अब तिवारी की खैर नहीं
03-Feb-2015 07:12 AM 1235129

गुमनाम व्यक्ति द्वारा सेडमैप के स्वयंभू कार्यपालक निदेशक जीतेन्द्र तिवारी की जो शिकायत लोकायुक्त में 2012 में पंजीबद्ध की गई थी उस शिकायत में

से लोकायुक्त द्वारा 7 बिंदुओं पर जांच करने को शासन को कहा है। प्रकरण 443/12 में सरकार ने जांच एलयूएन के मुख्य महाप्रबंधक पीयूष माथुर से कराई थी, परंतु उन्होंने जांच में पूरी लीपा-पोती कर दी। ऐसा लगता है कि सरकार के जवाबदार अधिकारियों ने जानबूझकर जीतेन्द्र तिवारी को बचाने के लिए माथुर से जांच कराई थी परन्तु तिवारी की उक्त जांच से असंतुष्ट लोकायुक्त ने दिनांक 2 दिसंबर, 2014 को दोबारा पत्र लिखकर लगभग सभी बिन्दुओं से असहमत होते हुए पुन: जांच के आदेश दिए हैं, जो कि दिनांक 22/01/2015 तक जांच बिन्दुओं के साथ लोकायुक्त को सौंपना था।
दरअसल तिवारी के खिलाफ लोकायुक्त में दर्ज शिकायत में बताया गया था कि किस तरह उनके द्वारा संस्था में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया जा रहा है एवं पद का दुरुपयोग करते हुए अपने ही लोगों को काम दिए जा रहे हैं तथा मनमाने तरीके से हिसाब-किताब में भी हेराफेरी की जा रही है। शिकायतकर्ता ने बिन्दुवार अनियमितताओं का ब्यौरा देते हुए बताया था, कि तिवारी निजी दौरों को भी संस्था के खर्च में डालकर मनमानी वसूली करते हैं। शिकायतकर्ता का कहना था कि जबलपुर, बांधवगढ़, शहडोल, अमरकंटक, कटनी जैसे शहरों में तिवारी अपने एवं उनके मित्र मनीष व्यास के परिवार के साथ निजी भ्रमण पर गए थे, लेकिन यह खर्चा सेडमैप के अकाउंट में डाला गया और 99 हजार 203 रुपए की राशि वसूल की गई। इसी प्रकार 6 वर्षों के कार्यकाल में जीतेन्द्र तिवारी ने अपने निजी कामों के लिए कार्यालय के कई कर्मचारियों को विभिन्न स्थानों पर भेजा, लेकिन खर्चा सेडमैप से निकालते हुए लगभग 6.5 लाख रुपए का फर्जी भुगतान प्राप्त किया।
हास्यास्पद और विडम्बनापूर्ण तो यह है कि पीयूष माथुर ने इन अनियमितताओंं की जो जांच की है, वह महज लीपापोती ही प्रतीत होती है। लोकायुक्त ने भी इस जांच को अपूर्ण मानते हुए कहा है कि जांच में प्राप्त जानकारी न केवल अधूरी है बल्कि शिकायत में उल्लेखित शरद सिंह एवं सीएस जोशी के दौरों के बिलों की जांच नहीं की गई। रचना तिवारी के एक दौरे की पीयूष माथुर ने जांच की है और कहा है कि 6 वर्षों के दौरा कार्यक्रम की जांच करना संभव नहीं है।
इसी प्रकार शिकायतकर्ता ने जीतेन्द्र तिवारी के अभिन्न मित्र मनीष व्यास की तथा कथित फर्म एमकेएन एसोसिएट एवं इंफ्रास्ट्रक्चर को लघु उद्योग विकास निगम के माध्यम से सेडमैप द्वारा दिए जा रहे विभिन्न कार्यों की जांच करने की मांग की थी और आरोप लगाया था कि उद्योग आयुक्त आरके चतुर्वेदी तथा जीतेन्द्र तिवारी द्वारा उपरोक्त फर्मों को कार्य आवंटित कर शासन को करोड़ों रुपए का चूना लगाया गया। लेकिन इस बिन्दु पर जो जांच की वह लोकायुक्त की नजर में अधूरी है। लोकायुक्त का कहना है कि जानकारी के साथ जो दस्तावेज संलग्र किए गए हैं वे किस बिन्दु के संबंध में हैं, इसका कोई उल्लेख नहीं है। शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत के उक्त बिन्दु के समर्थन में आंतरिक अंकेक्षण रिपोर्ट दिनांक 22/11/2010 संलग्र की गई है। जिसके संबंध में प्राप्त जानकारी मेंं यह उल्लेख है कि नोटशीट दिनांक 04/12/2010 को अवलोकनीय है। लेकिन उक्त नोटशीट की कोई पेजिंग ही नहीं की गई है। लोकायुक्त का कहना है कि नोटशीट प्रेषित किए जाने मात्र से ही जांच कार्यवाही पूर्ण नहीं हो सकती। प्रत्येक बिन्दु पर जांच किया जाना और उसके समर्थन में स्पष्ट रूप से दस्तावेज पेजिंग सहित किस-किस बिन्दु के संबंध में कौन-कौन से पेज संलग्र की जा रही है, स्पष्ट प्रतिवेदन प्राप्त किया जाना आवश्यक है।
इतना ही नहीं शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा है कि नगर निगम भोपाल द्वारा टेण्डर प्रक्रिया के माध्यम से उद्यमिता विकास केंद्र म.प्र. (सेडमैप) को उत्थानÓ प्रोजेक्ट के अंतर्गत प्रशिक्षण एवं रोजगार दिलाने का कार्य दिया गया था। टेंडर प्रक्रिया में सेडमैप एवं प्राइम वन सिक्युरिटी दोनों के ही द्वारा संयुक्त रूप से टेंडर भरा गया। कार्य आवंटन होने के उपरांत 36 लाख की बैंक गारंटी संयुक्त रूप से दी जानी थी, परन्तु प्राइम वन सिक्युरिटी को फायदा पहुचाने के लिए 36 लाख की बैंक गारंटी उद्यमिता विकास केंद्र म.प्र. (सेडमैप) द्वारा ही दे दी गई। उत्थानÓ प्रोजेक्ट में दो तरह के कार्य किए जाने थे जिनमें पहला प्रशिक्षण जिसे सेडमैप द्वारा दिया जाना था, दूसरा रोजगार का कार्य जो कि प्राइम वन सिक्युरिटी के द्वारा किया जाना था, जिसके लिए सेडमैप और प्राइम वन सिक्युरिटी के बीच अनुबंध किया गया, जिसके अनुसार 60 प्रतिशत राशि प्राइम वन सिक्युरिटी को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए दी जानी थी, परन्तु कार्य पूर्ण न होने के कारण नगर निगम भोपाल के द्वारा उद्यमिता विकास केंद्र म.प्र. (सेडमैप) द्वारा दी गई बैंक गारंटी की संपूर्ण राशि 36 लाखा जप्त कर ली गई। यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि संयुक्त रूप से कार्य किया गया था, तो बैंक गारंटी की आधी राशि प्राइम वन सिक्युरिटी से क्यों नहीं ली गई? 36 लाख रुपए की राशि जप्त होने के बाद भी उद्यमिता विकास केंद्र म.प्र. (सेडमैप) द्वारा आधी राशि अर्थात 18 लाख रुपए वसूलने के लिए प्राइम वन सिक्युरिटी के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं की गई एवं पत्राचार भी नहीं हुआ और न ही कोई लीगल नोटिस इस बावत् प्राइम वन सिक्युरिटी को दिया गया। इस बावत बोर्ड मीटिंग में तथ्यों को छिपाया गया एवं सही जानकारी नहीं दी गई, क्योंकि प्राइम वन सिक्यूरिटी के संचालक की उद्यमिता विकास केंद्र म.प्र. (सेडमैप) के ईडी तिवारी से पुरानी मित्रता थी। अत: मित्रों को फायदा पहुंचाने के लिए एवं ऊपरी लेन-देन कर जीतेन्द्र तिवारी द्वारा मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की गई। इसमें उद्यमिता विकास केंद्र म.प्र. (सेडमैप) के दो उच्च अधिकारी जो कि प्रोजेक्ट के संचालन में शामिल थे, की भूमिका संदेहास्पद है। इस महत्वपूर्ण बिन्दु पर भी पीयूष माथुर ने अपनी जांच में लीपापोती की। लोकायुक्त ने पीयूष माथुर की जांच को अपूर्ण बताते हुए कहा है कि प्राप्त जानकारी से स्पष्ट है कि सेडमैप एवं प्राइम वन वक्र्स फोर्स प्रा.लि. के ज्वाइंट वेन्चर एग्रीमेट दिनांक 20/11/2009 की कंडिका 5.3 के अनुसार प्राइम वन वक्र्स फोर्स प्रा.लि. से परफारमेंस गारंटी जिसका भुगतान सेडमैप द्वारा विभाग को किया जाना था, उतनी बैंक गारंटी प्राइम वन वक्र्स फोर्स से ली जानी थी जो नहीं ली गई। तथापि प्राइम वन वक्र्स फोर्स को दी जाने वाली राशि से समायोजन कर लिया गया और 3,08273 रुपए अभी शेष है। लोकायुक्त का कहना है कि इस संबंध में जानकारी प्राप्त किया जाना उचित होगा कि प्राइम वन वक्र्स फोर्स से क्कह्म्शश्चशह्म्ह्लद्बशठ्ठड्डह्लद्ग बैंक गारंटी नहीं लिए जाने हेतु कौन लोकसेवक उत्तरदायी है और राशि की वसूली हेतु क्या कार्यवाही की गई है?
यही नहीं शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा था कि सेंटर कार्पोरेशन जो कि सेडमैप में पदस्थ अंकेक्षक एन.के. जैन के पुत्र अमित जैन की संस्था है, शासन के नियमों के अनुसार कोई भी कर्मचारी अपने पुत्र अथवा पारिवारिक सदस्य के किसी भी फर्म को अपने से संबंधित विभाग का कार्य नहीं दिलवा सकता, जबकि एन.के. जैन द्वारा मनी रिसिप्ट आडिट का कार्य अपने पुत्र को दिलवाया गया और 4.50 लाख रुपए का भुगतान किया गया। इस बावत लोकायुक्त ने जांच को अपूर्ण पाते हुए कहा  है कि क्या अंकेक्षण का कार्य कोटेशन पद्दति से कराए जाने संबंधी कोई नियम है? यदि है तो इसका पता लगाया जाना चाहिए। लोकायुक्त ने यह भी पूछा है कि क्या अधिकारियों और कर्मचारियों की बैठक में यह तय नहीं किया जा सकता था कि आडिट का कार्य कोटेशन पद्दति से कराया जाए। एक अन्य बिन्दु पर शिकायतकर्ता ने कहा है कि मेंटर कार्पोरेशन को सेडमैप ने लेखापालों की नियुक्ति का कार्य भी दिया जो कि नियम विरुद्ध है, क्योंकि मेंटर कार्पोरेशन सेडमैप में पदस्थ अंकेक्षक एन.के. जैन के पुत्र अमित जैन की संस्था है, चूंकि अमित जैन पेशे से वास्तविक रूप से कंपनी सेक्रेटरी है, जिन्हें प्लेसमेंट का कोई अनुभव नहीं है, जबकि सेडमैप में सक्षम प्रशासनिक अमला पदस्थ है एवं सेडमैप द्वारा उपरोक्त कार्य स्वयं किया जा सकता था। पीयूष माथुर द्वारा इस बिन्दु की जांच से भी लोकायुक्त सहमत नहीं हैं। लोकायुक्त का कहना है कि दी गई जानकारी शिकायत के अभिकथनों से संबंधित नहीं है। यह जानकारी नहीं दी गई कि लेखापालों की नियुक्ति का कार्य मेसर्स मेंटर कार्पोरेशन प्रा.लि. को क्यों दिया गया? क्या इस संबंध में कोई प्रशासकीय अनुमति प्राप्त की गई और क्या इस संबंध में कोई नियम, सर्कुलर जारी किए गए हैं कि नियुक्ति का कार्य किस तरह करवाया जा सकता है? इसकी जानकारी दस्तावेजों सहित वांछित है। ज्ञात रहे कि तिवारी के मामले में एक दर्जन से ज्यादा शिकायतें हो चुकी हैं, परन्तु सरकार के जवाबदार अधिकारी उसको बचाने की कोशिश कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि तिवारी फंसे तो कईयों को ले डूबेंगे। इसीलिए तिवारी से लाभांवित होने वाले उनकी ढाल बने हुए हैं।

 

भोपाल से सुनील सिंह

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