मप्र में देर से ही सही लेकिन दुरुस्त तरीके से पंचायत चुनाव का घमासान शुरू हो गया है। गैर राजनीतिक होने के बाद भी पंचायत चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की साख दांव पर है। क्योंकि दोनों पार्टियों ने अपने समर्थकों को सरपंच से लेकर अन्य पदों पर मैदान में उतारा है। लेकिन इन सबके बीच इस बार का पंचायत चुनाव मिसाल बनने जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रदेश की अधिकांश पंचायतें समरस हो रही हैं।
मप्र में हो रहे पंचायत चुनाव को 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसकी वजह यह है कि राजनीतिक पार्टियों ने अपनी विचारधारा वाले जमीनी नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है। इससे भाजपा और कांग्रेस का जमीनी वोटबैंक मजबूत होगा। वहीं इस बार पंचायत चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उस अपील का खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जिन पंचायतों में चुनाव निर्विरोध होंगे, उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा। इसका असर यह देखने को मिल रहा है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में पंचायतें समरस हो रही हैं। यानी पंच-सरपंच या अन्य पद पर प्रत्याशी निर्विरोध चुने जा रहे हैं।
दरअसल, त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव में निर्विरोध निर्वाचन को प्रोत्साहित करके मुख्यमंत्री चौहान ने गांव में नया राजनीतिक अध्याय लिखने की कोशिश की है। राज्य का कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहां निर्विरोध निर्वाचन की दिशा में कदम न बढ़ाया गया हो। भाजपा के नेता और कार्यकर्ता पोलिंग स्टेशन पर निर्विरोध निर्वाचन का प्रयास करते दिखाई दिए। इस कारण चुनाव में उनका पलड़ा स्वाभाविक तौर पर भारी दिखाई देगा। समरसता के लिए सरकार ने एक कदम बढ़ाया है तो कई कदम एक साथ इस दिशा में आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, अगले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। विधानसभा के चुनाव अगले साल के नवंबर-दिसंबर में होना है। राज्य में इन दिनों पंचायत और नगरीय निकाय दोनों की ही निर्वाचन प्रक्रिया एक साथ चल रही है। त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं। जबकि नगरीय निकाय के चुनाव दलीय आधार पर हो रहे हैं। ये दोनों चुनाव अगले विधानसभा चुनाव के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इसे सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। इन चुनावों में भाजपा की रणनीति अधिकतम वोट और समर्थन हासिल करने की है। ग्रामीण इलाकों में समरस पंचायत का उपयोग भी पार्टी अपना जनाधार बढ़ाने के लिए कर रही है। जबकि कांग्रेस इन चुनावों का उपयोग रणनीतिक तौर पर नहीं कर रही है। ग्रामीण स्तर पर कांग्रेस पार्टी सक्रिय भी दिखाई नहीं दे रही है। उसने इस चुनाव से दूरी बना रखी है।
मप्र सरकार प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के मिशन पर काम कर रही है। यह मिशन तभी कारगर होगा, जब प्रदेश में राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक एकता रहेगी। इसको ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंचायत चुनाव में निर्विरोध चुनाव कराने पर जोर दिया है, ताकि पूरी पंचायत एकमत होकर एक व्यक्ति को अपनी पंचायत के विकास की जिम्मेदारी सौंप सके। समरस पंचायत को बनाने का उद्देश्य ग्रामीण परिवेश में प्रेम और सद्भाव को बरकरार रखना है। पिछले कुछ चुनावों में छुटपुट ऐसी घटनाएं सामने आईं थीं जिनमें आपसी रंजिश की वजह पंचायत चुनाव रही। गांव में समरसता को बढ़ाने के लिहाज से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्विरोध निर्वाचन को प्रोत्साहित करने के लिए विकास के लिए अतिरिक्त राशि पुरस्कार स्वरूप देने की घोषणा की है। इसके तहत जिन ग्राम पंचायतों में सरपंच निर्विरोध निर्वाचित होंगे, उन्हें 5 लाख रुपए का ईनाम दिया जाएगा। इसके अलावा सरपंच पद के लिए वर्तमान निर्वाचन व पिछला निर्वाचन लगातार निर्विरोध होने पर 7 लाख और सरपंच-पंच के सभी पदों पर महिलाओं का निर्वाचन निर्विरोध रूप से होने पर 15 लाख रुपए दिए जाएंगे। गांव के समरसता के भाव को समझते हुए जबलपुर जिले के विधायक अजय विश्नोई ने भी खुद के विधानसभा क्षेत्र में होने वाले निर्विरोध निर्वाचन के लिए ढाई लाख रुपए की राशि पुरस्कार में देने की घोषणा की है। बुरहानपुर जिले के ग्राम मांजरोद समरस पंचायत का अनूठा उदाहरण है। इस गांव की पंचायत में पिछले 60 साल से निर्विरोध निर्वाचन हो रहा है। इस बार इस पंचायत की महिला सरपंच सहित सभी 12 पंच पदों पर निर्विरोध महिला प्रतिनिधि बनने जा रही हैं। इसका असर गांव के सामाजिक कार्यों में भी दिखाई देता है।
राज्य के लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में समरस पंचायत बनाने में सक्रिय रहे हैं। उनके विधानसभा क्षेत्र के ग्राम पंचायत पिपरिया गोपाल में लगातार सातवीं बार सरपंच सहित पंच निर्विरोध चुने गए। आदिवासी महिला के लिए आरक्षित पंचायत सरपंच पद पर ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से शारदा आदिवासी को चुना। 32 साल पहले जगदीश कपस्या का चुनाव निर्विरोध हुआ था। इस पंचायत में ग्रामीण आपसी सहमति से मंदिर में बैठकर पंच और सरपंच पदों पर दावेदारी करने वालों से चर्चा करते हैं और सर्वसम्मति से पंच, सरपंच चुन लेते हैं। चुने गए प्रतिनिधि नामांकन की औपचारिकता पूरी करते हैं और एक-एक नामांकन होने पर निर्विरोध निर्वाचन हो जाता है। इस साल पंचायत सरपंच पद पर शारदा आदिवासी निर्वाचित हुई हैं। निर्विरोध निर्वाचन का सबसे रोचक उदाहरण मंदसौर जिले में देखने को मिला। आदिवासी क्षेत्र राणापुर से करीब 35 साल पहले जिले के आक्याबिका में मजदूरी के लिए आए परिवार की महिला अब गांव की प्रधान होकर कमान संभालेगी। सालों से गांव के खेतों में मजदूरी करने वाली मांगी बाई अब गांव का विकास करेगी।
दमोह जिले की कुंवरपुर खेजरा ग्राम पंचायत में सरपंच के साथ सभी 17 पंच निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। आश्चर्यजनक बात यह थी कि सरपंच के अलावा इस ग्राम पंचायत की अन्य सभी सीटें अनारक्षित थीं लेकिन यहां किसी भी सीट पर किसी पुरुष ने नामांकन नहीं किया और सभी 17 पदों पर महिलाओं का निर्विरोध निर्वाचन हुआ। बीते पंचायत चुनाव में इसी ग्राम पंचायत से सोमेश गुप्ता ने सरपंच का चुनाव जीता था। सोमेश ने प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों से यह चुनाव जीता था। जिसके बाद सोमेश को सरपंच संघ का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया था। विकास के लिए अतिरिक्त राशि के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह घोषणा भी की थी कि वे समरस पंचायत में लोगों का धन्यवाद करने पहुंचेगें। मुख्यमंत्री की इस अपील का भी असर दिखाई दिया है। रतलाम जिले की धानासुता के निर्विरोध निर्वाचित पंच-सरपंच अपने मांग पत्र के साथ अब मुख्यमंत्री का इंतजार कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह मेरे लिए अत्यंत आनंद और हर्ष का क्षण है कि पंचायत निर्वाचन-2022 में मप्र समरस पंचायतों की दिशा में अग्रसर हो रहा है। प्रदेश में अनेक ग्राम पंचायतें ऐसी हैं, जहां नाम निर्देशन पत्रों की संवीक्षा के बाद हमारी बहनें और भाई निर्विरोध सरपंच और उप सरपंच चुने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह समाज में आ रहे सकारात्मक परिवर्तन का द्योतक होने के साथ ही महिला सशक्तिकरण का भी जीवंत उदाहरण है। मुख्यमंत्री चौहान ने प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत निर्वाचन के प्रथम चरण में नामांकन-पत्रों की जांच के बाद सामने आई स्थिति पर ट्वीट कर भावना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हम सबका ध्येय केवल विकास और जन-कल्याण है। मुझे खुशी है हमारी समरस पंचायतें और हम सभी इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। हमारी बहनें बढ़ें, पंचायतें बढ़ें और मप्र विकास के क्षेत्र में एक नया इतिहास रच दे, मेरी यही कामना है।
पंचायत चुनाव में बुरहानपुर जिले खकनार जनपद क्षेत्र का एक गांव उदाहरण बना है। यहां की मांजरोद खुर्द पंचायत में बीते 60 साल से बिना किसी चुनाव के ग्राम पटेल और बाद में सरपंच चुनने की परपंरा कायम थी। इस बार इस पंचायत की महिला सरपंच सहित सभी 12 पंच पदों पर निर्विरोध महिला प्रतिनिधि बनने जा रही हैं। ग्रामीण विकास का ध्येय लेकर और जन-भागीदारी को बढ़ाते हुए विकास की ओर अग्रसर होते मुख्यमंत्री चौहान पिछले माहों में लगातार ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण करते रहे। उन्होंने ग्रामीणों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि सभी एकजुट होकर गांव में विकास की भावना के साथ काम करें और निर्वाचन में अपनी पंचायत को समरस बनाकर उदाहरण प्रस्तुत करें।
नारीशक्ति ही पंच परमेश्वर
प्रदेश में पंचायत चुनाव की सरगर्मी और दावेदारी की लंबी कशमकश के बाद गांव की सरकार बनाने के लिए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव करवाए जा रहे हैं। लेकिन इस दौरान मप्र की कई ग्राम पंचायतों ने अपने पंच, सरपंच का चुनाव निर्विरोध कर लिया है। प्रदेश के कई जिलों में ऐसे मामले सामने आए हैं। खास बात यह है कि निर्विरोध चुनी गईं सभी पंच सरपंच महिलाएं हैं। यहां भी महिलाएं ही निर्विरोध चुनकर अपना परचम लहरा रही हैं। बुरहानपुर जिले के खकनार तहसील क्षेत्र के ग्राम मांजरोद में 60 साल से सरपंच निर्विरोध चुनते चले आ रहे हैं। इस बार गांव की सरकार जैसे सरपंच, उप-सरपंच सहित पंचों के पदों पर सभी महिलाएं चुनी गई हैं। इसके चलते पंचायत का नाम गिनीज बुक में दर्ज कराने की तैयारी भी की जा रही है। राज्य सरकार भी इस ग्राम पंचायत को 15 लाख रुपए की राशि देकर पुरस्कृत करेगी। वहीं बालाघाट की ग्राम पंचायत मांजरोद में बीते 60 सालों से आज तक यहां पर मतदान ही नहीं हुआ है। यहां हर बार निर्विरोध सरपंच चुनकर आते हैं। इस बार ग्राम सरकार के सभी पदों पर महिलाएं उम्मीदवार चुनी गई हैं।
महिला सशक्तिकरण की मिसाल
इसी तरह मुरैना में भी निर्विरोध महिला सरपंच को चुना गया है। जिले की तीन ग्राम पंचायतें महिला सम्मान और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनकर उभरी हैं। यहां सरपंच और पंच के पदों पर महिलाओं को निर्विरोध चुना गया है। मुरैना जिला संभवत: पूरे राज्य में पहला है, जहां तीन ग्राम पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों को चुनावी जंग में निर्विरोध मैदान में उतारा गया है। वहीं आंवलीखेड़ा ग्राम पंचायत महिला वर्ग के लिए आरक्षित थी, जिसमें सरपंच से लेकर 10 पंच निर्विरोध चुने गए। उक्त ग्राम पंचायत आष्टा विकासखंड में निर्विरोध की सूची में दर्ज होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के अनुसार इस ग्राम पंचायत को विकास कार्य के लिए 15 लाख रुपए निर्विरोध चुने जाने पर दिए जाएंगे। वहीं सीहोर, धार सहित प्रदेश के कई जिलों में नामांकन पत्रों की जांच के बाद समरस पंचायत यानी निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति बनी है। प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में महिला सशक्तिकरण की तस्वीर नजर आ रही है। इस बार के पंचायत चुनावों में पुरुषों पर महिलाएं भारी हैं। प्रदेश की 112 पंचायतों में निर्विरोध सरपंच निर्वाचित हुए हैं। 112 में से 75 ग्राम पंचायतों में महिलाएं निर्विरोध सरपंच चुनी गई हैं।
- कुमार राजेन्द्र