03-Jan-2015 05:32 AM
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मध्यप्रदेश में जच्चा-बच्चा मृत्युदर का रिकॉर्ड लगातार बिगड़ता जा रहा है। कन्याओं को जन्म के बाद झाड़ी में फेंकने की घटनाएं बढ़ी हैं। उधर कुछ संभागों में एमएमआर भी चौंकाने वाले आंकड़े पर हैं। 10 संभाग ऐसे है जहां यह 400 के करीब है सागर में 397 रीवा में 336, चंबल में 311, जबलपुर में 310 के करीब एमएमआर है। एमएमआर का अर्थ है मातृत्व मृत्य दर जो 42 दिन के भीतर माताओं की मृत्यु के आधार पर तय किया जाता है।
उधर पिछले एक दशक से मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए इसे शिशु जन्म के लिए सबसे खराब स्थान घोषित किया गया है। शिशु जन्म नमूना पंजीकरण प्रणाली द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट 2013 के अनुसार एक वर्ष के भीतर प्रत्येक एक हजार जीवित शिशु में 54 शिशुओं की मृत्यु हो जाती है हालाकिं इससे पहले 2004 में जारी आंकड़ों के मुताबिक घटी है। मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर पहले 1000 शिशु पर 79 थी इस मुकाबले पिछले कुछ वर्षों में इसमें सुधार आया है।
केरल, में सबसे न्यूनतम दर 12 रही तो तमिलनाडू में 21 इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र और दिल्ली में 24 रही जो मध्यप्रदेश के मुकाबले में काफी कम है। सुप्रीम कोर्ट में शिशु स्वास्थ और पोषण मामलों के सलाहकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। खाद्य सुरक्षा के अधिकार के तहत इसकी मुख्य वजह पिछड़े जिलों और छोटे स्तरों पर आवश्यक प्रथिमिक उपचार न मिल पाना बताया है साथ ही अपर्याप्त पोषण और प्रसूता की उचित देख भाल न हो पाना इसके मुख्य कारणों में शामिल किया है। सरकार लाडली लक्ष्मी से लेकर जननी सुरक्षा योजना तक लागू करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। लेकिन माताओं और शिशुओं की मौत के आंकड़े दर्दनाक होते जा रहे है। माताओं की मृत्युदर के पीछे खून की कमी तथा प्रसव के दौरान उचित देखभाल न हो पाना एक बड़ा कारण है।
सजने के लिए पैसे की जिद्द क्रूरता
अगर बीवी सजने संवरने और घूमने फिरने के लिए जिद्द करती है तो यह क्रूरता माना जाएगा । न्यायालय ने शादी के तुरंत बाद पति के परिवार वालों को घर से बहार निकालने , सजने- सवंरने और घूमने फिरने के लिए हर महीने निश्चित रकम की जिद्द करने वाली पत्नी के इस बर्ताव को पति के साथ घोर क्रूरता माना जाता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने तलाक की अर्जी मंजूर करने के निचली अदालत के फैसले को भी सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने मानसिक और शारीरिक प्रताडऩा देने से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया है इस प्रकरण में शिकायत करने वाले दम्पत्ति की शादी लखनऊ में हुयी थी शादी के फौरन बाद पत्नी ससुरालवालों को घर से बहार करने की जिद्द करने लगी । वह वृद्धा सास को भी घर में रखने को राजी नहीं थीं उसने सास और अन्य परिवार वालों से मारपीट शुरू कर दी। इसके बाद पति ने अपने परिवार से अलग केवल पत्नी के साथ रहने का फैसला किया। किंतु उसके ससुरालवालों ने उसे बंधक बना लिया। परेशान पति ने शादी के 8 महीने के भीतर ही पत्नी को तलाक देने का फैसला किया।
ऐतबार बिना धर्म परिवर्तन अवैध
केवल विवाह के लिए धर्म परिवर्तन को इलाहाबाद हाई कोर्ट नें अवैध घोषित कर दिया है। कुछ शादी शुदा जोड़ों ने पुलिस और परिवार पर परेशान करने का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटया था। इस पर जस्टिस सूर्य प्रकाश केसवानी की एकल पीठ ने उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर, देवरिया, कानपुर, सम्भल, प्रतापगढ़ और मऊ की पांचों याचिकाओं पर यह निर्णय दिया। अदालत ने कहा कि इन जोड़ों ने सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन किया। परिवार और पुलिस पर परेशान करने का आरोप लगाने वाली लड़कियों ने कोर्ट में बताया कि उन्हें इस्लाम के बारे में कोई जानकारी नहीं है । लड़कियों ने सिर्फ इस लिए धर्म परिवर्तन किया क्योंकि उनके मुस्लिम पति ऐसा चाहते थे । इस विषय पर सुनवाई के दौरान अदालत ने धर्म परिवर्तन को अमान्य बताते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति बिना आस्था के धर्म परिवर्तन करने जा रहा है तो ऐसा धर्म परिवर्तन पूरी तरह से अमान्य है। ऐसे विवाह कुरान के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। जिस कमरे में धर्म परिवर्तन की विधि चल रही थी लड़कियां वहां नहीं थी धर्म बदलने वाली लड़कियों ने खुद यह बात मानी है। लड़कों ने भी कोर्ट में बताया कि लड़कियों का धर्म परिवर्तन केवल शादी के लिए किया गया था।