19-Jan-2015 08:32 AM
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अ ब कुछ श्लोक पढऩे से ही चमतकारी अविष्कार हो जाएंगे। ब्रह्मास्त्र और आग्रेयास्त्र तो चुटकियों में बनाए जा सकते हैं। आने वाले दिनों में यज्ञों से अग्रि कन्याएं भी प्रकट होने लगें तो आश्चर्य नहीं होना
चाहिए। अतीत के गौरव से लबरेज कुछ अतिमहत्वाकांक्षी और अतीतजीवी वैज्ञानिकों ने नए-नए फार्मूले पिछले दिनों साइंस कांग्रेस में पढ़े हैं। अब दुश्मनों को पराजित करने के लिए अनुष्ठान मंदिरों में हुआ करेंगे। सेनाएं बैरकों में हनुमान चालीसा पढ़ेंगी।
यूं तो अपने विज्ञान और अपनी मेधा तथा ज्ञान को अफीम की तरह पीकर हम सदियों से उनींदे पड़े हुए हैं, इसीलिए हम ऊंघते रहे और पश्चिम ने तमाम अविष्कार कर लिए। जब यूरोप में औद्योगिक क्रांति आ गई थी उस वक्त तो हम बाल विधवाओं को सती बनाकर अग्रि में झोंक रहे थे। लेकिन इस अफीम का नशा अभी भी उतरा नहीं है। यदि कोई टैस्ट ट्यूब बेबी की बात करता है तो हम कौरवों का उदाहरण दे देते हैं, प्लास्टिक सर्जरी की बात करता है तो गणेशजी का उदाहरण दे दिया जाता है, पुरुष द्वारा बच्चा पैदा करने की बात उठी तो किसी विद्वान ने ऋषि मांधाता का उदाहरण दे दिया, लेकिन हद तो तब हो गई जब अहिल्या को किसी ने फॉसिल घोषित कर दिया।
अब एक वैज्ञानिक दूर की कौड़ी लाए हैं कि विमान तो हमने पहले ही बना लिए लेकिन बाद में हम टैक्नोलॉजी भूल गए और पश्चिम हमसे आगे निकल गया। इन वैज्ञानिक से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि इतना लंबा स्मृतिविश्राम...? टैक्नोलॉजी का वानप्रस्थ इतना लंबा क्यों चला? कैफियत वही पुरानी है विदेशियों ने आक्रमण कर दिया वगैरह-वगैरह। कुछ तो यह भी कहते हैं कि नालंदा और तक्षशिला की लाइब्रेरियां नहीं जलाई जातीं तो हम ऐसी वाशिंग मशीन बना देते जो खुद कपड़े उतार कर धो देती और वापस पहना देती। मेरा मन इन महान अहमक वैज्ञानिकों के प्रति अगाध श्रद्धा से भर गया है। देश का परम दुर्भाग्य है कि इन महान प्रतिभाओं को किसी विज्ञान कांग्र्रेस में लैक्चर देना पड़ रहा है और उधर वे औसत बुद्धिधारी वैज्ञानिक इसरो और नासा मेंं जाने क्या सत्यानाश करके बमुश्किल मंगल और चंद्रमा पर पहुंच पा रहे हैं। मेरा भारत सरकार से अनुरोध है कि वे ऐसे मेधावी और प्रखर वैज्ञानिकों को इग्रोर न करे। नरेंद्र मोदी चाहें तो मेक इन इंडिया का दायित्व इन मेधावी और वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न वैज्ञानिकों के कंधों पर डाल सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब भारत की विज्ञान प्रदर्शनियों में भौतिकी के सारे नियमों को झु़ठलाते हुए किए गए अविष्कार प्रदर्शित किए जाएंगे। मिसाल के तौर पर पानी पर तैरते पुल, स्वच्छता अभियान को कामयाब बनाने के लिए कुछ ऐसे रोबोट भी बनाए जा सकते हैं जो शहर की गंदगी खुद ही साफ कर दें। अभी बहुत कुछ अविष्कृत होना बाकी है। हिंदुत्वमेधा संपन्न वैज्ञानिकों से अनुरोध है कि वे हिमालय की कंदराओं और गहन वनों से निकल कर आएं और इस मानवता को अपने अविष्कारों से लाभांवित करें।
कुमार सुबोध