खूनी खेल के बाद भी लखवी को बेल
02-Jan-2015 06:49 AM 1234797

दृश्य 1
19 अक्टूबर को भारतीय सेना प्रमुख जनरल दलवीर सिंह सोहाग ने तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा गया कि आर्मी ने पाक अधिकृत कश्मीर में 19 आतंकवादी कैंपों को ध्वस्त कर दिया है और 2 हजार से अधिक आतंकवादी नियंत्रण रेखा पार करके भारत में घुसने की तैयारी में हैं।

दृश्य 2
पाकिस्तानी सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में 17 प्रशिक्षण शिविर लगाए, जिनमें कश्मीर के चुनाव के दौरान आतंकवादियों को विशेष प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की गई। 500 आतंकवादी, जिनमें से ज्यादातर पाकिस्तानी थे, प्रशिक्षित किए गए और उन्हें भरतीय सीमा में धकेलने का इंतजार किया जाने लगा।

दृश्य 3
पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में अफगानिस्तान से सटी सीमा पर 7 खूंखार आतंकवादियों को पाकिस्तानी तालिबान के सरगनाओं ने पेशावर में एक सैनिक स्कूल पर हमला करने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू किया। सातों को हिदायत दी गई कि वे बच्चों का कत्ल करने के बाद खुद को भी गोली मार लें।

दृश्य 4

पेशावर स्थित आर्मी स्कूल में 16 दिसंबर को सुबह 11 बजे के करीब 7 नकाबपोश आतंकवादी स्कूल के गार्ड को चकमा देकर बड़े बच्चों की सात कक्षाओं में घुस गए। उन्होंने घुसते ही गोली चलाना शुरू कर दी, जिन कक्षाओं में दरवाजे बंद कर लिए गए, उन दरवाजों को आतंकवादियों ने तोड़ दिया और अंदर घुसकर मेजों पर सिर टिकाए मासूम बच्चों के सिर में गोलियां बरसाना शुरू कर दीं। स्कूल की इमारत से चीखों और गोलियों की आवाज गूंज रही थी। पाकिस्तानी आर्मी इस अचानक हमले से बदहवास हो चुकी थी। आनन-फानन में स्कूल को घेरकर आर्मी ने जवाबी कार्यवाही शुरू की, लेकिन तब तक 132 बच्चों की लाशों का ढेर लग चुका था। स्कूल के तकरीबन 10 कर्मचारियों, शिक्षकों को या तो गोली से मार डाला गया या जिंदा जला दिया गया। 115 बच्चे घायल हुए, जिनमें से कुछ ने अस्पताल में दम तोड़ दिया।
मलाला यूसुफजई को नोबल पुरस्कार मिलने की खुशी मना रहे उन बच्चों के चेहरे से खुशी गायब हो गई। उनके चेहरों पर खौफ चस्पा हो गया। आतंक के सांप को दूध पिलाने वाले पाकिस्तान की गली-गली में मातम पसर गया। नवाज शरीफ ने वही घिसा-पिटा बयान दिया कि एक-एक बच्चे की मौत का बदला लिया जाएगा और आतंकवादियों में कोई फर्क नहीं रखा जाएगा। सारी दुनिया ने आतंकवादियों की इस घृणित और निकृष्ट कार्यवाही का विरोध किया, आलोचना की, संकल्प दोहराया कि आतंकवाद को खत्म करके दम लेंगे। लेकिन बच्चों के खून से रंगी वह जमीन और दीवारें साफ भी नहीं हुईं थीं कि ठोस सबूत के बावजूद 26 नवंबर 2008 को मुंबई में 166 हत्याएं करने की साजिश रचने वाले जकीउर रहमान लखवी को पाकिस्तानी वकीलों की लापरवाही के चलते इस्लामाबाद में एक अदालत ने जमानत देने का फरमान जारी कर दिया।
इस फैसले ने पाकिस्तान को बेनकाब किया और भारत के समक्ष यह सवाल पैदा किया कि पेशावर के मासूम बच्चों की मौत पर सारे देश में दो मिनट का मौन रखने वाले और आंसू बहाने वाले भारतीयों के जख्मों के प्रति क्या पाकिस्तान को भी उतनी ही हमदर्दी है? इस सवाल का उत्तर दु:खद और दर्दनाक मिला। पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों से लेकर आम जनता तक ने भारत में उस हमले के प्रति न तो हमदर्दी जताई थी और न ही लखवी की जमानत पर वहां कोई आक्रोश फूटा।

पाकिस्तान की इस बेदर्द और बेहया हरकत ने 125 करोड़ भारतीयों के भीतर पनपे सहानुभूति और करुणा के दर्द को क्रोध तथा नफरत में बदल दिया। एक मौका था उन मासूम बच्चों के बहाने नजदीक आने का, जो पाकिस्तान ने गंवा दिया- लखवी जैसे हत्यारे को जमानत की पेशकश करके। पाकिस्तान का यही चरित्र है। हिंदुस्तान से नफरत उसकी अनुवांशिकता में है। नफरत ने ही इस मुल्क को जन्म दिया था। चंद मुसलमान जो हिंदुओं से नफरत करते थे और इस बात से भय खाते थे कि हिंदुओं की गुलामी करनी पड़ेगी, उन्होंने पाकिस्तान को अपनी जिद के फलस्वरूप एक अलग मुल्क के रूप में अंग्रेजों से मांग लिया, लेकिन नफरत फिर भी खत्म नहीं हुई। वे हिंदुस्तान की तरक्की, तहजीब और रवायतों से नफरत करने लगे।
हुक्मरानों ने इस नफरत को और बढ़ाया। इस हद तक बढ़ा दिया कि हिंदुस्तान से नफरत करने वालों को वहां सत्ता और ताकत से नवाजा जाने लगा। नवाज शरीफ भी पहली बार जब हिंदुस्तान के खिलाफ जहर उगल कर प्रधानमंत्री बने थे, उस वक्त ही उनके इशारे पर सेना ने कारगिल में आतंकवादियों के साथ मिलकर भारत की संप्रभुता को चुनौती दी थी। आज उसी आतंक  के नाग ने पाकिस्तान के अपने बच्चों को डस लिया लेकिन पाकिस्तान की आंखें नहीं खुलीं। जलालाबाद, बतरासी, बालाकोट, अबोटाबाद, तेपवेला, नौशेरा, झेलम, दुधनियाल, अब्दुल बिन मसूद, चेलाबंदी, देवलियान, गढ़ी दुपट्टा, रावलकोट, पलानी, पलकमीरपुर, गुलपुर, कुंड, समानी जैसे कई इलाकों में आतंंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलाने वाले पाकिस्तान को आज भी यह अहसास नहीं है कि सांप जब डसता है तो अपने-पराये का भेद नहीं करता। जो पाकिस्तान में बच्चों को मारे वो आतंकवादी और जो हिंदुस्तान में महिलाओं को बेवा करे, भीड़ में धमाके करके मासूम लोगों की जान ले वो क्रांतिकारी- यह भेद और गलतफहमी ही पाकिस्तान को एक असफल और बेशर्म राष्ट्र की सूची में तब्दील कर चुकी है। आतंकवाद पाकिस्तान का मुस्तकबिल बन गया है और इसका खतरा इस हद तक है कि पूरी कौम को तबाह करने की ताकत आतंकवादी रखते हैं। पाकिस्तान की सेना हिंदुस्तान को अपना दुश्मन समझती है। हर देश की सेना का यही चरित्र है कि वह मुल्क की सुरक्षा के लिए खतरनाक सभी को अपना शत्रु माने लेकिन पाकिस्तान की सेना भारत जैसे देशों के आवामों को भी शत्रु मानती है और उनका सफाया करने के लिए आतंकवादियों को प्रशिक्षण देती है। आईएसआई और पाकिस्तान के हुक्मरान नफरत की इस आग में घी डालने का काम करते हैं। इस माहौल में फंसा पाकिस्तान स्वयं के लिए किसी शांतिपूर्ण और सद्भावपूर्ण वातावरण की कल्पना ही कैसे कर सकता है।
नक्सलवाद से लेकर जातिवादी हिंसा तक तमाम समस्याएं भारत में भी हैं, लेकिन वे विशुद्ध राजनीतिक समस्याएं हैं। जिन लोगों ने हथियार उठाया है, उनकी आइडियोलॉजी से आम भारतीयों को न तो सहानुभूति है और न ही उन्हें राजनीतिक समर्थन प्राप्त है। लेकिन पाकिस्तान में इसके उलट है, वहां अजहर मसूद से लेकर जकीउर रहमान लखवी तक तमाम दरिंदों को राजनीति, सेना, आईएसआई और कुछ हद तक हिंदुस्तान से नफरत करने वाली जनता का भी पुरजोर समर्थन है। यही कारण है कि पाकिस्तान में आतंक और आतंकवादियों को महिमामंडित किया जाता है। खिलौनों से खेलने वाले बच्चों को हथियार दिए जाते हैं, उन्हें नफरत सिखाई जाती है और यह बताया जाता है कि इंसानी जान की कीमत एक बंदूक की गोली से ज्यादा कुछ नहीं और जब आतंक के यह पले हुए दैत्य मासूमों का खून बहा देते हैं तो मानवता चीत्कार कर उठती है। पेशावर में भी उन बच्चों की चीख सुनकर दुनिया के हर उस व्यक्ति की आत्मा कराह उठी जिसमें मानवता और करुणा जैसे मानवीय गुण पाये जाते हैं, जो प्राणी मात्र में ईश्वर का अंश देखते हुए दूसरों का खून बहाना महापाप समझते हैं। लेकिन सवाल वही है कि अपने ही बच्चों का खून देखकर क्या पाकिस्तानी हुक्मरानों का दिल पसीजा?
उनकी हरकतें देखकर तो ऐसा नहीं लगता। पाकिस्तान में मासूम बच्चों के कत्ल के बाद रैली में हाफिज सईद ने भारत के खिलाफ जमकर जहर उगला और उस हमले का दोष भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भारत पर मढ़ दिया। जिस देश में सरे आम मंच से ऐसा झूठ बोला जाता हो और जहां के राजनीतिज्ञ तथा शासक झूठ बोलने वाले और झूठ की आड़ में आतंक फैलाने वालों को प्रश्रय देते हों वहां अमन की उम्मीद करना बेमानी है।

पाकिस्तान में हर उस व्यक्ति को पनाह मिल सकती है जो दुनिया को तबाह करने की महत्वाकांक्षा पाले बैठा है। ओसामा बिन लादेन को दुनिया के किसी मुल्क ने जगह नहीं दी, लेकिन पाकिस्तान में उसे ठिकाना मिल गया। दाउद इब्राहिम पाकिस्तान में खुले आम घूमता है, वहां का एक शीर्ष क्रिकेटर उसे अपना समधी भी बना लेता है किंतु पाकिस्तान के कान पर जूं नहीं रेंगती।
अजहर मसूद और लखवी, हाफिज सईद जैसे तमाम आतंकी पाकिस्तान में ही पनाह पाते हैं। उनकी तकरीरें होती हैं। जनता उन्हें गौर से सुनती है। लेकिन पाकिस्तान में हुक्मरानों को उनकी आवाज सुनाई नहीं देती। इसीलिए मुंबई में जब निर्दोषों को मारा जा रहा था तो उसी पेशावर में मिठाई बांटी जा रही थी, जहां आतंकियों ने बच्चों के साथ खून की होली खेली। यदि पाकिस्तान इस नफरत के जहर को खत्म करने का इंतजाम करता तो शायद उस रोज वे मासूम बच्चे (जिन्हें न तो सियासत से मतलब है और न ही देश की सरहदों पर दिन-रात बरसती गोलियों से) नहीं मारे जाते।
कौन हैं आतंकवाद के जनक?
सारी दुनिया में एक खौफनाक सच्चाई यह है कि आतंकवादियों के पास शीतयुद्ध में प्रयुक्त किए गए हथियार हैं। शीतयुद्ध के समय अमेरिका, रूस जैसी महाशक्तियों ने अपने-अपने फायदे के लिए जिन समूहों को हथियार दिए आज वे ही आतंक के भस्मासुर बन कर सारी दुनिया को आक्रांत किए हुए है। हर देश अपने स्वार्थ के लिए दूसरे देश में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देता रहा है। रूस ने यूक्रेन में विद्रोहियों को हथियार दिए। अमेरिका ने तालिबान और ओसामा बिन लादेन को जन्म दिया। चेचेन विद्रोहियों को अमेरिका के हथियार मिले। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के तालिबानियों को समर्थन दिया और कश्मीर मेंं आतंकवाद फैलाया।
भारत पर श्रीलंका ने तमिल विद्रोहियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था लेकिन जब शांति सेना भेजने के बाद राजीव गांधी की दु:खद हत्या कर दी गई, तब श्रीलंका को समझ में आया कि तमिल आतंकवाद भारत की देन नहीं थी बल्कि उसके अपने ही क्षेत्र में पनपे असंतोष के कारण इसका जन्म हुआ था। दुनिया के अन्य क्षेत्रों में भी आतंकवाद किसी न किसी रूप में मौजूद है लेकिन अलकायदा, तालिबान, इस्लामिक स्टेट जैसे कई संगठन जो धर्म की आड़ लेकर मानवता को तबाह करना चाहते हैं, ज्यादा खूंखार और आक्रामक हैं। इनके पास अपार पैसा है। तेल की दौलत का बड़ा हिस्सा आतंकवाद को पाल-पोस रहा है। जब तक आतंकवादियों की अर्थ-व्यवस्था मजबूत है, कोई इनका बाल का बांका नहीं कर सकता। ये आतंकवादी संसाधनों से लैस हैं और दुनियाभर की ताकतवर सेनाओं से लोहा लेने में सक्षम हैं।
पाकिस्तान अभी भी आतंकवादियों को प्रशिक्षण से लेकर धन मुहैया कराने तक तमाम सहूलियतें देता है। वह कश्मीर में आजादी के समर्थन के नाम पर मासूमों का खून बहाने वालों को पैसा, हथियार और राजनीतिक संरक्षण मुहैया कराता है। इस दोगली नीति के चलते पाकिस्तान की आतंकवाद के खिलाफ मुहिम हास्यास्पद और नकली लगती है। नकली प्रयासों के कारण ही पाकिस्तान ने पिछले दिनों कई हमले झेले हंै। बेनजीर भुट्टो जैसे राजनीतिज्ञों को आतंकी हमलों का शिकार बनना पड़ा है। मलाला जैसी पढ़ाकू लड़की को मारने की कोशिश की गई। पाकिस्तान के समाज के एक बड़े हिस्से ने मलाला की उपलब्धि को पश्चिम की साजिश करार दिया, इससे उनकी मनोवृत्ति का साफ अंदाजा होता है।
भुखमरी, गरीबी, कमजोर स्वास्थ्य, बेरोजगारी जैसी तमाम समस्याओं से जूझने वाला पाकिस्तान भारत जैसे विशाल देश के साथ हथियारों की होड़ में लगा हुआ है। लेकिन पाकिस्तान के सारे घातक हथियार कब आतंकवादियों के हाथ में आ जाएंगे, कहा नहीं जा सकता। पाकिस्तान में परमाणु बम भी असुरक्षित हैं। सेना के स्कूल पर हमला करके आतंकवादियों ने बता दिया है कि वे पाकिस्तान की सेना को भी मुंह तोड़ जवाब देने की ताकत रखते हैं। इस हमले से बदहवास पाकिस्तान में अब उन आतंकवादियों को सजा-ए-मौत दी जा रही है जो कथित रूप से पाकिस्तान को तबाह कर रहे थे लेकिन हाफिज सईद, दाउद इब्राहिम, जकीउर रहमान लखवी जैसे तमाम आतंकवादी जो खुले आम घूम रहे हैं, क्या ये सब पाकिस्तान का भला कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब पाकिस्तान के पास नहीं है।

हमले की जिम्मेदारी

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान
2002 में अफगानिस्तानसे भागकर आए आतंकियों पर पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई के विरोध में संगठन बना।

2007 में 13 आतंकी ग्रुप बैतुल्ला मसूद की लीडरशिप में इसमें शामिल हुए। तब ये आक्रामक हुआ।

2014 में इससे अलग होकर तीन संगठन बने अहरार-उल-हिंद, तहरीक-ए-तालिबान दक्षिण वजीरिस्तान और जमात-उल-अहरार।

समर्थकों से चंदा, नाटो वाहनोंं की हाई जैंकिंग, हाई प्रोफाइल लोगों के अपहरण कब्जे वाले क्षेत्र से लकड़ी, मार्बल, ग्रेनाइट और अन्य महंगे पत्थरों की बिक्री से। इसके अलावा शरीयत व धर्म की रक्षा के नाम पर लोगों से टैक्स की वसूली जैसे अवैधानिक तरीकों से इसकी फंडिंग की जाती है।

25000 आतंकी शामिल हैं इस ग्रुप में इनका पहला मकसद है इस्लामिक शरिया कानून को लागू करना। इसके अलावा नाटो फौज के खिलाफ लडऩा और पाक फौज के खिलाफ रक्षात्मक लड़ाई।

आतंकी अब तक लगभग 2200 लोगों की हत्या कर चुके हैं।

ये पहला हमला नहीं है

  • पेशावर में आर्मी स्कूल की घटना आतंक की नई शुरुआत है,  तालिबान आतंकी 2009 से अब तक 1000 स्कूलों को निशाना बना चुके हैं। शिक्षा को हमलों से बचाने के विश्वव्यापी गठबंधन की डायरेक्टर दिया निजहोने के अनुसार इन हमलों में खेल मैदानों में ग्रेनेड फेंकने, टीचर्स पर अपहरण और स्कूल बसों पर गोलीबारी जैसी घअनाएं शामिल हैं। इंटरनेशनल क्राइसेस गु्रप के अनुसार खास तौर से लड़कियों के स्कूल आतंकियों के सॉफ्ट टारगेट रहे हैं, क्योंकि आतंकियों के अनुसार वहां गैर इस्लामिक  शिक्षा दी जा रही है।
  • इससे पहले रूस में 1 सितम्बर 2004 को बेसलान शहर के स्कूल में आतंकियों ने हमला किया था। दुनिया में किसी स्कूल पर हुआ यह हमला सबसे भयावह आतंकी हमला था। स्कूल सालाना छुट्टियों के बाद खुला था, इसलिए ज्यादातर बच्चे ऐसे थे जिन्होंने पहली बार स्कूल में कदम रखा था। इस हमले में 186 बच्चों समेत 385 लोगों की जानें गईं। आतंकियों ने 777 बच्चों समेत 1100 लोगों को स्कूल में 3 दिन तक बंधक बनाए रखा। हादसे के बाद स्कूल को स्मारक में तब्दील कर दिया गया।
  • पाकिस्तान में पिछला सबसे बड़ा आतंकी हमला जुलाई 2010 में हुआ था। इसमें 56 लोगों को दो आत्मघाती हमलावरों ने मौत के घाट उतार दिया था। पाक में सरकारी राहत सामग्री बांटने के दौरान यह हमला हुआ था। इसमें 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।
  • ईरान में 20 अगस्त 1978 आतंकियों ने सिनेमा हॉल में बम रखकर धमाका किया। 477 लोगों की मौत हुई और 10 जख्मी।
  • लेबनान में 23 अक्टूबर 1983 ट्रकों में बम रखकर अलग-अलग स्थानों को टारगेट बना कर विस्फोट किए। 301 मौतें हुईं और 161  से अधिक लोग जख्मी हुए।
  • आयरलैंड में 23 जून 1985 भीड़ भरे बाजार में बम रखकर धमाके किए गए। 331 लोग मरे और 4 जख्मी।
  • मुंबई में 12 मार्च 1993 में शहरभर में 15 बम धमाके किए गए जिसमें 317 बेकसूर लोगों की मृत्यु हुई और 1400 लोग जख्मी।
  • नैरोबी में 7 अगस्त 1998 को सरकारी ऑफिस के पास धमाका हुआ जिसमें 244 मौतें हुईं और 4954 लोग बुरी तरह जख्मी हुए।
  • अमेरिका में 11 सितंबर 2001 में वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हवाई हमले में 2993 मौतें हुईं और 8900 लोग जख्मी हुए।
  • हमले और भी हैं
  • 1 सितंबर 2004 रूस में 372 लोग मारे गए और 747 जख्मी हुए।
  • 14 अगस्त 2007 इराक में 520 लोग मारे गए और 1500 जख्मी।
  • 26 जुलाई 2009 नाइजीजिया में 780 लोग मारे गए ओर 1500 जख्मी।
  • 7 मई 2014 नाइजीरिया मेंं 310 लोग मारे गए और 1500 जख्मी हुए।
  • लेकिन पिछले 5 सालों में आतंकी हमलों में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है। दुनिया में हर साल 18000 लोग आतंकी हमलों में मारे जाते हैं।

भारत को करनी होगी कार्यवाही

पेशावर के हमले ने बता दिया कि आतंकवादी जब चाहें, जहां चाहें हमला करने में सक्षम हैं। वे सेना की सुरक्षा में सेंध लगाने की हिमाकत कर सकते हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि भारत पाकिस्तानी क्षेत्रों में चल रहे आतंकी शिविरों को नष्ट करने की कार्यवाही करे। इजराइल जैसे छोटे देश ने इराक में हवाई हमला करके वहां का परमाणु संयंत्र तहस-नहस कर डाला था। भारत आतंकी शिविरों को ध्वस्त कर सकता है और ऐसा करने पर दुनिया में कोई विरोध भी नहीं होगा। दुनिया आतंकवाद से त्रस्त है। पाकिस्तान पर अमेरिकी हवाई हमलों को पाकिस्तान की संप्रभुता पर आक्रमण नहीं माना जाता है। ओसामा बिन लादेन को जब मारने की कार्रवाई की गई, उस वक्त भी पाकिस्तान के हुक्मरानों के मुंह से एक शब्द नहीं निकला था।

भारत भी जख्मी हुआ

पाकिस्तान के पेशावर में हमले के आठ दिन बाद भारत में पूर्वोत्तर के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बोडो उग्रवादियों ने लगभग 85 लोगों को अलग-अलग घटनाओं में मार दिया। इन उग्रवादियों की मांग है कि बोडो आदिवासियों का अलग राज्य बनाया जाए। सोनितपुर जिले में बोडो आतंकवादियों का आतंक सर चढ़कर बोलता है। यहां बोडो उग्रवादियों ने चाय के बागानों में काम करने वाले आदिवासियों और बाहरी जनजातीय लोगों को मार डाला।
पुलिस फायरिंग में 5 प्रदर्शनकारियों की मृत्यु के बाद हिंसा भड़क उठी। उत्तरी असम में कफ्र्यू लगा हुआ है। मरने वालों में 21 महिलाएं और 10 बच्चे भी हैं। मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का कहना है कि हाल के दिनों में यह सबसे बर्बर हमला है जिसमें दुधमुंहे बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया। पेशावर में स्कूल पर हमला करने वाले उन उग्रवादियों से ये उग्रवादी भी किसी मायने में भिन्न नहीं हैं।

हालांकि बोडो समस्या राजनीतिक समस्या है लेकिन पिछले तीन दशक में 10 हजार निर्दोष लोगों की हत्या समस्या की गंभीरता को बयां कर रही है। दरअसल असम के उग्रवादियों ने यह हमला अपने उन 40 साथियों के सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाने के बाद किया है, जो पूर्णत: प्रशिक्षित थे। लेकिन अपने साथियों की हत्या का बदला उन्होंने मासूम लोगों, बच्चों और महिलाओं को मार कर क्यों लिया? इस प्रकरण में सुरक्षा एजेंसियों की चूक भी सामने आ रही है। सुरक्षाबलों को यह अच्छी तरह मालूम था कि बोडो उग्रवादी बदले की कार्यवाही कर सकते हैं, लेकिन उन्हें यह अनुमान नहीं था कि यह कार्यवाही इतनी बर्बर और खतरनाक होगी।
एनडीएफबी नामक इस आतंकी संगठन में ढाई सौ से तीन सौ के करीब खतरनाक उग्रवादी बचे हुए हैं और कुछ नए प्रशिक्षित सदस्यों के आने से इनकी ताकत में इजाफा हुआ है। बताया जाता है कि म्यांमार में बोडो उग्रवादियों के प्रशिक्षण शिविर हैं, जहां से लौटे इन नव-प्रशिक्षित उग्रवादियों को अपनी ताकत दिखाने का कहा गया था और उन्होंने दुधमुंहे शिशुओं, महिलाओं और निहत्थे लोगों की हत्या करके अपनी काबिलियतÓ का परिचय दे दिया। सारी दुनिया में उग्रवादियों, आतंकियों का चरित्र मिलता-जुलता है। इस घटना के बाद से इस क्षेत्र में दहशत फैल गई है और सरकार को यह अहसास हो चुका है कि इस संगठन की ताकत अभी भी बची हुई है। संगठन ने अपने लक्ष्य चालाकी से चुने थे। सबसे बड़ा हमला सोनितपुर जिले के फुलवारी में आदिवासियों की बस्ती पर किया गया जो अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है, यहां सुरक्षा बलों की मौजूदगी भी न के बराबर है तथा यह क्षेत्र बोडो उग्रवादियों के प्रभाव से मुक्त समझा जाता है। सवाल यह है कि पुलिस फुलवारी का हमला रोकने में असमर्थ रही तो उसने पोखराझार जिले में हमला क्यों नहीं रोका, जहां सुराग पहले ही मिल चुके थे?
पोखराझार एनडीएफबी के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। बताया जाता है कि एनडीएफबी ने एक प्रेस स्टेटमेंट भी जारी किया था जिसमें हमले की चेतावनी दी गई थी, जिसके बाद मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में पुलिस की गस्त बढ़ा दी गई। लेकिन इस बार उन्होंने बाहरी आदिवासियों को निशाना बनाया। बोडो सिक्युरिटी फोर्स, बोडोलैण्ड लिबरेशन टाइगर और एनडीएफबी के विविध समूह बाहरी आदिवासियों, मुस्लिमों सहित तमाम गैर बोडो लोगों को निशाना बनाते हैं क्योंकि उनका मानना है कि बोडो आदिवासियों की जमीन पर और किसी का हक नहीं है। उनका आतंक इस तरह है कि चाय के बागान वाले भी उन्हेंं फिरौती के रूप में पैसा मुहैया कराते हैं। यही पैसा इस क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। म्यांमार की भूमिका भी संदिग्ध है।

  • कुमार सुबोध
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