पानी का संकट
02-Jul-2020 12:00 AM 668

 

पूरा देश जहां एक ओर कोरोना महामारी से जूझ रहा है तो वहीं मप्र और उप्र के बुंदेलखंड के लिए कोविड-19 से बड़ी समस्या है- 'पानी की समस्या।’ यहां जल समस्या चरम पर है। ग्रामीण कई-कई किलोमीटर दूर पानी लेने जाने को मजबूर हैं। एक या दो नहीं बल्कि सैकड़ों गांव पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। कई गांव में टैंकर के जरिए पानी की सप्लाई होती है लेकिन पैसे देकर ही पानी मिल पाता है। वहीं टैंकर से पानी लेते वक्त जिस तरह रोजाना भीड़ जुटती है उससे सोशल डिस्टेंसिंग की भी धज्जियां उड़ रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू होने के बाद क्षेत्र में करीब 10 लाख प्रवासी लौट आए हैं। जबकि कोरोनावायरस को लेकर कोई ब्रेक-अप उपलब्ध नहीं है, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 6 लाख से अधिक लोग पानी से कमी वाले गांवों में वापस आ गए हैं। इस कारण इन गांवों में लोग कोरोना संकट से ज्यादा 'जल संकट’ से परेशान हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन गांवों में बड़ी संख्या में श्रमिक वापस लौटे हैं जिससे जल संसाधनों पर तनाव बढ़ गया है। मप्र और उप्र की सरकारों का कहना है कि जलसंकट का समाधान जल्द ही किया जाएगा, यहां तक कि यह भी दावा किया गया कि लॉकडाउन के दौरान संकट से निपटने के लिए नियंत्रण कक्ष स्थापित किए गए थे। पन्ना के एक गांव के रहने वाले 30 वर्षीय युवक अनिल सेन बताते हैं कि गांव के आसपास 20 से अधिक हैंडपंप लगे हैं लेकिन सिर्फ एक या दो हैंडपंप में पानी आता है। वो भी कब आएगा इसकी कोई गारंटी नहीं। इसी वजह से उन्हें दो से तीन किलोमीटर पैदल चलकर पानी लेने जाना पड़ता है।

अनिल बताते हैं, 'घर के लिए पानी की आपूर्ति टैंकर से होती है जिसे लोग खरीदकर पीते हैं। जो नहीं खरीद पाते वो कई-कई किलोमीटर रोजाना बर्तन लेकर पानी लेने जाते हैं। लॉकडाउन-1 में भी जाते थे, अभी भी जाते हैं, क्या करें कोरोना से ज्यादा बड़ा यहां पानी का संकट है।’ कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए लॉकडाउन का पहला चरण 25 मार्च को लागू किया गया था, बाद में तीन बार और लॉकडाउन की घोषणा की गई। 'अनलॉक-1’ के तहत, इस महीने की शुरुआत में अधिकांश प्रतिबंध हटा दिए गए हैं। इसी गांव की रहने वाली 42 वर्षीय गीता प्रजापति बताती हैं कि रोजाना कम से कम तीन बार वह बर्तन लेकर 2 किमी दूर पैदल चलकर पानी लेने जाती हैं। गीता ने बताया, ' एक बार में दो या तीन बर्तन से ज्यादा उठाकर लाना आसान नहीं होता। पिछले कई साल से यहां की यही स्थिति है।’ गीता आगे कहती हैं, 'लॉकडाउन में कोई सुधार नहीं दिखा। शुरुआत में घर से बाहर निकलने में डर लगता था लेकिन क्या करें मजबूरी है।’

बुंदेलखंड में पानी की कमी तो सालों भर ही रहती है लेकिन गर्मी का मौसम शुरू होते ही यहां के हालात बदतर हो जाते हैं और यह हाल कई वर्षों से है। झांसी के पास स्थित रक्सा गांव से ही कुछ किमी दूर स्थित पुनावली कला गांव के निवासी 52 वर्षीय रामअवतार बताते हैं, 'गांव का कुआं पूरी तरह से सूख चुका है। पानी का संकट गहरा गया है। कई बार टैंकर वाला दो रुपए या 2.5 रुपए तक प्रति डिब्बा चार्ज करता है। ऐसे में लॉकडाउन के इस दौर में पानी का खर्च झेल पाना बड़ा मुश्किल हो रहा है।’ रामअवतार बताते हैं, 'लॉकडाउन में उनके बेटे की नौकरी भी चली गई। ऐसे में पानी खरीदकर पीना बहुत कठिन होता जा रहा है।’

दुनियाभर की सरकारों सहित उप्र सरकार ने भी कोविड-19 संक्रमण के खतरे के बीच सोशल डिस्टेंसिंग को कोरोना की लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार बताया है। लेकिन इन गांवों में, इसका निरीक्षण करना मुश्किल है। खजराहा गांव की सहूरी देवी का कहना है, 'गांव में लोग कोरोना से बचने के लिए बार-बार हाथ धुलने की बात करते हैं लेकिन जब घर में पानी ही नहीं तो हाथ कैसे धुलें। घर में पैसा ही नहीं तो मास्क, सैनेटाइजर कहां से खरीदें।’ सहूरी आगे कहती हैं, 'यहां 3 महीने से अधिक हो गया लॉकडाउन को लेकिन यहां कोई सैनेटाइजर, मास्क लेकर बांटने नहीं आया और न ये सब बांटते हुए दिखा।’ इसी गांव की देववती कहती हैं, 'जब टैंकर वाला आता है तो जिस तरह से लोग एक साथ पानी लेने निकलते हैं उससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे होगा।’ देववती के मुताबिक, 'लोग करें भी तो क्या, उन्हें ये डर लगता है कि अगर टैंकर वाले से पानी नहीं लिया तो क्या पीएंगे।’ वह आगे कहती हैं, 'पीने का पानी अधिकतर लोग टैंकर का ही इस्तेमाल करते हैं। हैंडपंप में कई बार गंदा पानी आता है, उसे पीने के इस्तेमाल में नहीं लिया जा सकता। कोरोना के डर से लोग पानी लेना तो नहीं छोड़ सकते।’

स्थानीय अधिकारियों ने कहा था कि योजना के तहत बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप पेयजल योजना के अंतर्गत झांसी, जालौन, ललितपुर, बांदा महोबा, हमीरपुर और चित्रकूट जिले में बेतवा, केन, मंदाकिनी, जामनी व धसान नदी तथा विभिन्न बांधों से पानी लेकर गांवों में पहुंचाया जाएगा।

कई बार प्रशासन को लिखा पत्र, नहीं हुआ एक्शन

सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह राजपूत पानी की समस्या को लेकर कहते हैं, 'वह पानी की किल्लत को लेकर पिछले कई महीनों से प्रशासन को पत्र लिख रहे हैं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।’ राजेंद्र बताते हैं, 'गांव के लोग एक रुपए प्रति डिब्बा के हिसाब से पानी लेते हैं। एक आदमी 70-80 रुपए प्रति दिन पानी पर ही खर्च कर देता है जो कि महीने में लगभग 2500 रुपए हुआ।’ उन्होंने बताया, 'ऐसे में जिनके पास पैसा नहीं है, खर्च करने को उसकी स्थिति को समझिए। वो रोजाना बाल्टियां लेकर आसपास के उन गांवों में जाता है जहां पर हैंडपंप चल रहे हों।’ राजेंद्र सिंह राजपूत के मुताबिक रक्सा गांव के आसपास दो पंप हाउस बनाए गए उसके बावजूद टंकियों में पानी नहीं आता। घरों के बाहर कई लोगों ने मोटर भी लगवाए लेकिन पानी नहीं आया पर पानी का बिल जरूर आ गया। ये हाल केवल रक्सा और पुनावली कला गांव का नहीं बल्कि झांसी जिले के दो दर्जन से अधिक गांवों का है। जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक व बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह बताते हैं, 'पानी की समस्या यहां नई नहीं है। सरकारें बदलती हैं, अधिकारी आते-जाते हैं लेकिन जमीनी हालात वैसी ही रहती है।’

- सिद्धार्थ पांडे

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