17-Dec-2014 03:02 PM
1234962
जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किन्तु भारतीय काल गणना के प्रमुख स्तंभ विमी सम्वत का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिध्दांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है।
सन संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं। इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं। देश के बड़े से बड़े राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुध्द रूप से विमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है न कि अंग्रेजी कलेण्डर पर।
भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुड़े हुए हैं। यह वह दिन है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है। यह सामान्यत: अंग्रेजी कलेण्डर के मार्च या अप्रैल माह में पड़ता है। इसके अलावा जापान फ्रांस, थाईलैण्ड, इत्यादि अनेक देशों के नव वर्ष भी इसी दौरान पड़ते हैं। इनके अलावा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। भगवान श्री राम, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य व धर्म राज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। आर्य समाज स्थापना दिवस, सिख परंपरा के द्वितीय गुरू अंगददेव, संत झूलेलाल व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा. केशव राव बलीराम हैडगेवार का जन्म भी वर्ष प्रतिपदा के दिन ही हुआ था।
यदि हम इस दिन के प्राकृतिक महत्व की बात करें तो वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष-प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसर इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये शुभ मुहूर्त होता है। क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके? मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का ही नतीजा है कि आज हमने न सिर्फ अंग्रेजी बोलने में हिन्दी से ज्यादा गर्व महसूस किया, बल्कि अपने प्यारे भारत का नाम संविधान में इंडिया दैट इज भारत तक रख दिया। इसके पीछे यही धारणा थी कि भारत को भूल कर इंडिया को याद रखो क्योंकि यदि भारत को याद रखोगे तो भरत याद आएंगे, शकुन्तला व दुष्यन्त याद आएंगे, हस्तिनापुर व उसकी प्राचीन सभ्यता और परम्परा याद आएगी। राष्ट्रीय चेतना के ऋषि स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा। गुलाम बनाए रखने वाले परकीयों की दिनांकों पर आश्रित रहने वाला अपना आत्म गौरव खो बैठता है।
इसी प्रकार महात्मा गांधी ने 1944 की हरिजन पत्रिका में लिखा था- स्वराज्य का अर्थ है- स्व-संस्कृति, स्वधर्म एवं स्व-परम्पराओं का हृदय से निर्वाह करना। पराया धन और पराई परम्परा को अपनाने वाला व्यक्ति न ईमानदार होता है न आस्थावान। आवश्यक है कि हम अपने नव वर्ष का उल्लास के साथ स्वागत करें न कि अर्ध रात्रि तक मद्यपान कर हंगामा करते हुए, नाइट क्लबों में अपना जीवन गुजारें। यदि इस तरह का जीवन जीते हुए हम लोग उन्मत्त होकर अपने ही स्वास्थ्य, धन-बल और आयु का विनाश करते हुए नव वर्ष के स्वागत का उपक्रम करेंगे, तो यह न केवल स्वयं के लिए बल्कि, अपनी भावी पीढ़ी के लिए भी घातक होगा। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण कर दिया जाता है। घर को पताका और तोरण से सजाया जाता है। कहा गया है कि जो लोग उदीप्यमान सूर्य को अर्घ देते हुए प्रार्थना करते हैं, जो सूर्योदय की पावन वेला में अग्नि में आहूति देकर यज्ञ करते हैं अर्थात जो सूर्य की उपासना करके पुरूषार्थ का आरंभ करते हैं, वे जीवन में समृद्धि के उपभोक्ता होते हैं। सूर्य आराधना, पितृ आराधना और देव आराधना के बाद अपने माता-पिता, संतों, आचार्यो व बड़ों को प्रणाम करना चाहिए। इसके उपरान्त ब्राह्मण, कन्या, गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन कराए जाने की परिपाटी भी है। फिर सभी एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं, एक दूसरे को तिलक लगाते हैं।
