05-Dec-2014 03:09 PM
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ज्यादा दिन नहीं बीते जब तीसरे मोर्चे के प्रयासों को प्रोत्साहन देते हुए ममता बनर्जी ने कहा था कि वे किसी भी गैर भाजपाई, गैर कांगे्रसी धर्म निरपेक्ष गठबंधन को समर्थन देने के लिए तैयार हैं, भले ही उसमें वामदल शामिल हों। किंतु ममता की इस पहल को वामदलों ने तत्काल ठुकरा दिया। वामदलों को मालूम है कि यदि वे ममता के साथ आते हैं तो बंगाल में उनका बचा-खुचा वजूद भी खत्म हो जाएगा। उधर भाजपा बंगाल में ममता बनर्जी के समक्ष वामदलों के समान एक बड़ी चुनौती बनने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही हैं।
अमित शाह की रैली और उसके बाद प्रधानमंत्री की रैली में ममता बनर्जी के प्रशासन ने अड़ंगा डालने की कोशिश की। किंतु ममता शायद यह भूल रही हैं कि इस तरह रैलियों को बाधित करके अंतत: वे अपनी ही लोकप्रियता को नष्ट कर रही हैं। इससे कहीं न कहीं सहानुभूति का लाभ भाजपा को मिल सकता है। हालांकि भाजपा बंगाल में अभी उतनी ताकतवर नहीं है, लेकिन ममता के कार्यकलापों को देखकर साफ कहा जा सकता है कि ममता बंगाल में सबसे बड़ी चुनौती अब भाजपा को मान रही हैं, उन्हें भय है कि केंद्र में सत्तासीन नरेंद्र मोदी की राजनीतिक छवि और लोकप्रियता युवाओं को आकर्षित कर सकती है, जिसके चलते क्षेत्रवाद, जातिवाद, अगड़ा-पिछड़ा जैसे मुद्दे हाशिए पर जा सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए राजनीतिक जमीन तलाशना कठिन हो जाएगी। यदि इस देश की तरुणाई इन संकीर्ण विचारों से ऊपर उठने में कामयाब रही तो बंगाल ही नहीं देश की राजनीति भी बदल सकती है।
ममता बनर्जी इस खतरे को भांप रही हैं, इसीलिए उन्होंने जब सारदा चिटफंड घोटाले में स्वयं की गर्दन को फंसते देखा तो भाजपा के ऊपर आरोप मढ़ दिया। ममता की इस तिलमिलाहट ने साफ कर दिया है कि वे भाजपा से भयभीत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम करने की शैली थोड़ी अलग है। वे समझौतावादी नहीं हैं और मनमोहन सिंह की तरह अपने विरोधियों के प्रति उतने उदार भी नहीं हैं, यदि तल्खियां बढ़ीं तो खामियाजा ममता बनर्जी को ही भुगतना होगा। निलंबित सांसद कुणाल घोष ने आरोप लगाया था कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सारदा घोटाले की सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक हैं। कुणाल ने तो यह तक कहा कि ममता बनर्जी कायर हैं। नवंबर 2013 में जब कुणाल घोष को गिरफ्तार किया गया था, उसके बाद पहली बार उन्होंने इतना सख्त रुख अपनाया है।
ममता बनर्जी कुणाल घोष के इस आरोप और तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद शृंजॉय बोस की गिरफ्तारी से तिलमिला गई हैं और उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ बदला लेने का आरोप लगाते हुए केंद्र को राष्ट्रपति शासन लगाने और उन्हें गिरफ्तार करने की चेतावनी भी दे डाली। इस मजबूरी में ममता का कांगे्रस के निकट आना अस्वाभाविक नहीं है।
जवाहरलाल नेहरू की 125वीं जयंती के मौके पर ममता बनर्जी दिल्ली में कांग्रेस के बुलावे में न केवल गईं बल्कि कांग्रेसियों से कुछ इस अंदाज में मिलीं मानो सुबह का भूला शाम को घर आ गया हो। अब ममता बनर्जी कह रही हैं कि धर्मनिरपेक्षता के लिए वे बार-बार ऐसे कार्यक्रम में शामिल होंगी। ममता की इस हमलावर शैली का फायदा पिछले चुनाव में बहुत हुआ, लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं। यदि वे सारदा चिटफंड घोटाले की छाया से बाहर नहीं निकल पाईं तो उन्हें परेशानी होगी।
राज्य सरकार के प्रभावशाली मंत्री और ममता के अत्यन्त करीबी माने जाने वाले मदन मित्रा को सीबीआई का समन जा चुका है। समन के सदमा खाकर मदन मित्र अस्पताल में हैं। ममता के सबसे करीबी सिपहसालार और केंद्र में रेल मंत्री रह चुके मुकुल राय को हालांकि सीबीआई से अभी समन नहीं आया है, लेकिन विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सारदा चिटफंड के मालिक सुदीप्त सेन के साथ उनके करीबी रिश्ते उन्हें भी देर-सबेर सीबीआई के दरवाजे तक ले जाएंगे। शारदा काण्ड में गिरफ्तार तृणमूल के राज्यसभा सदस्य कुणाल बोस के सीबीआई को लिखित बयान ममता के तनाव का कारण बनते जा रहे हैं। कुणाल ने सारदा काण्ड में ममता बनर्जी तक को घसीटने का दुस्साहस किया। तृणमूल से सस्पेंड किए जा चुके कुणाल बोस ने पिछले दिनों तृणमूल के शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी न होने के प्रतिवाद में जेल में आत्महत्या की कोशिश भी की थी।
भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 2016 में 294 सीटों के लिए होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव के लिए मिशन 150 घोषित कर दिया है। चाटुकार सिपहसालारों से घिरी ममता बनर्जी के लिए अगले कुछ दिन काफी चुनौती भरे हैं। शारदा चिटफण्ड काण्ड में यदि कुछ और गिरफ्तारियां होती हैं तो ममता पर इस्तीफे का दबाव बढ़ेगा और यदि उनके सामने ऐसी विकट स्थिति उत्पन्न होती है तो मुमकिन है ममता अपने राजनैतिक गुरु और राज्य मंत्रिमंडल में वरिष्ठ सहयोगी सुब्रत मुखर्जी को बड़े फलक की जिम्मेदारी सौंपे।
- कोलकाता से इंद्र कुमार बिन्नानी
