बनारस, लखनऊ, इलाहाबाद के बाद एमएलसी में भी हार
03-Feb-2015 06:18 AM 1234866

त्तरप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को जो ऐतिहासिक जीत लोकसभा चुनाव के समय मिली थी, उसकी हवा निकलने लगी है। नरेंद्र मोदी के चुनावी क्षेत्र बनारस और राजनाथ सिंह के चुनावी क्षेत्र लखनऊ में स्थानीय निकायों के चुनाव में पराजय के बाद भाजपा को विधान परिषद चुनाव में भी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को 12 सीटों के लिए हुए चुनाव में सिर्फ 1 सीट पर सफलता मिली। इससे पहले उपचुनाव और कैन्ट चुनाव में भाजपा बुरी तरह हार चुकी है। हालांकि भाजपा के पास मात्र 41 विधायक थे, इस आधार पर वह 1 उम्मीदवार को ही विधान परिषद चुनाव में जिता सकती थी। लेकिन भाजपा ने 2 उम्मीदवार उतारे, इनमें लक्ष्मण आचार्य को केंद्रीय संसदीय बोर्ड ने घोषित किया जबकि दयाशंकर सिंह का नामांकन बाद में करवाया गया। दरअसल कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था, इसलिए भाजपा को आशा थी कि कांग्रेस, बसपा और सपा के कुछ विधायक भीतरघात करते हुए भाजपा के दूसरे प्रत्याशी को भी जिता लेगी। लेकिन भाजपा का यह सपना साकार नहीं हो सका, कांग्रेस के विधायकों ने सपा और बसपा को सहयोग किया और भाजपा का सफाया हो गया। इससे यह भी पता चलता है कि आने वाले चुनावों में भाजपा के खिलाफ राजनीतिक धु्रवीकरण तेज हो सकता है। कांग्रेस यूपी में शून्य ही है, इसलिए वह बिहार की तरह यहां भी सपा या बसपा की गोद में बैठ सकती है। भाजपा को सुकून इस बात का है कि सपा और बसपा दोनों दो अलग-अलग छोरों पर हैं। बिहार की तरह यहां पर ये धुर विरोधी एक खेमे में नहीं आएंगे। इसलिए भाजपा एक मोर्चे पर तो बसपा को कमजोर करने में जुट गई है, वहीं दूसरे मोर्चे पर उसकी यह कोशिश है कि बसपा और कांग्रेस एक-दूसरे के निकट न आ पाएं, इसीलिए उसने बसपा के बड़े नेताओं को तोडऩा शुरू कर दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नजदीकी पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। उनके साथ एक और पूर्व आईपीएस अधिकारी ज्ञान सिंह व पूर्व विधायक राजेन्द्र सिंह भी भाजपा में शामिल हो गए हैं। बृजलाल का कहना है कि भाजपा के राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित होने के कारण उन्होंने इस पार्टी में शामिल होने का फैसला किया। उनकी भूमिका के बारे में पार्टी नेतृत्व फैसला करेगा। राजनीतिक हलकों में बृजलाल का भाजपा में शामिल होना बसपा और मायावती के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। बृजलाल ले अपनी शुरुआती दिनों में अपराधियों, माफिया और गैंगस्टर के खिलाफ मुहिम चलाई थी। आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) का गठन किया था। उनके आने से भाजपा की छवि में थोड़ा सुधार होगा। सिद्धार्थनगर के छोटे से गांव गुजरौलिया खालसा के बेहद गरीब परिवार में जन्मे बृजलाल 1977 बैज के तेज-तर्रार आईपीएस अधिकारी रहे हैं। पुलिस महकमे में शायद ही कोई ऐसा जिला हो, जहां की पुलिस या फिर अपराधी बृजलाल के नाम से परिचित न हो। सरकारें चाहे जो रही हों, चाहे भाजपा या फिर खुद समाजवादी पार्टी या फिर बसपा, हर सरकार ने उनकी प्रशासनिक क्षमता, अपराधियों से जूझने और फिर उसे अंजाम तक पहुंचाने की प्रवृत्ति के चलते उन्हें हमेशा कानून-व्यवस्था की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी। दलित वोट के आईने में देखा जाए तो बृजलाल अनुसूचित जाति की कोरी जाति से वास्ता रखते हैं। सियासी नजरिये से भाजपा का यह कदम पूर्वांचल में कमजोर भाजपा के लिए मिशन-2017 की ठोस शुरुआत माना जा रहा है। जहां तक कोरी वोट की बात है तो पूर्वांचल में सुल्तानपुर, गोण्डा, फैजाबाद के अलावा बुंदेलखण्ड में इनकी ज्यादा संख्या में है। बृजलाल को वैसे बसपा सरकार की सख्त कानून-व्यवस्था का चेहरा भी माना जाता था। ईमानदारी और साफगोई के चलते कई बार उन्हें पुलिस सेवा में दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। उनकी इसी छवि के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें 1991 में मेरठ में एसएसपी बनाया।  उन्हें समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने 1989 में इटावा का एसएसपी भी बनाया। वह पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की सरकार में लखनऊ के एसपी सिटी बनाए गए। बृजलाल प्रदेश के अकेले ऐसे आईपीएस अधिकारी रहे हैं, जिन्हें केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की सिफारिश पर लंबे समय तक सुरक्षा दी गई। एसएसपी पीलीभीत रहने के दौरान आतंकियों का पीछा करते हुए वह पंजाब तक पहुंच गए और अपने दो सिपाहियों को मारने वाले आतंकियों को अंजाम तक पहुंचाया। इसी वजह से वह आतंकियों की हिट लिस्ट में आए। केंद्र ने उन्हें 25 आदमियों की लंबी-चौड़ी सुरक्षा दस साल तक दी।

राम मंदिर नहीं, राम मार्ग ही सही!
भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में राममंदिर बनाने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि यह पूरा आंदोलन ठंडा पड़ा हुआ है। इसलिए केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग व जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने दो हजार करोड़ की लागत से बनने वाले जनकपुर(नेपाल) तक 455 किमी लंबे महामार्ग की घोषणा की है, इसे राममार्ग कहा जाएगा। साथ ही अयोध्या-चित्रकूट हाईवे का शिलान्यास भी किया है। फैजाबाद से रायबरेली तक 102 किमी मार्ग को 400 करोड़ रुपये देने के साथ अंबेडकरनगर में जाम की समस्या से निपटने के लिए बाईपास व रिंगरोड बनाने का भी ऐलान भी गडकरी ने किया। उन्होंने टांडा-कलवारी के बीच एक और पुल बनाने की घोषणा भी की। फैजाबाद-सुल्तानपुर मार्ग स्थित ब्रम्हबाबा स्थान पर आयोजित जनसभा में उन्होंने जय श्रीराम के जयघोष के बीच अरबों की सड़क व जलमार्ग परियोजनाएं देने का ऐलान किया। गडकरी का यह कदम विधानसभा चुनाव की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने भाजपाइयों को यूपी सरकार की उपेक्षा पर चिंतित न होने की सलाह देते कहा कि केंद्र में राम भक्तों की सरकार है, अब यूपी का भरपूर विकास होगा। हम 73 सांसद देने के लिए जनता का हक अदा करेंगे। इसका आगाज एक दिन में 15 हजार करोड़ की सड़क परियोजनाएं देकर कर दी है, अब दिसंबर तक यूपी को और 50 हजार करोड़ रुपये के राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की सौगात देंगे। अयोध्या-फैजाबाद की उपेक्षा न होने का आश्वासन देते हुए गडकरी ने ऐलान किया कि दो हजार करोड़ की लागत से 455 किमी राम-जानकी मार्ग के साथ ही अब सांसदों की मांग पर रामवनगमन मार्ग अयोध्या से चित्रकूट तक बनेगा इसके अलावा टांडा-कलवारी पुल व 232 किमी मार्ग समेत अकबरपुर-बांदा मार्ग पर सुल्तानपुर तक रोड बनाने की घोषणा की। गडकरी ने कहा कि संसद में 101 जलमार्ग बनाने का  बिल पेश करने जा रहा हूँ, इसमें सरयू नदी भी शामिल होगी। मैं झूठ नहीं बोलता, एक-एक वादा पूरा करुंगा। उन्होंने फैजाबाद-सुल्तानपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 96 पर 230 करोड़ की लागत से 46 किमी दो लेन सड़क पटरी समेत सड़क निर्माण कार्य का शिलान्यास किया। गडकरी राम का जाप कुछ ज्यादा ही कर रहे हैं, उनका कहना है कि प्रभु रामचंद्र हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं। लोगों की काफी अपेक्षा है। रामभक्तों की सरकार उसे पूरा करेगी।

दलितों को लुभाने की कोशिश

दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान मिला दलित वोटों का साथ बीजेपी आगे भी बरकरार रखना चाहती है। यही वजह है कि पार्टी की कोर टीम के साथ ही मोर्चो में भी यूपी के चेहरों को तवज्जो दी जा रही है। हाल ही में घोषित की गई राष्ट्रीय अनुसूचित मोर्चा की टीम में यूपी से चार चेहरों को जगह मिली है। यूपी में दलित वोटों पर नजर का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि यहां क्षेत्रवार चार लोगों को राज्य प्रभारी बनाया गया है। गोपाल पछेरवाल, सुरेश राठौर, केके राज और स्वरूप चंद रंजन के नाम इसमें शामिल हैं। वैसे बीजेपी पिछड़ा-दलित गठजोड़ मजबूत करने की कवायद तभी शुरू हो गई थी जब लोस के नतीजों के बाद आगरा के सांसद रामशंकर कठेरिया को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था। दूसरी ओर संघ और उसके आनुषांगिक संगठन सामाजिक समरसता के बहाने भी दलित वर्ग में अपनी पैठ बनाने में लगे हुए हैं। बीजेपी ने विशेष सदस्यता अभियान भी इसके लिए चलाया था। इसका असर यह है कि यूपी में बीएसपी, सपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों को भी अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड़ा है।

  • मधु आलोक निगम
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