मुलायम का कठोर मोर्चा
17-Dec-2014 05:26 AM 1234795

इस खबर के शीर्षक मेें कठोर की जगह मजबूत शब्द का भी प्रयोग किया जा सकता था, लेकिन 24 वर्ष बाद फिर से एक होने वाला जनता परिवार फिलहाल तो एक ऐसी सच्चाई है जिसे कठोर ही कहा जा सकता है। यह मजबूत है या नहीं इसका पता तो दो-तीन वर्ष बाद ही चल सकेगा, लेकिन एक कोशिश तो हुई है। भले ही सोशल मीडिया पर यह कहकर हंसी उड़ाई जा रही हो कि मोदी तोडऩे वाले नहीं जोडऩे वाले नेता हैं उनके डर से जनता परिवार फिर से जुड़ गया - जनता परिवार के इन वयोवृद्ध नेताओं का उम्र के इस मोड़ पर एक साथ आना राजनीतिक असुरक्षा की परिणिति भी है।

कहने को इस नए दल को भले ही वृद्धाश्रम कहा जा रहा है लेकिन इसमें जातीय राजनीति को पुर्नजीवित करने की ताकत है। बाकी राज्यों को छोड़ भी देें, तो भी बिहार और उत्तरप्रदेश में समाजवादी जनता दल नामक यह नया मोर्चा भाजपा को परेशानी में डालने में सक्षम है और यदि हाथी, घोड़ा, पालकी जय कन्हैया लाल की का घोष करते हुए कांगे्रस को किसी छोटे बच्चे की तरह लॉलीपॉप देकर इस गठबंधन ने अपनी तरफ शामिल कर लिया तो ताकत का संतुलन कुछ अलग ही होगा।
बिहार के उपचुनाव में इस पिक्चर का एक टेलर देखा जा चुका है। अब बड़े स्तर पर यह तस्वीर कैसे उभरती है इसका आभास तो बिहार के चुनावी परिणामों से ही हो पाएगा। बिहार के बाद यूपी के चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं हैं। यह दोनों राज्य समाजवादी जनता दल का भविष्य तय करेंगे। दिक्कत यह है कि इस दल में वे नेता ही हैं जो अलग चलने में माहिर हैं। उनकी संतानों में भी कमोवेश यही अनुवांशिक विशेषता हस्तांतरित हुई है। मोदी नामक जिस प्रचंड आंधी को रोकने की कोशिश यह लोग कर रहे हैं, उसे रोक पाना तभी संभव है जब यह कथित दिग्गज नेता अपने स्वाभाव में गुणात्मक परिवर्तन लाने की कोशिश करें। यदि समाजवादी जनता दल का प्रयोग सफल होता है तो भारतीय राजनीति में भाजपा के समक्ष कांग्रेस के समान ही एक बड़ी राजनीतिक ताकत उभरकर सामने आ सकती है। भले ही इस दल की बुनियाद में ले-देकर वंशानुगत राजनीति ही फलती-फूलती दिखाई देती है, लेकिन इस दल के पास युवा नेतृत्व की भी कमी नहीं है। लालू-मुलायम के वंश वृक्ष पर तो बड़ी तादात में फल लटक ही रहे हैं। अन्य नेता भी वंशवाद की इस परंपरा में अपना योगदान देने में सक्षम हैं।
देवगौड़ा ने अपनी अगली पीढ़ी को आगे बढ़ा दिया है, चौटाला के दोनों सुपुत्र राजनीति में हैं हीं। इसलिए जो मतदाता वंशानुगत राजनीति को बुरा नहीं मानता वह इनसे अवश्य जुड़ेगा। कांग्रेस के वोट बैंक मेंं भी यह गठबंधन सेंधमारी कर सकता है क्योंकि इसे कथित रूप से धर्म निरपेक्षता का सर्टिफिकेट भी मिला हुआ है।

मुलायम सिंह यादव इस गठबंधन के नेता के रूप में सामने आए हैं। हालांकि राजनीति में उम्र मायने नहीं रखती किंतु फिर भी आगामी आम चुनाव के समय मुलायम जब 80 के करीब पहुंचने वाले होंगे उस समय देश में राजनीतिक हालात कैसे रहेंगे कहा नहीं जा सकता, लेकिन थोड़ा भी फर्क पड़ा तो मुलायम प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा को साकार अवश्य करना चाहेंगे। राजनीतिक रूप से घायल हो चुकी कांग्रेस हर हाल में केंंद्रीय सत्ता में बदलाव चाहती है। इसीलिए इस गठबंधन की तरफ सभी की निगाहें हैं।
राजद और जनता दल यूनाइटेड बिहार में ताकतवर हैं। उपचुनाव में दोनों ने मिलकर बाजी मार ली है। उत्तरप्रदेश में मुलायम उपचुनाव भले ही जीत गए थे लेकिन लोकसभा में उनकी स्थिति दयनीय हो गई, उप्र में समाजवादी जनता पार्टी का गठन चंद्र शेखर ने किया था जिसका नामोनिशान मिट चुका है। इस पार्टी के कमल मोरारका बुढ़ापे में घर वापसी को आतुर हैं। हरियाणा में चौटाला परिवार सिमट चुका है। दुष्यंत चौटाला को नए गठबंधन से उम्मीद है। कर्नाटक में जनता दल सेक्यूलर मोहल्ला स्तरीय राजनीति की पारंगत है। जब देवगौड़ा परिस्थितिवश प्रधानमंत्री बन गए थे तब भी वे राजनीति पार्षद के लेवल की ही करते थे। अभी भी कुछ खास नहीं बदला है, उनके दोनों सुपुत्रों ने भ्रष्टाचार मेें नए कीर्तिमान बनाए हैं। देवगौड़ा के आने से समाजवादी जनता दल को दक्षिण में एक आधार मिलेगा, लेकिन पूर्वाेत्तर और पश्चिम सहित तमाम क्षेत्रों में इस दल की राजनीति शून्य ही है।
नीतिश कुमार को भरोसा है कि दल का आकार बढ़ेगा। जहां तक राजनीतिक ताकत का प्रश्न है, इस नए दल के पास बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्यों की सत्ता फिलहाल है। लोकसभा में इस नए दल के पास 15 तथा राज्यसभा में 25 सीटेंं होंगी। लेकिन बाकी संख्या बढऩे की संभावना नहीं है। माया, वाममोर्चा, ममता और कई अन्य साथी एक मंच पर नहीं आना चाहते, उनमें भयानक मतभेद हैं। मायावती परोक्ष रूप से भाजपा के साथ जा रही हैं, जय ललिता खुलकर सामने आ चुकी हैं, ममता को वामदल पसंद नहीं करते, इसीलिए अभी एक बड़ा मुकाम इन दलों को तय करना होगा। लेकिन यह अवश्य हो सकता है कि कोई बड़ा दल बन जाए और फिर बाकी अन्य दल उसे बाहर से समर्थन दें या उसके साथ तालमेल करते हुए सरकार बनवा दें।
यूपी में मुलायम सुलह को राजी थे पर माया ने कहा था कि जनता परिवार की विचारधारा बसपा से नहीं मिलती।  प. बंगाल में ममता भाजपा विरोधी मोर्चे के लिए तैयार हैं पर वाम मोर्चा तृणमूल के पक्ष में नहीं है। इनेलोद इस नए गुट मेंं है तो रालोद साथ नहीं आएगा। दोनों दलों में लंबे समय से मतभेद हैं। बीजद भी ओडिशा में अच्छी स्थिति में है और सत्ता में है। उसके भी साथ आने की संभावना कम है।

1990 में टूटा था जनता परिवार

गौरतलब है कि 1990 में सत्ताधारी जनता पार्टी में टूट हुई थी और पांच क्षेत्रीय पार्टियों का जन्म हुआ था। यही पार्टियां अब एक हुई हैं। इनमें मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, लालू प्रसाद की आरजेडी, ओम प्रकाश चौटाला की आईएनएलडी, नीतीश कुमार की जेडी-यू और एचडी देवगौड़ा की जेडी-एस है। इन पार्टियों के नेता नई दिल्ली में मुलायम सिंह के घर पर मिले और विलय के प्रस्ताव पर मुहर लगाई। हाल ही में बिहार में विधानसभा उपचुनावों के दौरान जेडीयू और आरजेडी ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और उन्हें सफलता मिली थी। इस कदम से चौधरी अजित सिंह की पार्टी आरएलडी और नवीन पटनायक के बीजू जनता दल ने दूरी बना रखी है। जाट राजनीति नेतृत्व को लेकर अजित सिंह और चौटाला परिवार में लंबे समय से तनाव है और दोनों पार्टियों में जाटों को अपनी ओर करने की खींचतान चलती रहती है। दूसरी पार्टी है बीजेडी, यह ओडिशा में लंबे समय से सत्ता में है। ऐसे में यह भाजपा से खतरा महसूस नहीं कर रही है। 
आपातकाल के वक्त 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ था। लेकिन जनता परिवार के टूटने-जुडऩे की कहानी बाद में शुरू हुई। 1988 में वीपी सिंह की अगुवाई में जनता दल का गठन हुआ। तब इसमें जनता पार्टी, लोकदल, कांग्रेस एस और जनमोर्चा का विलय हुआ। आश्चर्यजनक परिणाम आया।  कांग्रेस 1989 में सत्ता से बेदखल हो गई। उस वक्त राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार बनी। अगुआई जनता दल ने की। दो साल बाद ही महत्वपूर्ण नेता चंद्रशेखर अलग हुए। 1990 में कांग्रेस की मदद से प्रधानमंत्री बन गए। समाजवादी जनता पार्टी (आर) के नाम से उन्होंने अपनी पार्टी बनाई। सरकार चार महीने ही चल पाई। टूट के बाद मुलायम सिंह यादव मजबूती से उभरे। उन्होंने सपा बना ली। उधर, बिहार में लालू प्रसाद ने राजद का गठन किया। इससे पहले जार्ज फर्नांडीस और नीतीश कुमार ने 1994 में पहले जनता दल (जॉर्ज) और फिर समता पार्टी बनाई। इसी के साथ बिहार में रामविलास पासवान, कर्नाटक में एचडी देवेगौड़ा और ओडिशा में बीजू पटनायक अलग होते चले गए। नीतीश ने आखिर में जनता दल यूनाइटेड का गठन किया। उधर, रामविलास पासवान ने लोजपा बनाकर राजद से दोस्ती कर ली थी जो टूट गई। लोजपा एक बार अटलजी के साथ थी। अब मोदी के साथ है। वहीं, भाजपा से अलग होकर अब जदयू कांग्रेस और राजद के साथ है। माना जा रहा है कि जब तक भाजपा का प्रभाव बढ़ता रहेगा, तब तक इन दलों की एकता को खतरा नहीं है। नई बात यह है कि पहली बार एकजुटता भाजपा विरोध के नाम पर हो रही है। इससे पहले कांग्रेस विरोध ही एकता का आधार था। लेकिन कोई न कोई सदस्य कांग्रेस से जुड़ा रहा।

  • राजेश बोरकर

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