मप्र में लॉकडाउन के कारण भले ही लोग घरों में कैद हैं, लेकिन माफिया और तस्कर इस लॉकडाउन का जमकर फायदा उठा रहे हैं। खासकर प्रदेश के वनक्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई जोरों पर है। राजधानी भोपाल का वनक्षेत्र हो या प्रदेश के दूरदराज के इलाके का जंगल, माफिया बेखौफ होकर पेड़ों की कटाई कर रहा है। अनूपपुर, खंडवा, बैतूल, बालाघाट सहित दर्जनभर जिलों में पेड़ों की अवैध कटाई के मामले सामने आ चुके हैं। हद तो यह है कि भोपाल के बाघ भ्रमण क्षेत्र में एक बार फिर जंगल माफियाओं का दखल शुरू हो गया है। लॉकडाउन का फायदा उठाकर चंदनपुरा के आगे कलियासोत के जंगलों की कटाई की गई। अब तक यहां 500 से अधिक हरे-भरे पेड़ों को काट दिया गया। जंगल में पेड़ों की कटाई का मामला उजागर न हो इसके लिए दस से बीस पेड़ों को छोड़कर कटाई की गई। मामले की शिकायत भी कलेक्टर, वन विभाग के अधिकारी और निगमायुक्त से की गई है। शिकायतकर्ता राशिद नूर खान ने बताया कि इन क्षेत्रों में पहले भी जंगलों को साफ करने के लिए पेड़ों की कटाई की गई। इसके साथ ही कई बार अज्ञात कारणों से आग भी लगाई गई, जहां पेड़ों की कटाई की गई उनका अधिकतर हिस्सा राजस्व भूमि व वन विभाग का है। इसमें कई पेड़ सागौन, बांस, नीम, आम व इमारती लकड़ियों के हैं। लॉकडाउन के कारण जिम्मेदारों की निगरानी में लापरवाही की गई। इसका फायदा उठाकर जंगल व भू-माफिया सक्रिय हो गए और पांच सौ से अधिक पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई।
जिस क्षेत्र में पेडों की कटाई की गई वह बाघ मूवमेंट एरिया में आता है। वन विभाग के आंकड़ों में यहां 18 बाघों का मूवमेंट है। इसमें चंदनपुरा, मेंडोरा, मेंडोरी, दामखेड़ा, कलियासोत व केरवा समेत अन्य क्षेत्रों के जंगल शामिल हैं। शिकायत में बताया गया है कि जंगलों की कटाई से बाघों के अस्तिव पर खतरा मंडरा रहा है। पहले भी अधिकारियों की अनदेखी से इन क्षेत्रों में प्रतिबंध के बावजूद भी निर्माण कार्य किए गए। मामले पर शिकायतों के बाद भी अमल नहीं किया गया। बाघ भ्रमण क्षेत्र चंदनपुरा में बीते 2 माह पहले रातोंरात 10 एकड़ के जंगल को साफ कर दिया गया था। इस क्षेत्र में करीब 250 से ज्यादा पेड़ों की कटाई की गई थी। वन परिक्षेत्र में वनों की कटाई की गई वह निजी भूमि है। अधिकारियों की मिलीभगत से बिना जांच-पड़ताल के ही भू-स्वामी को पेड़ काटने की अनुमति दी गई थी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने फरवरी में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान शहरी वन परिक्षेत्र में मैपिंग का आदेश दिया था। एनजीटी ने मिनिस्ट्री ऑफ इनवायर्मेंट एंड फॉरेस्ट से शहर के वन परिक्षेत्र की रिपोर्ट मांगी थी। एनजीटी ने वन विभाग को शहर के सभी क्षेत्रों में फॉरेस्ट एरिया को दोबारा चि-ति करने का निर्देश दिया है। जिन स्थानों पर पेड़ों की कटाई की गई उस वन परिक्षेत्र की भी मैपिंग की जानी थी, जो अब तक शुरू नहीं की गई है।
उधर, खंडवा के पश्चिम कालीभीत के दो-तीन बीटों में वन माफिया जमकर सक्रिय है। यह लॉकडाउन का जमकर फायदा उठा रहे हैं। माफिया केवल सागौन की कटाई ही नहीं कर रहे बल्कि बेखौफ मौके पर ही पटिए तैयार कर सप्लाई कर रहे हैं। इधर वन विभाग के अफसर भी लॉकडाउन का बहाना कर जंगल जाने से बच रहे हैं। उनका कहना है लॉकडाउन में नाकेदारों की ड्यूटी चैक पोस्ट पर लगा दी है तो जंगल में कौन देखने जाएगा। यह अवैध कटाई उत्तर कालीभीत के अंबाड़ा व सिराल्या सर्किल में पूर्व अंबाड़ा, उत्तर अंबाड़ा, मुहालखारी, जोशी नाला बीट में जोरों पर चल रही है। पांच दर्जन से अधिक सागौन के पेड़ काट दिए गए हैं। अंबाड़ा सर्किल के बाराकुंंड बीट में सागौन के पेड़ जमीन पर पड़े दिखाई दे रहे हैं तो कहीं पटिए बनाने के अवशेष भी पड़े हैं। नाकेदारों के अलावा वनपाल, वन सुरक्षा समिति सहित अन्य लोगों पर वनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। नाके भी बनने हैं और वनपालों के लिए रहने की व्यवस्था भी है। इसके बावजूद तेजी से जंगल साफ हो रहा है। कई हरे पेड़ आधे काटकर सुखा रहे हैं ताकि कुछ दिन बाद यह खुद ही गिर जाएं। रेंजर तो महीनों जंगल में नहीं झांकते। यही हाल अनूपपुर सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में है। जंगलों में ताबड़तोड़ पेड़ काटे जा रहे हैं लेकिन वन अमला सुस्त पड़ा हुआ है।
200 करोड़ से निजी कंपनी करेगी वनों की सुरक्षा
राज्य में वन विभाग अमले द्वारा किए जा रहे तमाम प्रयासों के बाद भी वनों की पूरी तरह से सुरक्षा नहीं हो पा रही है। इसकी वजह से लगातार वन क्षेत्रफल में कमी आती जा रही है। इसके चलते अब राज्य सरकार वनों पर नजर रखने का काम हैदाराबाद की एक निजी कंपनी को देने की तैयारी कर रही है। यह कंपनी करीब दो सौ करोड़ रुपए में सैटेलाइट इमेजरी के जरिए नजर रखेगी। इसके लिए प्रोजेक्ट तैयार करने की जिम्मेदारी स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट जबलपुर को दी गई है। सरकार की मंशा इसके माध्यम से जंगलों में जारी अवैध कटाई, अतिक्रमण और अवैध उत्खनन पर रोक लगाने की है। इस प्रोजेक्ट के तहत सैटेलाइट से मिलने वाले चित्रों की लगातार समीक्षा कर इनका तुलनात्मक अध्ययन कर जानकारी हासिल की जाएगी। विभाग का मानना है कि लगातार मिलने वाले चित्रों से यह आसानी से पता चल सकेगा कि जंगल के किस हिस्से में हरियाली कम हो रही है। इसी आधार पर विभाग प्रभावी कदम उठाएगा। वन विभाग का सूचना प्रौद्योगिकी विभाग तैयार हो रहे इस प्रोजेक्ट की मॉनीटरिंग कर रहा है। इस प्रोजेक्ट को
तैयार कर रहे स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसएफआरआई) को पहली किश्त के रूप में 50 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके हैं। इसके लिए कुछ राशि क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैपा) से दी जाएगी। माना जा रहा है कि अगले साल से वनों पर नजर रखने का काम शुरू हो सकता है।
- राजेश बोरकर