29-Dec-2014 02:50 PM
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दिल्ली में भाजपा ने कभी चाय पिलाई थी अब केजरीवाल 20 हजार में कॉफी पिला रहे हैं। भाजपा की चाय मुफ्त थी केजरीवाल चंदा उगा रहे है। पिछले एक साल से जब केजरीवाल की नादानी के कारण दिल्ली में सरकार गिर गई थी, दिल्ली सरकारहीन है। केजरीवाल ने भरसक कोशिश की कि वे फिर से मुख्यमंत्री बन जाएं, लेकिन उनकी यह कोशिश रंग नहीं लाई। उधर कोर्ट ने भी दिल्ली में जल्द से जल्द सरकार बनाने का सुझाव दिया है। आखिर कब तक दिल्ली सरकार विहीन रहेगी?
चुनाव आयोग की मानें तो दिल्ली मेंं जनवरी-फरवरी में चुनाव हो सकते हैं। दरअसल आयोग चाहता है कि दिल्ली की चुनाव प्रक्रिया ऐसे समय में संपन्न हो जब मौसम अनुकूल रहे। लेकिन राजनीतिक दलों को इससे कोई सरोकार नहीं है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने पूरी ताकत झौंक दी है। कांग्रेस भी सक्रिय है। शीला दीक्षित चुनाव भले न लड़ें लेकिन वे दिल्ली की राजनीति में सक्रिय रहेंगी। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जो टीम बनाई है उसमें सज्जन कुमार, अजय माकण, जेपी अग्रवाल, जगदीश टाइटलर, महावल मिश्रा, जय किशन, अरविंदर सिंह लवली और हारून यूसुफ शामिल हैं। इस टीम में टाइटलर और सज्जन कुमार के होने से थोड़ा विवाद हो सकता है लेकिन कांग्रेस की लड़ाई नंबर-2 के लिए है, जिस पर से आम आदमी पार्टी ने उसे अपदस्थ कर दिया है।
कांग्रेस के विरोध में दिल्ली में चल रहा माहौल अभी भी वैसा ही है, यही असली चिंता का विषय है। जहां तक भाजपा का प्रश्न है, भाजपा के लिए बहुमत का आंकड़ा अभी भी उतना आसान नहीं है। ओपिनियन पोल भले ही भाजपा की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हों, लेकिन भाजपा के भीतर के हालात उतने माकूल नहीं हैं। सबसे बड़ा संकट नेतृत्व का है। पीयुष गोयल नरेंद्र मोदी को नापसंद हैं और हर्षवर्धन राज्य की राजनीति में वापस लौटने के इच्छुक नहीं हैं। स्मृति ईरानी का नाम भी चर्चा में है लेकिन स्मृति ईरानी की दुविधा यह है कि पिछली बार वे गोयल के कारण ही चुनाव हारी थीं, इसलिए फिर से गोयल से सीधी लड़ाई मोल लेना नहीं चाहतीं। उधर लालकृष्ण आडवाणी की सुपुत्री प्रतिभा आडवाणी और राष्ट्रपति प्रणम मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी भी दिल्ली चुनाव के समय राजनीति मेंं सक्रिय हो सकती हैं। यदि ये दोनों सक्रिय होती हैं, तो मुकाबला रोचक हो जाएगा। साध्वी निरंजन ज्योति ने अपनी नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से दिल्ली में हिंदुत्व का माहौल पैदा करने की कोशिश की है लेकिन इसका कोई असर होता दिखाई नहीं दे रहा। हिंदुत्व दिल्ली में नहीं चलेगा यह भाजपा अच्छी तरह जानती है, इसलिए साध्वी निरंजन ज्योति को दिल्ली मेंं अब ज्यादा सक्रिय नहीं किया जाएगा। हालांकि दिल्ली के सातों सांसद और नेता दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। क्योंकि दिल्ली भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। भाजपा के दिल्ली प्रदेश मंत्री रामकृष्ण गुजराती ने मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में साध्वी निरंजन ज्योति की सभा पर रोक लगाने के फैसले की कड़ी आलोचना की, लेकिन दिल्ली पुलिस ने इन आलोचना की परवाह किए बगैर निरंजन ज्योति को सभा नहीं करने दी।
जहां तक आम आदमी पार्टी का प्रश्न है, उसकी पकड़ मजबूत बनी हुई है और वह भाजपा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। केजरीवाल का प्रभाव दिल्ली में पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। वे दिल्ली में भाजपा के लिए अच्छी-खासी पेरशानी पैदा करने की कूवत रखते हैं। पहले आम आदमी पार्टी और कांगेे्रस के साथ आने की अटकलें थीं, लेकिन कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने पार्टी छोडऩे की धमकी देते हुए बगावत का ऐलान कर दिया, इसलिए गठबंधन की संभावना खत्म हो गई। अब त्रिकोणीय मुकाबला दिलचस्प और रोमांचक होगा। भाजपा स्थायित्व के नाम पर सरकार बना सकती है। आम आदमी पार्टी को जनता ने मौका दिया था लेकिन उसने मौका गंवा दिया, बस यही उसका सबसे बड़ा माइनस पाइंट है। लोकसभा चुनाव की पराजय के बाद पार्टी का संगठन भी कमजोर पड़ा है। बिन्नी जैसे कुछ नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं। पार्टी में सैद्धांतिक मतभेद भी उभर रहे हैं। इस सबका फायदा भाजपा को मिल सकता है, क्योंकि भाजपा फिलहाल ज्यादा संगठित और ताकतवर दिखाई दे रही है।