रिलायंस को जमीन नहीं पैसा चाहिए
05-Jan-2015 04:50 AM 1235037

मध्यप्रदेश को उद्योग के सब्जबाग दिखाकर रिलायंस गु्रप चंपत होने का प्रयास कर रहा है। केंद्र सरकार ने कोल ब्लॉक आवंटन निरस्त कर दिए तो रिलायंस सरकारी खजाने में जमा 9.51 करोड़ की धरोहर राशि वापस लेने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। फाइल सीएम सचिवालय से चलकर रैवेन्यू विभाग तक पहुंच चुकी है और रिलायंस के कर्मचारी बार-बार सीएम सचिवालय से लेकर रैवेन्यू विभाग तक फाइल के बारे में पूछताछ कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में कुछ भी हो सकता है। आशंका इस बात की है कि भोले-भाले मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री रामपाल सिंह को प्रभाव में लेकर कहीं  रिलायंस कैबिनेट में इस फाइल को एप्रूव न करा ले।

मध्यप्रदेश में अरबों लगाने का झांसा देकर सरकार से जमीन लेने वाली रिलायंस इंडस्ट्री अब अपना कारोबार समेट रही है और सरकार के पास जमा पैसा भी वापस चाहती है। रिलांयस ने सिंगरौली जिले के ग्राम मोहर अमरोटी में 125 हैक्टेयर जमीन कोयला उत्खनन के लिए ली थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने कोल ब्लॉक आवंटन निरस्त कर दिया, अब यह जमीन रिलायंस के किसी काम की नहीं है। इसलिए रिलायंस सरकार को यह जमीन लौटाना चाहती है पर सवाल यह उठता है कि रिलांयस से जमीन वापस लेना तभी संभव है जब वहां कोई सरकारी प्रोजेक्ट आ रहा हो।

मध्यप्रदेश सरकार तो वैसे भी निजीकरण को बढ़ावा दे रही है इसलिए वह इस प्रोजेक्ट में हाथ नहीं डाल सकती। रिलायंस को जमीन से मतलब नहीं है, जमीन उसे मिले तो उसका लैंडबैंक मजबूत ही होगा लेकिन रिलायंस की चालाकी यह है कि वह सरकारी खजाने में जमा 9.51 करोड़ की धरोहर राशि वापस लेना चाहती है। इसके लिए रिलायंस के कर्मचारी मंत्रालय के चक्कर काट रहे हैं। रिलायंस का मकसद दोनोंं होथों में मिठाई रखने का है- रुपया वापस मिल जाए और जमीन भी सुरक्षित रहे। अब देखना यह है कि रिलायंस को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार अपने ही नियमों को ताक में रखती है अथवा नहीं। विभागीय मंत्री और कुछ आला अफसर रिलायंस के अफसरों के नजदीक बताए जाते हैं।
वर्ष 2007 में जब अगस्त माह में रिलायंस पावर लिमिटेड ने सासन पावर लिमिटेड का अधिग्रहण किया था, उस समय केंद्र में यूपीए सरकार ने बिना आवश्यक प्रक्रिया अपनाए कई बड़े औद्योगिक घरानों को कोल ब्लॉक आवंटित कर दिए थे। रिलायंस जो 4 हजार मेगावॉट का विशाल पावर प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश के शासन में चला रहा है, उसके लिए कोयले की आपूर्ति हेतु उसने भी बोली लगाई थी लेकिन अब जिस खदान के लिए बोली लगाई गई उसमें 5 इकाइयों से 3 हजार से अधिक मेगावॉट के करीब विद्युत उत्पादन हो रहा है। ऐसी स्थिति में प्लांट को अधिक उत्पादन के लिए कोयले की जरूरत कोल ब्लॉक से ही पूरी हो सकती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद कोयला मिलना संदिग्ध हो गया है।
इसलिए रिलायंस सिंगरौली में ली गई जमीन में रुचि नहीं दिखा रही। दरअसल रिलायंस की 4 हजार मेगावॉट बिजली में से कुछ बिजली मध्यप्रदेश को अत्यंत रियायती दरों पर मिल सकती है। इसीलिए मध्यप्रदेश में रिलायंस को इतनी रियायत दी जा रही है। लेकिन यह रियायत राज्य सरकार को महंगी पड़ सकती है।

परचेस एग्रीमेंट का उल्लंघन
पावर रेगुलेटर सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (सीईआरसी) ने कहा था कि यह प्रोजेक्ट ऑपरेशनल नहीं है। उसके मुताबिक, इसने 2013 तक तय टेस्टिंग मानकों को पूरा नहीं किया था। सासन यूएमपीपी 4,000 मेगावाट कैपेसिटी वाला प्लांट है। इसकी 600 मेगावाट की पहली यूनिट कमर्शियल तौर पर ऑपरेशनल है। इसे इंडिपेंडेंट इंजीनियर (आईटी) ने 30 मार्च 2013 को सर्टिफाई किया है। इसे प्रोक्योरर और सासन पावर ने अप्वाइंट किया था। इसे सभी 14 प्रोक्योरर ने लिखित में माना था। वहीं, रेगुलेटर ने कंपनी को यूनिट की नए सिरे से टेस्टिंग के लिए कहा है। उसका कहना है कि तभी इस प्लांट को फॉर्मल तौर पर ऑपरेशनल घोषित किया जाएगा। रेगुलेटर के मुताबिक, कंपनी ने पावर परचेज एग्रीमेंट की शर्तों के हिसाब से काम नहीं किया है। रेगुलेटर ने अपने ऑर्डर में कहा है, यह पता चला है कि सासन पावर लिमिटेड (एसपीएल) ने डब्ल्यूआरएलडीसी की ईमेल (30 मार्च 2013) में पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) के तहत सुझाए गए वाजिब कदम उठाने के बजाए 31 मार्च 2013 को एक यूनिट का कमर्शियल ऑपरेशन शुरू कर दिया।

कैग ने भी की थी खिंचाई
सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट को लेकर कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) ने पर्यावरण मंत्रालय की कड़ी खिंचाई की थी। कैग का कहना था कि पर्यावरण मंत्रालय ने रिलायंस पावर लिमिटेड के इस प्रोजेक्ट को गैर वाजिब रियायतें दी हैं। कैग ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मुख्य सचिव द्वारा जारी एक अनुचित सर्टिफिकेट के आधार पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने रिलायंस पावर को 1,384.96 हेक्टेयर गैर-वनीय भूमि मुहैया न कराने की छूट दे दी थी। हालांकि, रिलायंस पावर ने कैग के इस अवलोकन से असहमति जताई थी। इस कंपनी ने कहा था कि 4,000 मेगावाट के सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट के लिए वन भूमि अधिग्रहीत करते वक्त उसे कोई भी रियायत नहीं दी गई थी।

  • भोपाल से विकास दुबे
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