ुख
05-Dec-2014 09:47 AM 1234837

जहां मैं गूंजता हूं
दीवारें हैं..
खामोशी हैं...
सन्नाटा है....
...और कुछ साए
एक समन्दर-सा है, वक़्त का
मैं तैरता हूं
घर है मेरा
जहां मैं गूंजता हूं
मेरी ही आंखें
दीवारों पर उभर आती हैं
घूरती हैं
मेरा ही अक्स
हर कहीं उभर आता है
मैं गुजऱता हुआ
मैं ठहरा हुआ
दीवारों की चंद गलियों में
मैं डोलता हुआ
घर है मेरा
जहां मैं गूंजता हूं....

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