नयी शुरूआत
05-Dec-2014 09:43 AM 1234848

चरित्र नाभि के नीचे नहीं होती, शेखर ने चिल्ला-चिल्ला कर अपने घरवालों को सुनाया। क्या हुआ अगर रूपाली का बलात्कार हुआ था, बलात्कार हो जाने से रूपाली का चरित्र गिर गया, बड़ी बेतुकी सोच है यह, शेखर ने अपने माता-पिता को कह रहा था। मैं रूपाली से ही ब्याह करूंगा, शेखर ने अपना फैसला सुनाया। शेखर के माता-पिता रूपाली से अपने पुत्र के ब्याह के बिल्कुल विरूद्ध थे। शेखर के पिता राजेश्वर बाबू का कहना था कि क्या इज्जतदार लड़कियों का अकाल पड़ गया है कि शेखर एक बलात्कार की शिकार हुई लड़की को अपनी पत्नी बनाना चाहता है। इज्जत से समाज में रहने नहीं देगा यह बबला शेखर, राजेश्वर बाबू क्रोधित होते हुए अपने पत्नी से कह रहे थे। शेखर की माँ हेमलता गर्ग यद्यपि समाज सुधारक के रूप में समाज में जानी-पहचानी जाती थी परंतु जब अपने पुत्र के ब्याह की बात चली तो वह भी एक बलात्कार पीडि़ता से अपने पुत्र का रिश्ता नहीं करना चाहती थी। शेखर सुबह ही अपने माता-पिता को अपना आखिरी फैसला सुना कर घर से निकल चुका था। शाम हो रही थी अब तक शेखर घर नहीं लौटा था। शेखर के माता-पिता को अब चिंता हो रही थी। शेखर के पिता से अब नहीं रहा जा रहा था लिहाजा वे रात को घर से निकल पड़े शेखर को ढूंढऩे। नुक्कड़ के पास शेखर का एक मित्र शेखर के पिता को मिला जिसका नाम सोहन था। राजेश्वर बाबू ने सोहन से पूछा कि क्या उसने शेखर को कहीं देखा है? सोहन ने कहा कि शेखर और रूपाली को दिन के साढ़े दस बजे के बस से कहीं जाते उसने देखा था। मैंने पूछा भी था शेखर से कि वह रूपाली के साथ कहां जा रहा है, शेखर ने कहा था कि रूपाली के मौसी के घर आसनसोल छोडऩे जा रहा है। शेखर के पिता को समझने में देर नहीं लगी कि शेखर रूपाली के साथ अब तक कहीं मंदिर में ब्याह कर चुका होगा। राजेश्वर बाबू ने अपने पुत्र को रूपाली द्वारा भगा ले जाने का मामला पुलिस स्टेशन में दर्ज करवा दिया। पुलिस शेखर और रूपाली को ढूंढ़ते हुए दूसरे दिन रूपाली की मौसी के यहां छापामारी किया और दोनों को पकड़ कर थाने ले आयी परंतु शेखर और रूपाली दोनों बालिग थे तथा दोनों ने अपनी मर्जी से एक-दूसरे से ब्याह किया था।
पुलिस क्या करती उन पर कोई मामला नहीं बनता था इसलिए दोनों को पुलिस ने छोड़ दिया। शेखर और रूपाली थाने से बाहर आकर सामने खड़े अपने माता-पिता से आशीर्वाद लेना चाहा परंतु शेखर के माता-पिता ने अपने पांव पीछे खींच लिए। शेखर के हाथ में रूपाली का हाथ था, दोनों निर्भीक अपनी जिंदगी की शुरूआत करने के लिए निकल पड़े थे। अब उन्हें कौन रोक सकता था? रूपाली अपने जीवन की नयी शुरूआत से खुश थी, ब्याह लड़की के लिए उसके जीवन की नयी शुरूआत ही तो होती है। शेखर जैसा पति आज भी समाज में ढूंढऩे से नहीं मिलता परंतु उसे एक सच्चा पति शेखर के रूप में मिल चुका था।
नीरा सिन्हा

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