अगर सबकुछ ठीक रहा तो अगले महीन त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का बिगुल बज सकता है। राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव कराने के लिए तैयार है, वहीं उसने कलेक्टरों से परिसीमन की रिपोर्ट मांगी है। संभावना जताई जा रही है कि दिसंबर में पंचायत चुनाव का बिगुल बज सकता हैं। गौरतलब है कि मप्र पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश-2021 जारी होने के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह ने कलेक्टरों के साथ वीडियो कांफ्रेंस करके पुरानी स्थिति के हिसाब से तैयारी करने के निर्देश दिए। साथ ही सभी जिलों से दो दिन में पूर्व की स्थिति और 2019-20 में किए गए परिसीमन का मिलान करके जिन क्षेत्रों की सीमा में परिवर्तन हुआ है, उसकी जानकारी तीन दिन में भेजने के लिए कहा है। बैठक में राज्य निर्वाचन आयुक्त ने सभी अधिकारियों को अध्यादेश के प्रभाव के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अब पुरानी व्यवस्था रहेगी। आरक्षण की व्यवस्था भी पूर्ववत बनी रहेगी। ऐसी ग्राम, जनपद या जिला पंचायत क्षेत्रों पर इस अध्यादेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा, जो संबंधित पंचायत के अंतिम निर्वाचन के बाद किसी नगरीय क्षेत्र में शामिल हो गए हैं। जिला स्तर पर विकासखंड को इकाई मानते हुए जानकारी तैयार करें।
राज्य सरकार ने पंचायत चुनाव की तैयारियों के बीच ऐसी पंचायतों के परिसीमन को निरस्त कर दिया है, जहां बीते एक साल से चुनाव नहीं हुए हैं। इसके लिए सरकार ने मप्र पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश-2021 लागू कर दिया है। इसकी अधिसूचना गत दिनों जारी कर दी गई। इसके साथ ही पंचायत चुनाव की घोषणा जल्द ही किए जाने के आसार हैं। अधिसूचना जारी होने के बाद मप्र राज्य निर्वाचन आयोग ने नए सिरे से पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। आयोग के सूत्रों का कहना है कि 2019 के बाद हुए परिसीमन को मद्देनजर रखते हुए पंचायत चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार कराई गई थी। नई व्यवस्था के हिसाब से अब फिर मतदाता सूची को सुधारना पड़ेगा। इसमें पुरानी व्यवस्था के हिसाब से मतदाताओं के नाम और मतदान केंद्रों का निर्धारण होगा। आयोग को अपने सॉफ्टवेयर में भी दर्ज जानकारियों में संशोधन कराना होगा।
राज्य निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह ने वीडियो कांफे्रंसिंग के जरिए कलेक्टर्स से राज्य शासन द्वारा जारी नए अध्यादेश के संबंध में चर्चा की। सिंह ने कहा कि अध्यादेश के अनुसार पूर्ववर्ती परिसीमन निरस्त हो जाने से ग्राम पंचायत/जनपद पंचायत/ जिला पंचायत क्षेत्र का निर्वाचन उस परिसीमन एवं विभाजन के आधार पर किया जाना है, जो उनकी संबंधित अवधि की समाप्ति के ठीक पहले विद्यमान थे। ग्राम पंचायत/जनपद पंचायत/ जिला पंचायत क्षेत्र उसी वर्ग के लिए आरक्षित बने रहेंगे, जैसे कि वे उनकी संबंधित अवधि की समाप्ति पर थे। यानी आगामी पंचायत चुनाव में वर्ष 2014 के पंचायत चुनाव में लागू आरक्षण व्यवस्था लागू रहेगी। अध्यादेश ऐसी ग्राम पंचायत/जनपद पंचायत/ जिला पंचायत क्षेत्र पर नहीं होगा, जो संबंधित पंचायतों के अंतिम निर्वाचन के बाद किसी नगरीय क्षेत्र में शामिल हो गए हैं।
मप्र पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश-2021 एकी अधिसूचना जारी होने के बाद भाजपा-कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस ने सरकार के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाने की बात कही है। पूर्व मंत्री व कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा ने सरकार पर पलटवार करते हुए कहा कि राजनीतिक फायदे के लिए भाजपा सरकार ने कांग्रेस का परिसीमन रद्द किया है। भिजवाना सुनिश्चित करें। प्रमुख सचिव ने कहा कि अध्यादेश के अनुसार शीघ्र पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग कार्रवाई करें।
उधर, कानूनी दांवपेंच की परवाह किए बिना भाजपा पंचायत चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। इसकी देखादेखी कांग्रेस भी चुनावी तैयारी कर रही है। दूसरी तरफ राज्य निर्वाचन आयोग लगातार चुनावी प्रक्रिया में लगा हुआ है। आयोग ने कलेक्टरों को निर्देशित किया है कि वे चुनावी तैयारी को अंतिम रूप दें। वहीं जिलों में चुनावी तैयारियां तेज हो गई हैं। चुनाव आयोग लगातार फीडबैक ले रहा है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि जल्द ही पंचायत चुनाव का बिगुल बजेगा।
जयस बिगाड़ेगा भाजपा-कांग्रेस का खेल
मप्र की सियासत में भाजपा और कांग्रेस की नजर भले ही आदिवासी वोटर्स पर हों लेकिन सियासी दलों की कवायद के पलट आदिवासी संगठन जयस ने अपनी ताकत को और मजबूत कर लिया है। जयस ने मालवा निमाड़ के साथ पूरे प्रदेश में आदिवासी बहुल इलाकों में अपने संगठन का विस्तार कर लिया है। उसने युवाओं को संगठन से जोड़ने में भाजपा और कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया है। आदिवासी संगठन जयस के साथ जुड़े युवाओं की संख्या 5 लाख से ज्यादा हो गई है। प्रदेश में पांच लाख तो देश में करीब 20 लाख युवा जयस के सदस्य बन चुके हैं। यही कारण है जयस ने नीमच में आदिवासी युवक के साथ घटना के विरोध में अपना शक्ति प्रदर्शन किया तो सियासी दलों की नींद उड़ गई। जयस के अध्यक्ष डॉ. हीरालाल अलावा का कहना है कि संगठन का लगातार विस्तार हो रहा है। अब पूरे प्रदेश में आदिवासी युवा, हमारे इस संगठन से जुड़ रहा है। सिर्फ आदिवासी ही नहीं बल्कि दूसरी जाति के लोगों को भी इससे जोड़ा जा रहा है। आदिवासी क्षेत्रों में जयस की बढ़ती पैठ से भाजपा और कांग्रेस दोनों के अंदर हलचल तेज है। हालांकि कांग्रेस जयस की बढ़ती ताकत से इसलिए खुश है क्योंकि जयस के अध्यक्ष हीरालाल अलावा कांग्रेस के टिकट पर विधायक हैं और पार्टी को पूरा भरोसा है कि 2023 के चुनाव में जयस उसके साथ होगी और उससे कांग्रेस को मजबूती मिलेगी।
- धर्मेंद्र सिंह कथूरिया