीतने के काबिल है या नहीं, यह तो चुनावी नतीजों से ही पता
चलेगा लेकिन भाजपा के पक्ष में एक अच्छी बात यह भी है कि भाजपा दिल्ली चुनाव को पूरी गंभीरता से ले रही है। यदि ऐसा नहीं होता तो नरेंद्र मोदी मैदान में नहीं कूदते। मोदी ने न केवल मैदान में सबसे पहले अपनी मौजूदगी दर्ज कराई बल्कि अरविंद केजरीवाल को भी सीधे निशाने पर ले लिया। इससे पहले मोदी केजरीवाल पर वार करने से बचते रहे हैं। उन्होंने संकेतों में भले ही कहा हो लेकिन सीधे कभी नहीं कहा कि केजरीवाल अराजक हैं तो नक्सलियों के साथ जंगल में चले जाएं। जाहिर है मोदी यहां महाराष्ट्र की तर्ज पर ही चल रहे हैं। महाराष्ट्र में जब भाजपा अकेले चुनाव मैदान में थी तो शिवसेना के उद्दव ठाकरे ने मोदी को सलाह दी थी कि वे दिल्ली में ही रहें, उद्दव जानते थे कि महाराष्ट्र में आकर मोदी शिवसेना का कबाड़ा करेंगे और मोदी ने ठीक वैसा ही किया। लेकिन दिल्ली में स्थिति अलग है। आम आदमी पार्टी को लेकर जनता अभी भी सकारात्मक रवैया बनाए हुए है। अरविंद केजरीवाल ने साफ कह दिया है कि वे सत्ता मेंं आए तो बिजली की दर आधी कर देंगे। उधर प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी रैली में जनता से वादा किया कि भाजपा सत्ता में आई तो मोबाइल कंपनियों की तरह बिजली कंपनियां भी मनपसंद चुनी जा सकेंगी।
दिल्ली में भाजपा को बढ़त तो सदैव मिली किंतु सत्ता नहीं मिल सकी। यही 2013 के विधानसभा चुनाव में दिखा जब भाजपा करीब 34 फीसद वोट लाकर नंबर एक पार्टी बनी। उसे 32 सीटें मिलीं यानी अगर उसे दो-तीन फीसद वोट ही मिल जाते तो उसे 70 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत मिल जाता। उस चुनाव में आप को 29.50 फीसद वोट और 28 सीटें और कांग्रेस को 24.50 फीसद वोट और आठ सीटें मिली थी। लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस के बजाए आप को मिल गए तो कांग्रेस के वोट घटकर 15 फीसद पर आ गए। मोदी की आंधी में भाजपा को 46 फीसद वोट मिले और इसीलिए आप के वोट तीन फीसद बढऩे के बावजूद उसे कोई सीट नहीं मिली। पिछले कई चुनावों में सीधा मुकाबला होने से भाजपा के बजाय लगातार तीन बार कांग्रेस चुनाव जीती। नगर निगम में भाजपा को वोट उनके औसत 37 फीसद ही आए लेकिन गैर भाजपा वोट अन्य दलों में बंटने से भाजपा की जीत होती रही।
इस बार चुनाव में तीनों दल की प्रतिष्ठा दांव पर लगने वाली है। देश भर में जीत हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी दिल्ली न जीत पाएं तो उनकी फजीहत होगी। कांग्रेस अगर लोकसभा से भी नीचे चली गई तो उसके लिए दिल्ली स्थायी रूप से दूर हो जाएगी। आप ने तो दिल्ली जीतने के लिए बाकी राज्यों से मुंह ही फेर लिया है। वे पूरी ताकत से दिल्ली में लगे हुए हैं। उन्हें पता है कि अगर कांग्रेस को पिछले विधानसभा जितने या उससे ज्यादा वोट मिल गए तो भी वह चुनाव नहीं जीत सकती और फिर दिल्ली भी उनसे स्थायी रूप से दूर हो जाएगी। इसी के चलते वे लगातार यही दुहरा रहे हैं कि कांग्रेस को वोट देना अपने वोट बर्बाद करना होगा। भाजपा के नेताओं को यह पता है कि आप या कांग्रेस से सीधा मुकाबला होने से भाजपा को नुकसान होगा इसलिए वे रणनीति के तहत आप के आरोपों का सीधा जबाब नहीं देते थे। बाद में आप के चुनाव प्रचार में तेजी आने से मजबूरन भाजपा नेता जवाब देने लगे।
दिल्ली से रेणु आगाल