रिपोर्ट कार्ड में विजन नहीं
03-Jan-2015 05:58 AM 1234767

शिवराज सिंह चौहा

न से जब पूरे उत्साह के साथ विजन डाक्यूमेंट 1918 और 100 दिवसीय कार्ययोजना की घोषणा की थी, उस समय लगा था कि शिवराज सरकार के मंत्री और नौकरशाही इस लक्ष्य को पा ही लेगी। लेकिन मंत्रियों के रिपोर्टकार्ड को देखने से लगता है कि मंत्रियों ने भविष्य की योजनाओं पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है। वैसे तो हर विभाग का मंत्री कोई न कोई योजना अवश्य देता है लेकिन योजनाएं देना अलग बात है और उनका पूर्ण होना दूसरी बात।

पहले पहल जब सड़कें बनाने, बड़े उद्यमों

की स्थापना करने और पानी की आपूर्ति के लिए बड़ी योजनाओं पर काम करने की बात सामने आई थी, तो लगा था कि कुछ ठोस होगा लेकिन बाद में सरकार ने अलग तरीके से काम करना शुरू किया और स्वच्छता अभियान जैसे तमाम अभियान बीच में आ गए। अब ग्रामीण एवं पंचा

यत मंत्री गोपाल भार्गव कह रहे हैं कि कन्यादान योजना में टायलेट युक्त आवास दिए जाएंगे। यह कितना व्यावहारिक होगा, कहा नहीं जा सकता क्योंकि सारे आवासों के दाम सारे प्रदेश में एक समान हो ही नहीं सकते। इसीलिए रिपोर्टकार्ड में वह विजन दिखाई नहीं दिया जिसकी जरूरत थी। लेकिन हर मंत्री ने कुछ न कुछ अवश्य बताया जैसे गोपाल भार्गव का कहना है कि अब छात्रवृत्ति बैंक खाते में जा रही है, कपिलधारा में 3 लाख कुंए बनवाए हैं, ग्रामीण सड़कों के लिए पंचायतों को 43 करोड़ दिए हैं लेकिन इन 43 करोड़ का कितना उपयोग हो पाया, यह आंकड़ा नहीं है। मध्यप्रदेश में राज्यमार्ग 1.85 करोड़ रुपए में प्रति किलोमीटर के भाव से तैयार होते हैं। मान लो ग्रामीण सड़कें इससे 10 गुना कम रेट पर तैयार होती होंगी तो 43 करोड़ रुपए मेें कितनी सड़कें बनेंगी, ज्यादा से ज्यादा 2-3 सौ किलोमीटर। क्या इतनी पर्याप्त हैं? भाजपा ने घोषणापत्र में कहा था कि बीपीएल कार्डधारियों का जीवन बीमा कराया जाएगा और अविवाहित ग्रामीण महिलाओं को पेंशन मिलेगी, हर जिले में वृद्धाश्रम खोलेंगे, हाट बाजारों को कर मुक्त करेंगे। गोपाल भार्गव ने इस दिशा में कोई काम नहीं किया। अब रिपोर्ट कार्ड पर उन्हें कितने नंबर दिए जा सकते हैं?
गौरीशंकर शेजवार तो रिपोर्टकार्ड पढ़ते समय झल्ला गए, कहने लगे लाइन में लगाकर बाघों की गिनती करेंं क्या। शेजवार को तो यह भी नहीं मालूम था कि वन क्षेत्र कितना बड़ा है। उन्हें लगा पत्रकार नाश्ता करके और भाषण सुनकर रुखसत हो लेंगे लेकिन पत्रकारों ने खिंचाई कर दी, जब तैयारी नहीं थी तो रिपोर्टकार्ड देने की क्या आवश्यकता थी। मध्यप्रदेश मेंं बाघों पर ही संकट नहीं है, सारी बायोडायवर्सिटी खतरे में है। इसके लिए जो अभ्यारण्य बनाए गए हैं, उनका प्रबंधन बहुत जर्जर स्थिति में है। वन ग्रामों को अभी तक राजस्व ग्राम नहीं बनाया गया है। वनों का अभी भी अवैध दोहन जारी है, लेकिन दुख इस बात का है कि वनों का दोहन जंगल पर निर्भर लोग नहीं कर रहे हैं बल्कि वे कर रहे हैं जिन्हें करोड़ों के वारे-न्यारे करना है। सभी वन क्षेत्रों में नदियों से रेत का अवैध उत्खनन हो रहा है। इसे रोकने के लिए विभागीय समन्वय जरूरी है लेकिन मंत्रीजी की झल्लाहट के कारण यह सवाल पूछा नहीं जा सका।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी अपने रिपोर्ट कार्ड में यह नहीं बतलाया कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में देश में सर्वाधिक डेंगू जनित मौतें क्यों हुईं। इतने लोग तो उन शहरों में भी नहीं मरे, जहां की जलवायु डेंगू पनपने के लिए आदर्श है। मंत्रीजी अपनी पीठ थपथपाते रहे। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में 300 प्रकार की दवाएं मुफ्त बांटी जा रही हैं। जबकि हकीकत यह है कि राजधानी के जे.पी. अस्पताल में ही जेनेरिक दवाइयों के लिए मरीज भटकते रहते हैं। 18 स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी के बावजूद ज्यादातर जटिल ऑपरेशन सरकारी खर्चे पर निजी अस्पतालों में हो रहे हैं और निजी अस्पतालों की चांदी है। 8 जिलों में डायलिसिस मशीन और 40 जिलों में कीमोथैरेपी स्वागत योग्य है, लेकिन हमीदिया जैसे सरकारी अस्पतालों में सोनोग्राफी से लेकर एन्जियोग्राफी तक में उपयोगी मशीनें अस्वस्थ क्यों हैं, इसका कोई जवाब नहीं है। चुनाव के समय शिवराज सिंह ने मतदाताओं से वादा किया था कि बीपीएल कार्डधारियों तथा मध्यम वर्ग के लिए मेडिकेयर पॉलिसी लेकर आएंगे, जिससे राज्य या बाहर इलाज कराने में गरीबों तथा मध्यमवर्गियों को परेशानी नहीं होगी। पर ऐसा नहीं हुआ।

मेडिकल की सीट बढ़ाने की बात की जा रही थी लेकिन इंदौर के एक कॉलेज में तो घट गई। पैरामेडिकल तथा डॉक्टर के 8 हजार पद खाली हैं। इसलिए स्वास्थ्य विभाग का रिपोर्ट कार्ड भी काबिले तारीफ नहीं है।
ऊर्जामंत्री राजेंद्र शुक्ल नई ऊर्जा से भरे हुए थे, जब पत्रकारों ने उन्हें बताया कि कोल ब्लॉक आवंटन निरस्त होने के बाद मध्यप्रदेश में पूरी क्षमता से बिजली उत्पादन संभव नहीं होगा तो वे थोड़ा मायूस हुए लेकिन फिर भी उन्होंंने बताया कि मध्यप्रदेश 2900 मेगावॉट बिजली पैदा कर रहा है। बिजली कंपनियां 1900 करोड़ कमाती हैं और 2400 करोड़ खर्च करती हंै 500 करोड़ का अंतर क्यों है, यह प्रश्न आवाज में गुम हो गया। उन्होंने बताया कि बिजली के क्षेत्र में 3 लाख 13 हजार करोड़ के निवेश का प्रस्ताव है। सच तो यह है कि बिजली की अधोसंरचना
मांग के अनुरूप नहीं है। बिजली चोरी के कारण
बिजली का नुकसान
बढ़ा है, क्योंकि चोरी करने के लिए जो हथकंडे अपनाए जा रहे हैं उनमें बिजली बर्बाद ज्यादा होती है और बिजली चोरों को कम मिल पाती है। इसके लिए सुरक्षा प्रावधान क्या हैं, यह नहीं बताया गया। सौर ऊर्जा के लिए जो सर्टिफिकेट पावर एक्सचेंज में नीलाम करके छोटे उत्पादकों को राहत पहुंचाने की बात की जा रही थी, वह ठंडे बस्ते में ही है। हां इतना अवश्य हुआ है कि नेताओं ने चुनावी फायदे के लिए किसानों के खिलाफ बिजली चोरी प्रकरण रोकने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। पंचायत चुनाव से पहले शायद सरकार इस विषय में कोई बड़ा फैसला करेगी। बिजली के दाम कम करने संबंधी सवाल को मंत्रीजी चतुराई से टाल गए।
उद्योग एवं खेल मंत्री यशोधरा राजे करना तो बहुत कुछ चाहती हैं लेकिन उनके साथ कदमताल करने वाले नौकरशाह कम ही हैं। फिर उनका रुतबा भी राजा-महाराजाओं की तरह है। पत्रकारों को वे अपनी प्रजा समझती हैं। इसलिए रिपोर्ट कार्ड के समय उन्हें कुछ अप्रिय लगने वाली बातें सुनाई पड़ीं। बहरहाल उद्योग विभाग का रिपोर्ट कार्ड इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मुख्यमंत्री खुद मध्यप्रदेश में निवेश के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं और इन्वेस्टर्स मीट भी आयोजित होती रहती है। हालांकि कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। यशोधरा राजे का कहना है कि प्रदेश में रक्षा संयंत्र उत्पाद नीति बनाई गई है, जिसके तहत 13,916 सूक्ष्म, 336 लघु व मध्यम उद्योग लगे हैं, जिनमें 35 हजार लोगों को रोजगार मिला है। 1067 हैक्टेयर में नया औद्योगिक क्षेत्र बनाने की तैयारी की जा रही है। सरकार ने भी 25 हजार 477 हैक्टेयर जमीन का लैंड बैंक बना लिया है। लेकिन महज 35 हजार लोगों को रोजगार मिलना संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता। इसकी वजह यह है कि जिन जिलों में उद्योग नहीं हैं वहां ज्यादा बेरोजगारी है और सरकार वहां पर औद्योगिक क्षेत्र बनाने के लिए कोई काम भी नहीं कर रही। कुछ योजनाओं पर काम हो रहा है, लेकिन गति धीमी है। भोपाल-इंदौर, भोपाल-बीना, जबलपुर-सिंगरौली और मुरैना में निवेश कॉरिडोर हकीकत से कोसों दूर हैं। ऐसे में प्रदेश दुनिया के औद्योगिक नक्शे पर कैसे आएगा?
नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय दिल्ली के नेताओं की पसंद बनते जा रहे हैं। उनके संगठन में जाने के भी चर्चे हैं। लेकिन उनके विभाग की हालत वैसी ही दयनीय और जर्जर है। नगरीय प्रशासन मध्यप्रदेश में एकदम लचर साबित हुआ है और प्रदेश की नगरीय सेवाएं निम्न स्तरीय तथा घटिया होती जा रही हैं। मंत्री जी ने अपना रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करते हुए बताया कि गरीबों के लिए 60 हजार मकानों के लिए जमीन आवंटन किया गया है, लेकिन भोपाल में नगर निगम के दफ्तर में जाकर जवाहरलाल नेहरू शहरी विकास योजना की प्रगति रिपोर्ट मांगों तो अफसर टालमटोल करने लगते हैं। गरीबों का आवास तो दूर की बात है यहां तो कागज भी नहीं मिलते। प्रतिवर्ष एक लाख मकान और पांच साल में पांच लाख आवास बनने हैं, पर अब तक स्पष्ट नीति नियम नहीं बन पाई। भोपाल-इंदौर में लाइट मेट्रो प्रोजेक्ट फायनल हो चुका है। किंतु लाइट मेट्रो प्रोजेक्ट की गति बहुत धीमी है। न एजेंसी चुनी गई, न बजट का इंतजाम हुआ।  मंत्री जी का कहना है कि नगरों के समग्र विकास के लिए 15 वर्षीय मास्टर प्लान बनाया गया है। 200 सार्वजनिक शौचालय तैयार हैं, लेकिन प्रदेश की जनसंख्या को देखते हुए यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की व्यवस्था के लिए अथॉरिटी बनाई जाना है पर योजना अधूरी है। कई शहरों के मास्टर प्लान अधूरे पड़े हैं या बने ही नहीं हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह के सामने भी चुनौतियां कम नहीं थीं।

शिवराज सिंह चौहान ने अपने चुनावी भाषणों में प्रदेश की आधी आबादी के लिए योजनाओं का प्रचार कुछ इस अंदाज में किया था मानों महिलाओं के सच्चे हितैषी तो वे ही हैं पर हकीकत माया सिंह की प्रेस कॉन्फे्रंस में सामने आ ही गई। उन्होंने बताया कि 1 लाख 36 हजार लाडली बनी हैं। 51 हजार बाल विवाह रोके गए हैं।
महिला हिंसा में 30 फीसदी की गिरावट और कुपोषण में 9 फीसदी की गिरावट आई है, लेकिन बलात्कार के प्रकरण क्यों नहीं कम हुए। महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए जो कदम उठाए गए थे, वे प्रभावी सिद्ध क्यों नहीं हुए इसका उल्लेख नहीं किया गया। कहा गया था महिलाओं को ड्रायविंग लायसेंस के शुल्क से मुक्ति दी जाएगी पर हुआ कुछ नहीं। हर जिले में वर्किंग वूमेन हॉस्टल की सुविधा भी नहीं मिली।
वित्त मंत्री जयंत मलैया ने प्रदेश की वित्तीय सेहत की जानकारी दी पर ये नहीं बताया कि किसानों को मुआवजा क्यों नहीं बंटा है। जनता पर वैट का भार क्यों लादा जा रहा है। विकास योजनाओं के लिए धन की व्यवस्था कहां से होने वाली है। सरकार का खजाना क्यों खाली है।
सामान्य प्रशासन एवं एनवीडीए मंत्री लालसिंह आर्य ने कहने को तो बहुत कुछ कहा लेकिन उनके विभाग की शिकायतें पहले ही बहुत हैं। उन्होंने बताया कि अब स्वघोषणा पत्र, स्व प्रमाणीकरण यानि शपथ पत्र से मुक्ति मिल चुकी है। ई-ऑफिस सिस्टम लागू करने की तैयारी हो रही है। नर्मदा घाटी में सिंचाई रकबा बढ़ाया गया है। लेकिन सच तो यह है कि प्रशासनिक सुधार आयोग के गठन पर अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है। शासकीय योजनाओं की होम डिलीवरी,दसवी की मार्कशीट के साथ जाति प्रमाण पत्र योजना भी शुरू नहीं हुई है। किंतु उन्होंने यह नहीं बतलाया कि गौशाला के लिए जो अनुदान दिया जा रहा है उसके गौवंश के अवैध परिवहन पर कितनी रोक लगी। पशुपालन मंत्री कुसुम मेहदेले ने नौ आईएएस सहित 30 ब्यूरो केट्स की मौजूदगी में रिपोर्ट कार्ड पढ़ा। वे पूरी तैयारी से आई थीं।
संस्कृति विभाग के रिपोर्ट कार्ड में भी मुख्य रूप से सिंहस्थ को लेकर की जा रही तैयारियों पर प्रकाश डाला गया। सिंहस्थ वर्ष 2016 में आयोजित होना है और प्रदेश सरकार का खजाना खाली है। पहले केंद्र से पैसा नहीं मिलता था तो शिवराज सिंह चौहान दिल्ली में धरना देकर बैठ जाते थे, अब विडम्बना यह है कि वे धरना देकर भी नहीं बैठ सकते क्योंकि उनकी सरकार है। मध्यप्रदेश को 5 हजार करोड़ रुपए की तत्काल जरूरत है। यदि यह पैसा समय पर मिल जाता तो शायद मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड थोड़ा और सुधरा रहता। अब कम से कम उन 5 हजार करोड़ रुपए का बहाना तो बनाया ही जा सकता है। नरेगा का दायरा सिमटने और योजना आयोग के बंद होने का प्रभाव भी तब तक पड़ता रहेगा, जब तक कि कोई प्रभावी विकल्प तैयार न हो।

  • कुमार राजेंद्र
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