02-Jan-2015 06:40 AM
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पंजाब में आतंकवाद के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियां तेज होती दिखाई दे रही हैं। कभी पंजाब की भूमि आरएसएस की पसंदीदा कर्मभूमि हुआ करती थी। लेकिन बाद में कुछ समय के लिए वहां आरएसएस का आंदोलन शिथिल पड़ गया। अब नए सिरे से आरएसएस की सक्रियता ने भाजपा के सहयोगी अकाली दल के कान खड़े कर दिए हैं। संघ का काडर बढऩे से भाजपा को लाभ होगा और अकाली दल को सियासी नुकसान उठाना पड़ेगा हालांकि अकाली दल इस बढ़ा खतरा नहीं मानता।
पंजाब के अस्तित्व में आने के 48 साल बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) राज्य में एक बार फिर सक्रिय हो गया है। टारगेट पर पंजाब के वे गांव हैं, जहां बड़े स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है। अभी पंजाब में संघ की 695 शाखाएं चल रही हैं, पिछले एक साल में 50 शाखाएं बढ़ी हैं और भारी संख्या में लोग भी जुड़ रहे हैं।
तीन दर्जन से ज्यादा संगठन इस हिंदूवादी संगठन की विचारधारा और मंत्र को पंजाब के लोगों के दिलों में उतारने की कोशिश में लगे हैं। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि सर संघ चालक मोहन भागवत पिछले साल 4 बार पंजाब आ चुके हैं।
सक्रिय क्यों ?
लोकसभा चुनाव के बाद अकाली दल और भाजपा के रिश्तों में खटास बढ़ी। 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के अकेले लडऩे की सुगबुगाहट है। केंद्र में भाजपा और मोदी के पक्ष में चल रही हवा को भुनाने के लिए। अकाली सरकार से लोग नाखुश हैं। कांग्रेस का जनाधार गिरा है। ईसाई मिशनरियों द्वारा हिंदुओं का धर्मांतरण रोकना भी मुख्य उद्देश्य है।
संघ के 4 लक्ष्य
हर गांव में एक शाखा, एक गांव और दस यूथ हों, सीमावर्ती गांवों पर विशेष ध्यान, दलित बहुल गांवों पर फोकस
स्ट्रैटजी
विशेष टीम तैयार की गई है। इसमें युवा स्वयंसेवक हैं। गांवों, इलाके के प्रभावशाली लोगों को शामिल कर रहे हैं। बीजेपी के गांव से संबंधित नेताओं की विशेष ड्यूटी लगी है। आरएसएस प्रचारकों और विस्तारकों को विशेष तौर पर गांवों में रात में रहने को कहा गया है। प्रचारकों को ये भी कहा गया कि वे रात का खाना गांवों में ही करें। आरएसएस को ऐसे सिख बुद्धिजीवियों की तलाश है जो उनके सेमीनारों या सभाओं में प्रचार करें। आरएसएस के सेवा कार्यों में सक्रिय संगठन सेवा भारती को ये कहा गया है कि गांवों में भी अपना काम तेज करें। प्रांत प्रचारक ने नवंबर में पटियाला में कुछ सिख लेखकों व डॉक्टरों के साथ बैठक की थी। इन्हें जोडऩे का प्रयास किया था।
संघ के ये भी संगठन सक्रिय
भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, राष्ट्रीय सिख संगत, विहिप, बजरंग दल, एबीवीपी, संस्कार भारती, विद्या भारती, धर्म जागरण मंच, पंचनद शोध संस्थान, दुर्गा वाहिनी, सरहदी लोक कल्याण समिति आदि के नाम प्रमुख हैं।
फायदे में बीजेपी
बीजेपी के पास भी इस समय सिख नेतृत्व नहीं है। कोई ऐसा सिख नेता नहीं है जो लीडरशिप दे सके। अगर आरएसएस का प्रभाव गांवों में बढ़ता है तो उसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा। बीजेपी के देहाती प्रधानों को कहा गया है कि वे गांवों में शाखाएं लगाएं। गांवों में लगाई जा रही शाखाओं पर पहली बार सीएम प्रकाश सिंह बादल ने कहा, हर किसी को अपने प्रचार-प्रसार का अधिकार है। कभी किसी की लकीर को मिटाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अपनी लकीर को बड़ा करो।
48 साल बाद क्यों
हरियाणा और पंजाब जब एक थे तो हिन्दू बहुल होने के कारण संघ की जबर्दस्त पैठ थी। नवंबर 1966 को हरियाणा से अलग हो कर पंजाब बनने और सिख बहुल के कारण संघ की पैठ कम हो गई।
संघ की 4 दिक्कतें
आरएसएस का सिखों में आधार कम है। आरएसएस के पास सिख प्रचारकों की कमी है। कोई ऐसा सिख चेहरा आरएसएस के पास नहीं, जिसने सिखों की समस्या उठाई। राष्ट्रीय सिख संगत जो आरएसएस का विंग है। वह पंजाब में प्रभावहीन है।