पटरी पर मेट्रो प्रोजेक्ट
23-Jun-2020 12:00 AM 415

 

भोपाल और इंदौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट एक बार फिर पटरी पर उतरने को तैयार है। लेकिन यह प्रोजेक्ट कब पूर्ण होगा, इस पर अभी भी कुछ नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि इसके साथ शुरू हुआ लखनऊ मेट्रो प्रोजेक्ट लगभग 2 साल पहले ही पूरा हो चुका है। दरअसल, भोपाल और इंदौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट में कोई न कोई बाधा आती रही है। अभी तक यह प्रोजेक्ट बजट के अभाव में लड़खड़ाता रहा है। पिछले तीन माह से मेट्रो रेल का काम कोरोना संक्रमण के कारण रूका हुआ है। अब इस रुके प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने की तैयारी चल रही है।

वहीं दूसरी तरफ बहुप्रतिक्षित प्रोजेक्ट के लिए लोन का रास्ता साफ हो गया है। यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) से 3200 करोड़ रुपए का लोन स्वीकृत हो गया है। लेकिन इस लोन के ब्याज का भुगतान डॉलर के हिसाब से करना पड़ेगा। इससे सरकार पर अतिरिक्त भार पड़ेगा। जानकारी के अनुसार कोरोना संक्रमण के कारण बंद अंतर्राष्ट्रीय फ्लाइट शुरू होने पर अनुबंध पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। भारत सरकार, मप्र सरकार, मेट्रो रेल कंपनी और ईआईबी की ओर से लोन की शेष औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं। मेट्रो रेल कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि ईआईबी 400 मिलियन यूरो (3200 करोड़ रुपए) का लोन देगा। 

ईआईबी ने नवंबर के अंतिम सप्ताह में सैद्धांतिक सहमति दे दी थी। इसके बाद भारत सरकार, मप्र सरकार और मेट्रो रेल कंपनी ने अपनी ओर से औपचारिकताओं को पूरा कर लिया। मेट्रो रेल कंपनी के अफसरों के अनुसार यदि लॉकडाउन नहीं होता तो अब तक अनुबंध पर हस्ताक्षर हो जाते। ईआईबी के इस लोन की ब्याज दर परिवर्तनशील है। दर इस बात पर निर्भर करेगी कि भुगतान के समय यूरोप के बैंक आपस में कर्ज देते समय कितना ब्याज लेते हैं। इसे यूरो बोर कहा जाता है। मौजूदा स्थिति में यह ऋणात्मक है। इस यूरो बोर पर आधा प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज देना होगा और ऋणात्मक को शून्य माना जाएगा। इसके अलावा मेट्रो के निर्माण के दौरान कोई भुगतान नहीं करना है। इसके लिए सभी जरूरी औपचारिकताएं पूरी हो गईं हैं। सभी पक्षों के बीच एक अनुबंध होना है। इसके लिए सबकी उपस्थिति जरूरी है। कोरोना संक्रमण के लॉकडाउन खत्म होने के बाद इंटरनेशनल फ्लाइट्स शुरू होने पर संबंधित अधिकारी यूरोप जाकर अनुबंध पर हस्ताक्षर करेंगे।

पांच साल पहले भोपाल मेट्रो के लिए जापान के इंटरनेशनल को ऑपरेशन एसोसिएशन (जायका) ने लोन पर सैद्धांतिक सहमति दी थी। लेकिन अक्टूबर 2016 में पता चला कि जायका ने लोन देने से इनकार कर दिया। जायका की ब्याज दर केवल 0.3 प्रतिशत थी, लेकिन इसके साथ ही जापानी कंपनियों से 30 फीसदी मटेरियल खरीदने, और 30 फीसदी अतिरिक्त मटेरियल जापान और भारत की, संयुक्त कंपनियों से लेने जैसी शर्तें शामिल थीं। इसके लिए जापान की कंपनियां ट्रेक और ट्रेन में बदलाव चाह रहीं थीं, जिस पर मप्र मेट्रो रेल कंपनी सहमत नहीं हुई थी। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही भोपाल और इंदौर मेट्रो रेल का काम फिर से शुरू हो जाएगा। इसके लिए तैयारियां शुरू की जा रही हैं।

मेट्रो प्रोजेक्ट की मैदानी हकीकत यह है कि केवल 247 करोड़ रुपए का 6.22 किमी के रूट के सिविल वर्क का काम जमीन पर शुरू हुआ था और वह भी तीन माह से बंद है। कोरोना लॉकडाउन के कारण मजदूरों के जाने के बाद कांट्रेक्टर कंपनी को मजदूर नहीं मिल रहे हैं। उधर, दूसरी हकीकत यह है कि शेष रूट के सिविल वर्क या ट्रेक बिछाने या किसी अन्य कार्य के लिए टेंडर भी जारी नहीं हुए। लॉकडाउन के कारण बंद हुआ मेट्रो प्रोजेक्ट का काम तीन महीने बाद शुरू हो गया है। कान्हासैंया में स्थित मेट्रो के स्लैब (वाया डक्ट) निर्माण के कारखाने में काम शुरू हो गया है। यहां अभी 50 मजदूर काम कर रहे हैं, जबकि पहले 200 मजदूर लगे थे। अगले कुछ दिनों में फील्ड में भी मेट्रो का काम शुरू होने की संभावना है। काम बंद होने से मेट्रो का काम कम से कम 6 महीने और पिछड़ गया है। यदि यह काम चालू रहता तो अब तक गर्डर लॉन्चिंग शुरू हो जाती।

एम्स से सुभाष नगर तक 6.22 किमी के जिस हिस्से का काम चल रहा है, उसमें कुल 212 पिलर हैं। इनमें से 52 बनकर तैयार हैं। लगभग इतने ही पिलर की फाउंडेशन का काम चल रहा था, जो अचानक रोक दिया गया। अभी कारखाने में काम शुरू हुआ है, लेकिन इसे पूरी गति पकड़ने में कम से कम एक माह लगेगा। विभागीय स्तर पर तैयारियां शुरू हैं।

योजना के अनुसार ये होगी लागत

अभी तक प्लान के मुताबिक भोपाल मेट्रो की लागत 6941 करोड़ रुपए और इंदौर मेट्रो की लागत 7500 करोड़ रुपए आंकी गई है। इसमें कीमतें बढ़ने, एक्सचेंज रेट में बदलाव, काम में देरी के कारण कोई भी बढ़ोतरी होती है, तो उसे प्रदेश सरकार को वहन करना होगा। यह शर्त मेट्रो के लिए केंद्र, राज्य सरकार और मप्र मेट्रो रेल कंपनी लिमिटेड (एमपीएमआरसीएल) के बीच होने वाले एमओयू में शामिल हैं। एमओयू के अनुसार, मप्र मेट्रो रेल कंपनी लिमिटेड यदि लोन चुकाने में चूकी तो इसका खामियाजा भी प्रदेश सरकार को भुगतना पड़ेगा। मेट्रो के लिए जमीन के अधिग्रहण से लेकर विस्थापितों के पुनर्वास तक का खर्च राज्य सरकार को ही उठाना पड़ेगा। इसमें लोगों को बसाने का काम भी सरकार को करना होगा। अब देखना यह है कि प्रदेश सरकार मेट्रो के काम के लिए एमपीएमआरसीएल को अपने यहां के सभी टैक्स से छूट देगी या उन करों की पूर्ति करेगी।

- रजनीकांत पारे

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