रौशनी बारूद से होती नहीं है दोस्तोंआसमां के चाँद पे रोटी नहीं है दोस्तों।इस ज़मीं पे धूल भी अपनी नहीं है दोस्तों।जब से देखे चाँद सूरज तिफ़्ल की आँखों में फिरतीरगी अब चैन से सोती नहीं है दोस्तों।राम का बनवास हिजऱत है मुहम्मद की फ़क़तत्याग के बिन रौशनी मिलती नहीं है दोस्तों।हो गयी नंगी हक़ीक़त अब अमीरी की यहाँदेह पर तहज़ीब की धोती नहीं है दोस्तों।छीन लेती है न जाने कितनी आँखों के चिराग़रौशनी बारूद से होती नहीं है दोस्तों।