03-Feb-2015 06:11 AM
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भोपाल, इंदौर, जबलपुर, छिंदवाड़ा नगर निगमों के चुनाव परिणाम का बेसब्री से इंतजार है। क्या भाजपा क्लीन स्वीप करेगी? या फिर भोपाल और जबलपुर में उसके विजयरथ पर लगाम लगेगी? यूं तो

भाजपा ने पूरे संसाधन और ताकत इन चुनाव में झोंक दी थी, स्वयं मुख्यमंत्री जनसभाओं के माध्यम से और जनसंपर्क कर वोट मांगते नजर आए। सत्ता में होने का फायदा तो है ही, लेकिन अब सवाल यह है कि परिणाम अपेक्षा के अनुरूप न आए तो क्या होगा? छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय के चुनाव भाजपा के लिए कड़वे घूंट साबित हुए, इस बार भी इंदौर और भोपाल पर सबकी नजर है। इंदौर में तो मालती गौड़ का पलड़ा भारी है क्योंकि मालवा में भाजपा की पकड़ अच्छी है। लेकिन भोपाल में जो वोटिंग के ट्रैंड मिले हैं, उनसे साफ झलक रहा है कि मुकाबला कड़ा है और जीत का अंतर भी ज्यादा नहीं रहने वाला है। मुख्यमंत्री ने भोपाल शहर में जी-तोड़ मेहनत आलोक शर्मा के लिए की है, कई जगह तो मुख्यमंत्री को जनता के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा। कारण सीधा है कि विकास के नाम पर सन्नाटा। आखिरकर शिवराज की आंखें तो इस नगर निगम चुनाव से खुल गईं। अब देखना यह है कि अगर भाजपा का उम्मीदवार जीतता है, तो फिर शिवराज उन्हीं वार्डों में दोबारा किए हुए वादों को पूरा करने जाएंगे या नहीं? वैसे तो उमाशंकर गुप्ता को छोड़कर किसी भी मंत्री ने आलोक के लिए काम नहीं किया, उमाशंकर गुप्ता की मजबूरी थी कि उन्हें इस चुनाव के प्रबंधन का कार्य दिया हुआ था।
मुख्यमंत्री ने तो भोपाल शहर के विधायकों को भी धमकी भरे लहजे में समझाइश दी थी। मुख्यमंत्री ने जहां-जहां निकाय चुनाव थे, वहां रोड शो किए हैं। भाजपा के बड़े नेता इस चुनाव को भाजपा का अहंकार बताते हैं। कांग्रेस के पास खोने को कुछ खास बचा नहीं है, पहले विधानसभा और बाद में लोकसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी की बारह बज चुकी है। अब तो कई कांग्रेसियों ने भाजपा का हाथ थाम लिया है। इन सब हथकंडों के बावजूद भी परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए, तो यह खतरे की घंटी ही कहलाएगा। ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो चुनावी परिणाम ही बताएंगे, लेकिन वोटिंग का प्रतिशत ही बहुत कुछ बोल रहा है। 4 नगर निगमोंं और 5 नगर परिषदों में कुछ 61.26 प्रतिशत मतदान हुआ है। भोपाल में 56.70 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2009 की तुलना में 3.97 प्रतिशत ज्यादा है। सबसे ज्यादा छापीहेड़ा में हुआ है, वहां पर मतदान का प्रतिशत 91.39 प्रतिशत रहा है। छिंदवाड़ा में 82.70 प्रतिशत मतदान हुआ, इंदौर में 62.35 प्रतिशत और जबलपुर में 62.12 प्रतिशत मतदान हुआ है। इस तरह नगर निगमों में देखा जाए तो औसत 65.96 प्रतिशत मतदान हुआ, जो पहले के मुकाबले 5 प्रतिशत ज्यादा है।
जीत के अपने-अपने दावे हैं। जहां तक भाजपा का प्रश्न है, वह अभी तक 10 नगर निगमों में जीतकर क्लीन स्वीप कर चुकी है। कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला है। जिस प्रकार भोपाल, इंदौर में मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, उसी प्रकार जबलपुर और छिंदवाड़ा में कांग्रेस की प्रतिष्ठा का प्रश्न है। छिंदवाड़ा में कमलनाथ समर्थक कल्पना सूर्यवंशी की जीत पर बहुत कुछ दारोमदार है, यहां उनका मुकाबला भाजपा की कांता सदारंग से है। जबलपुर में कांग्रेस प्रत्याशी गीता तिवारी जी-तोड़ मेहनत कर कांग्रेस के पक्ष में मतदान कराया है, वहीं भाजपा की स्वाति गोडबोले को सत्ता का लाभ मिलने की उम्मीद है। हालांकि जबलपुर में टक्कर कांटे की मानी जा रही है। इंदौर शहर का दुर्भाग्य यह है कि यहां मालती गौड़ जीत भले ही जाएं, पर वे उतनी प्रभावशाली नहीं हैं। दरअसल कैलाश विजयवर्गीय के बाद इंदौर में कोई भी दमदार महापौर नहीं आया। जहां तक भोपाल में महापौर चुनाव के लिए मुख्यमंत्री को जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ी, शायद यह आवश्यक नहीं था। क्योंकि यहां की बागडोर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और बाद में नगरीय प्रशासन मंत्री और उनकी महापौर बहू कृष्णा गौर के हाथ में थी, फिर भी भोपाल की जनता बीजेपी के प्रत्याशियों के खिलाफ इतनी नाराजगी दिखाएगी, यह शिवराज को भी पता नहीं था। कांग्रेस तो गुटों में बंटी हुई है, उसके बाद भी भाजपा को पसीने छूट रहे हैं। पिछले नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की परिषद आने के कारण कैलाश मिश्रा को अध्यक्ष बनाया था, उसी दिन तय हो चुका था कि कैलाश मिश्रा ही अब कांग्रेस के महापौर उम्मीदवार होंगे। कैलाश की शालीनता-संजीदगी का फायदा कांग्रेस को जरूर मिलेगा। वहीं भोपाल और इंदौर में परिषद कांग्रेस की होगी और कोई बड़ी बात नहीं चार शहरों में से कहीं आधे-आधे पर हिस्सा-बांटी जनता न कर दे।