मप्र में शराब की बिक्री सरकार के राजस्व का सबसे बड़ा माध्यम है। इस वित्तीय वर्ष में सरकार को इससे करीब साढ़े 13 हजार करोड़ रुपए की वार्षिक आय होने की उम्मीद थी और विभिन्न तरह के लाइसेंस शुल्क को भी मिला लिया जाए तो करीब 15 हजार करोड़ रुपए का राजस्व आबकारी से मिलने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन कोरोना महामारी ने सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया है। दरअसल, कोरोना के कारण किए गए लॉकडाउन में शराब की दुकानें 57 दिन बंद रहीं। उसके बाद उन्हें खोलने का निर्देश दिया गया तो शराब ठेकेदार तैयार नहीं हो रहे हैं। इस कारण सरकार और शराब ठेकेदार आमने-सामने आ गए हैं। उधर, मामला हाईकोर्ट में चला गया है। जहां 2 जून को सुनवाई होनी है।
कोरोना महामारी के चलते सरकार को बीते वित्त वर्ष का अंतिम माह लॉकडाउन के चलते भारी पड़ चुका है और अब भी स्थिति में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है। हालात यह है कि लॉकडाउन में लिकर व्यवसायी अभी भी सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी दुकानें न खोलने की जिद पर अड़े हुए हैं, जिससे सरकार को हर दिन करोड़ों रुपए की आय से हाथ धोना पड़ रहा है। मार्च माह के अंतिम दिनों में अचानक दुकानें बंद होने से अंतिम दिन के स्टॉक के रूप में सरकार को मिलने वाले राजस्व के रूप में करोड़ों की चपत खजाने को पहले ही लग चुकी है। इस बीच प्रदेश में सक्रिय शराब माफिया और तस्करों ने जमकर चंाद काटी तो सरकार को अपनी ही नीतियों की वजह से बड़ा नुकसान उठाना पड़ गया है।
दरअसल इस मौके का फायदा उठाकर अधिकांश ठेकेदारों ने बचा हुआ माल निकाल दिया, जिसकी वजह से उनके पास नाम मात्र का ही स्टॉक रह गया। अब सरकार चाहती है कि शराब दुकानें खुल जाएं, तो ठेकेदार इसके लिए तैयार नहीं हैं। ठेकेदारों का कहना है कि उन्होंने जब ठेके लिए थे, तब निविदा की शर्तें कुछ और थीं। लेकिन 23 मार्च के बाद से परिस्थितियां बदल गईं हैं। लॉकडाउन के चलते 57 दिन दुकानें बंद रहीं। अब इन्हें खोलने की अनुमति भी दी गई है, तो कठोर शर्तों के साथ। फिर भी राज्य सरकार ने ठेकों की निर्धारित राशि (बिड) कम करने के लिए कोई पहल नहीं की है।
गौरतलब है कि सरकार हर साल आबकारी नीति में 15 प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी बढ़ा देती है। इससे सरकार को दी जाने वाली राशि भी बढ़ जाती है। ऐसे में शराब का ठेका महंगा पड़ जाता है। इस बार ऐसा करने से ठेकेदारों को महंगी दरों पर शराब दुकानों का ठेका मिला है। फिर भी उन्होंने ठेका लिया है। जिस समय ठेका हुआ है उस समय कोरोना का संक्रमण नहीं था और न ही लॉकडाउन की संभावना थी। लेकिन लॉकडाउन होने के कारण विदेशी शराब दुकानों के अहाते बंद हैं, बार-होटल बंद हैं, लोगों का मूवमेंट बंद है, पर्यटन बंद है। ऐसे में शराब की मांग खत्म हो गई है। यही नहीं ठेके में शराब की दुकान खोलने का समय सुबह 9:30 बजे से रात 11 बजे तक था, लेकिन अब सुबह 7 से शाम 7 कर दिया गया है। ऐसे में शराब का कारोबार कम हो गया है। इससे शराब कारोबारी शराब दुकानें खोलने से कतरा रहे हैं।
प्रदेश में इस बार 3,605 (1 हजार 61 विदेशी और 2 हजार 544 देसी) शराब दुकानों के लिए 25 प्रतिशत अधिक दर पर ठेके हुए हैं। ठेकेदारों ने आकर्षक आबकारी नीति के तहत ठेके लिए थे, लेकिन नया वित्तीय वर्ष शुरू होते ही कोरोना महामारी ने ऐसी दस्तक दी कि लॉकडाउन हो गया और शराब दुकानें करीब डेढ़ माह खुल ही नहीं पाईं। जबकि ठेकेदारों के मुताबिक यही वह सीजन होता है, जब शराब की सर्वाधिक खपत होती है। अब शराब दुकानें खोलने का मामला हाईकोर्ट में चला गया है। उधर, सरकार की कोशिश है कि शराब कारोबारी कैसे भी करके दुकानें खोलें। इसके लिए उन पर दबाव बनाया जा रहा है। वहीं एसोसिएशन की मांग है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के आबकारी राजस्व को पुन: निर्धारित किया जाए और इसे वर्ष 2019-20 के राजस्व के समतुल्य किया जाए। वर्ष 2020-21 की ठेका अवधि को संशोधित करके 31 मार्च 2022 तक बढ़ाया जाए। वर्ष 2021-22 के लिए वर्ष 2019-20 में वार्षिक मूल्य में 25 फीसदी की वृद्धि करते हुए वार्षिक मूल्य निर्धारण किया जाए। शासन द्वारा निर्धारित 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी राशि की वसूली वर्ष 2021-22 में की जाए।
बिना एग्रीमेंट और बिना गारंटी चल रहे शराब के ठेके
प्रदेश में ई-टेंडर के माध्यम से भोपाल, इंदौर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल, बालाघाट, सागर, राजगढ़, सतना, रीवा, शहडोल, सिंगरौली, ग्वालियर, शिवपुरी के ई-टेंडर हुए थे। 25 फरवरी को राजपत्र क्रमांक 77 के अनुसार 31 मार्च 2020 के पहले प्रतिभूति राशि जमा करने और अनुबंध करने के निर्देश शासन द्वारा राजपत्र में नियम प्रकाशित कराए थे। कंडिका 20 के अनुसार 18 पोस्ट डेटेड चेक अतिरिक्त प्रतिभूति के रूप में जमा करना अनिवार्य था। इसके बाद भी, बिना चेक जमा कराए तथा बिना बैंक गारंटी के शराब के ठेके अवैधानिक रूप से संचालित हो रहे हैं। मध्यप्रदेश में पहली बार हो रहा है कि शराब के ठेके बिना किसी अनुबंध के चल रहे हैं। 25 फरवरी को राजपत्र में कंडिका 21 के अनुसार 500 रुपए के स्टाम्प पेपर पर लाइसेंस के लिए अनुबंध करना था। जो ठेकेदारों द्वारा नहीं किया गया है। इसी तरह कंडिका 15.11 के अनुसार भागीदारी फर्म होने की दशा में पार्टनरशिप डीड एवं रजिस्ट्रार फर्म एंड सोसायटी के पंजीयन की जानकारी ठेकेदारों को अनिवार्य रूप से अपलोड करनी थी। जो अभी तक नहीं हुए हैं। कोरोना संक्रमण के कारण 25 मार्च से लॉकडाउन शुरू हो जाने से शराब दुकानें बंद थी। नई सरकार आने के बाद नई शराब दुकानें खोलने के आदेश शासन स्तर पर जारी हो रहे हैं। ठेकेदारों ने सरकार के ऊपर दबाव बनाकर न तो चेक जमा किए, न ही बैंक गारंटी जमा की है। सरकार से ठेकेदारों का कोई अनुबंध भी नहीं है। इसके बाद भी मध्य प्रदेश में शराब के ठेके धड़ल्ले से शुरू हो गए हैं।
- विकास दुबे